अनुक्रम (Contents)
जापान में वर्तमान संविधान के अन्तर्गत कैबिनेट के संगठन तथा उसकी कार्य-प्रणाली का वर्णन कीजिए।
Describe the Organization and Working of Cabinet under the New Constitution of Japan.
जापान में मंत्रिमण्डल का गठन
जापान में मंत्रिमण्डल का गठन-जापान के नये संविधान के अनुसार मन्त्रिमण्डल एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। व्यावहारिक दृष्टि से शासन की बागडोर मन्त्रिमण्डल के हाथों में होती है। मेइजी संविधान में कहीं भी मन्त्रिमण्डल शब्द का प्रयोग नहीं किया गया था परन्तु इस संविधान के लागू होने से पूर्व से ही सम्राट् के एक राजकीय अध्यादेश के अनुसार मन्त्रिमण्डल की स्थापना कर दी गई थी और संविधान द्वारा भी उसे मान्यता दे दी गई थी। परन्तु उस समय का जापानी मन्त्रिमण्डल पूर्णतया सम्राट् के अधीन होता था। वह उसके हित को देखना ही अपना मुख्य ध्येय समझता था।
अविश्वास का प्रस्ताव पारित होने पर भी इसके सदस्य त्यागपत्र देने के लिये बाध्य न थे और न अपनी गलतियों संशोधन को ही स्वीकार करने के लिए बाध्य थे। इस प्रकार उस समय मन्त्रिमण्डल एक शक्तिविहीन संस्था थी।
परन्तु नये संविधान द्वारा इसके स्वरूप में परिवर्तन हुए और इसको पूर्ण रूप से प्रजातांत्रिक बनाने का प्रयत्न किया गया है। संविधान में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि “प्रशासनिक शक्ति मन्त्रिमण्डल में निहित होगी, जिसका अध्यक्ष. प्रधानमन्त्री कहलायेगा और उसमें कानून द्वारा की गई व्यवस्था के अनुसार राज्य के अन्य मन्त्री होंगे। यह मन्त्रिमण्डल अपने शासकीय कार्यों के लिए सामूहिक रूप से डायट (संसद) के प्रति उत्तरदायी होगा। यह प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में शासन सम्बन्धी निम्नलिखित कार्य सम्पादित करेगा-विधेयकों, रिपोर्टों, प्रस्तावों एवं कार्यों का संचालन तथा उनके विवरणों को डायट के समक्ष प्रस्तुत करना। किसी भी समय मन्त्रिमण्डल के प्रस्ताव या अन्य किसी घोषणा को डायट द्वारा अस्वीकृत किये जाने पर मन्त्रिमण्डल की पराजय समझी जायेगी तथा इसे त्यागपत्र प्रस्तुत करना होगा।”
विशेषताएँ –
जापान के वर्तमान संविधान में अमरीका की अध्यक्षात्मक और ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली का समन्वय दृष्टिगोचर होता है। परन्तु ब्रिटिश संसदीय प्रणाली का इस पर विशेष प्रभाव है। वहाँ सम्राट् संवैधानिक अध्यक्ष मात्र है और राजतंत्र के दैवी अधिकार को समाप्त करके जन-प्रभुत्व की स्थापना की गई है। सम्राट् राजा का प्रतीक है। उसकी शक्ति का स्रोत जनता है, जिसमें सम्प्रभुता निवास करती है। संविधान में यह व्यवस्था की गई है कि सम्राट् मन्त्रिमण्डल के परामर्श से कार्य करेगा और मन्त्रिमण्डल के सदस्य उसके कार्यों के लिए उत्तरदायी होंगे।
मन्त्रिमण्डल संसद की इच्छाओं के अनुरूप कार्य करता है। मन्त्रिमण्डल के सभी मन्त्री डायट (संसद) के सदस्य होते हैं और वे डायट की सारी कार्यवाहियों से घनिष्ठ सम्बन्ध रखते है। व्यावहारिक रूप में डायट की कार्यवाहियों का संचालन भी मन्त्रिमण्डल का ही कोई मन्त्री करता है। आवश्यकता पड़ने पर मन्त्रिमण्डल के 50 प्रतिशत मन्त्रियों के लिए डायट का सदस्य होना अनिवार्य नहीं होता। जापानी मन्त्रिमण्डल भी अपने कार्यो के लिये डायट के प्रति उत्तरदायी है। इस नियंत्रण के द्वारा डायट मन्त्रिमण्डल पर अपना दबाव रखती है।
नवीन संविधान के अनुसार सम्पूर्ण मन्त्रिमण्डल सामूहिक रूप से डायट के प्रति उत्तरदायी है। इसका अर्थ है-सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धान्त को प्रत्येक मन्त्री द्वारा मानना। इसी कारण जापानी मन्त्रिमण्डल के सभी मन्त्री मिलजुलकर एक निश्चित कार्यक्रम को आधार मानकर संगठित रूप से सरकार के कार्यों का ठीक प्रकार से मूल्यांकन करने का अवसर प्रदान करते हैं।
आकार और कार्यकाल
प्रायः जापानी मन्त्रिमण्डल की संख्या प्रधानमन्त्री के अतिरिक्त 16 मन्त्री ही हैं। जापान का संविधान कार्य- काल के विषय में मौन, है। केवल उसमें इतना कहा गया है कि “प्रतिनिधि सभा द्वारा अविश्वास का प्रस्ताव पास कर देने अथवा विश्वास के प्रस्ताव को अस्वीकृत कर देने पर मन्त्रिमण्डल त्यागपत्र देगा।”
जापान के मन्त्रिमण्डल की कार्य-प्रणाली –
मन्त्रिमण्डल की बैठक सप्ताह में दो दिन मंगलवार और शुक्रवार को होती है। प्रधानमन्त्री बैठकों की अध्यक्षता करता है। बैठकों के लिए गणपूर्ति (कोरम) निश्चित नहीं है। मन्त्रिमण्डल की बैठकों की सभी कार्यवाही गुप्त रखी जाती है, उन्हें प्रकाशित नहीं किया जाता । मन्त्रिमण्डल के सदस्यों को भी कार्यवाही गुप्त रखने का आदेश देता है।
जापान के मन्त्रिमण्डल की कार्य और शक्तियाँ
मन्त्रिमण्डल के कार्य और शक्तियाँ निम्नलिखित है:-
(i) नीति-निर्धारण – मन्त्रिमण्डल का मुख्य कार्य राष्ट्रीय नीति का निर्धारण करना और उसको डायट के समक्ष स्वीकृति हेतु प्रस्तुत करना है। यद्यपि नीति-निर्धारण के सम्बन्ध में मंत्रीमंडल को अन्तिम अधिकार प्राप्त नहीं है फिर भी इस सम्बन्ध में प्रस्ताव तैयार करता तथा उसे डायट द्वारा स्वीकृत कराना मन्त्रिमण्डल का कार्य है।
(ii) प्रशासकीय कार्य – इस क्षेत्र में मन्त्रिमण्डल विभिन्न राजकीय उद्योगों, राष्ट्रीय लोक सुरक्षा आयोग, राष्ट्रीय पुलिस मण्डल, राष्ट्रीय कार्मिक शक्ति, विशिष्ट सेवाओं के निर्वाचन का कार्य अपने ही निर्देशन में करता है। इसके अतिरिक्त प्रशासकीय कार्यों के सम्बन्ध में आवश्यक सुझाव डायट के सम्मुख रखता है।
(iii) डायटसम्बन्धी कार्य – डायट के सत्र को सम्राट् द्वारा आमन्त्रित कराना, उसकी विधायिकी कार्यवाही तैयार करना तथा उसमें सक्रिय भाग लेना। प्रतिनिधि सभा का सम्राट् द्वारा विघटन कराना भी मन्त्रिमण्डल के कार्य हैं।
(iv) आर्थिक कार्य – इस क्षेत्र में जापानी मन्त्रिमण्डल को व्यापक अधिकार प्रदान किये गये हैं। संविधान द्वारा प्रशासन-संचालन तथा राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वित्त की व्यवस्था के स्रोत खोजना तथा उसे एकत्र करने का कार्य मन्त्रिमण्डल को ही सौंपा गया है। इस कार्य के सम्पादन के लिए मन्त्रिमण्डल में एक राज्यमन्त्री की नियुक्ति भी की जाती है। इसका कार्य मन्त्रिमण्डल को राष्ट्र की आर्थिक नीति निर्धारण में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करना है।
(v) न्यायिक कार्य – जापान के सम्राट् को सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में मन्त्रिमण्डल परामर्श देता है। वह अन्य नयायाधीशों की नियुक्ति में भी सक्रिय भाग लेता है। न्यायाधीशों की पुनः नियुक्ति में जन-निर्णय के समय सहयोग प्रदान करता है।
(vi) वैदेशिक कार्य – वैदेशिक नीति को निर्धारित एवं कार्यान्वित करने का कार्य भी मन्त्रिमण्डल का ही है। वह समय-समय पर डायट को वैदेशिक नीति से अवगत करता रहता है |
(vi) सैनिक-कार्य – डायट का सेना पर नियन्त्रण मन्त्रिमण्डल के माध्यम से ही होता है। परन्तु मन्त्रिमण्डल अपने राज्यमन्त्री के निर्देशन में सेना के सभी अंगों पर प्रभावकारी नियन्त्रण रखती है। आपातकाल के समय तो यह और भी बढ़ जाता है।
(vii) अन्य कार्य – उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त मन्त्रिमण्डल सम्राट् को सभी कार्यों में परामर्श देने का कार्य करती है और विभागों तथा उप-विभागों के लिए आवश्यक नियम बनाता है।
जापान के प्रधानमन्त्री की स्थिति
संविधान के अनुसार मन्त्रिमण्डल का अध्यक्ष प्रधानमन्त्री होता है। इसका चुनाव डायट बहुमत से करती है। इंग्लैंड के समान यहाँ पर भी यह परम्परा हो गई है कि डायट में बहुमत दल का नेता ही प्रधानमन्त्री चुना जाता है। डायट द्वारा प्रस्तावित नाम सम्राट् के समक्ष रखा जाता है। सम्राट् को इस नाम को अस्वीकृत करने का अधिकार नहीं है।
सम्राट् की अनुमति प्राप्त होने पर प्रधानमन्त्री पद हेतु प्रस्तावित व्यक्ति को शपथ दिलाकर मन्त्रिमण्डल के गठन का अधिकार प्रदान कर दिया जाता है। ये भी व्यवस्था की गई है कि डायट के दोनों सदनों मे प्रधानमन्त्री पद के नाम पर यदि मतभेद है तो उस स्थिति में 10 दिन की अवधि के पश्चात् प्रतिनिधि सभा (डायट का निम्न सदन) द्वारा प्रस्तावित का नाम सम्राट स्वीकार करने को बाध्य होगा। इससे सिद्ध होता है कि डायट के निम्न सदन को प्रधानमन्त्री की नियुक्ति में अधिक शक्ति प्राप्त है।
मन्त्रिमण्डल के गठन में जापानी प्रधानमन्त्री को पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त है। वह एक उप प्रधानमन्त्री तथा अपने अन्य सहयोगी मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। वह मन्त्रियों को विभागों का वितरण करता है तथा किसी मन्त्री से मतभेद हो जाने पर वह उसे मन्त्रिमण्डल से हटा सकता है। प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल के प्रतिनिधि के रूप में, डायट के सम्मुख विधेयक और अन्य मामलों सम्बन्धी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। वह प्रशासन की विभिन्न शाखाओं की देखरेख और उन पर नियन्त्रण रखता है। उसके मन्त्रिमण्डल के सदस्यों के विरुद्ध उसकी आज्ञा के बिना कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है। वह मन्त्रिमण्डल की बैठकों का संचालन तथा उसकी अध्यक्षता करता है। प्रत्येक कानून और मन्त्रिमण्डल की आज्ञाओं पर प्रधानमन्त्री के हस्ताक्षर होने आवश्यक हैं। डायट के बहुमत दल का नेता होने के कारण डायट में उसका महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। वह मन्त्रिमण्डल तथा दल के प्रवक्ता का कार्य करता है। वह मन्त्रिमण्डल के सब मन्त्रियों के बीच समन्वय और सामंजस्य बनाये रखता है।
जापान में मंत्रिमण्डल का गठन
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वास्तविक शक्ति अप्रत्यक्ष रूप से उसी के हाथों में होती है। मन्त्रिमण्डल में उसका स्थान सब मन्त्रियों से ऊँचा और महत्त्वपूर्ण होता है। वह सर्वशक्तिशाली है।
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