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संघ एवं परिसंघ में अन्तर
संघ एवं परिसंघ के अन्तर को समझने के पहले हमें यह देख लेना अनिवार्य है कि परिसंघ से क्या अभिप्राय है। जब कुछ प्रभुता सम्पन्न राज्य कुछ निश्चित लक्ष्यों को प्राप्त करने के दृष्टिकोण से अन्तर्राष्ट्रीय समझौते द्वारा एक उच्चतर संगठन की स्थापना करते हैं तो उसे परिसंघ (Confederation) कहा जाता है । ओपेनहाइम के शब्दों में ” परिसंघ में कई पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न राज्य सम्मिलित होते हैं । परिसंघ बनाने का उनका उद्देश्य होता है-अपनी आन्तरिक एवं वैदेशिक स्वतंत्रता को बनाये रखना। इस हेतु वे एक प्रकार की अन्तर्राष्ट्रीय संधि भी करते हैं। उक्त संधि के द्वारा जो संघ बनता है उसके सदस्य राज्यों के ऊपर अधिकार अवश्य मिल जाते हैं किंतु उक सदस्य राज्यों के नागरिक किसी प्रकार भी परिसंघीय, संगठन के प्रति भक्ति नहीं रखते। हाल के अनुसार, “परिसंघ ऐसे स्वतंत्र एवं संप्रभु राज्यों का संघ है जो सदैव के लिए कुछ उद्देश्यों के हेतु अपनी स्वतंत्रता को त्याग देते हैं और वे साझे की सरकार में इस प्रकार मिले होते हैं कि परिसंध अन्तर्राष्ट्रीय संगम का स्वरूप ले लेता है।”
जैसा कि हम पहले ही कह चुके हैं, संघ एवं परिसंघ में कुछ मूलभूत अन्तर हैं हालाँकि कुछ विचारक दोनों में भेद नहीं मानते। उनका कहना है कि दोनों की व्युत्पत्ति एक ही शब्द ‘फाएडस’ से हुई है, दोनों स्वतंत्र एवं सम्प्रभुता सम्पन्न राज्यों के बीच समझौते से बनते हैं और दोनों में ही एक केन्द्र का निर्माण होता है। फिर भी दोनों में आधारभूत अन्तर हैं जो इस प्रकार है-
1. परिसंघ में सम्मिलित होने वाले राज्य परिसंघ के गठन के बाद भी स्वतंत्र बने जबकि संघ में सम्मिलित होने वाले राज्य अपनी स्वतंत्रता खो देते हैं। जर्मनी में ‘परिसंध’ के लिए ‘स्टाटेन बण्ड’ या राज्यों का संघ प्रयुक्त करते हैं जबकि सघ के लिए ‘बन्द्रस्टाट’ यानी ‘संयुक्त राज्य’ शब्द का प्रयोग किया जाता है । हम देख ही चुके हैं कि संघ में अनेक राज्यों क विलय करके एक नवीन राज्य का निर्माण होता है, और परिसंघ में समझौते के फलस्वरूप किसी नवीन राज्य का उदय नहीं होता। वस्तुत: परिसंध में तो अनेक राज्यों के पारस्परिक संबंधों में कुछ नवीनता आ जाती है।
2. संघ में जब राज्य अपनी संप्रभुता का त्याग कर देते हैं, तो एक नवीन प्रभुत्व शक्ति का आविर्भाव होता है, लेकिन परिसंघ में ऐसा नहीं होता। परिसंघ की इकाइयाँ अपनी-अपनी प्रभुत्व शक्ति अपने पास ही सुरक्षित रखती हैं। गान्नर के निम्न वक्तव्य से यह तथ्य और स्पष्ट हो जाता है-“संघीय शासन के विपरीत परिसंघ में केवल एक प्रभुसत्ता नहीं होती, इसमें कई प्रमुख शक्तियाँ होती हैं, वास्तव में उतनी ही जितने राज्य इसके सदस्य होते हैं।”
3. संघ का गठन संविधान के माध्यम से होता है जो संघ की सर्वोच्च विधि होता है, किन्तु परिसंघ किसी संधि या समझौते के द्वारा जन्म लेता है, जो एक प्रकार का अन्तर्राष्ट्रीय समझौता होता है।
4. संघ स्थायी होता है और संध की इकाइयाँ संघ से पृथक् नहीं हो सकतीं। किन्तु परिसंघ के घटक राज्य परिसंघ से अलग हो सकते हैं और उनके विरुद्ध कोई वैधानिक आपत्ति नहीं की जा सकती।
5. यदि किसी परिसंघ के राज्यों में सशस्त्र युद्ध छिड़ जाय तो उसे अन्तरा्ट्रीय युद्ध माना जाएगा, लेकिन संघ के राज्यों के बीच युद्ध को गृह-युद्ध की संज्ञा प्रदान की जाती है।
6. संघ में केन्द्रीय सरकार की स्थापना संविधान के द्वारा की जाती है और संविधान में संशोधन किये बिना केन्द्रीय सरकार की शक्तियों को घटाया-बढ़ाया नहीं जा सकता किन्तु परिसंघ में स्वयं इसके घटक राज्य ही केन्द्रीय सरकार की सृष्टि करते हैं और उसकी शक्तियों में परिवर्तन कर सकते हैं अथवा उसे नष्ट भी कर सकते हैं।
7. परिसंघ का निर्माण करने वाले घटक राज्यों की अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति बनी रहती है और वे दूसरे सम्प्रभु राज्यों से कूटनीतिक सम्बन्ध स्थापित कर सकते हैं, किन्तु संघ की इकाइयाँ ऐसा नहीं कर सकतीं।
8. संघ का अपने राज्यों से सीधा सम्बन्ध और अपनी नागरिकता होती है। इसके विपरीत परिसंघ का सम्बन्ध केवल अपने सदस्य राज्यों से होता है और नागरिकों से उसका कोई भी सम्बन्ध नहीं होता। कहने का अभिप्राय यह है कि परिसंघ में कोई नागरिक होते ही नहीं।
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