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अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिये यूनेस्को द्वारा सिद्धान्त
यूनेस्को ने 1947 में अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिये शिक्षा के सम्बन्ध में माध्यमिक शालाओं में सामाजिक विज्ञान के शिक्षण को आवश्यक बताते हुए निम्नलिखित सिद्धान्तों पर प्रकाश डाला है-
(1) आधुनिक विश्व की किसी भी समस्या के किसी भी अंग में रुचि लेने के लिये छात्रों को प्रोत्साहित करना।
(2) विश्व के भौगोलिक अध्ययन पर बल देना ताकि विश्व की प्राकृतिक सम्पदा तथा खाद्य समस्या की ओर छात्रों का ध्यान आकर्षित हो सके।
(3) विश्व की किसी समस्या के प्रति छात्रों को विचारने हेतु प्रोत्साहित करना।
(4) मानव सम्बन्धों को विकसित करने तथा व्यक्तित्व के विकास में सामाजिक विज्ञान का अध्ययन कराना।
(5) सामाजिक विज्ञान के शिक्षकों में आलोचनात्मक तर्क-शक्ति के विकास पर बल देना।
(6) सामाजिक विज्ञान के अध्ययन द्वारा सामाजिक तनावों, घटनाओं तथा सहकारिता जैसी समस्याओं पर विचार करना तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा किये गये कार्यों के बारे में जानकारी देना।
(7) सामाजिक विज्ञान के शिक्षण द्वारा नागरिकता की शिक्षा प्रदान करने हेतु समाज को एक प्रयोगशाला के रूप में प्रयोग करने का प्रयत्न करना।
(8) सामाजिक विज्ञान के शिक्षण के समय भिन्न-भिन्न मानव समुदायों के परस्पर सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्धों पर विशेष रूप से बल देना चाहिये। इसके अतिरिक्त प्रजाति, धर्म एवं संस्कृति के कारण जो आर्थिक एवं शैक्षणिक स्तर पर भेद-भाव माना जाता है उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिये ।
यूनेस्को से सम्बन्धित संयुक्त राष्ट्र विद्यालय संगठन नाम का एक क्लब आरम्भ किया गया है जिसका कार्य संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न अंगों की जानकारी, वर्तमान की समस्याओं को दूर करने की जानकारी तथा अन्य अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव हेतु किये गये कार्यों की जानकारी के बारे में आधुनिकतम सूचनाएँ प्रदान कराना है। इस क्लब का मुख्यालय दिल्ली में स्थित है जो विद्यालयों में विभिन्न शैक्षिक एवं सांस्कृतिक प्रवृत्तियाँ आयोजित करता है।