LLB Notes

परिसीमन विधि का अर्थ, उद्देश्य तथा तर्क | The Limitation law in Hindi

परिसीमन विधि का अर्थ
परिसीमन विधि का अर्थ

परिसीमन विधि का अर्थ (What is The Limitation law)

परिसीमन विधि का अर्थ (What is The Limitation law)- परिसीमन विधि एक ऐसी समयावधि निर्धारित कर है जिसके बीत जाने के पश्चात न्यायालय में वाद (Suit) या कोई विधिक कार्यवाही नहीं की जा सकती या जिस समयावधि के बीत जाने के पश्चात् किसी व्यक्ति के विरुद्ध दायित्व (Liability) का पालन करने के लिए न्यायालय के माध्यम से बाध्य नहीं किया जा सकता। यह दावेदार का अधिकार समाप्त या निलम्बित नहीं करती।

परन्तु यह वाद करने हेतु एक निश्चित समयावधि का प्रावधान करती है तथा वादों को संस्थित करने हेतु निर्धारित विभिन्न समयावधि के पश्चात् वाद संस्थित करने पर प्रतिबन्ध लगाती है। परिसीमन अवधि निर्धारित करने का ढंग या रीति विभिन्न देशों में भिन्न हो सकती है। भारत में विभिन्न वादों के सम्बन्ध में समयावधि अनुसूची में उल्लिखित की गयी है जो परिसीमन अधिनियम के अन्त में लगाई गई है जबकि इंग्लैण्ड में वहाँ के परिसीमन अधिनियम (Limitation Act) की विभिन्न धाराओं में समयावधि को निर्धारित कर दिया गया है। इसके लिए पृथक से कोई अनुसूची या अनुच्छेद (Article) नहीं है।

अधिनियम का उद्देश्य (Purpose of The Limitation law)

परिसीमन (मर्यादा) अधिनियम इस सिद्धान्त पर आधारित है कि विधि सतर्क व्यक्ति की सहायता करती है न कि आलसी व्यक्ति की। एक ऐसा व्यक्ति जो अपने अधिकारों के प्रति लम्बे समय से सोता रहा है, उनके विषय में मुकदमेबाजी (Litigation) नहीं कर सकता। परिसीमन अधिनियम का एक अन्य सिद्धान्त लोकनीति तथा औचित्य भी है।

समाज मे शान्ति तथा सुव्यवस्था हो इसके लिए यह आवश्यक है कि सम्पत्ति का एक (टाइटिल) तथा सामान्य अधिकार निरन्तर अनिश्चितता, सन्देह तथा लम्बित अवस्था में लम्बे समय तक न पड़े रहे। एक पुरानी कहावत है राज्य का हित इसी में है कि मुकदमेबाजी समयावधि के अन्तर्गत समाप्त हो जाय।

यदि परिसीमन अधिनियम नहीं होता तो क्या परिणाम होता, इसको स्पष्ट करने के  लिए लार्ड मैकाले का एक कथन पर्याप्त है। लार्ड मैकाले ने कहा ‘मान लीजिए कि आपके पास परिसीमन अधिनियम वाद लाने हेतु समय सीमा निर्धारित करने वाला अधिनियम नहीं होता तो हममें से किसी भी व्यक्ति पर विनिमय पत्र (Bill of Exchange) के लिए भी वाद लाया जा सकता था जो हमारे दादा या परदादा ने 1760 या उसके पूर्व निष्पादित किया था।

संघ में परिसीमन अधिनियम उस लोक-नीति पर आधारित है कि मुकदमेबाजी की अनिश्चित तथा शाश्वत प्रक्रिया, असुरक्षा, दुर्व्यवस्था, अनिश्चितता तथा भ्रम को जन्म देती है।

मर्यादा या परिसीमन अधिनियम के नियम प्राथमिक रूप से प्रक्रिया के नियम हैं। ये न तो किसी पक्षकार के पक्ष में कोई अधिकार सृजित करती हैं और न ही किसी वाद कारण को परिभाषित करती हैं। परन्तु यह प्रावधान करती हैं कि कोई उपचार कुछ निश्चित समय के पूर्व प्राप्त कर लेना चाहिए कि उसके पश्चात् ।

अधिनियम का उद्देश्य यह नहीं है कि किसी समय सीमा के अन्तर्गत वाद लाने हेतु सक्षमता प्रदान की जाय परन्तु अधिनियम का उद्देश्य उस समय अवधि के पश्चात् पक्षकारों तथा वाद लाने पर प्रतिबन्ध लगाना है जो किसी निश्चित घटना से प्रारम्भ होती है क्योंकि परिसीमन अधिनियम यह मानकर चलता है कि वाद कारण अस्तित्व में परिसीमन के तर्क के सबूत का भार यह साबित करने का भार वादी पर होता है। कि उसके द्वारा लाया गया वाद निर्धारित समय सीमा के अन्तर्गत है, यदि वादी द्वारा लाया गया वाद निर्धारित समय सीमा के अन्तर्गत है।

इसे भी पढ़ें- न्यायालय की अन्तर्निहित शक्तियां | Inherent Powers of Court in Hindi

वादी द्वारा वाद निर्धारित समय सीमा के पश्चात् लाया गया है तो वादी पर यह साबित करने का भार है कि वयस्कता, मूढ़ता या कपट के अन्तर्गत छिपाव या अन्य किसी अपवादित कारणों के आधार पर वाद समय सीमा के अन्तर्गत माना जाना चाहिए तथा इन आधारों को साबित करने का भार वादी पर है।

इसके पश्चात् सबूत का भार प्रतिवादी पर चला जाता है जो यह साबित करे कि मामला (वाद) किसी विशिष्ट अनुच्छेद के अन्तर्गत आता है जिसमें एक ऐसी समयावधि का उल्लेख है जो उस समयावधि से कम (छोटी) है जिसका वादी ने दावा किया है। प्रतिवादी यह भी साबित कर सकता है कि कुछ परिस्थितियाँ हैं जिनके कारण वाद लाने की समय सीमा उस तिथि के पूर्व समाप्त हो चुकी है जिस तिथि को वाद लाया गया था।

प्रतिवादी के विरुद्ध परिसीमन-मर्यादा अवधि या परिसीमन का तर्क सिर्फ वादी के विरुद्ध लिया जा सकता है। इसका कारण यह है कि परिसीमन अधिनियम का उद्देश्य निर्जीव माँगों को उठाने पर प्रतिबन्ध लगना है न कि किसी व्यक्ति को बचाव लेने से रोकना।

परन्तु उपरोक्त के निम्न अपवाद हैं |

1. यदि इस अधिनियम की धारा 25 तथा धारा 27 के अन्तर्गत प्रतिवादी द्वारा वाद लाने पर प्रतिबन्ध लगाया गया है तो प्रतिवादी बचाव के रूप में अपना अधिकार नहीं रख सकता।

2. इसी प्रकार मुजरा तथा प्रतिदावा (Set-off and Counter Claim) का तर्क तब तक नहीं लिया जा सकता जब तक यह तथ्य सिद्ध न कर दिया जाय कि इस प्रकार का दावा परिसीमन अवधि के अन्तर्गत है। अर्थात् दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 8 नियम 6 के अन्तर्गत एक प्रतिवादी अपने विरुद्ध लाये गये कालबाधित (Time Barred) दावों के सम्बन्ध में है। मुजरा (Set-off) का दावा नहीं कर सकता।

3. प्रतिवादी अपने किसी ऐसे अपूर्ण अधिकार का दावा निश्चित समयावधि के पश्चात् कालबाधित (Time Barred) वाद लगाकर नहीं कर सकता जो दावा ऐसे वाद के माध्यम से स्थापित (Established) किया जा सकता था जिसे समय सीमा के अन्तर्गत किया जाना आवश्यक था।

परिसीमन का तर्क

परिसीमन का तर्क कब लिया जाना चाहिए-परिसीमन का तर्क वाद (मुकदमे) के किसी भी स्तर पर उठाया जा सकता है अर्थात् प्रतिवादी ने यदि अपने लिखित कथन (जवाबदेही) (Written Statement) में परिसीमन का तर्क नहीं लिया है तो भी वह सुनवाई (Hearing) के परिसीमन का तर्क ले सकता है। इसी प्रकार परिसीमन का तर्क (Plea of Limitation) प्रथम अपील के समय या द्वितीय अपील के समय भी लिया जा सकता है। परन्तु यदि वह विलम्बित स्तर पर उठाया जाता है तो इस परिस्थिति में न्यायालय निम्न दशाओं में परिसीमन के तर्क को उठाने की अनुमति नहीं देगा-

(क) यदि इससे तथ्य सम्बन्धित प्रश्न की जाँच आवश्यक होती हो।

(ख) परिसीमन के निर्धारण के लिए साक्ष्य लेने की आवश्यकता

(ग) वाद बिन्दु निर्धारित किये जा चुके हों। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि परिसीमन का तर्क है। यथासम्भव वाद की प्रारम्भिक अवस्था में ही उठाया जाना चाहिए।

परन्तु यह वाद के पश्चात्वर्ती अवस्था में कभी कुछ अपवादों के साथ उठाया जा सकता है।

इसे भी पढ़ें…

Disclaimer

currentshub.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है ,तथा इस पर Books/Notes/PDF/and All Material का मालिक नही है, न ही बनाया न ही स्कैन किया है |हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है| यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- currentshub@gmail.com

About the author

shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment