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साइमन कमीशन रिपोर्ट की मुख्य सिफारिशें (Simon Commission in Hindi)
साइमन कमीशन रिपोर्ट की मुख्य सिफारिशें- 1927 में सरकार ने भारत की राजनीति का अध्ययन करने के लिए साइमन की अध्यक्षता में ‘साइमन कमीशन’ की नियुक्ति की यह कमीशन 3 फरवरी, 1927 को मुम्बई पहुँचा। इसके सातों सदस्य अनुदार विचार के अंग्रेज थे। उसमें एक भी भारतीय को स्थान नहीं दिया गया था। इस कमीशन का उद्देश्य यह पता लगाना और ब्रिटिश संसद को रिपोर्ट करना था कि ब्रिटिश भारतीय प्रान्तों में शासन-प्रणाली किस प्रकार चल रही है, शिक्षा की वृद्धि और प्रतिनिधि संस्थाओं का विकास कहाँ तक हुआ, क्या उत्तरदायी शासन के सिद्धान्त की स्थापना आवश्यक है अथवा नहीं, यदि है तो किस सीमा तक उत्तरदायी शासन की मात्रा में वृद्धि की जाय। इस कमीशन का देश के प्रत्येक स्थान पर बहिष्कार किया गया। जनता ने ‘साइमन वापस जाओ’ के नारे लगाये और उसे काले झण्डे दिखाये। सरकार ने भी कठोरता से प्रदर्शनकारियों का दमन किया। 10 अक्टूबर, 1928 को पंजाब केशरी लाला लाजपत राय पुलिस की लाठियों से बुरी तरह घायल हुए और 17 नवम्बर को उनका देहान्त हो गया। इस लाठी प्रहार पर उन्होंने कहा, “मेरी शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी की चोट ब्रिटिश साम्राज्य के कफन की एक-एक कील होगी।” पण्डित गोविन्द वल्लभ पन्त तथा पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने भी लखनऊ के जुलूस में लाठियाँ खायीं।
साइमन कमीशन की रिपोर्ट
अनेक कठिनाइयों के बाद मई, 1930 में साइमन कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित हुई। इस रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार थीं—
(1) कमीशन ने सिफारिश की कि 1919 के अधिनियम के अनुसार जो द्वैध शासन प्रान्तों लागू किया गया है वह असफल सिद्ध हुआ है। अतः प्रान्तों में द्वैध शासन को समाप्त कर पूर्ण में उत्तरदायी शासन की स्थापना हो।
(2) प्रान्तों में उत्तरदायी शासन की सफलता के लिए कमीशन ने सिफारिश की कि कम-से- कम 10 से 15 प्रतिशत वयस्क लोगो को मताधिकार प्रदान किया जाय, किन्तु चुनाव का आधार साम्प्रदायिकता हो।
(3) कमीशन ने सुझाव दिया कि विधान मण्डल का पुनर्गठन किया गया। केन्द्रीय विधान- मण्डल में दो सदन हों। निचले सदन का नाम संघीय सभा और उच्च सदन का नाम राज्य परिषद हो। दोनों का निर्वाचन प्रान्तीय विधान मण्डलों द्वारा हो । प्रथम सदन में प्रान्तों के स्थान जनसंख्या के आधार पर निश्चित किये जायँ और उच्च सदन में प्रत्येक प्रान्त को तीन-तीन स्थान दिये जायें।
(4) विधान-मंडल की संख्या में वृद्धि के सम्बन्ध में कमीशन ने सिफारिश की कि अधिक महत्त्वपूर्ण प्रान्तों में विधान मण्डलों की सदस्य संख्या 200 से 250 तक की जाय और उनमें सरकारी सदस्य के दसवें भाग से अधिक नहीं होनी चाहिए। कमीशन ने यह भी सुझाव दिया कि जिन प्रान्तों में मुसलमानों के प्रतिनिधियों की संख्या कम हो वहाँ मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बढ़ाया जाय।
(5) सेना के सम्बन्ध में कर्मीशन ने यह सुझाव दिया कि अभी उस ब्रिटेन का ही नियन्त्रण बना रहना चाहिए परन्तु उसका व्यय भारत को वहन करना चाहिए। प्रतिरक्षा विभाग के लिए गवर्नर को ही उत्तरदायी रहना चाहिए और वह इस कार्य में सर्वोच्च सेनापति से परामर्श लेगा।
(6) कमीशन ने इस बात पर जोर दिया कि प्रत्येक दस वर्ष बाद जाँच करने के लिए ‘संविधान आयोग’ की नियुक्ति के तरीके को समाप्त कर दिया जाय और भारत के लिए एक ऐसा लचीला संविधान बनाया जाय जो स्वयं ही आवश्यकतानुसार विकसित हो सकें। कमीशन ने सुझाव दिया कि गवर्नर जनरल को अल्पसंख्यक जातियों हितों का विशेष ध्यान रखने का अधिकार दिया जाय।
(8) कमीशन से सिफारिश की कि भविष्य में संघीय शासन की स्थापना के उद्देश्य से भारत के कौंसिल की स्थापना की जाय जिसमें ब्रिटिश प्रान्त और देशी रियासतों के प्रतिनिधि हों। कौंसिल सामान्य हित के समस्त प्रश्नों पर विचार करे।
साइमन कमीशन की उपर्युक्त रिपोर्ट भारतीयों को सन्तुष्ट नहीं कर सकी क्योंकि इसमें भारत को ‘औपनिवेशिक स्वराज्य’ देने की कोई चर्चा नहीं की गयी थी।
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