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आँसू के आधार पर प्रसाद के गीतिकाव्य की समीक्षा
‘आँसू’ की भाव-कथा चार क्रमिक सोपानों में नियोजित है। अतः वह भावात्मक प्रबन्धकाव्य है। उसके मोती रूपी छन्द एक भाव सूत्र में पिरोये होकर ही अधिक भाव देते हैं। अतः उसे मुक्त-काव्य की संज्ञा नहीं दी जा सकती, परन्तु यह सत्य है कि प्रत्येक छन्द में संगीतात्मकता, लय, पदावली की कोमलकान्तता और साथ ही व्यक्तिगत अनुभूति की गहराई इतनी अधिक है कि प्रत्येक छन्द गुलदिस्ते की तरह सौन्दर्यमय लगता है और गीति-काव्य का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत करता है। जहाँ तक ‘आँसू’ के गीति-काव्य का प्रश्न है, उसमें एक सफल गीति-काव्य की समस्त विशेषताएँ मिलती हैं। व्यक्तिगत अनुभूति की गहराई, ध्वन्यात्मकता, संगीतात्मकता, भाषा-शैली का लालित्य एवं माधुर्य आदि गीतिकाव्य के समस्त तत्त्व ‘आँसू’ में निखरे हुए रूप में मिलते हैं।
गीति-काव्य की दृष्टि से आँसू
‘आँसू’ प्रसाद जी का प्रसिद्ध गीति-काव्य है। इसमें प्रेम और विरह का उच्छ्वासपूर्ण वर्णन हुआ है। गीति-काव्य में संगीतात्मकता का महत्वपूर्ण स्थान है। गीत का विषय कोई भी मनोभाव हो सकता है, परन्तु प्रेम-सौन्दर्य और वेदना में ही अनुभूति पूर्ण गीत-धारा हृदय से फूट पड़ती है।
प्रसाद जी के ‘आँसू’ में सौन्दर्य, प्रेम, विरह और वेदना का चरमोत्कर्ष है। प्रियतम की स्मृति उसके मानव में एक विरह, वेदना और मादकता भर देती है। कवि की चेतना के आकाश पर अपने विगत जीवन की स्मृतियाँ आकर घिर जाती हैं। घनीभूत पीड़ा उसके मन को व्यथित कर देती है। उसकी वेदना का मेघ आँसुओं के रूप में बरसने लगता है
जो घनीभूत पीड़ा थी, मस्तक में स्मृति सी छाई ।
दुर्दिन में आँसू बनकर, वह आज बरसने आई ।।
व्यक्तिगत अनुभूति की अभिव्यक्ति, भावों का केन्द्रीयकरण, संगीतात्मकता, मधुर और कोमलकान्त पदावली आदि गीति-काव्य की प्रमुख विशेषताएँ हैं। ये समस्त विशेषताएँ ‘आँसू’ में मिलती हैं। समस्त ‘आँसू’ काव्य में विरह की मिठास भरी हुई है। कवि की विरह-वेदना कोमल करुण पुकार बनकर छा गई। कुशल शिल्पी कवि ने शब्दों को वेदना की भट्टी में गलाकर संगीत के साँचे में ढाल दिया है। उसकी आहें, प्रिय के पावन प्रेम-फुहार से सिक्त हैं, जिनमें जलन के साथ मीठी पीर भी है। ‘आँसू’ में सर्वत्र ही अनुभूति की तन्मयता मिलती है। कवि की सारी कल्पना संगीतमय हो उठी है। ‘आँसू’ का प्रत्येक शब्द पाठक को तन्मय बना देता है। उसके नेत्रों के समक्ष प्रेम, सौन्दर्य और वेदना का अतीन्द्रिय जगत अंकित हो जाता है। प्रत्येक छन्द के सरगम पर चढ़ता हुआ वह वासना पूर्ण प्रेम के स्थान पर स्वच्छ प्रेम के राज्य में पहुँच जाता है। इस प्रकार ‘आँसू’ संगीत तथा काव्य का श्रेष्ठ उदाहरण बन गया है।
प्रभावात्मकता और अनुभूतियों की मार्मिकता गीति-काव्य का प्रमुख तत्त्व है। इस दृष्टि से ‘आँसू’ हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ गीति-काव्य है। एक-एक शब्द में कराह कसक और मार्मिक वेदना हृदय को वेध देती है-
इस करुणा कलित हृदय में, अब विकल रागिनी बजती।
क्यों हाहाकार स्वरों में, वेदना असीम गरजती ।।
X X X
चातक की चकित पुकारें, श्यामा ध्वनि करुण रसीली ।
मेरी करुणार्द-कथा की, टुकड़ी आँसू से गीली ।।
यहाँ हृदय की मार्मिक वेदना श्यामा की करुण पुकार की तरह ही वातावरण को करुण बना देती है। ‘आँसू’ जैसी वियोग-वेदना की स्वाभाविकता, अनुभूति की सच्चाई अन्यत्र खोजने पर भी न मिलेगी। कवि को अपनी प्रेयसी का वियोग हुआ। उसका क्षणिक मिलन ही उसके लिए महामिलन था। प्रिय की स्मृति आते ही उसका हृदय वेदना से कराह उठता है-
छिप गयीं कहाँ छूकर ये, मलयज की हिलोरें ।
क्यों घूम गई है आकर, करुणा-कटाक्ष की कोरें ।।
X X X
शीतल समीर आता है, कर पावन गरल तुम्हारा ।
मैं सिहर उठा करता हूँ, बरसाकर आंसू धारा ।।
‘आँसू’ प्रसादजी की एक उच्चकोटि की गीतिकाव्य-सृष्टि है। आद्योपान्त इसकी आत्मा संगीतमयी है। इनमें कवि की आन्तरिक भाव-विभूतियों तथा कथा- सौन्दर्य के एक ही साथ दर्शन होते हैं। जीवन-संघर्ष की मर्म-मधुर अनुभूतियों के ताप से कवि का सारा अस्तित्व पिघलकर बहने लगता है और वह तरल रस बरबस छन्दों के सांचों में सामने आ जाता है। कवि का भौतिक जड़ अस्तित्व अलौकिक, चैतन्यपूर्ण और रसमय हो जाता है उसने अपने हृदय की वेदना को इस प्रकार खोलकर रख दिया है, मानो अनन्त आकाश के समक्ष उर्मिल महा सिन्धु हो ।
अनुभूति गीत प्राण या हृत्कम्पन है। प्रसाद जी का ‘आँसू’ अनुभूति के रस से ओत-प्रोत है। प्रसाद जी का समस्त गीति-काव्य अनुभूति प्रधान है, किन्तु ‘आँसू’ में यह अनुभूति अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई है। हृदय की अनुभूति ही आकाश की नीलिमा की तरह सर्वत्र एकरस हो धुली हुई है। निर्वेद, दैन्य, मद, मोह, स्मृति, विषाद आदि हृदय की गम्मीर भावनाओं की व्यंजना बहुत ही मार्मिक हुई है।
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- जयशंकर प्रसाद जी प्रेम और सौन्दर्य के कवि हैं। इस कथन की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
- जयशंकर प्रसाद के काव्य की विशेषताएँ बताइए।
- जयशंकर प्रसाद जी के काव्य में राष्ट्रीय भावना का परिचय दीजिए।
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