अनुक्रम (Contents)
दूरदर्शन पत्रकारिता
दूरदर्शन पत्रकारिता- महाभारत में संजय ने धृतराष्ट्र को अपनी दिव्य-दृष्टि से युद्ध का सीधा प्रसारण किया। आज के भौतिकवादी लोग इस प्रसारण पर विश्वास नहीं करते पर, यह तो मानना ही पड़ेगा कि दूरदर्शन, आकाशवाणी के साम्य रखने वाले जनसंचार के माध्यम का विकास भारत में बहुत पहले हो चुका था।
आज के युग में संचार माध्यम सबसे बड़ा माध्यम है, जिसके द्वारा आज मानवीय संवेदनाएँ एकदम संसार के एक कोने से दूसरे कोने में प्रकट की जाती हैं और भावनाओं के इस समुद्र को उजागर करने में शायद आज का सबसे बड़ा सशक्त माध्यम है-दूरदर्शन पत्रकारिता के क्षेत्र में एक नया आयाम तब जुड़ा जब टेलीविजन का आविष्कार हुआ। दूरदर्शन मीलों दूर बैठे किसी दृश्य, घटना या वस्तु का हूबहू दर्शन। पहले प्रेस, रेडियो और फिर दूरदर्शन। हर माध्यम की अपनी सीमाएँ हैं जिन्हें कुछ हद तक रेडियो ने दूर किया और धीरे-धीरे पत्रकारिता के क्षेत्र में रेडियो अपना विशेष एवं अलग स्थान बना सका। रेडियो के माध्यम से जहाँ एक ओर समाचार को तुरन्त दूर दराज के क्षेत्रों तक पहुँचाने की विशेषता थी वहीं समाचार का संक्षिप्तीकरण, समय की सीमा और सिर्फ समाचार सुनाया जाना और सुनना ही था। इस तरह अपने आप में पूर्ण होकर भी अपूर्ण था। दूरदर्शन से पत्रकारिता में मानों क्रांति आ गई तथा रेडियो पत्रकारिता में लगभग वैसे ही एक मोड़ आ गया जो कभी अखबारों के मार्ग में रेडियो के आविष्कार से आया था। अब श्रवण के साथ-साथ उस घटना वस्तु, परस्थिति या क्रम की हूबहू तस्वीर भी भेजी और प्राप्त की जा सकती है। श्रोता दर्शक समाचारों या किसी घटना विशेष की जानकारी और पृष्ठभूमि समझने के लिए श्रवण के साथ दृश्य की सुविधा का लाभ भी प्राप्त कर सकते हैं। रेडियो की कुछ कमियाँ और सीमाएँ दूरदर्शन के आविष्कार से दूर हो गई।
पाश्चात्य देशों में वैज्ञानिक उन्नति के साथ-साथ सर्वप्रथम 1920 में चित्र को वाणी देने का उपक्रम किया गया। डॉ० ब्लाडिमिट बोरिकिन ने सन् 1923 में गहन चिंतन और मनन किया। परिणामस्वरूप उन्हें सफलता मिली। सन् 1925 में अमेरिका के जेकिन्सनीज ने यांत्रिक दूरदर्शन उपकरण का प्रदर्शन किया। न्यूयार्क और वाशिंगटन के मध्य बेल टेलीफोन लेबोरेटरीज द्वारा तार के माध्यम से दूरदर्शन कार्यक्रम सन् 1927 में भेजा गया। धीरे-धीरे अनेक सुधार किये गये। सन् 1937 ई० में सर्वप्रथम दूरदर्शन के नियमित कार्यक्रम को बी०बी० सी० ने प्रारम्भ किया। सन् 1939 न्यूयार्क में लगे विश्व मेला में जनता ने दूरदर्शन पर कार्यक्रम देखा। भारत में दूरदर्शन की विकास यात्रा सन् 1964 से प्रारम्भ होती है। 15 अगस्त, 1965 से भारत में नियमित रूप से एक घंटे का टी०वी कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ।
आज दूरदर्शन प्रतिदिन लोकप्रिय होता जा रहा है। इसकी लोकप्रियता से ऐसा लगता है कि यह एक दिन संचार के दूसरे माध्यमों को निगल जायेगा। पश्चिमी देशों में तो दूरदर्शन सुबह के समाचार पत्रों से भी पहले लोगों तक खबरें पहुँचा देता है। विश्व में घट रही घटनाओं की जानकारी एकदम आदमी के सामने साकार पेश हो जाती हैं, ये मामूली बात नहीं है। समाचार पत्रों की अपेक्षा लोग दूरदर्शन की ख़बरों पर ज्यादा आश्रित होने लगे हैं। 1 अप्रैल, 1976 को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से सम्बद्ध दूरदर्शन के लिए निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किये गए-
1. सामाजिक परिवर्तन में प्रेरक भूमिका निभाना।
2. राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन देना।
3. जन-सामान्य में वैज्ञानिक चेतना जगाना।
4. परिवार कल्याण और जनसंख्या नियन्त्रण के संदेश को प्रसारित करना ।
5. कृषि उत्पादन प्रोत्साहित कर ‘हरित क्रांति’ और पशु-पालन को बढ़ावा देकर ‘श्वेत क्रांति’ के क्षेत्र में प्रेरणा देना।
6. पर्यावरण संतुलन बनाये रखना।
7. गरीब और निर्बल वर्गों हेतु सामाजिक कल्याण के उपायों पर बल देना। 8. खेल-कूद में रुचि बढ़ाना।
9. भारत की कला और सांस्कृतिक गरिमा के प्रति जागरूकता पैदा करना ।
भारत में रंगीन दूरदर्शन का सूत्रपात 15 अगस्त, 1982 से हुआ। पहले दूरदर्शन महानगरीय संस्कृति के आभिजात्य वर्ग के मनोरंजन का साधन मात्र था। कला संगीत तथा नाटक का ही प्रदर्शन होता था। सन् 1984-85 तक यह माध्यम देश के घर-घर में पहुँच गया। ‘नेटवर्क’ कार्यक्रमों ने संस्कृति, साहित्य, कला एवं जीवनोपयोगी प्रसारणों द्वारा जनता-जनार्दन के मन को आकर्षित किया।
- पत्रकारिता का अर्थ | पत्रकारिता का स्वरूप
- समाचार शब्द का अर्थ | समाचार के तत्त्व | समाचार के प्रकार
- विश्व पत्रकारिता के उदय तथा भारत में पत्रकारिता की शुरुआत
- हिन्दी पत्रकारिता के उद्भव और विकास
- टिप्पण-लेखन के विभिन्न प्रकार
- अर्द्धसरकारी पत्र का अर्थ, उपयोगिता और उदाहरण देते हुए उसका प्रारूप
You May Also Like This
- पत्राचार का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कार्यालयीय और वाणिज्यिक पत्राचार को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के प्रमुख तत्त्वों के विषय में बताइए।
- राजभाषा-सम्बन्धी विभिन्न उपबन्धों पर एक टिप्पणी लिखिए।
- हिन्दी की संवैधानिक स्थिति पर सम्यक् प्रकाश डालिए।
- प्रयोजन मूलक हिन्दी का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के विविध रूप- सर्जनात्मक भाषा, संचार-भाषा, माध्यम भाषा, मातृभाषा, राजभाषा
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के विषय-क्षेत्र की विवेचना कीजिए। इसका भाषा-विज्ञान में क्या महत्त्व है?