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चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास व जीवनी Chandragupta Maurya History in Hindi

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चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास व जीवनी Chandragupta Maurya History in Hindi

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चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास व जीवनी

भारत में एक से बढ़कर एक बलशाली शासक हुए, किन्तु उनमें चंद्रगुप्त मौर्य का नाम एक अलग ही अहमियत रखता है!चंद्रगुप्त मौर्य, जिन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की, भारत के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण शासकों में से एक थे । उन्होंने न सिर्फ नंद वंश को नष्ट किया, बल्कि मजबूत मौर्य साम्राज्य की स्थापना भी की. स्वतंत्र राज्यों को एकजुट करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई |उन्होंने छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्यों को एकजुट करने में योगदान दिया, ताकि एक ही प्रशासन के तहत एक विशाल एकल राज्य का निर्माण किया जा सके, इसमें कलिंग, चेरा, चोल, सत्यपुत्र और पंड्या के तमिल क्षेत्रों को शामिल नहीं किया था ।

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20 साल की उम्र में, उनके मुख्य सलाहकार विद्वान ब्राह्मण चाणक्य के साथ मिलकर, उन्होंने मेसेडोनिया क्षेत्र को ज़ब्त कर लिया और अलेक्जेंडर के जनरल सेलुकस के पूर्वी राज्यों को अपने साम्राज्य में मिलाकर विजय प्राप्त की। यह वही सेलुकस था, जिस पर आक्रमण तो दूर, उसका नाम भर लेने से कई शासक पसीना छोड़ देते थे|महज 20 साल की उम्र में उन्होंने जिस तरह से उत्तरी भारत के अधिकांश राज्यों पर शासन किया, वह आम बात नहीं थी.

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उनका साम्राज्य उत्तर में कश्मीर, दक्षिण में दक्कन पठार और पश्चिम में अफ़ग़ानिस्तान और बलूचिस्तान से बंगाल और असम में पूर्व तक फैला था। फिर भी, उन्होंने स्वेच्छा से अपना सिंहासन छोड़ दिया और जैन धर्म स्वीकार कर लिया और कर्नाटक से दक्षिण की तरफ चले गए। तब उनके पोते अशोक ने 260 ईसा पूर्व में कलिंग और तमिल राज्य की अपूर्ण विजय को पूरा करने के लिए उनके कदमों का पालन किया। जबकि अशोक शुरूआती क्रूर और भयंकर राजा था, दूसरी ओर, चंद्रगुप्त, बहुत ही शांत स्वभाव के थे।

जन्म को लेकर मतभेद

चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ईसा पूर्व में पाटलीपुत्र में हुआ था, जो आज बिहार का हिस्सा है. वह किस परिवार में पैदा हुए इसको लेकर अलग-अलग मत हैं, कुछ लोगों के अनुसार वह शूद्र जाति के नंदा राजकुमार के यहां पैदा हुए थे, जबकि कुछ लोग दावा करते हैं कि वह मौर्य जनजाति के थे.

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वह बचपन से ही एक बहादुर और समझदार नेता थे, वह, चाणक्य जो कि अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में निपुण एक महान ब्राह्मण विद्वान थे, उनकी छत्रछाया में , तक्षशिला विश्वविद्यालय में चन्द्र गुप्त मौर्य को मार्गदर्शन किया गया, जो बाद में उनके गुरु बने। खैर, जो भी हो वह बड़े हुए तो उन्हें चाणक्य का साथ मिला. असल में चाणक्य उनकी तेजी और बुद्धिमानी से बेहद प्रभावित थे. चंद्रगुप्त उनके सहयोग से तक्षशिला पहुंचने में सफल रहे. जहां उन्होंने युद्ध कला के कई गुर सीखे और आगे इनके दम पर एक बहादुर और कुशल शासक बनकर निखरे

परिग्रहण और शासन ACCESSION AND RULE

उन्होंने चाणक्य की सहायता से एक सेना की स्थापना की, और जब मौर्य साम्राज्य की स्थापना हो गई तो बाद में, वह उनके मुख्य सलाहकार और प्रधानमंत्री बन गए।

चंद्रगुप्त नंद सेना से मुकाबला करने में सक्षम थे, लड़ाइयों की एक श्रृंखला के बाद आखिरकार शहर की राजधानी पाटलीपुत्र को घेर लिया गया, नंद साम्राज्य की विजय के साथ, 20 साल की उम्र में उन्होंने उत्तर भारत में मौर्य साम्राज्य की नींव रखी। 323 ईसा पूर्व में अलेक्जेंडर की मौत के बाद, उनके साम्राज्य को उनके जनरलों ने तीन बैठकों में विभाजित कर दिया, जिसमें , मेसेडोनिया प्रदेशों के साथ, पंजाब सहित, सेलुकस आई निकेटर शामिल थे ।

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चूंकि सेलुकस जब पश्चिमी सीमाओं में व्यस्त था, तब चन्द्रगुप्त को माक्रेट्स के बेटे पार्थिया और फिलिप के दो मैक्सिकन शख्सियतों पर हमला करने का मौका मिला। सेलुकस को हराने के बाद, चंद्रगुप्त ने उनके साथ एक शांति संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसके अनुसार उन्होंने 500 हाथियों के बदले पंजाब पर अधिकार हासिल किया।

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अपने शासन काल में उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश उत्तरी हिस्सों के साथ-साथ, दक्षिण पूर्व में विंध्य रेंज और दक्कन के पठार में 300 ईसा पूर्व तक स्वतंत्र भारतीय राज्यों पर विजय प्राप्त की। हालांकि वह भारतीय उपमहाद्वीप को एकजुट करने में सफल रहे, लेकिन वह पूर्वी तट पर कलिंग (आधुनिक ओडिशा) पर कब्जा करने में विफल हो गए और दक्षिणी सिरे पर तमिल राज्य, जो अंततः उसके पोते अशोक द्वारा संभाला गया था।

सेलुकस को हरा रचा इतिहास

जिस समय चंद्रगुप्त आकार ले रहे थे, उस समय भारत सिकंदर के हमलों से जूझ रहा था. उसका भारत के कई हिस्सों पर कब्जा था. इसी बीच 323 बीसी आते-आते सिकंदर की मौत हो गई. उसका सारा साम्राज्य उसके जनरलों ने तीन भागों में बांट लिया.

चंद्रगुप्त ने मौके की नजाकत को समझा और सिकंदर के कब्जे वाले क्षेत्रों पर एक-एक करके कब्जा करना शुरु कर दिया. इस कोशिश में उसको सेलुकस का सामना भी करना पड़ा, किन्तु अब तक चंद्रगुप्त एक महान योद्धा बन चुके थे. उन्हें सेलुकस को हराने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी.

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मेगास्तेनीस और स्ट्रैबो के अनुसार, माना जाता है कि उन्होंने 400,000 सैनिकों की सेना की स्थापना की थी, जबकि प्लिनी के आंकड़े के अनुसार 600,000 फुट सैनिकों, 30,000 घुड़सवार और 9,000 युद्ध हाथियों की सेना थी।

प्रमुख युद्ध

असफल प्रयासों की एक लम्बी श्रृंखला के बाद, उन्होंने 321 ईसा पूर्व में धनानंद और सेना के सेनापति भद्रसाला की सेना को हराकर नंद वंश को समाप्त कर दिया और राजधानी पाटलिपुत्र पर विजय प्राप्त की। अपने साम्राज्य का और अधिक विस्तार करने के लिए, उन्होंने पूर्वी फ़ांस पर अपनी तीव्र नज़रें स्थापित की और सफलतापूर्वक 305 ईसा पूर्व में इसपर हमला किया और उन्होंने हिंदू कुश, आधुनिक अफग़ानिस्तान और पाकिस्तान में बलूचिस्तान सहित क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया।

उपलब्धियां

अधिकांश भारतीय उपमहाद्वीप को जीतकर, उन्होंने भारतीय इतिहास में सबसे बड़ा साम्राज्यों को स्थापित किया, जो कि पश्चिम में मध्य एशिया से लेकर पूर्व में बर्मा और उत्तर में हिमालय दक्षिण में दक्कन पठार तक फैला हुआ है।

कूटनीति का बेजोड़ उदाहरण

युद्ध में हारने के बाद मजबूरन सेलुकस को संधि का रास्ता चुनना पड़ा. संधि करते समय भी चंद्रगुप्त ने कूटनीति का प्रयोग किया और उसकी बेटी भावना से विवाह कर लिया. असल में वह अपने साम्राज्य को मजबूत करना चाहते थे. इसके लिए यूनानी साम्राज्य से नजदीकियां बहुत जरूरी थीं.

आगे चंद्रगुप्त को इसका फायदा भी मिला. वह पश्चिमी देशों के साथ सम्बन्ध जोड़ने में सफल रहे. इसी के साथ व्यापार के नये रास्ते खुले और मौर्य साम्राज्य विकास की पटरी पर दौड़ पड़ा.

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आर्थिक और सामाजिक बदलावों की तो जैसे झड़ी सी लग गई.

राजनीतिक स्थिति में भी कई सुधार हुए. केंद्रीय प्रशासन की स्थापना इसका एक बड़ा उदाहरण माना जाता है.

यही नहीं सिविल सेवाओं पर क्रांतिकारी बदलाव के लिए भी मौर्य सम्राज्य को ही याद किया जाता है.

अपने शासन के तहत चंद्रगुप्त ने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश उत्तरी हिस्सों पर कब्जा किया. साथ ही वह दक्षिण पूर्व में विंध्य रेंज और दक्कन पठार तक भी अपनी विजय पताका फहराने में सफल रहे.

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उनके बारे में कहा जाता है कि वह भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश लोगों को एकजुट करने वाले शासक बने.

उनकी परिधि से केवल पूर्वी तट पर कलिंग और दक्षिणी दक्षिणी तट पर तमिल राज्य बचे थे, जिन पर बाद में उनके सम्राट पोते ने मौर्य सम्राज्य का झण्डा फहराया.

साम्राज्य बिंदुसार को सौंप दिया

अपने शौर्य से दुनिया को चकाचौंध कर देने वाले चंद्रगुप्त के जीवन में एक समय ऐसा भी आया, जब उन्होंने शस्त्र त्याग कर खुद को जैन धर्म को सौंप दिया.

इस समय लगभग उनकी उम्र 50 के आसपास थी. इसी काल में अचानक उन्होंने अपना सारा साम्राज्य बेटे बिंदुसार को सौंप दिया. लोग उनके इस फैसले से हैरान था, किन्तु वह खामोश रहे और फिर कर्नाटक चले गए.

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एक तरफ चंद्रगुप्त के जाने के बाद सभी के मन में सवाल थे कि अब मौर्य साम्राज्य का क्या होगा. क्या बिंदुसार पिता की तरह अपने राज्य को चला पायेगा. या मान लिया जाये कि अब मौर्य साम्राज्य पतन की ओर अग्रसित होगा.

दूसरी तरफ चंद्रगुप्त जैन धर्म में कुछ इस तरह लीन हो चुके थे कि उन्हें देश-दुनिया की कोई फिक्र नहीं थी. वह घंटों अपने गुरु के साथ मिलकर ध्यान लगाते… पूजा-पाठ करते!

इस तरह खुद मौत को गले लगाया

इसी कड़ी में उन्होंने एक बार संथरा नामक एक विशेष तप में बैठने का मन बना लिया. यह एक कठोर तप था. इसमें मृत्यु आने तक ध्यान में बैठने का रिवाज था. चंद्रगुप्त जैसे शासक द्वारा खुद मौत को गले लगाना किसी के गले से उतर नहीं रहा था. किन्तु, वह किसी की कहाँ सुनने वाले थे.
अतत: वह संथरा के लिए गये और मृत्यु को प्यारे हो गये.

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चन्द्रगुप्त मौर्य के जाने के बाद एक बार फिर उनके गुरु चाणक्य की भूमिका अहम हो गई. उन्होंने भी अपनी जिम्मेदारियों को समझा और चंद्रगुप्त के पुत्र बिंदुसार की मदद की. परिणाम यह रहा कि उसने मौर्य साम्राज्य को आगे बढ़ाया. असल में चाणक्य को इस बात का इल्म था कि वह सक्रिय नहीं रहे तो बिंदुसार धोखा खा सकता है. उसके पास पिता चंद्रगुप्त जैसा अनुभव नहीं था.

खैर, बिंदुसार और चाणक्य की जुगलबंदी ने मौर्य साम्राज्य का दीपक मध्यम नहीं पड़ने दिया. बिंदुसार कई बार हारे भी, लेकिन वे अपनी हार से भी कुछ सीखकर आगे बढ़ते रहे. बाद में उनके बेटे अशोक ने इसे एक नए मुकाम पर पहुँचाया.

निजी जीवन और विरासत

उन्होंने सेलेकस की बेटी से शादी की, और हेलेनिस्टिक राज्यों के साथ अपने मैत्रीपूर्ण संबंध बनाये तथा पश्चिमी दुनिया के साथ भारत के व्यापार को बढ़ाया गया।

उन्होंने अपने सिंहासन को त्याग दिया और जैन धर्म में परिवर्तित कर दिया, अंततः श्रुतकेली भद्रबाहू के अधीन मुनी बन गया, जिसके साथ उन्होंने श्रवणबेलगोला (आधुनिक कर्नाटक में) की यात्रा की, जहां उन्होंने 298 बीसी में ध्यान और उपवास किया।

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वह अपने बेटे बिन्दुसारा द्वारा सफल हुए, जो बाद में उनके पोते अशोक द्वारा शासन संभाला गया, जो प्राचीन भारत के सबसे प्रभावशाली शासकों में से एक था ।
जिस तरह से अपने छोटे से जीवन काल में चंद्रगुप्त ने अकेले के दम पर पूरे भारत पर शासन किया. वह अदम्य साहस और दृढ़ इच्छा शक्ति का बड़ा उदाहरण है.

यही कारण है कि उन पर न सिर्फ कई पुस्तकें लिखी गईं बल्कि उन पर ‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ नाम से टीवी सीरियल भी बनाया गया.

कुल मिलाकर चंद्रगुप्त मौर्य का व्यक्तित्व युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणास्रोत है, जिसकी जितनी चर्चा की जाये वह कम ही होगी.

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