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शीर्षक के प्रकार- Shirshak ke Prakar
शीर्षकों के कुछ प्रमुख उदाहरणों का विवेचन किया जा रहा है जो कि इस प्रकार है-
1. एक पंक्ति का शीर्षक अथवा क्रास लाइन
यह शीर्षक सबसे सीधा सादा होता है। इस शीर्षक में केवल एक ही पंक्ति होती है, जो एक से अधिक कालम में फैली हुई हो सकती है। यह दोनों तरफ के कालम को छूती हुई हो सकती है। जिसे दोनों तरफ ‘फ्लश करना कहते हैं अथवा कालग के बीचों-बीच हो सकती है। अधिकांश समाचार पत्र कम महत्त्व के समाचारों के लिए इसी शीर्षक का प्रयोग करते हैं, लेकिन इसमें एक कठिनाई यह है कि शब्दों को नाप-तौल कर इस प्रकार बैठाना पड़ता है कि वे विशेष आकार के टाइप में चौड़ाई में फिट हो जावें। इस कठिनाई के कारण अब इसका प्रयोग कम हो चला है। हाँ, एक से अधिक खंडों वाले शीर्षक में बीच बीच में कमी इसका प्रयोग दिखाई पड़ जाता है।
2. सीढ़ीदार शीर्षक अथवा स्टेप लाइन
इस प्रकार के शीर्षक की चर्चा ऊपर भी की जा चुकी है। इसमें शीर्षक की पंक्तियाँ क्रमशः दाई ओर सरका दी जाती हैं जिससे एक-सीढ़ी सी बन जाती है।
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3. उल्टा त्रिकोण अथवा इन्वर्टेड पिरामिड
इस शीर्षक में पहली पंक्ति क्रास लाइन के समान पूरे कालम में फैली हुई होती है, दूसरी पंक्ति उससे छोटी और तीसरी पंक्ति उससे भी छोटी होती है और कालम के बीचों बीच दी जाती है। इस प्रकार का शीर्षक देखने में अच्छा लगता है, लेकिन इसका नाप-तौल कठिन होता है तथा इसके बनाने में समय भी काफी लग जाता है।
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4. झूलता हुआ शीर्षक अथवा हैंगिंग इंडेन्सन
यह शीर्षक भी लगभग उल्टे त्रिकोण वाले शीर्षक के समान ही होता है। अंतर यह है कि यहाँ ऊपर वाले शीर्षक की दूसरी और तीसरी पंक्तियाँ एक दूसरे से छोटी होती हैं, वहाँ इस शीर्षक की दूसरी और तीसरी पंक्तियों बराबर, किन्तु प्रथन पंक्ति से छोटी होती है। इस शीर्षक में क्रमांक 3 बले शीर्षक की अपेक्षा अधिक शब्द आ जाते हैं और इसीलिए शीर्षक के अनेक में से एक खण्ड के लिए इसका प्रयोग होता है।
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5. बाईं तरफ कालम को छूने वाला शीर्षक अथवा फ्लश लेफ्ट
यह आधुनिकतम शीर्षक जो अधिकांश समाचार पत्रों में प्रयुक्त होता है। इसमें शीर्षक की सभी पंक्तियों को केवल बांई तरफ कालम को छूने दिया जाता है तथा दाहिनी ओर का भाग छोटा बड़ा रखने की स्वतंत्रता होती है। दाहिनी ओर की कौन-सी पंक्ति लम्बी हो और कौन-सी छोटी इस सम्बन्ध में कोई निश्चित नियम नहीं है, लेकिन इससे भी एकरूपता रह सके। तो शीर्षक की सुन्दरता और भी बढ़ जाती है।
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आज के अधिकांश समाचार-पत्र फ्लश लेफ्ट अथवा उसके ही विभिन्न प्रकारों का उपयोग करते हैं। इस प्रकार के शीर्षक लिखने में आसान होते हैं, क्योंकि इनमें टाइप की नाप-तौल का इतना झगड़ा नहीं रहता और पंक्तियों को छोटा-बड़ा करने की छूट रहती है। इसके सिवा, इसमें शब्द की अपेक्षाकृत अधिक आ जाते हैं।
विभिन्न समाचार पत्रों में इस शीर्षक के अनेक प्राकर दिखाई पड़ते हैं। जब इसी प्रकार के शीर्षक में दाहिनी ओर भी पंक्तियाँ एक सीध में आ जाती हैं तब इसे वर्गाकार अथवा संशोधित ‘फ्लश लेफ्ट कहा जाता है। यदि शीर्षक एक से अधिक खण्डों वाला हो और सभी खण्ड ‘फ्लश लेफ्ट’ पद्धति के हों, तो दूसरे खण्ड को थोड़ा दाहिनी ओर खिसका दिया जाता है।
इस प्रकार के शीर्षक का प्रयोग सबसे पहले वर्ष 1928 में ‘न्यूयार्क मार्निंग टेलिग्राफ’ नामक पत्र ने प्रारम्भ किया। सन् 1928 से ‘लाइनो टाइप न्यूज’ ने इस प्रकार के शीर्षकों का जोरों से प्रचार किया। भारत में भी अब अंग्रेजी, हिन्दी आदि सभी भाषाओं में समाचार पत्र अब इस प्रकार के शीर्षकों का जोरों से प्रयोग कर रहे हैं।
6. बेलनाकार शीर्षक
तीन पंक्तियों वाले शीर्षक में जब ऊपर और नीचे की पंक्तियाँ बराबर होती हैं और बीच की पंक्ति उनसे छोटी और दोनों के मध्य में होती है तब बेलनाकार शीर्षक का निर्माण होता है। अनेक समाचार पत्रों में इस शीर्षक का उपयोग होता है।
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7. दो या अधिक कालम में फैला हुआ शीर्षक अथवा ‘स्प्रेड’
जो शीर्षक या शीर्षक खण्ड दो या अधिक कालम में फैला रहता है उसे ‘स्प्रेड’ शीर्षक कहते हैं। इससे एक या एक से अधिक पंक्तियाँ हो सकती है। इन पंक्तियों को ‘फ्लश लेफ्ट’ ‘ड्राप लाइन’ अथवा ‘क्रास लाइन’ इनमें से किसी भी पद्धति से जमाया जा सकता है।
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8. ओवरलाइन, शोल्डर हेडिंग व शीर्षक के ऊपर दी जाने वाली अर्द्ध पंक्ति
शीर्षकों की पद्धति में यह सबसे नवीन प्रयोग है। इसमें शीर्षक का सबसे आकर्षक अथवा महत्त्वपूर्णभाग एक छोटी पंक्ति में शीर्षक के ऊपर दे दिया जाता है तथा उसके नीचे रूल दे दी जाती है। इस प्रकार शीर्षक से छोटे टाइप में होते हुए भी इसे लगभग शीर्षक के समान ही स्थान प्राप्त हो जाता है। कभी-कभी यह ओर लाइन शीर्षक के ऊपर देने की अपेक्षा सामग्री के बीच में दे दी जाती है जिसे ‘अण्डर लाइन’ कहा जा सकता है।
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9. रॉकेट शीर्षक
रॉकेट शीर्षक का प्रयोग अपेक्षाकृत कठिन है, क्योंकि इसमें समाचार और शीर्षक के बीच कोई अन्तर नहीं रहता। समाचार को इस ढंग से लिखा जाता है कि उसका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंश प्रारम्भ में हो और उसे शीर्षक के टाइप में कम्पोज करा लिया जाता है। उसके बाद उससे छोटे शीर्षक टाइप में और फिर बाडी टाइप में समाचार जारी रखा जाता है। भारत के समाचार पत्रों में इस प्रकार के शीर्षक देखने में नहीं आये। नीचे का उदाहरण श्री अलबर्ट ए. सुटन लिखित पुस्तक डिजाइन एण्ड मेकअप आफ न्यूज पेपर के पृष्ठ 285 से लिया गया है जिससे इस प्रकार शीर्षक का ज्ञान हो सके।
इस प्रकार के शीर्षक का प्रयोग सबसे पहले अलमोसा कोरियर नामक समाचार पत्र ने प्रारम्भ किया था और शुरू-शुरू में सभी समाचार पत्रों का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ था। किन्तु इसके प्रयोग में अनेक कठिनाइयाँ हैं। सम्पादकीय विभाग के लोग समचार को इस प्रकार लिखें कि उसकी पहली पंक्ति से शीर्षक का निर्माण हो सके। फिर वह लिखा भी इस तरह जाय कि टाइप की नाप तौल में फिट बैठे।
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इस सारी कठिनाइयों को दृष्टिगत रखते हुये यह शीर्षक अधिक लोकप्रिय नहीं हो सका।
ऊपर केवल उन प्रमुख प्रकार के शीर्षकों चर्चा की गई है जो इस समय अधिकांश समाचार पत्रों में प्रचलित । यह बता समीचीन होगा कि शीर्षकों के प्रकार की कोई अंतिम और सर्वव्यापी सूची दिया जाना सम्भव नहीं है। समय के परिवर्तन के साथ ही समाचार पत्र की साज-सज्जा और शीर्षकों के प्रकार में भी परिवर्तन हुआ है और होता रहेगा। इसलिए इस क्षेत्र में सदा ही नये-नये प्रयोग होते रहेंगे और शीर्षकों का स्वरूप निरन्तर विकासमान रहेगा।
- पत्रकारिता का अर्थ | पत्रकारिता का स्वरूप
- समाचार पत्र में शीर्षक संरचना क्या है?
- समाचार शब्द का अर्थ | समाचार के तत्त्व | समाचार के प्रकार
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