अनुक्रम (Contents)
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय
ईश्वरीय आशीर्वाद से युक्त प्रतिभाशालियों की यदि पृथक से चर्चा की जाए तो हिंदी के क्षेत्र में महान योगदान लिए इन्हें भी इसमें स्थान प्रदान किया जाएगा।
हिंदी के विख्यात छायावादी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 21 फरवरी, 1896 को महिषादल स्टेट मिदनापुर बंगाल में हुआ था। यद्यपि इनके पूर्वजों का स्थान उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का गढ़कोला गांव रहा था, किंतु इनके पिता महिषादल स्टेट में कार्य करते थे। बंगाल में रहने की वजह से ‘ मातृभाषा के रूप में निराला ने बंगला भाषा का ज्ञान भी सीखा। हिंदी भाषा का ज्ञान इन्होंने तदंतर ‘सरस्वती’ जैसी पत्रिकाओं के पुराने संग्रह से एक-एक वाक्य पढ़कर प्राप्त किया। औपचारिक शिक्षा इन्हें दसवीं तक ही प्राप्त हो पाई थी।
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का परिचय (Intro to Suryakant Tripathi Nirala)
नाम | सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (Suryakant Tripathi Nirala) |
जन्म | 21 फरवरी 1896, मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल, भारत |
मृत्यु | 15 अक्टूबर 1961, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश, भारत |
जीवनकाल | 65 वर्ष |
पिता | पंडित रामसहाय त्रिपाठी |
पत्नी | मनोहरी देवी |
पुत्री | 1 |
कविताएँ | अणिमा, अनामिका, अपरा, अर्चना, आराधना, कुकुरमुत्ता, गीतगुंज इत्यादि |
उपन्यास | अप्सरा, अलका, इन्दुलेखा, काले कारनामे, चमेली, चोटी की पकड़, निरुपमा इत्यादि |
निबंध | चयन, चाबुक, प्रबंध पद्य, प्रबंध प्रतिमा, प्रबंध परिचय, बंगभाषा का उच्चारण, रवीन्द्र-कविता-कानन आदि |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
प्रसिद्धि का कारण | कवि, लेखक |
1922 में निराला कोलकाता से प्रकाशित रामकृष्ण मिशन के पत्र ‘समन्वय के संपादकीय विभाग में सेवाएं देने लगे थे। अपनी प्रसिद्ध कविता ‘जूही की कली’ ये पूर्व में ही लिख चुके थे। ‘समन्वय’ पत्र के माहौल ने इनके दार्शनिक विचारों में और भी परिपक्वता प्रदान की। इसके पश्चात् ये ‘मतवाला’ के संपादक मंडल में शामिल हुए। यहां इनकी काव्य प्रतिभा को और भी निखरने का मौका प्राप्त हुआ।
1930 से 1942 तक निराला ज्यादातर लखनऊ एवं इलाहाबाद में रहे। इस अर्से में भी इनका गंभीर काव्य सृजन कार्य जारी रहा, लेकिन व्यावहारिक कारणों के चलते गद्य साहित्य की रचना भी करनी पड़ी। जिसके फलस्वरूप इनकी ‘लिली’, ‘चतुरी चमार’, ‘सुकुल की बीवी’, ‘सखी’, ‘अप्सरा’, ‘अलका’, ‘प्रभावती’ तथा ‘निरुपमा’ जैसी कहानियों की प्रसव वेदना संभव हुईं । निराला की प्रसिद्ध काव्य रचनाएं ‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘अनामिका’, ‘तुलसीदास’, ‘अणिमा’ और ‘नए पत्ते’ रही हैं। ‘कुल्ली भाट’ और ‘बिल्ले सुर बकरिहा’ इनकी क्रांतिकारी गद्य रचनाओं के रूप में पहचानी जाती हैं।
निराला ने हिंदी काव्य को क्रमोन्नत किया। परंपराकालीन छंदबद्ध रचना को स्थानापन्न करके इन्होंने मुक्त छंद का उपयोग किया। इनकी सोच यह थी कि कविता की मुक्ति छंदों के शासन से पृथक हो जाने में है। भावों की मुक्ति छंदों की भी मुक्ति चाहती है। शुरू में रीतिवादियों ने निराला का विरोध किया, लेकिन इनकी परम पौरुषमयी, शख्सियत के समक्ष बौना ही रह गया। इनकी प्रसिद्धि काव्य जगत में भारतीय संस्कृति के नव सृष्टा क्रांतिकारी कवि और प्रचलित रुढ़ियों को चुनौती देने वाले साहित्यकार के रूप में हुई। ‘महाप्राण’ और ‘क्रांतिदृष्टा’ के नाम से भी इन्हें संबोधित किया गया। ये कवि के अलावा दानी व्यक्ति भी रहे हैं।
किसी गरीब को देखकर अपने शरीर के वस्त्र तक दे देने की इनकी कई कहानियां प्रचलित रही हैं। जीवन के आखिरी दौर में निराला मानसिक विकार से ग्रस्त हो गए थे। इसी स्थिति में 15 अक्टूबर, 1961 में इलाहाबाद में इनका निधन हो गया, किंतु इनका कार्य अमर है।
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की कविताएँ (Poems by Suryakant Tripathi Nirala) – अणिमा, अनामिका, अपरा, अर्चना, आराधना, कुकुरमुत्ता, गीतगुंज, गीतिका इत्यादि।
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ के उपन्यास (Novels by Suryakant Tripathi Nirala) – अप्सरा, अलका, इन्दुलेखा, काले कारनामे, चमेली, चोटी की पकड़, निरुपमा, प्रभावती इत्यादि।
You May Also Like This
- कविवर सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- कविवर बिहारी का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- रसखान का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- सूरदास का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय, रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल- जीवन-परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएँ
- सूरदास जी की जीवनी और साहित्यिक परिचय
- तुलसीदास का साहित्यिक परिचय
- भक्तिकाव्य की प्रमुख प्रवृत्तियां | भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएं
- सूरदास जी की जीवनी और साहित्यिक परिचय (Surdas biography in Hindi)