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प्रदूषण का आशय (Meaning of Pollution)
मानव ने औद्योगिक क्रान्ति के बाद से पृथ्वी के सभी प्राकृतिक संसाधनों (Natural resources) का अनियंत्रित दोहन उद्योग, कृषि, यातायात आदि के लिए किया है। इन संसाधनों के निरंतर एवं अनियंत्रित उपयोग से पर्यावरण का संवेदनशील तंत्र असंतुलित हो गया है। प्रकृति में मनुष्य के हस्तक्षेप से उत्पन्न यह असंतुलन अन्य जीवधारियों एवं स्वयं मनुष्य के अस्तित्व के लिए एक खतरा बन गया है। विश्व के विभिन्न देशों में तेजी से बढ़ती आधुनिक औद्योगिक इकाइयों से संसाधन समाप्त हो रहे हैं। इनसे निकलने वाले बहिस्स्राव (Effluent) के वातावरण में मिलने से पर्यावरणीय तंत्र में अवांछित परिवर्तन (Undesirable changes) उत्पन्न हो रहे हैं। वातावरणीय जल (Water), वायु (Air) तथा मिट्टी (Soil) के भौतिक (Physical), रासायनिक (Chemical) तथा जैविक गुणों में अवांछनीय एवं हानिकारक परिवर्तन को प्रदूषण कहते हैं।
प्रदूषण को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है –
“जब मानव द्वारा अपने पर्यावरण में विभिन्न अनावश्यक तत्वों व ऊर्जा का इतना अधिक संग्रह का दिया जाता है कि उनके अवशोषण की क्षमता पारिस्थितिकी तन्त्रों में नहीं रहती तो ऐसी स्थिति को प्रदूषण कहते हैं।”– आर. ई. दासमन
“मानवीय क्रिया-कलापों से उत्पन्न अपशिष्ट उत्पादों के रूप में पदार्थों एवं ऊर्जा के निष्कासन से प्राकृतिक पर्यावरण में होने वाले हानिकारक परिवर्तनों को प्रदूषण कहा जाता है।” – नेशनल एनवाइरमेण्टल कौंसिल
“प्रदूषण हमारी हवा, मृदा एवं जल के भौतिक रासायनिक तथा जैविक लक्षणों में अवांछनीय परिवर्तन है जो मानव जीवन तथा अन्य जीवों, हमारी औद्योगिक प्रक्रिया, जीवन दशाओं तथा सांस्कृतिक विरासतों को हानिकारक रूप में प्रभावित करता है अथवा प्रभावित करेंगा जो कच्चे पदार्थों के स्रोतों को नष्ट कर सकता है या करेगा।”– ओडम
“वे सभी चेतन या अचेतन, मानवीय तथा पालतू पशुओं की क्रियाएं एवं उनके परिणाम जो मानव को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में अल्पकाल या दीर्घकाल में उसके पर्यावरण से आनन्द तथा उससे पूर्व लाभ प्राप्त करने की योग्यता से पदच्युत करती है, प्रदूषण कहलाती है।” -जिक्शन
जल प्रदूषण का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Water Pollution)
जल एक अकार्बनिक द्रव है जो कि प्राकृतिक रूप में पृथ्वी पर पाया जाता है। बिना जल के जीवन असम्भव है, यदि पृथ्वी पर 2/3 भाग में मानव है तो पृथ्वी की सतह पर 7/0 भाग में जल है लगभग समस्त जल स्वाभाविक रूप से अच्छी विशेषता का है बल्कि यूरोप और अमेरिका में औद्योगीकरण के कारण इसमें कुछ भिन्नता है। जल प्रदूषण मनुष्यों द्वारा किया गया ऐसा भौतिक, रासायनिक और जैविक परिवर्तन है जोकि जल की विशेषता को बदल देता है और इस कारण जल की वातावरणीय कीमत कम हो जाती है और प्रदूषित जल पीने योग्य नहीं रहता है-
1. भौतिक प्रदूषण- जब जल हानिकारक हो जाता है और पीने योग्य नहीं रह जाता है तो कुछ भौतिक मापन किये जाते हैं।
2. जैविक प्रदूषण- जब जीवित प्राणी जल में उपस्थित होते हैं तब जैविक प्रदूषण होता है। जैसे- मल-मूत्र के रोग फैलाने वाले सूक्ष्म जीव जब वाहितमल के रूप में प्रवाह किये जाते हैं तो जल की प्राकृतिक धारा में अन्य जीवधारियों को सन्तुलन बिगाड़ देते है और इस प्रकार जल मानव जीवन के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
3. रासायनिक प्रदूषण- जब रसायन जल में डाले जाते हैं तब ये जल को प्रदूषित कर देते हैं। रासायनिक प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण औद्योगिक बहिस्राव और गंदे जल को शहरों में डालना है।
गिलपिन ने जल प्रदूषण की निम्न परिभाषा दी है, “मानव क्रियाओं के फलस्वरूप जल के रासायनिक, भौतिक तथा जैविक गुणों में लाया गया परिवर्तन जल प्रदूषण कहलाता है।” ऐसा जल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने के कारण अनुपयोगी हो जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, “जब जल में भौतिक या मानवीय कारणों से कोई बाहरी पदार्थ मिलकर जल के स्वाभाविक या नैसर्गिक गुण में परिवर्तन लाते हैं जिसका कुप्रभाव जीवों के स्वास्थ्य पर प्रकट होता है तो ऐसे जल को प्रदूषित जल कहा जाता है।”
जल प्रदूषक (Water Pollutants)
विभिन्न प्रकार के जल प्रदूषक हैं जोकि निम्नलिखित भागों में सूचित किये गये हैं :
1. ऑक्सीजन डिमाण्डिंग वेस्ट- वे व्यर्थ पदार्थ जिनमें ऑक्सीजन की मात्रा दी हुई मात्रा से बहुत कम होती है उस व्यर्थ पदार्थ को ऑक्सीजन डिमाण्डिंग कहते हैं। ये ऑक्सीजन पर कुछ कारकों द्वारा प्रभाव डालते हैं।
2. रोग फैलाने वाले कारक- 80-85% रोग जल प्रदूषण द्वारा होते हैं। रोग फैलाने वाले जीवाणु के कारण जल प्रदूषित हो जाता है। जल द्वारा उत्पन्न रोग तीन भागों में बाँटे गये हैं
3. कृत्रिम कार्बनिक पदार्थ- इसमें कण अपमार्जक और दूसरे संयुक्त पदार्थ आते हैं। अक्षयकारी और परसिस्ट लम्बे समय तक विषैले पदार्थों को संचित करते हैं और अन्त में जलीय जीवन में पहुँचकर जीवन को हानि पहुँचाते हैं।
4. वनस्पतिक पोषक- व्यर्थ जल में ये पोषक तत्व अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। ये पदार्थ सीधे निर्माण विधि द्वारा या उर्वरक के उपयोग द्वारा जल में पहुँचते हैं। भोजन, घरेलू वाहित मल या कपड़ों के उद्योगों के द्वारा शैवाल की अधिक वृद्धि होती है जिसे शैवाल वृद्धि कहते हैं।
5. अकार्बनिक खनिज और रसायन- जल में कई प्रकार के अकार्बनिक खनिज और रसायन पाये जाते हैं।
जल प्रदूषण के नियंत्रण के उपाय (Measures to Control Water Pollution)
जल प्रदूषण का नियंत्रण- शहरों और गाँवों में जल का प्रमुख स्रोत नदी का पानी है लेकिन जब कभी भी मल-मूत्र नदियों और झीलों में डाले जाते हैं तो ये जल के गुणों में परिवर्तन कर देते हैं और मनुष्यों और जानवरों को बहुत से रोग और हानि पहुँचाते हैं।
जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उपाय निम्नलिखित हैं-
(i) बहिस्राव- बहिस्राव को सीधे जल में मुक्त नहीं करना चाहिए बल्कि उचित भौतिक और रासायनिक प्रक्रिया द्वारा उपचार करने के बाद मुक्त करना चाहिए। इसमें तीन चरण शामिल हैं.
(a) बड़े निलम्बित कणों को हटाना।
(b) जीवाणु अपघटन को आगे बढ़ाने के लिए वायु का प्रभाव जिससे जीवाणु बाहर निकल सकें।
(c) नाइड्रोट और फास्फेट को हटाना और रसायनिक उपचयन क्लोरीन के द्वारा होता है।
(ii) मल-मूत्र को साफ-सुथरी झील और नदियों में नहीं फेंकना चाहिए क्योंकि ये ऑक्सीजन गैस की कमी कर देते हैं जिससे जलीय जन्तुओं को हानि होती है।
(iii) जिन जगहों पर मल-मूत्र का उपचार नहीं हो सकता है, उन जगहो पर मल-मूत्र को गहरे गड्ढों में डालकर बन्द कर देना चाहिए।
(iv) जो जल पीने योग्य हो उसमें नहाना और कपड़े धोना मना कर देना चाहिए।
(v) गर्म द्रव को ठंडा करके ही जल में बहाना चाहिए।
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