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तकनीकी मीडिया (Technological Media)
आज हम जिस युग में रह रहे हैं वह तकनीकी युग है। आज हमारा समाज आधुनिकता के रंग में पूरी तरह से रंग चुका है। आधुनिकता व तकनीकी की छाप हमारे रहन-सहन, खान-पान, चिकित्सा, मनोरंजन सभी के ऊपर स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। आज तकनीकी का इस्तेमाल घरों से लेकर अस्पतालों में हो रहा है। तो फिर हमारी शिक्षा व्यवस्था इससे अछूती कैसे रह सकती है? आज हमारी शिक्षा प्रणाली बिना तकनीकी के प्रयोग से बेजान और अधूरी सी लगती है। या यों कहें कि आज तकनीकी का प्रयोग अच्छी शिक्षा प्रणाली का मानक बन गया है। जब हम आज की शिक्षा प्रणाली की बात करते हैं तो ‘शिक्षा में तकनीकी’ और ‘शिक्षा की तकनीकी दोनों बिंदुओं की जानकारी होना बहुत जरूरी है। यदि हम शिक्षा में तकनीकी की बात करते हैं तो इसमें मुख्यतः वैज्ञानिक साधनों का प्रयोग किया जाता है। जैसे- कम्प्यूटर ओवर हेड प्रोजेक्टर इत्यादि। वहीं दूसरी तरफ शिक्षा की तकनीकी में वैज्ञानिक साधनों के साथ मनोवैज्ञानिक विधियों का भी प्रयोग कर शिक्षण कार्य को सम्पन्न किया जाता है। जैसे आज तकनीकी के द्वारा मानव की जटिल से जटिल समस्या बटन दबाते ही हल हो रही है वहीं इसका नकारात्मक प्रभाव बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास पर भी पड़ रहा है। मशीनीकरण के द्वारा बच्चा आलसी और श्रमहीन होता जा रहा है। परन्तु आज समय बदल रहा है और बदलते समय के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने के लिए मानव को तकनीकी के साथ तालमेल बिठा कर चलना बहुत जरूरी है। आज तकनीकी विकास ने मानव को अंतरिक्ष तक पहुँचा दिया है। आज का मानव सिर्फ पृथ्वी ही नही बल्कि अन्य ग्रहों की भी जानकारी रख रहा है। यदि हम हमारी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की बात करें तो आज उसमे तकनीकी का प्रयोग बहुत अधिक हो रहा है। अगर हम ये कहें की आज की शिक्षा व्यवस्था पूर्णतः तकनीकी पर निर्भर हो रही है तो इसमें अतिशयोक्ति नही होगी। आज विद्यालयों में उच्च स्तर पर ही नही बल्कि प्राथमिक स्तर से ही शिक्षण में तकनीकी का प्रयोग हो रहा है। आज विद्यालयों में निम्नलिखित तकनीकी मीडिया का प्रयोग किया जा रहा है-
टेली- कान्फ्रेंसिंग / दूरस्थ-सभा (सम्मेलन) (Tele-Conferencing)
टेली- कान्फ्रेंसिंग, एक ऐसी विद्युत (इलेक्ट्रॉनिक) युक्ति है, जिसमें दूरस्थ स्थान पर उपस्थित व्यक्ति किसी विषय-वस्तु, प्रकरण पर चर्चा परिचर्चा में भाग ले सकते हैं उस पर अपनी तात्कालिक प्रतिक्रियाएँ दे सकते हैं या प्राप्त कर सकते हैं। टेली- कान्फ्रेन्सिंग हेतु अनेक उपकरण यथा – विभिन्न टेलीफोन, बडी (big) स्क्रीन, कम्प्यूटर प्रिन्टर, इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। अन्ततः यह प्रक्रिया अन्तःप्रक्रिया का ही एक स्वरूप है जो कि दूर-दूर बैठे व्यक्तियों के मध्य स्थापित की जाती है। टेली- कान्फ्रेन्सिंग का प्रचलन अमेरिका में टेलीफोन व टेलीफोन पिक्चर फोन के द्वारा 1960 में प्रारम्भ हुआ। आज नवीनतम् तकनीकों के द्वारा टेली- कान्फ्रेन्सिंग का स्वरूप अधिक विकसित व क्षेत्र अधिक व्यापक हुआ है। इसमें द्विमार्गीय (two-way) प्रसारण द्वारा अन्तःक्रिया सामूहिक संचार (Interactive Group communication) की व्यवस्था होती है।
टेलीकान्फ्रेन्सिंग के प्रकार (Types of Teleconferencing)
शिक्षा के क्षेत्र में टेलीकान्फ्रेन्सिंग एक सशक्त माध्यम के रूप में प्रदीप्त हुआ है। इसमें कई प्रकार के माध्यम का प्रयोग कर पारस्परिक समूह के द्वारा दो या अधिक पक्षीय प्रसारण संप्रेषण की सुविधा होती है। टेलीकान्फ्रेंसिंग के निम्न 3 रूप प्रचलन में हैं-
(1) आडियो कान्फ्रेंसिंग (Audio-Conferencing) – यह कान्फ्रेंसिंग का सबसे पुराना प्रचलित रूप है। इसमें दूरस्थ बैठे व्यक्तियों में संवाद हेतु विभिन्न टेलीफोन लाइनों का प्रयोग किया जाता है। यह केवल श्रव्य क्षेत्र तक सीमित है।
(2) वीडियो कान्फ्रेंसिंग (Video-Conferencing)- इसमें व्यक्ति आपसी संवाद स्थापित करने के अतिरिक्त एक दूसरे को स्क्रीन पर देख भी सकते हैं। इसका क्षेत्र ऑडियों कान्फ्रेंसिंग से विस्तृत होकर श्रव्य के साथ-साथ दृश्य क्षेत्र तक हो जाता है।
(3) कम्प्यूटर कान्फ्रेंसिंग (Computer-Conferencing) – वर्तमान में प्रचलित कान्फ्रेंसिंग का अत्याधुनिक रूप कम्प्यूटर कान्फ्रेंसिंग ही है। इस कान्फ्रेंसिंग में कम्प्यूटर की बहुआयामी सेवाओं का उपयोग कर कान्फ्रेंसिंग को अधिक यथार्थवादी रूप दिया जाता है। इसमें न केवल दृश्य-श्रव्य संप्रेषण होता है वरन् इण्टरनेट द्वारा लिखित सामग्री आदि का भी संप्रेषण किया जा सकता है।
इस प्रकार टेली-कान्फ्रेन्सिंग दूर संवाद की ऐसी तर्कसंगत प्रणाली है जिसमें अनेक व्यक्तियों द्वारा इलेक्ट्रानिक माध्यम की सहायता से उसी प्रकार सामूहिक- संप्रेषण संवाद, सम्मेलन, सभा व अन्तः क्रियाएँ कर सकते हैं। जिस प्रकार एक स्थान पर व्यक्ति एक दूसरे के आमने-सामने बैठकर परम्परागत संवाद / संभाषण करते हैं।
टेली-कान्फ्रेंन्सिंग के शैक्षिक लाभ एवं उपयोग (Educational Advantages and Uses of Teleconferencing)
टेली-कान्फ्रेन्सिंग के शैक्षिक लाभ एवं उपयोग निम्नलिखित हैं-
(1) दूरवर्ती अधिगम में सहायक (Helpful in Remote Learning) – इससे दूरवर्ती छात्रों में अध्ययन के प्रति लगन पैदा होती है। यह व्यापक क्षेत्रों में व दूर-दूर बैठे छात्रों के लिए उपयुक्त होती हैं। दूरस्थ शिक्षा के छात्र अपनी उपलब्धियों की स्वयं जाँच कर सकते हैं। छात्रों की आन्तरिक प्रेरणा तथा जिज्ञासा में वृद्धि होती है जिससे छात्र ज्यादा सीखते हैं।
(2) लचीली प्रविधि (Flexible Techniques)- इस प्रकार की प्रविधि को तुरन्त छोटे या बड़े समूहों के रूप में व्यवस्थित किया जा सकता हैं।
(3) नियन्त्रित अधिगम (Controlled Learning)– अनुदेशन या कार्यक्रम के आयाम को विभिन्न केन्द्रों द्वारा नियन्त्रित किया जा सकता हैं।
(4) प्रभावशाली अनुदेशन (Effective Instruction)– अनुदेशन सामग्री के स्तर को सुधारा जा सकता हैं या उसी रूप में प्रयोग किया जा सकता हैं।
(5) समय सारणी में सहायक (Helpful in Time Table)- इसमें पारस्परिक ढंग से न उपलब्ध होने वाले छात्रों के लिए भी समय सारणी व्यवस्थित की जा सकती हैं।
(6) तात्कालिक पृष्ठपोषण (Immediate Feedback)- इस प्रणाली द्वारा छात्रों को तुरन्त पृष्ठपोषण प्रदान किया जाता हैं। जिससे छात्रों को अधिगम में सहायता प्राप्त होती हैं व छात्र सक्रिय, सफल अधिगम की ओर आकर्षित होता है।
इस प्रकार टेलीकान्फ्रेंसिंग के सभी रूप शिक्षण क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं।
इलेक्ट्रॉनिक मेल या ई-मेल (Electronic Mail or E-Mail)
प्राचीन समय में हम पत्रों या अन्य दस्तावेजों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने के लिए डाक (Post) का इस्तेमाल करते थे जो कि असुरक्षित, कठिन व अधिक समय लेने वाला होता था परन्तु आज इण्टरनेट की सेवा ई-मेल द्वारा यह कार्य अधिक आसान हो गया है। आज हम तुरन्त एक सेकेण्ड में ही अपनी Post किसी भी कोने में पहुँचा सकते हैं। अतः इलेक्ट्रॉनिक मेल से तात्पर्य इण्टरनेट पर उपलब्ध उस साधन या सेवा से है जिसका उपयोग कहीं भी बैठे हुए व्यक्तियों के बीच सन्देश या दस्तावेजों के आदान-प्रदान के लिए किया जाता है। ई-मेल (E-mail) में सन्देश किसी व्यक्ति द्वारा नहीं पहुँचाया जाता बल्कि इण्टरनेट के नेटवर्क पर इलेक्ट्रॉनिक सन्देश के रूप में एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर पर आते हुए अपनी सही जगह पर उपलब्ध कराया जाता है। इस तरह सन्देशों को आसानी से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाया जाता है। अतः यदि कोई सूचना अथवा दस्तावेज इलेक्ट्रॉनिक रूप से एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर में स्थानान्तरित हो जाए तो इसे इलेक्ट्रॉनिक मेल कहा जाएगा।
यह एक ऐसी प्रणाली है जिसमें इलेक्ट्रानिक नेटवर्क तथा उसके बाहर विभिन्न प्रकार के लिखित सन्देशों का आदान-प्रदान किया जाता है।
“It is a system for exchanging written messages electronically through network and beyond.”
इस सुविधा में प्रयोगकर्ता को माँगने पर केन्द्रीय कम्प्यूटर पर उपस्थित डिस्क पर स्थान दिया होता है जहाँ वह अपनी मेल को सुरक्षित रख सकता है। इस स्थान को मेल बॉक्स कहा जाता है। इस मेल बॉक्स का एक पता होता है जिसे ई-मेल पता (E-mail Address) कहा जाता है। यदि हमें किसी व्यक्ति को इण्टरनेट की सहायता से मेल भेजना है तो हमें उस व्यक्ति का E-mail Address पता होना चाहिए तभी हम उसे ई-मेल कर सकते हैं। हॉटमेल (Hotmail), याहू (Yahoo), रेडिफ मेल (Rediffmail), जीमेल (Gmail) आदि अनेक ऐसे इण्टरनेट सर्वर हैं जो मुफ्त (Free) मेल भेजने तथा अपना एकाउन्ट बनाने की सुविधा देते हैं, जैसे- aman@yahoo.com |
भाषा प्रयोगशाला (Language Laboratory)
शिक्षा में नवीनता लाने के लिए भाषा प्रयोगशालाओं की संकल्पना की गई है। इस प्रयोगशाला में भाषा से सम्बन्धित अध्ययन को साकाररूप प्रदान किया गया है। इस प्रयोगशाला में भाषा के विभिन्न आयामों का वैज्ञानिक विधि से अध्ययन किया जाता है। वर्तमान युग में विकास नवीनतम साधनों द्वारा किया जा सकता है। भाषा प्रयोगशाला हिन्दी भाषा के शिक्षण में उपयोगी साधन है।
भाषा प्रयोगशाला एक विशेष प्रकार से एवं विशेष तकनीकों एवं यन्त्रों से सज्जित, शिक्षण कक्ष होता है। यहाँ पर भाषा का अध्ययन कराया जाता है। इस प्रयोगशाला में रिकार्ड किए गए व्याख्यानों का प्रयोग किया जाता है। इसमें छात्रों को शब्दों तथा वाक्यों को सुनाया जाता है। इस प्रकार भाषा का अभ्यास कराया जाता है। इस प्रयोगशाला में गद्य, पद्य, नाटक, आदि का ज्ञान दिया जाता है।
रॉबर्ट लेडो (Robert Lado) के अनुसार, “भाषा प्रयोगशाला भाषा शिक्षण का केन्द्र है जिसमें छात्रों के सुनने, बोलने, तथा लिखने आदि के लिए नियन्त्रित वातावरण प्रदान किया जाता है।”
ए. एस. ह्यास (A.S. Hayas) के अनुसार, “भाषा प्रयोगशाला एक कक्षा कहलाता है जिसमें विदेशी भाषा के अधिगम को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए विशेष प्रकार के उपकरण जुटाए गए हैं। सामन्यतः कार्य साधारण व्यवस्था में इतना प्रभावशाली नही बन सकता।”
वेबिनार (Webinar)
सर्वप्रथम वेबिनार (Webinar) शब्द का प्रयोग 2008 में लेक सुपीरियर विश्वविद्यालय (Lake Superior University) में किया गया। वेबीनार (Web based) सेमिनार (Seminar) है। ऐसी आकर्षक सेमिनार को वर्ल्ड वाइड वेब (www) के द्वारा Conduct कराया जाता है। इस प्रकार की सेमिनार या प्रजेन्टेशन में इण्टरनेट का प्रयोग कर भिन्न-भिन्न स्थानों पर बैठे प्रतिभागी एक साथ भाग ले सकते हैं, आपसी बातचीत कर सकते हैं, प्रश्न पूछ सकते हैं तथा प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं। इसे वेब कान्फ्रेन्सिंग (Web Conferencing) भी कहा जाता है।
उदाहरण के रूप में आजकल हम टी.वी. पर (News Channel) इस प्रकार की कान्फ्रेन्सिंग देख सकते हैं। किसी भी राजनैतिक मुद्दे पर चर्चा करने के लिए विभिन्न पार्टियों के प्रवक्ता भाग लेते हैं और अपनी-अपनी जगह पर बैठे हुए एक-दूसरे के प्रश्नों का उत्तर देते हैं तथा एक-दूसरे पर कटाक्ष करते हैं और अन्त में चैनल के माध्यम से ही इस तरह की वार्ता का समापन किया जाता है।
Webinar को तकनीकी भाषा में अम्ब्रेला टर्म (Umbrella Term) के नाम से भी जाना जाता है। इसके प्रयोग से इण्टरनेट द्वारा विभिन्न विषयों पर बहुभाषीय व्यक्तियों को एक साथ एक ही समय में और अलग-अलग स्थानों पर भी अपने विचारों का एक-दूसरे को आदान-प्रदान किया जाता है। अतः Webinar शब्द का प्रयोग व्याख्यान, कार्यशाला एवं वेब सेमिनार के एक समूह के रूप में किया जाता है। वेब शब्द को वेबकास्ट (Web cast) के नाम से भी जाना जाता है। जिसका अर्थ है रेडियो एवं टीवी पर दिखाए जाने वाले प्रसारण से है।
भौगोलिक दृष्टि से यह विभिन्न स्थानों पर बैठे विशेषज्ञों से एक-दूसरे से बातचीत (Voice), व्याख्यान एवं ऑडियो-वीडियो चैट आसानी से की जा सकती है और घर बैठे ही विभिन्न समस्याओं का हल निकाला जा सकता है।
Webinar द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम, व्याख्यान एवं विषय विशेषज्ञों की प्रजेन्टेशन आदि को देखा या सुना जा सकता है एवं अपनी किसी भी समस्या एवं जिज्ञासा के अनुरूप पुनः विषय-विशेषज्ञों से वार्तालाप किया जा सकता है। अपने प्रश्नों के उत्तर प्राप्त किए जा सकते हैं। अतः वेब कान्फ्रेन्सिंग सॉफ्टवेयर के माध्यम से विभिन्न प्रतिभागी एक साथ सेमिनार में भाग ले सकते हैं।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि वेबिनार एक Live ऑनलाइन शैक्षिक प्रजेन्टेशन है जिसमें प्रतिभागी अपने प्रश्न और टिप्पणी कर सकते हैं एवं उनका उत्तर प्राप्त कर सकते हैं। यह एक इन्टरैक्टिव एलीमेन्ट है जिसमें द्विमार्गी (Two-Way) ऑडियो एवं वीडियो की तरह की प्रक्रिया है जो प्रस्तुतकर्ता (Presenter) व प्रतिभागी (Participants) दोनों को सूचनाएँ आदान-प्रदान करने की अनुमति प्रदान करती है।
सामान्यतः वेबिनार का प्रयोग मीटिंग, रिमोट प्रशिक्षण और कार्यशाला के लिए किया जाता है। वेबिनार को आवश्यकतानुसार प्रयोग करने के लिए रिकार्ड भी किया जाता है। इसका वितरण (Distribution) भी होता है अर्थात् एक रिकार्डिंग वेबिनार वेबकास्ट हो जाती है। अर्थात् यह रिकॉर्ड वेबिनार उस समय One Way कार्य करती है अर्थात् इस रिकार्डिंग सामग्री को केवल देखा व सुना जा सकता है, इसके बीच में हस्तक्षेप सम्भव नहीं होता है।
स्मार्ट कक्षाएँ (Smart Classes)
शिक्षा के क्षेत्र में यह एक विशिष्ट तकनीकी है। इस तकनीकी में छात्रों को अध्यापन कराने के लिए एक बोर्ड स्क्रीन दीवार पर लगी होती है तथा प्रोजेक्टर को लगभग मध्य में छत पर सेट कर दिया जाता है। प्रोजेक्टर की किरणें परावर्तित (Reflect) होकर स्क्रीन के ऊपर पड़ती हैं जिसके प्रकाश से स्क्रीन पर प्रत्येक फिल्म, शिक्षा से सम्बन्धित कार्यक्रम साफ दिखाई पड़ता है। यह तकनीक कम्प्यूटर स्क्रीन एवं श्यामपट दोनों की तरह कार्य करती है। शिक्षा में आने वाली नई नई चुनौतियों का सामना अध्यापक इसके प्रयोग से सरलता से कर लेता है।
विभिन्न प्रकार की तकनीकी का प्रयोग स्मार्ट कक्षाओं में किया जाता है। जैसे, T.V.. L.C.D., Computer, Internet Visualisation, P. P. T. आदि । स्मार्ट कक्षाओं में बहु-माध्यम उपागम (Multimedia Approach) का प्रयोग करके शिक्षा व कार्य किया जाता है।
बहुमाध्यम उपागम एक ऐसा पद है जिसमें विभिन्न माध्यमों में अनेक सॉफ्टवेयर्स के समूहों अथवा उनका एकत्रीकरण करके सामूहिक प्रस्तुतीकरण किया जाता है जिसमें विषय-वस्तु ग्राफिक्स, चित्र, आवाज, संगीत, प्रतिकृति तथा वीडियो इमेज आदि का प्रयोग कम्प्यूटर के द्वारा या प्रोजेक्टर में C.D. आदि लगाकर किया जाता है।
दीपिका बी. शाह ने बहुमाध्यम की परिभाषा इस प्रकार दी है, इसका तात्पर्य एक से अधिक माध्यम से है, जो एक सम्प्रेषण में क्रमशः अथवा साथ-साथ प्रयोग किए जाते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार विभिन्न माध्यम, विभिन्न प्रकार के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु प्रयोग किए जाते हैं। अतः विभिन्न माध्यमों का अलग-अलग प्रयोग न करके उनको एकीकृत रूप में प्रयोग किया जाना चाहिए।
अतः स्मार्ट कक्षाएँ एवं बहु-माध्यम उपागम का अभिप्राय है संचार की आधुनिक तकनीकियों का विधिवत् एवं सुचारू रूप से शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग करना जिससे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाया जा सके।
स्मार्ट कक्षाओं में शिक्षण हेतु प्रत्येक कक्षा की पाठ्यचर्या की C.D. बनाई जाती है जो विषय वस्तु को बोलकर चित्रों व संगीत तथा उदाहरण आदि के माध्यम से प्रस्तुत करती है। इस प्रकार का शिक्षण विशेषकर CBSE बोर्ड में कक्षा दस तक कराया जाता है। स्मार्ट कक्षाओं द्वारा छात्रों की कई इन्द्रियों को सक्रिय कराया जाता है। इसी उद्देश्य हेतु स्मार्ट कक्षाओं में शिक्षक शिक्षण हेतु ऐसी अत्याधुनिक तकनीकों का प्रयोग करता है। जिसके द्वारा अधिकांश छात्र अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्ति कर सके व पढाई गई विषय वस्तु बालक के मस्तिष्क में चिरस्थायी बन सके। कुछ ऐसे ही अत्याधुनिक उपकरण जैसे- स्मार्ट बोर्ड, विजुएलाइजर प्रोजेक्टर ( Visualiser Projector) इत्यादि उपकरणों का प्रयोग स्मार्ट कक्षाओं में शिक्षण हेतु किया जाता है।
कम्प्यूटर सह अनुदेशन (Computer Assisted Instruction-CAI)
जब कम्प्यूटर का प्रयोग अधिगम में सहायता के लिए अथवा अनुदेशन प्रक्रिया को नियन्त्रित करने के लिए किया जाता है तो उसे कम्प्यूटर सह अनुदेशन कहते हैं। इसमें छात्र व शिक्षक के मध्य अन्तः क्रिया (Interaction) होती है। इसमें कम्प्यूटर नियन्त्रित उपकरणों के द्वारा विषयवस्तु छात्रों के समक्ष प्रस्तुत होती है तथा छात्रों की अनुक्रिया के लिए उन्हें तुरन्त पृष्ठपोषण प्राप्त होता है। इसमें उपचारात्मक शिक्षण की भी व्यवस्था होती है।
शिक्षा शब्दकोश में सी.ए.आई. का अर्थ इस प्रकार स्पष्ट किया गया है, “कम्प्यूटर सह-अनुदेशन एक स्वचालित अनुदेशनात्मक प्रविधि है जिसमें स्वचालित आँकड़े तैयार करने वाले उपकरण प्रयोग किए जाते हैं-
(1) जो छात्र के उद्दीपन के प्रस्तुतीकरण को नियन्त्रित,
(2) छात्रों के उत्तरों को स्वीकृत एवं मूल्यांकित करने तथा
(3) उस प्रतिक्रिया पर आधारित वांछित ढंग से छात्रों के उत्तरों को स्वरूप प्रदान करने हेतु अन्य उद्दीपनों को प्रस्तुत करने के लिए होते हैं।”
इसके द्वारा छात्र अपनी योग्यता व गति के अनुसार व्यक्तिगत रूप से स्व-अधिगम प्राप्त करते हुए अधिगम उद्देश्यों को प्राप्त करते हैं। इसके द्वारा छात्र अपनी क्षमता व गति के अनुसार सीखता है। इसमें छात्र को तुरन्त ही पृष्ठपोषण प्राप्त होता है।
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