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साइबर व्योम और साइबर लोक (Cyber Space and Cyber World)
साइबर व्योम क्या है- साइबर व्योम (Space) या साइबर लोक का अभिप्राय मोटे तौर पर एक ऐसी दुनिया से है जो प्रकाश तन्तुओं, संकेतों, आँकड़ों, या उसके सूक्ष्म एककों या ऐसे ही अन्य तत्वों से भरी हुई है। यह एक आभासी व्योम (virtual space) है जहाँ बहुत सारी गतिविधियाँ आप देख नहीं सकते, और अनेक चीजें आप देख तो सकते हैं, परन्तु छू नहीं सकते।
इन आभासी लोक ने वास्तविक विश्व को जबरदस्त ढंग से बदल डाला है। इसमें अकूत क्षमताएँ हैं और आदमी के लिए अपार सम्भावनाएँ इतनी अधिक कि इस इलेक्ट्रानमयी दुनिया में रहना उसकी कमजोरी
बन चुकी है। इस दुनिया में वह ऐसी चीजें पाने की कोशिश करता है, और आश्वस्त रहता है कि अवश्य प्राप्त कर लेगा, जिन चीजों का असली दुनिया में यह ख्वास भी नहीं देख सकता। यही वजह है कि हर आने वाला पल उसकी जिन्दगी में इस आभासी लोक (Virtual world) के प्रति आकर्षण को बढ़ाता ही जाता है।
इस दुनिया को अनेक प्रकार से परिभाषित करते हुए इसे संजालीकृत प्रक्रमों (networked systems) एवं तत्सम्बन्धित भौतिक आधार तन्त्रों के माध्यम से इलेक्ट्रानीय एवं विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम (spectrum) का इस्तेमाल करके आकड़ों का संग्रह, संशोधन एवं विनिमय करने वाला कार्य क्षेत्र, या संगणक संजालों (Computer network) का इलेक्ट्रानीय माध्यम जिससे सजीव (online) संवाद होता है या किसी त्रिविमीय प्ररूप ( 3D Form) की भाँति व्यक्त किसी बड़े संगणक (computer) या संजाल (network) में संगृहीत आंकड़े जिनसे होकर एक आभासी वास्तविक उपयोगकर्ता आ जा सकता है|
या संकाल्पनिक (notional) पर्यावरण जिसमें संगणक संजालों (computer networks) पर अंकीकृत सूचना संसूचित की जाती है; या आँकड़ों के पारेषण व विनिमय हेतु टी. सी. पी./आई. पी. नयाचार का इस्तेमाल करने वाले संगणक संजालों ( computer networks) के विश्वव्यापी संजाल (Network) वाला एक संगणक संजाल या इलेक्ट्रानीय संसूचना का साम्राज्य, या एक आभासी हकीहत; या सिर्फ, संगणक प्रक्रमों (computer systems) द्वारा सृजित अभौतिक क्षेत्र को वर्णित करने का एक रूपक कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि विलियम गिब्सन ने अपने वैज्ञानिक उपन्यास “न्यू रोमान्सर”, जो सन् 1984 में लिखा गया था, में सबसे पहले साइबर व्योम (Cyber Space) शब्द का प्रयोग किया था। गिब्सन महोदय ने साइवर व्योम (Cyber Space) की कल्पना निम्न प्रकार से की “हर देश में विधिसम्मत प्रचालकों (Operators) द्वारा, गणितीय संकल्पनाओं का अध्ययन कर रहे छात्रों द्वारा नित्य महसूस किया जाने वाला एक सहमतिक विभ्रम (consensual hallucination) – मानवीय प्रक्रम में प्रत्येक संगणक (Computer) के बैंकों से निष्कर्षित आंकड़ों का एक अनुरैखिक प्रतिचित्रण अचिन्त्य जटिलता, मस्तिष्क के अव्योम में परासभूत प्रकाश रेखाएं, आंकड़ों के संग्रह एवं पुन्ज । “
साइबर लोक शब्द साइवर व्योम से काफी नजदीक और लगभग उसका पर्याय है। साइबर लोक संगणक भक्तों (Computer Survey Individuals), संजाल पर्यटकों (net surfers) एवं ऐसे ही अन्य व्यक्तियों की दुनिया की तरफ संकेत करता है। ऐसे ही अर्थ वाला एक अन्य शब्द भी चलन में आया है जिसे साइबेरिया (Cyberia) कहा जाता है।
साइबर लोक (Cyber World) को व्यापक रूप से वर्णित करते हुए इसे (i) एक ऐसा सजीव लोक जहाँ उपयोगकर्ताओं के लिए किसी भी कारोबार या व्यक्तिगत गतिविधियों को सम्पादित करने के लिए एक ऐसी क्रिया प्रणाली जहाँ वे उतनी ही तेजी से और उतनी ही आजादी के साथ काम कर सकते हैं जितना कि भौतिक लोक में; या (ii) सूक्ष्म सजीव संगणन हेतु पर्यावरण, या संगणन की भविष्योन्मुखी सजीव दुनिया के रूप में देखा गया है।
साइबर व्योम एवं सूचना प्रौद्योगिकी (Cyber Space and Information Technology)
जब हम साइवर व्योम, या उसी के तुल्य साइवर लोक, की बात करते हैं तो हमारे सामने एक ऐसी दुनिया की छवि होती है जिसमें इलेक्ट्रानमय उपकरण है जो अन्तरजाल (Internet) से अनुस्यूत (connected) है, और उनके संवाद का माध्यम सूचना प्रौद्योगिकी है। इस प्रकार हम इसे मोटे तौर पर दो प्रमुख घटकों से निर्मित मान सकते हैं प्रथम, संगणक (Computer) जैसे उपकरण, और, द्वितीय, अन्तरजाल (Internet) के जरिये सम्भव किया गया संजालीकरण (networking)।
पहला घटक संगणक प्रौद्योगिकी (Computer Technology) का उत्पाद है और दूसरा, सूचना (Information Technology) का तदनुसार इन दोनों घटकों के लिए अनुपयुक्त विधियाँ भी दो प्रकार की हैं- संगणक विधि (Computer law) और, सूचना प्रौद्योगिकी विधि (Information Technology Law) । परन्तु साइबर लोक (Cyber World) में किसी प्रकरण पर विचार करते समय हमें एकाधिक दूसरी विधियों एवं तत्सम्बन्धी क्षेत्राधिकार से होकर गुजरना पड़ सकता है, क्योंकि आम धारणा- जिसके अनुसार साइबर लोक (Cyber World) में कोई कभी भी कहीं भी और कुछ भी कर सकने को स्वतन्त्र है- के विपरीत, वह दुनिया, जिसे हम साइवर लोक कहेंगे, मानवीय कृत्यों का एक ऐसा क्षेत्र है जो विधियों द्वारा अत्यधिक विनयमित है
“साइबर व्योम (Cyber Space) के बारे में एक भ्रम यह है कि अन्तरजाल (Interne) एक ऐसे क्षेत्राधिकार का द्योतक है जो नया है और जिसमें वर्तमान की कोई विधि या विनियमन लागू नहीं होते।.. अन्तरजाल (Internet) की विश्व व्यापिनी उपलब्धता का आशय यह है कि (साइबर व्योम में की जाने वाली) क्रियाओं पर किसी एक (विधिक) क्षेत्राधिकार का विधिक वा वास्तविक नियन्त्रण नहीं है। क्षण भर विचार करते ही यह भ्रम काफूर हो जाता है।
अन्तरजात (Internet) संव्यवहार में शामिल सभी कर्ताओं का असली दुनिया में भी कहीं अस्तित्व है जो एक या एकाधिक विधिक क्षेत्राधिकार के अधीन हैं….. सम्भव है, अन्तरजाल वह स्थान निकले जो अविनियमित होने के बजाय अत्यन्त विनियमित हो।”
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