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यथार्थवाद की अवधारणा का विकास
राष्ट्रहित की महत्ता पर विशेष जोर दिया जाता है। इसकी यह मान्यता है कि शक्ति के उत्तर द्वारा ही राष्ट्रहित की रक्षा की जाती है, क्योंकि यथार्थवादी, शक्ति को अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का केन्द्र बिन्दु मानता है। यहां अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के मुख्य अभिनेता के रूप में राज्यों का प्रमुख स्थान है। अतः राष्ट्रीय हितों की सिद्धि के निमित शक्ति के प्रयोग का समर्थक होने के कारण हम इसको यथार्थवादी सिद्धान्त कहते हैं और चूंकि इसमें शक्ति को विशेष महत्व दिया गया है, इसलिए इसको शक्तिवादी दृष्टिकोण भी कहा जाता है। मॉरगेंथाऊ के अनुसार, शक्ति का अर्थ है “मनुष्यों का अन्य मनुष्यों के मस्तिष्क और क्रियाकलापों पर नियंत्रण।
19वीं सदी में ट्रीटस्के और नीत्से ने शक्ति की विचारधारा को बहुत आगे बढ़ाया था। प्रथम विश्वयुद्ध से पहले एरिक काफमान ने बताया कि राज्य के तीन मुख्य लक्ष्य हैं- शक्ति- संचय, शक्ति-प्रसार और शक्ति प्रदर्शन उसने विश्व राज्य संबंधी आदर्श को इसलिए अस्वीकार कर दिया था कि विश्व राज्य में शक्ति के विकास, उसकी वृद्धि और उसके प्रदर्शन की कोई संभावना नहीं होती। इसके अलावा फ्रेड्रिक वाल्किंस हैरौल्ड, लॉसवेल, डेविड ईस्टन आदि विद्वानों ने राजनीति के अध्ययन में यथार्थवादी विचारधारा को बहुत आगे है।
मारगेन्थाऊ का यथार्थवाद, राजनीति को शक्ति के साथ जोड़ता है। उसका मत था कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की मुख्य कुंजी राष्ट्रहित है जिसे केवल शक्ति के संदर्भ में ही देखा जा सकता है। इसको यथार्थवादी इसलिए कहा जाता है कि इसमें बढ़ाया है तथा शक्ति के महत्व को स्वीकार किया है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर रूढ़िवादी ढंग से विचार करने वाले ई०एच० कार, क्विंसी राइट, जॉर्ज श्वजन बरजर तथा मार्टिन वाईट आदि विचारकों ने राज्यशास्त्र के शक्तिवादी सिद्धांत को अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर आरोपित किया है। परन्तु, इन लेखकों के बीच में भी मॉरगेन्थाऊ ही एक ऐसा लेखक है (जिसने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर शक्ति दृष्टिकोण के संबंध में सुसम्बद्ध ढंग से अपना विचार प्रस्तुत किया था। मॉरगेंथाऊ ने अपने राजनीतिक दर्शन में यथाशक्ति सिद्धांत के छह मूल तत्वों का उल्लेख किया है। इन्हीं मूल तत्वों में उनके यथार्थवादी सिद्धांत का सार अंतर्निहित है।
यथार्थवाद के मूल तत्व
इन मूल तत्वों को निम्नलिखित बताया जा सकता है-
1. अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, किन्हीं नियमों द्वारा प्रशासित होती है जो नियम मानवीय स्वरूप में निहित होते है;
2. यथार्थवाद, राष्ट्रीय हित से संबंधित है जिसे स्वयं शक्ति द्वारा ही परिभाषित किया जाता है।
3. भले ही शक्ति का अर्थ समय व परिस्थितियों के अनुरूप बदलता रहता है, फिर भी हित का संबंध शक्ति से ही होता रहा है;
4. राजनीतिक यथार्थवाद, राजनीतिक कृतियों के नैतिक महत्व को पहचानता अवश्य हैं तथा यह भी स्वीकार करता है कि सफल राजनीतिक कृतियों में नैतिक अनिवार्यताओं के योगदान होता है।
5. किसी राष्ट्र की आकांक्षाओं का, किन्हीं नैतिक नियमों से कोई संबंध नहीं होता है; तथा
6. यथार्थवादी राजनीति अपने आप में एक स्वतंत्र एवं स्वायत्त अस्तित्व है जिसे किसी अन्य मानवीय तत्व के अधीन नहीं लाया जा सकता।
मारगेंथाऊ के अनुसार यथार्थवादी सिद्धांत निम्नलिखित तीन मूल धारणाओं पर आधारित हैं:
(अ) राजनीतिज्ञों द्वारा राष्ट्रीय हितों की सिद्धि एवं प्रसार की आकांक्षा,
(ब) प्रादेशिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक प्रभाव के प्रसार में ही राष्ट्रीय हित को निहित समझना, तथा
(स) किसी राष्ट्र की विदेशनीति का शक्ति पर आश्वस्त होना ।
अतः मारगेंथाऊ का कहना है कि राष्ट्र सदैव शक्ति को बनाए रखने, उसे बढ़ाने एवं उसके प्रदर्शन का प्रयास करते रहते हैं: यथास्थिति की नीति द्वारा राष्ट्र शक्ति को बनाए रखते हैं साम्राज्यवादी नीति द्वारा राष्ट्र अपनी शक्ति को बढ़ाते रहते हैं तथा यश की नीति द्वारा राष्ट्र अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं राष्ट्रों द्वारा शक्ति संबंधी प्रयासों को मारर्गेथाऊ ने तीन भागों में विभाजित किया है:
1. नियंत्रण द्वारा, सामूहिक सुरक्षा, न्यायिक समझौते, शांतिपूर्ण परिवर्तन और विश्व सरकार आदि।
2. रूपांतरण द्वारा, जैसे- विश्व राज्य और विश्व समाज के निर्माण का प्रयास
3. समझौते द्वारा, जैसे- राजनय।