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अशोक के लोक कल्याणकारी कार्य (Public-welfare works of Ashoka)
अशोक को निम्नलिखित कारणों से हम महान् कह सकते हैं-
1. महान् विजेता (Great winner) – अशोक एक महान् योद्धा और विजेता था। उसने मौर्य साम्राज्य की सीमा को जैसा का तैसा नहीं रहने दिया वरन् उसका विस्तार करने के लिये कश्मीर तथा कलिंग के युद्ध लड़े एवं विजय प्राप्त की।
2. महान् व्यक्तित्व (Great personality) – युगों से सम्राट लड़ते आये थे और उन्होंने नर-संहार के हृदय विदारक दृश्य भी देखे थे परन्तु उनके हृदय पर युद्धों की विभीषिका का तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ा। इसके विपरीत अशोक ने कलिंग के युद्ध के पश्चात् युद्धों से सदा के लिये मुख मोड़ लिया तथा समस्त राजसी और विलासी ठाठ-बाटों, माँस भक्षण का परित्याग कर वह अहिंसा का पुजारी बन गया।
3. धार्मिक सहिष्णुता (Religious tolerance) – अशोक एक उदार हृदय वाला धार्मिक सम्राट था। यह सत्य है कि अशोक का झुकाव वौद्ध-धर्म की ओर था परन्तु साथ ही वह अन्य धर्मों के प्रति भी आदर और उदारता की भावना रखता था।
4. महान् धर्म प्रचारक (A great proclaimer of religion) – अशोक एक धर्मोपदेशक तथा प्रचारक भी था । उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिये अनेक कर्मचारी नियुक्त किये तथा अपने पुत्र और पुत्री को भी धर्म प्रचार कार्य में लगा दिया। अशोक ने अपने धर्म का प्रचार केवल भारत में ही नहीं वरन् भारत के बाहर विदेशों में भी किया।
5. महान् प्रजापालक- वह अपनी प्रजा को पुत्रवत् मानता था। जनहित के लिये ही अशोक ने मनुष्यों तथा पशुओं के लिये चिकित्सालय तथा धर्मशालाएँ बनवायें। सड़कों के दोनों ओर छायादार पेड़ लगाये गये, स्थान-स्थान पर मीठे पानी के कुएँ खुदवाये गये। उसने अपने कर्मचारियों को आज्ञा दे रखी थी कि चाहे वह सोता हो, स्नान करता हो या भोजन करता हो, उसे तुरन्त प्रजा के दुःख की सूचना दी जाय ।
6. एक आध्यात्मिक विजेता (A religious conqueror) – कलिंग के युद्ध से पश्चात् उसने युद्ध विजय समाप्त कर आध्यात्मिक विजय प्रारम्भ कर दी। अशोक ने धर्म प्रचारकों की एक विशाल सेना तैयार की और धर्म विजय तथा आध्यात्मिक विजय के लिये ही जीवन भर प्रयास करता रहा।
7. महान् राष्ट्र निर्माता (A great national builder) – अशोक ने अनेक राष्ट्रीय हित के कार्य किये। उसने सम्पूर्ण साम्राज्य में एक भाषा और एक लिपि का प्रयोग किया। अपने सन्देश प्रसारित करने के लिये उसने स्तम्भ लेख, शिलालेख तथा स्तूपों की स्थापना करवायी। ये स्तम्भ, स्तूप तथा शिलालेख आज भी राष्ट्रीय-निधि के रूप में माने जाते हैं।
8. महान् आदर्शवादी (A great idealistic) – उसने राजनीतिक क्षेत्र में अहिंसा, शान्ति, सद्भावना तथा प्रजा- पालन आदि महान आदर्शों की स्थापना की। उसने केवल जनता को ही उपदेश नहीं दिया वरन् सर्वप्रथम उसने स्वयं अपने व्यवहार और आचरण को शुद्ध किया।
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