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लेखबद्ध अभिस्वीकृति के प्रभाव | Written Acknowledgment in Hindi

लेखबद्ध अभिस्वीकृति के प्रभाव
लेखबद्ध अभिस्वीकृति के प्रभाव

लेखबद्ध अभिस्वीकृति के प्रभाव का वर्णन कीजिये। Describe the effect of written acknowledgment

लेखबद्ध अभिस्वीकृति का प्रभाव परिसीमन अधिनियम की धारा 18 के अनुसार दायित्व के अस्तित्व की अभिस्वीकृति नवीन समयावधि प्रदान करती है। यह धारा इस सिद्धान्त पर आधारित है कि यदि कोई व्यक्ति निर्धारित समयावधि समाप्त होने से पूर्व अपने दायित्वों को लिखित रूप से स्वीकार कर लेता है, वह अपने इस अधिकार का अभित्यजन कर देता है कि उसके विरुद्ध उस लिखित अभिस्वीकृति के पूर्व उसके दायित्वों के सम्बन्ध में निर्धारित समयावधि के भीतर वाद लाया जाना चाहिए था।

इस विषय में विधि का आशय यह है कि यदि पक्षकार अपने विधिक सम्बन्धों को लिखित रूप से स्वीकार कर लेता है तो उसके परिणामस्वरूप नवीन संविदा के अधीन नवीन परिसीमन अवधि का जन्म होता है।

धारा 18 के अन्तर्गत यह प्रावधान किया गया है कि यदि किसी वाद या आवेदन के संबंध में निर्धारित समयावधि समाप्त होने के पूर्व, किसी सम्पत्ति या किसी अधिकार से संबंधित दायित्वों को लिखित रूप से स्वीकार कर लिया जाता है तथा यदि यह स्वीकृति या अभिस्वीकृति लिखित रूप से उस पक्षकार द्वारा की जाती है जो दायित्वाधीन है या उसके अभिकर्ता द्वारा की जाती है या उस व्यक्ति द्वारा की जाती है जिसके विरुद्ध सम्पत्ति या अधिकार से सम्बन्धित दावा किया गया है या किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा अभिस्वीकृति की गई है।

जिससे हक या दायित्व प्राप्त किया जाता है (विक्रेता, क्रेता-पिता, पुत्र) तो ऐसी अभिस्वीकृति की तिथि के पश्चात उस दायित्व या अधिकार से संबंधित नवीन समयावधि चलना प्रारम्भ होगी तथा अभिस्वीकृति के पूर्व संबंध में निर्धारित समयावधि का पर्यवसान हो जायेगा। यह नवीन समयावधि उस तिथि से चलना प्रारम्भ करेगी जिस तिथि को लिखित अभिस्वीकृति हस्ताक्षरित होगी।

धारा 18 के अन्तर्गत यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि लिखित अभिस्वीकृति पर दिनांक या तिथि अंकित नहीं है, तो उस तथ्य का मौखिक साक्ष्य दिया जा सकता है कि यह अभिस्वीकृति किस तिथि को हस्ताक्षरित हुई थी परन्तु साक्ष्य अधिनियम की धारा 91 तथा 92 के प्रभावों के कारण अभिस्वीकृति की अन्तर्वस्तु का मौखिक साक्ष्य नहीं दिया जा सकता। धारा 18 के अन्त में कुछ स्पष्टीकरण दिये गये हैं, जो उल्लेखनीय हैं|

स्पष्टीकरण- (1)

इस स्पष्टीकरण द्वारा अभिस्वीकृति को बहुत स्पष्ट किया गया है। इस स्पष्टीकरण के अनुसार ऐसी अभिस्वीकृति भी पर्याप्त होगी जिसमें सम्पत्ति या अधिकार की प्रकृति का उल्लेख न किया गया हो, अथवा भुगतान, सम्प्रदान या दायित्व पूरा करने या अधिकारों के उपभोग का समय अभी तक न आया हो।

इस स्पष्टीकरण के अनुसार यदि लिखित अभिस्वीकृति में भुगतान करने से इन्कार किया गया है या दायित्व की पूर्ति करने से इन्कार किया गया है या अधिकार के उपभोग करने सेमना किया या लिखित अभिस्वीकृति में मुजराई के लिए अनुरोध किया गया हो तथा यदि अभिस्वीकृति सम्पत्ति या अधिकार के वास्तविक हकदार को सम्बोधित न होकर अन्य व्यतियों को सम्बोधित है तो भी यह अभिस्वीकृति पर्याप्त है अर्थात् अभिस्वीकृति वैथ होने के लिए दायित्वों को स्वीकार करना या सम्पत्ति या अधिकार का दावा करने वाले व्यक्ति को सम्बोधित करना आवश्यक नहीं है।

स्पष्टीकरण-(2) “हस्ताक्षरित” शब्द को स्पष्ट करता है कि इसके अनुसार हस्ताक्षरित शब्द से तात्पर्य उस व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित होना है जो दायित्वाधीन है या जिसके विरुद्ध अधिकार का दावा किया जाना है। यदि लिखित अभिस्वीकृति सम्यक् रूप से नियुक्त अभिकर्ता द्वारा हस्ताक्षरित है तो भी इस धारा के अन्तर्गत पर्याप्त होगी।

स्पष्टीकरण- (3) आवेदक शब्द को स्पष्ट करता है। इसके अनुसार किसी आज्ञप्ति या आदेश के निष्पादन हेतु आवेदन के अन्तर्गत किसी सम्पत्ति या अधिकार से संबंधित आवेदन नहीं है।

अभिस्वीकृति का अर्थ

अभिस्वीकृति का अर्थ अस्तित्वाधीन दायित्वों की निश्चित तथा स्पष्ट स्वीकृति है। यहाँ ऋण की सामान्य स्वीकृति पर्याप्त है। भुगतान करने का वचन पर्याप्त नहीं है। अभिस्वीकृति निश्चित तथा स्पष्ट होनी चाहिये। कहने का तात्पर्य यह है कि भुगतान करने के वचन के आधार पर अनुमानित की गयी स्वीकृति दावे का अधिकार नहीं बन सकती।

अभिस्वीकृति किसी व्यक्ति के पक्ष में अधिकार या हक का सृजन नहीं करती परन्तु यह सिर्फ समयावधि को नवीन जीवन देकर समयावधि में विस्तार प्रदान करती है। इस धारा के अन्तर्गत अभिस्वीकृति ऋण तक ही सीमित नहीं है। यह उन सभी सम्पत्तियों तथा अधिकारों से संबंधित है जिसका संबंध बाद से है, जैसे भागीदारी की सम्पत्ति पर लेखा-जोखा लेने का अधिकार सशर्त दायित्व की अभिस्वीकृति से नवीन समयावधि तब तक प्राप्त नहीं होगी जब तक शर्त पूरी होनी शेष है।

भोपाल मलाडियर बनाम तुलसी अम्माल तथा अन्य AIR 1989 केरल के वाद में केरल उच्च न्यायालय ने कहा कि अभिस्वीकृति अस्तित्वाधीन दायित्वों से संबंधित होनी चाहिये। ऋणी तथा ऋणदाता के मध्य विधिक सम्बन्ध स्पष्ट होने चाहिये तथा अभिस्वीकृति उस विधिक संबंध को स्वीकार करने के स्पष्ट आशय से ली गयी होनी चाहिये। धारा 18 की व्याख्या संकुचित अर्थों में नहीं की जानी चाहिये। धारा 18 की व्याख्या प्रत्येक विधिपूर्ण तथा उचित दावों का समर्थन करने के लिए की जानी चाहिये। अभिस्वीकृति

अभिव्यक्त शब्दों में होना आवश्यक नहीं है। यदि कथन काफी स्पष्ट है-अभिस्वीकृति में विधिक सम्बन्धों की स्वीकृति का आशय उन शब्दों से तथा उन परिस्थितियों में की गयी होनी चाहिये जिनसे युक्तियुक्त रूप से न्यायालय इस तथ्य का अनुमान लगा सके कि स्वीकृति में स्वीकृति की तिथि को अस्तित्वाधीन दायित्वों को स्वीकार करने का आशय स्पष्ट था।

भारतीय खाद्य निगम बनाम पानीपत धनसंग्रह सहकारी समिति AIR 1990 के वाद में वादी ने प्रतिवादी को अन्न खरीदने हेतु कमीशन एजेन्ट नियुत किया। वादी ने कम आपूर्ति की प्रतिवादी (एजेन्ट) द्वारा यह पत्र लिखा गया कि वादी ने जिस अन्न सामग्री का दावा किया है वह उसकी अभिरक्षा में है। परन्तु वादी द्वारा प्रतिवादी को किये जाने वाले भुगतान को अन्न सामग्री प्राप्त करने के उद्देश्य से रोक लिया गया। यह पत्र इस दायित्व की अभिव्यक्ति थी कि प्रतिवादी वादी के प्रति अन्न आपूर्ति करने हेतु उत्तरदायी थे।

सी० के० जेवीयर बनाम

श्रीकाशी AIR 1990 केरल के वाद में केरल उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि पूर्ववर्ती वाद में लिखित कथन में दिया गया कथन धारा 18 के अन्तर्गत अभिस्वीकृति माना जायेगा। रघुनाथ सिंह बनाम नाना लाला AIR1990 म०प्र० का वाद इस तथ्य को अधिक स्पष्ट करता है कि अभिस्वीकृति लिखित रूप से अस्तित्वाधीन दायित्वों की स्वीकृति होनी चाहिए। इस वाद में वादी ने अपने रजिस्टर में एक अशिक्षित ऋणी (प्रतिवादी) के अंगूठे के निशान के साथ 100 (सौ) रुपये के आंशिक भुगतान की प्रविष्टि प्रदर्शित किया। परन्तु वादी द्वारा प्रस्ताव में भुगतान साबित नहीं किया जा सका।

पूर्ण प्रविष्टि पढ़ने से भी ऋणी तथा ऋणदाता के विधिक संबंध के अस्तित्व का प्रदर्शन नहीं हुआ। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि प्रश्नगत प्रविष्टि को धारा 18 के अन्तर्गत अभिस्वीकृति के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता तथा इस प्रविष्टि के आधार पर परिसीमन अवधि में विस्तार प्रदान नहीं किया जा सकता।

धारा 18 की उपधारा उन परिस्थितियों में लागू होती है जहाँ लिखित अभिस्वीकृति हस्ताक्षरित तो है परन्तु दिनांकित नहीं है। इस धारा के अनुसार ऐसी परिस्थितियों में जहाँ अभिस्वीकृति लिखित तो है परन्तु उस पर अभिस्वीकृति की तिथि अंकित नहीं है वहाँ अभिस्वीकृति की तिथि को साबित करने हेतु या प्रदर्शित करने हेतु मौखिक साक्ष्य लिया जा सकता है।

परन्तु इस लिखित अभिस्वीकृति में क्या लिखा गया है अर्थात् उसकी अन्तर्वस्तु क्या है, उसके बारे में मौखिक साक्ष्य नहीं दिया जा सकता क्योंकि साक्ष्य अधिनियम की धारा 91 92 इस प्रकार के साक्ष्यों के अपवर्जन का प्रावधान करती है।

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shubham yadav

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