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अधिगम अक्षमता के प्रकार (Types of Learning Disabilities)
अधिगम अक्षमता समान्यतः दो प्रकार की होती है- 1. विकासात्मक अधिगम अक्षमता और 2. अकादमिक अधिगम अक्षमता। इन दोनों प्रकार के अधिगम अक्षमताओं का विस्तृत वर्गीकरण योजना निम्नलिखित है-
1. विकासात्मक अधिगम अक्षमता ( Developmental Learning Disability)-बाल-विकास के क्रम में होने वाली अधिगम संबंधी विकृति को विकासात्मक अधिगम अक्षमता कहा जाता है। यह दो प्रकार की होती है:
(i) प्राथमिक विकासात्मक अधिगम अक्षमता
(ii) द्वितीयक विकासात्मक अधिगम अक्षमता
(i) प्राथमिक विकासात्मक अधिगम अक्षमता (Primary Developmental Learning Disability)- प्राथमिक विकासात्मक अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चे सामान्यतः प्रत्यक्षीकरण संबंधी दोष, अवधान संबंधी दोष एवं व्यवहार संबंधी दोषों से पीड़ित होते हैं। वे अतिक्रियाशीलता की समस्या से भी पीड़ित होते हैं।
(ii) द्वितीयक विकासात्मक अधिगम अक्षमता (Secondary Developmental Learning Disability)- द्वितीयक विकासात्मक अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चों में भाषा की सही समझ का अभाव होता है। वे सही ढंग से सोच नहीं पाते हैं। वे अभिव्यक्ति की अक्षमता से भी ग्रस्त होते हैं।
2. अकादमिक अधिगम अक्षमता (Academic Learning Disability)- अकादमिक अधिगम अक्षमता वैसे अक्षमताओं का समूह है जिनका सीधा संबंध शैक्षिक प्रक्रिया से होता है। इसके अंतर्गत पठन अक्षमता, लेखन विकार, भाषा अभिव्यक्ति संबंधी बाधा, अंकगणितीय कौशल को समझने में कठिनाई और चित्र बनाने में कठिनाई आदि विकार शामिल हैं। इसमें कुछ महत्त्वपूर्ण शैक्षिक अधिगम अक्षमता का विश्लेषण नीचे किया जा रहा है:
(i) पढ़ने संबंधी विकार (Dyslexia)- पढ़ने संबंधी विकार को ” डिस्लेक्सिया ” कहा जाता है। ‘डिस्लेक्सिया’ शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्द ‘dus’ और ‘lexis’ से हुयी है जिसका शाब्दिक अर्थ है-कठिन भाषा वर्ष 1887 में इस शब्द की खोज जर्मनी के आँख रोग विशेषज्ञ रूडोल्फ बर्लिन ने की थी। इसे ‘शब्द अंधता’ भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत पठन विकार से लेकर भाषाई अक्षमता तक समाहित है।
सामान्य विशेषताएँ (General Characteristics)- डिस्लेक्सियाग्रस्त बालक :
(i) सामान्यतः औसत या औसत से अधिक से अधिक बुद्धिलब्धि (IQ) वाले होते हैं।
(ii) औसत बालकों की अपेक्षा पढ़ने-लिखने में कमजोर होते हैं।
(iii) दृष्टि क्षमता 20/20 और श्रवण क्षमता सामान्य होती है।
(iv) अकादमिक उपलब्धि काफी कमजोर होती है।
(v) मौखिक भाषा क्षमता सामान्य होती है लेकिन लिखित भाषिक जाँच परीक्षाओं में उनका प्रदर्शन कमजोर होता है।
(vi) अपने आप को गूँगा महसूस करते हैं। साथ ही उनका स्वाभिमान स्तर भी काफी नीचे होता है।
(vii) पढ़ने संबंधी कमजोरी को छिपाने की कोशिश करते हैं।
(viii) प्रदर्शन, प्रयोग, प्रेक्षण, दृश्य शैक्षिक सामग्री के जरिए अच्छी तरह से शिक्षण अधिगम भी कर लेते हैं।
(ix) कला, नाटक, संगीत, खेल, कहानी-वाचन और व्यवसाय आदि क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन करते हैं।
वाक् श्रवण एवं अन्य कमियाँ (Speech, Hearing & Listening Deficits) : (i) वर्णमाला अधिगम में कठिनाई महसूस करते हैं।
(ii) नाम संबंधी समस्याओं से पीड़ित होते हैं।
(iii) तुकबंदी वाले कविता पहचान करने में असमर्थ होते हैं।
(iv) सुनने में कठिनाई होती है। शब्द ध्वनियों में अंतर स्पष्ट नहीं कर पाते हैं।
(v) अक्षरों की ध्वनियों को सीखने में कठिनाई महसूस करते हैं।
(vi) शब्दार्थ संबंधी कठिनाई ग्रस्त होते हैं।
पढ़ने एवं स्पेलिंग संबंधी कमियाँ (Reading and Spelling Deficit) : (i) ध्वनियों को पहचानने में कठिनाई होती है।
(ii) संवेदी सूचनाओं के प्रोसेसिंग में परेशानी महसूस होती है।
(iii) अध्ययन संबंधी एकाग्रता की कमी महसूस करते हैं।
(iv) अधिगम एकरूपता का अभाव होता है।
(v) पढ़ने में परेशानी होती है।
(vi) वर्णों और शब्दों की निरर्थक व्याख्या करते हैं।
(vii) पढ़ते वक्त स्वर वर्णों को छोड़ देना । उदाहरणार्थ – Magic को mge पढ़ना।
(viii) शब्दों को उल्टा पढ़ना, जैसे नाम को ‘मान’, ‘शावक’ को ‘शाक’, SUN को SNU, GEL को LEG और DOES को DOSE पढ़ना, को DOG पढ़ना GOD आदि।
(ix) स्पेलिंग संबंधी दोष से पीड़ित होना, जैसे-Should की जगह Shud पढ़ना।
(x) समान उच्चारण वाले ध्वनियों को पहचानने में कठिनाई, उदाहरणार्थ- Their और There में अंतर स्पष्ट नहीं होना।
(xi) शब्दोष की कमी।
(xii) भाषा का अर्थपूर्ण प्रयोग नहीं करना, बोले हुए शब्दों का अर्थ नहीं समझना।
(xiii) याददाश्त संबंधी रणनीतियों के प्रयोग की अक्षमता।
(xiv) नियमित रूप से पाठ – पुनरावृत्ति प्रवृत्ति का अभाव।
(xv) कमजोर याददाश्त, जैसे-कविता, कहानी और यहाँ तक शब्दार्थ याद कर पाने की असमर्थता।
(xvi) परीक्षा में कमजोर प्रदर्शन।
(xvii) वर्णमाला के अक्षरों और अंकों को गलत पढ़ना, अथवा क्रम उलट कर पढ़ना। उदाहरणार्थ – b को d पढ़ना, P को Q लिखना आदि।
(xviii) धारा-प्रवाह शब्दोच्चारण का अभाव।
पहचान (Indentification)- हालाँकि लक्षणों एवं विशेषताओं के आधार पर डिस्लेक्सियाग्रस्त बालकों को पहचान पाना मुश्किल होता है, क्योंकि ऐसे बालकों में शैक्षिक रूप से पिछड़े बालकों जैसे लक्षण भी दृष्टिगोचर होते हैं। ऐसे में यह पहचान पाना थोड़ा मुश्किल है कि बालक डिस्लेक्सिक है अथवा नहीं। अमेरिकन फिजिशियन एलेना बोडर ने 1973 में ‘बोड टेस्ट ऑफ रीडिंग स्पेलिंग पैटर्न’ नामक परीक्षण विकसित किया। लेकिन भारत में भी ‘डिस्लेक्सिया अर्ली स्क्रीनिंग टेस्ट’ और ‘डिस्लेक्सिया स्क्रीनिंग टेस्ट’ सरीखे परीक्षण उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से अधिगम अक्षमताग्रस्त बालकों की पहचाना की जा सकती है।
कारण (Causes) – न्यूरो-विकृति डिस्लेक्सिया का मुख्य कारण माना जाता है। हालाँकि यह आनुवंशिक कारणों से भी हो सकता है।
उपचार कार्यक्रम (Remedial Programme)- डिस्लेक्सिया लाईलाज है फिर भी उपयुक्त शिक्षण-अधिगम एवं थीरैपी के जरिए इसे न्यूनतम स्तर पर लाया जा सकता है यानी पठन विकृति से पीड़ित बालक को पढ़ना-लिखना सीखाया जा सकता है। स्कूल स्तर पर प्रभावकारी प्रशिक्षण देकर भी डिस्लेक्सिया का उपचार किया जा सकता है।
डिस्लेक्सिया एवं उससे जुड़ी अवस्थाएँ (Dyslexia and Associated Conditions) – डिसलेक्सिया के अलावा उससे जुड़ी कुछ अन्य अवस्थाएँ भी हैं जो बालक के पढ़ने की क्षमता को प्रभावित करता है। ये अवस्थाएँ हैं :
(i) श्रव्य प्रक्रियात्मक विकृति (Auditory Processing Disorder)- श्रव्य प्रक्रियात्मक विकृति से पीड़ित बालक श्रव्य सूचनाओं को कोड करने वाली क्षमता को प्रभावित करता है। कलांतर में यह श्रव्य कार्यात्मक याददाश्त और श्रव्य सिक्वंसिंग समस्या में तब्दील हो जाता है और अंततः यह डिस्लेक्सिया का रूप ले लेता है।
(ii) खड़खड़ाहट (Cluttering)- यह एक प्रकार की वाक् विकृति है जिससे पीड़ित बालकों का वाक् दर और तारतम्यता प्रभावित होता है।
(iii) डिस्प्रैक्सिया (Dyspraxia)- डिस्लेक्सिया ग्रस्त बच्चों के डिस्प्रैक्सिया पीड़ित होने की संभावना अधिक रहती है। इससे पीड़ित बच्चों में अवधान- शून्यता विकृति भी पाई जाती है।
(iv) डिस्ग्राफिया (Dysgraphia)- पठन-अक्षमता पीड़ित बच्चों में लेखन अक्षमता ग्रस्त हो जाने की संभावना अधिक होती है। पीड़ित बालकों का आँख-हाथ संयोजन गड़बड़ा जाता है।
(v) डिस्कैल्कुलिया (Dyscalculia)- डिस्लेक्सियाग्रस्त बच्चों में गणितीय कौशल संबंधी विकृति भी पाई गयी है। ऐसे बच्चे जटिल गणितीय अवधारणाओं और सिद्धांतों को आसानी से समझते हैं लेकिन उन्हें किसी फार्मूले को समझने और यहाँ तक कि जोड़-घटाव समझने में परेशानी होती है।
पढ़ने संबंधी समस्या का समाधान (Solution of Dyslexic Procedure): (i) पढ़ते वक्त शब्दों के बीच की दूरी का अभ्यास कराना।
(ii) शुद्ध उच्चारण का अभ्यास कराना।
(iii) शब्दों अथवा वाक्यों को दिखाकर, पढ़ाकर एवं स्पर्श करा कर सीखना।
(iv) समान उच्चारण वाले शब्दों को साथ-साथ देखकर पढ़वाना।
(ii) डिस्ग्राफिया (Dysgraphia)- ‘डिस्ग्राफिया’ को लेखन विकार भी कहा जाता है। इस विकार से ग्रस्त बच्चे को लिखने में कठिनाई होती है। वह ‘क’ को ‘क’ लिखता है या फिर ‘A’ को”।
डिग्राफिया पीड़ित बालक लिखता तो है लेकिन समन्वय के अभाव में उसे लेखन-संबंधी कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उसमें स्पेलिंग कौशल की कमी होती है लिहाजा वह किसी भी शब्द को शुद्ध-शुद्ध नहीं लिख सकता है। अपने विचार को लिपिबद्ध करते वक्त वह गलत शब्दों का इस्तेमाल कर बैठता। बचपन में यह समस्या उस समय दृष्टिगोचर होती है जब बालक लिखना शुरू करता है। डिग्राफियाग्रस्त बालक अन्य तरह की अधिगम अक्षमताओं से पीड़ित हो सकते हैं लेकिन वे किसी तरह की सामाजिक अथवा आकदमिक समस्या से पीड़ित नहीं होते।
कारण (Causes) – लेखन विकार किन कारणों से होता है यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। वैसे मस्तिष्क क्षति एवं मस्तिष्क संबंधी अन्य विकृति को इसका कारण माना जाता है।
डिस्ग्राफिया के लक्षण (Symptoms of Dysgraphia) : (i) अनियमित रूप आकार वाले अक्षरों को लिखना।
(ii) स्पेलिंग की अशुद्धता।
(iii) लिखते वक्त दर्द का एहसास।
(iv) लेखन और कॉपी करने की गति में कमी अथवा वृद्धि।
(v) लिखते वक्त अपने-आप से बात करना।
डिस्ग्राफिया के प्रकार (Types of Dysgraphia) :
(क) पठन-लेखन विकार (Dyslexic Dysgraphia)- इस विकृति से पीड़ित बच्चे की लेखन क्षमता कमजोर होती है लेकिन वह किसी किताब को देख कर शुद्धतापूर्वक लिख लेते हैं। उनमें स्पेलिंग अशुद्धता ज्यादा देखने को मिलती है। हालाँकि यह कोई जरूरी नहीं है कि लेखन विकारग्रस्त बालक पठन विकार से पीड़ित हों ही।
(ख) गत्यात्मक लेखन विकार (Motor Dysgraphia)- सूक्ष्म गतिप्रेरक कौशल के अभाव के कारण बच्चे गत्यात्मक लेखन विकारग्रस्त हो जाते हैं। उनका लेखन कार्य बेहतद फूहर होता है। उन्हें नकल करने में भी काफी परेशानी होती है। लेकिन उनमें स्पेलिंग अशुद्धता न के बराबर होती है।
(ग) स्थानिक डिस्ग्राफिया (Spatial Dysgraphia) – लेखन कार्य के दौरान स्थान संबंधी विकृति स्थानिक डिस्ग्राफिया कहलाती है। पीड़ित बच्चे ठीक ढंग से किसी चीज का नकल नहीं कर पाते हैं हालाँकि उनमें स्पेलिंग संबंधी दोष नहीं होती है।
उपचारात्मक कार्यक्रम : (i) बड़े पेंसिल का प्रयोग करना चाहिए (ii) वर्ग-कार्य पूरा करने के लिए अतिरिक्त समय देना चाहिए। (iii) छोटे-छोटे चित्रों को दिखाकर और बनवाकर बच्चों में लेखन क्षमता विकसित करना चाहिए। (iv) बच्चों को डिक्टेशन देने का अभ्यास कराना चाहिए। (v) पाठों को नकल करने का अभ्यास कराना चाहिए।
(iii) डिस्फैसिया (Dysphasia)- डिस्फैसिया शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों dys (अक्षमता) और phasia (वाक्) से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है वाक् अक्षमता । वास्तव में यह एक वाक् एवं भाषा संबंधी विकृति है जिससे पीड़ित बच्चों में भाषा की अभिव्यक्ति एवं व्याख्यान के दौरान बाधा उत्पन्न होती है। बच्चे अक्सरहाँ निरर्थक भाषा का प्रयोग करने लग जाते हैं। गंभीर स्थिति में बच्चे बोले हुए शब्दों का अर्थ नहीं समझ पाते हैं।
कारण- मस्तिष्क क्षति इस विकृति का मुख्य कारण माना जाता हैं।
(iv) डिस्कैलकुलिया (Dyscalculia)- यह एक प्रकार का गणितीय कौशल अक्षमता है जिससे पीड़ित बालक को गणितीय कौशल को समझने में कठिनाई होती है। ऐसे बच्चे न तो गणितीय फार्मूले को याद करने में समर्थ होते हैं और न ही अंकों का जोड़-तोड़ करने में। अंकों की गणना एवं व्याख्या करने में भी उन्हें कठिनाई होती है। तकनीकी तौर पर इस अंकगणितीय कठिनाई कहा जाता है। पाँच प्रतिशत आबादी इस विकृति का शिकार है।
लक्षण (Symptoms) : (i) अंकगणितीय कठिनाई, +,-, ÷ एवं x चिह्नों की समझ गड़बड़ी होना।
उदाहरणार्थ – 68 + 15 = 713
(ii) गिनती के क्रम में ऊँगलियों का प्रयोग करना।
(iii) बजट बनाने में कठिनाई, बाजार में बिकने वाली वस्तुओं के खरीद करते वक्त मूल्य आकलन संबंधी करना।
(iv) समय-सारणी बनाने में कठिनाई महसूस करना।
(v) दाएँ और बाएँ के अंतर को समझने की असमर्थता।
(vi) गणितीय फार्मूलों और सिद्धांतों को समझने में दिक्कत होना।
(vii) खेल-कूद स्कोर नहीं लिख पाना।
कारण (Causes)- मस्तिष्क के कार्टेक्स में गड़बड़ी होने के कारण बच्चे गणितीय कौशल विकृति के शिकार हो जाते हैं। कभी-कभी कार्यकारी याददाश्त के अभाव के चलते भी इस तरह की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
(v) डिस्प्रैक्सिया (Dyspraxia)- डिस्प्रैक्सियाग्रस्त बालकों को लिखने एवं चित्र बनाने में कठिनाई होती है। इसके अलावा निम्नलिखित तरह की अधिगम अक्षमताएँ भी बच्चों में पाई जाती हैं:
(क) एफैसिया (Aphasia) : (a) इसे ‘वाचाघात’ भी कहा जाता है। (b) भाषा अभिव्यक्ति एवं व्याख्या करने की क्षमता का अभाव। (c) पढ़ने, लिखने या बोलने में शब्दों के उपयोग एवं भाषा के चिह्नों को समझने की क्षमता की कमी। (d) वस्तुओं के नामकरण करने संबंधी सामर्थ्य का अभाव। (e) बोलने की अक्षमता। (f) शब्द निर्माण सामर्थ्य की कमी। (g) वाक् शक्ति का अभाव।
(ख) एलेक्सिया (Alexia): (a) पढ़ने की क्षमता का पूर्ण अभाव। (b) शब्दों के अक्षरों की व्याख्या करने की क्षमता का अभाव।
(ग) एग्राफिया (Agraphia)- लेखन एवं स्पेलिंग सामर्थ्य का अभाव। (घ) एप्रैक्सिया (Apraxia)
(ङ) एकैल्कुलिया (Acalculia) (a) अंक गणितीय संगणना क्षमता का अभाव।