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आमण्ड द्वारा प्रतिपादित व्यवस्था सिद्धान्त अथवा आमण्ड के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक उपागम
राजनीतिक व्यवस्था की अवधारणा के ईस्टन द्वारा दिये गये मॉडल को निवेश निर्गत मॉडल कहा जाता है। और आमण्ड पॉवेल द्वारा दिये गये मॉडल को संरचनात्मक प्रकार्यात्मक मॉडल कहा जाता है। आमण्ड पॉवेल ने राजनीतिक व्यवस्था के बारे में मौलिक रूप से ईस्टन की ही व्यवस्था को स्वीकार किया है, किन्तु इन्होंने राजनीतिक व्यवस्था के संघटकों को लेकर ईस्टन से बहुत आगे बढने का प्रयास किया है। वे राजनीतिक व्यवस्था के ढाँचे को उसके प्रकार्यात्मक पहलुओं से पृथक् करके समझने का प्रयत्न करते है।
इस विश्लेषण पद्धति में यह माना जाता है कि प्रत्येक व्यवस्था में संरचनाएँ होती है। इन संरचनाओं को पहचाना जा सकता है। इन संरचनाओं के अंग अथवा व्यवस्था के अन्तर्गत कार्य करतें है। व्यवस्था की सक्रियता इनके कार्यों को अर्थ प्रदान करती है अर्थात् व्यवस्था की संरचनाओं के अंगों द्वारा किये गये कार्यो का महत्व व्यवस्था के कार्यों के ही परिप्रेक्ष्य में है। संरचना के एक अंग अथवा तत्व की क्रियाएँ दूसरे अंग अथवा तत्व पर निर्भर करती है। व्यवस्था की संरचनाओं के अंग के कार्य की दृष्टि से अन्योन्याश्रित होते है। राजनीतिक व्यवस्थाओं की वे चाहे किसी भी प्राकर की क्यों न हों, यदि उन्हें क्रियाशील तन्त्र के रूप में कायम रहना है तो उन्हें एक विशिष्ट प्रकार के कार्यो को अवश्य करना पडेगा। सतत् क्रियाशीलता राजनीतिक व्यवस्थाओं की एक विशेषता है। ये व्यवस्था की प्रकार्यक आवश्यकताएँ है। विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं में यह कार्य विभिन्न प्रकार की राजनीतिक संरचनाओं और कभी-कभी उन संरचनाओं के द्वारा जिन्हें हम राजनीतिक संरचनाएँ नहीं कहते, किया जाता है। अतः राजनीतिक व्यवस्थाओं के तुलनात्मक अध्ययन में न केवल औपचारिक संरचनाओं की तुलना की जानी चाहिए, अपितु उन अनौपचारिक संरचनाओं की भी तुलना करनी चाहिए जिन्हें हम राजनीतिक संरचनाओं की श्रेणी में नहीं रखते।
आमण्ड के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था की चार विशेषताएँ हैं जिन्हें ‘अन्तः क्रिया के औचित्यपूर्ण प्रतिमान’ कहा जाता है –
(1) प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था की कुछ संरचनाएँ होती है, उनमें से कुछ अधिक विशेषीकृत होने के कारण अधिक कार्य कर सकती है और अन्य क्रम विशेषीकृत होने के कारण इसमें कम कार्य कर सकती है।
(2) व्यवस्था और इसकी संरचनाओं में कुछ भी अन्तर हो सकता है लेकिन सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं में समान राजनीतिक कार्य किये जाते है।
(3) राजनीतिक संरचनाएँ कई ऐसे कार्य करती है जिन्हें बहुकार्यक कहा जा सकता है।
(4) पूर्ण समाज का अंग होने के कारण सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं की अपनी संस्कृति होती है जो कि हमेशा परम्परागत और आधुनिक का मिश्रण होती हैं। जैसे-जैसे व्यवस्था का विकास होता है और इसकी संरचनाओं में विशेषता आती जाती है वैसे-वैसे संस्कृति के परम्परावादी तत्वों अथवा पहलुओं की कमी होती जाती हैं। किन्तु राजनीतिक संस्कृति से परम्परावादी तत्व कभी भी समाप्त नहीं होते।
सभी राजनीतिक प्रणालियों को वे चाहें किसी भी प्रकार की क्यों न हों, यदि उन्हें क्रियाशील प्रणाली के रूप में कायम रहना है जो उन्हें एक विशिष्ट प्रकार के कार्यो की अवश्य करना पड़ेगा सतत् क्रियाशीलता राजनीतिक प्रणाली की एक विशेषता है। ये प्रणाली की प्रकार्यिक आवश्यकताएँ है। विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं में यह विभिन्न प्रकार की राजनीतिक संरचनाओं और कभी कभी उन संरचनाओं के द्वारा (जिन्हें हम राजनीतिक संरचनाएँ नहीं कहते किया जाता है। अतः राजनीतिक प्रणालियों के तुलनात्मक अध्ययन में न केवल औपचारिक संरचाओं की तुलना की जाती चाहिए, अपितु उन औपचारिक संरचनाओं की भी तुलना करनी चाहिए जिन्हें हम राजनीतिक संरचनाओं की श्रेणी में नहीं रखते । विश्लेषण की इस विधि का प्रारम्भ निम्न प्रश्न पूछकर किया जाता है “यदि अमुक कार्य अवश्य किये जाने चाहिए तो किन संयंत्रों के द्वारा ये कार्य वास्तव में किये जा रहे है?
दृष्टि से अन्योन्याश्रित होते हैं। सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं को वे चाहे किसी भी प्रकार की क्यों न हों, यदि उन्हें क्रियाशील तन्त्र के रूप में कायम रहना है तो उन्हें एक विशिष्ट प्रकार के कार्यों को अवश्य करना पड़ेगा। सतत् क्रियाशीलता राजनीतिक व्यवस्थाओं की एक विशेषता है। ये व्यवस्था की प्रकार्यक आवश्यकताएँ हैं। विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं में यह कार्य विभिन्न प्रकार की राजनीतिक संरचनाओं और कभ-कभी उन संरचनाओं के द्वारा जिन्हें हम राजनीतिक संरचनाएँ नहीं कहते, किया जाता है। अतः राजनीतिक व्यवस्थाओं के तुलनात्मक अध्ययन में न केवल औपचारिक संरचनाओं की तुलना की जानी चाहिए, अपितु उन अनौपचारिक संरचनाओं की भी तुलना करनी चाहिए जिन्हें हम राजनीतिक संरचनाओं की श्रेणी में नहीं रखते।
आमण्ड के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था की चार विशेषताएँ हैं जिन्हें ‘अन्तःक्रिया के औचित्यपूर्ण प्रतिमान’ कहा जाता है—
(1) प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था की कुछ संरचनाएँ होती हैं, उनमें से कुछ अधिक विशेषीकृत होने के कारण अधिक कार्य कर सकती हैं और अन्य कम विशेषीकृत होने के कारण इसमें कम कार्य कर सकती हैं।
(2) व्यवस्था और इसकी संरचनाओं में कुछ भी अन्तर हो सकता है, लेकिन सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं में समान राजनीतिक कार्य किये जाते हैं।
(3) राजनीतिक संरचनाएँ कई ऐसे कार्य करती हैं जिन्हें बहुकार्यक कहा जा सकता है।
(4) पूर्ण समाज का अंग होने के कारण सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं की अपनी संस्कृति होती है जो कि हमेशा परम्परागत और आधुनिक का मिश्रण होती है। जैसे-जैसे व्यवस्था का विकास होता है और इसकी संरचनाओं में विशेषज्ञता आती जाती है वैसे-वैसे संस्कृति के परम्परावादी तत्त्वों अथवा पहलुओं की कमी होती जाती है। किन्तु राजनीतिक संस्कृति से परम्परावादी तत्त्व कभी भी समाप्त नहीं होते।
सभी राजनीतिक प्रणालियों को वे चाहें किसी भी प्रकार की क्यों न हों, यदि उन्हें क्रियाशील प्रणाली के रूप में कायम रहना है तो उन्हें एक विशिष्ट प्रकार के कार्यों को अवश्य करना पड़ेगा। सतत् क्रियाशीलता राजनीतिक प्रणाली की एक विशेषता है। ये प्रणाली की प्रकार्यिक आवश्यकताएँ हैं। विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं में यह कार्य विभिन्न प्रकार की राजनीतिक संरचनाओं और कभी-कभी उन संरचनाओं के द्वारा (जिन्हें हम राजनीतिक संरचनाएँ नहीं कहते) किया जाता है। अतः राजनीतिक प्रणालियों के तुलनात्मक अध्ययन में न केवल औपचारिक संरचनाओं की तुलना की जानी चाहिए, अपितु उन अनौपचारिक संरचनाओं की भी तुलना करनी चाहिए जिन्हें हम राजनीतिक संरचनाओं की श्रेणी में नहीं रखते। विश्लेषण की इस विधि का प्रारम्भ निम्न प्रश्न पूछकर किया जाता है “यदि अमुक कार्य अवश्य किये जाने चाहिए, तो किन संयंत्रों (Mechanisms) के द्वारा ये कार्य वास्तव में किये जा रहे हैं?”
इस प्रकार इस विश्लेषण पद्धति में कार्यों के बारे में प्रश्न पूछकर उन संरचनाओं की जानकारी प्राप्त की जाती है जो वास्तव में इन्हें संपादित करती हैं। इसी तरह हम राजनीतिक प्रक्रिया के बारे में प्रश्न पूछकर औपचारिक तथा अनौपचारिक संरचनाओं की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इन कार्यों को किस प्रकार की संरचनाओं द्वारा किया जा रहा है? इस प्रश्न के द्वारा हम संरचनाओं की प्रकृति (औपचारिक या अनौपचारिक) के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आमण्ड के संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक विश्लेषण की यही आधारशिला है।
आमण्ड ने राजनीतिक व्यवस्था की संरचनात्मक प्रकार्यात्मक व्यवस्था में ईस्टन के समान ही तीन चरण स्वीकार किये हैं—(i) राजनीतिक व्यवस्था के आदा या निवेश, (ii) रूपान्तरण प्रक्रिया, तथा (iii) राजनीतिक व्यवस्था के प्रदा या निर्गत
राजनीतिक व्यवस्था के आदा या निवेशों के लिए आमण्ड ‘माँगों तथा समर्थनों को स्वीकार करता है। उसके अनुसार निवेशों के रूप में आने वाली माँगों की चार श्रेणियाँ हैं—(i) वस्तुओं और सेवाओं के वितरण या आवण्टन सम्बन्धी माँगें; (ii) व्यवहारों को नियन्त्रित करने सम्बन्धी माँगें; (iii) राजनीतिक सहभागिता सम्बन्धी माँगें; (iv) संचार से संबंधित माँगें। इन्हें दूसरे शब्दों में (1) राजनीतिक समाजीकरण और भर्ती, (2) हित उच्चारण, (3) हित समाजीकरण, और (4) राजनीतिक संचार कहा जाता है।
माँगों की तरह ही आमण्ड ने समर्थन को भी चार श्रेणियों में विभक्त किया है- (1) द्रव्यात्मक समर्थन, (2) आज्ञाकारिता के समर्थन, (3) सहभागिता समर्थन, (4) श्रद्धात्मक समर्थन।
आमण्ड की राजनीतिक व्यवस्था विश्लेषण की प्रमुख देन रूपान्तरण प्रक्रिया से ही सम्बन्धित है। आमण्ड के अभिमत में माँगों की रूपान्तरण प्रक्रिया उतनी सरल नहीं है जितनी कि ईस्टन ने मान ली है। माँगों के रूपान्तरण आमण्ड ने दो भागों में विभक्त किया है—माँगों के रूपान्तरण के राजनीतिक प्रकार्य वर्ग तथा माँगों के रूपान्तरण के शासकीय प्रकार्य-प्रवर्ग। प्रथम में, माँगों को संसाधित करके रूपान्तरण योग्य बनाया जाता है। इसमें केवल सरकार की संरचनाएँ ही सम्मिलित नहीं होतीं, अपितु राजनीतिक दृष्टि से गैर-सरकारी संरचनाएँ भी सम्मिलित होती हैं। राजनीतिक दल, दबाव समूह और हित समूह या अन्य ऐसे ही संगठन इस स्तर पर माँगों के संसाधन व रूपान्तरण में सरकारी संरचनाओं के साथ अन्तः क्रियाशील रहते हैं। दूसरे में, माँगों को सत्तात्मक या अधिकारिक निर्णयों की स्थिति तक पहुँचने की औपचारिकताएँ सम्मिलित होती हैं।
इसमें प्रमुखतया शासन संरचनाएँ सम्मिलित होती हैं। किन्तु इस स्तर पर भी वे तत्त्व सक्रिय रहते हैं, जिन्होंने माँगों को संसाधित करके सत्ताओं के ध्यान देने की स्थिति तक धकेला होता है।
आमण्ड ने राजनीतिक व्यवस्था के प्रदा या निर्गतों के विवेचन में ईस्टन या मॉडल स्वीकार नहीं किया है। उसने निर्गतों के चार भिन्न प्रकार माने हैं—(1) निकालने या उगाहने या लेने वाले निर्गत, (2) नियामक निर्गत, (3) वितरणी निर्गत, (4) प्रतीकात्मक निर्गत निर्गतों में पहली श्रेणी का सम्बन्ध कर वसूली, व्यक्तिगत सेवाएँ और सहयोग तथा योगदान से है। दूसरे में मानव व्यवहार को नियमित और नियन्त्रित करना सम्मिलित रहता है। वितरणात्मक निर्गतों में वस्तुओं, सेवाओं, लाभों, अवसरों, सम्मानों इत्यादि का आबण्टन शामिल है। प्रतीकात्मक निर्गत मूल्यों की पुष्टि तथा राजनीतिक प्रतीकों का प्रदर्शन, नीतियों और उद्देश्यों की घोषणा से सम्बन्धित होता है।
जिस विधि तथा यंत्र द्वारा राजनीतिक व्यवस्था निवेश को (विभिन्न समूहों तथा व्यक्तियों की • माँगों को) रूपान्तरित करता है तथा पर्यावरण की प्रतिक्रियाओं का प्रत्युत्तर देता है, उस आमण्ड रूपान्तरण की प्रक्रिया कहता है। राजनीतिक व्यवस्था की क्षमता इस बात में निहित है कि वह किस सीमा तक निवेश (input) को निर्गत (output) में रूपान्तरित करने की क्षमता रखता है। निवेश को निर्गत में रूपान्तरित करने की क्षमता को व्यवस्था की क्षमता कहा जाता है।
‘राजनीतिक संस्कृति’ की धारणा के आधार पर आमण्ड ने राजनीतिक व्यवस्थाओं को चार भागों में विभाजित किया है-(1) आंग्ल-अमेरिकन राजनीतिक व्यवस्था, (2) यूरोपीय महाद्वीपीय राजनीतिक व्यवस्था, (3) पूर्व-औद्योगिक या आंशिक रूप से औद्योगिक राजनीतिक व्यवस्थाएँ तथा (4) सर्वसत्ताधारी राजनीतिक व्यवस्थाएँ।
संक्षेप में, आमण्ड के संपूर्ण विश्लेषण का निष्कर्ष यह है कि जो राजनीतिक व्यवस्था जितनी विकसित होगी उसकी संरचनाएँ (structures) भी उतनी ही विशेषीकृत होगी। आमण्ड आधुनिक राजनीतिक व्यवस्था उस व्यवस्था को कहता है जिनकी राजनीतिक संस्कृति विशेषीकृत होती है। इस प्रकार वह संस्कृति विशेषीकरण के आधार पर राजनीति व्यवस्थाओं का विभाजन करता है।
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