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पत्रकारिता से क्या तात्पर्य है?
पत्रकारिता का फलक इतना व्यापक हो गया है कि इसे किसी निश्चित परिभाषा की सीमा में बांधना संभव नहीं हैं। विभिन्न विद्वानों ने इसकी अपने ढंग से परिभाषाएँ दी हैं।
जैसे डॉ. अर्जुन तिवारी ने ‘एन्साइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका’ के आधार पर इसकी व्याख्या इस प्रकार की हैं—
‘पत्रकारिता के लिए अंग्रेजी में ‘जर्नलिज्म’ शब्द का व्यवहार होता है जो कि उस ‘जर्नल से है। जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘दैनिक’। दिन-प्रतिदिन के क्रिया-कलापों, सरकारी बैठकों का विवरण ‘जर्नल’ में रहता था। सत्रहवीं एवं अठारवीं शताब्दी में ‘पीरियॉडिकल’ के स्थान पर लैटिन शब्द ‘डियूरनल’ और ‘जर्नल’ के प्रयोग हुए। बीसवीं सदी में गंभीर समालोचना और विद्वत्तापूर्ण प्रकाशन को इसके अंतर्गत माना गया। ‘जर्नल’ से बना ‘जर्नलिज्म’ अपेक्षाकृत व्यापक शब्द है, समाचार पत्रों एवं विविधकालिक पत्रिकाओं के संपादन एवं लेखन और तत्संबंधी कार्यों को पत्रकारिता के अंतर्गत रखा गया। इस प्रकार समाचारों का संकलन प्रसारण, विज्ञापन की कला एवं पत्र का व्यावसायिक संगठन पत्रकारिता हैं। सम-सामयिक गतिविधियों के संचार से संबद्ध सभी साधन, चाहे वह रेडि हो या टेलीविजन इसी के अंतर्गत आते हैं।’
हिंदी शब्द सागर के अनुसार, ‘पत्रकार का काम या व्यवसाय पत्रकारिता है।
श्री खाडिलकर की मान्यता है कि ‘ज्ञान और विचार शब्दों तथा चित्रों के रूप में दूसरे तक पहुँचाना ही पत्र कला है।’
श्री प्रेमनाथ चतुर्वेदी के शब्दों में, पत्रकारिका विशिष्ट देश, काल व परिस्थितिगत तथ्यों को अमूर्त, परोक्ष मूल्यों के संदर्भ और आलोक में उपस्थित करती हैं।
पत्रकारिता संदर्भ ज्ञान कोष में पत्रकारिता को उस विद्या के रूप में परिभाषित किया गया है। जिसमें पत्रकारों के कार्यों, कर्तव्यों और उद्देश्यों का विवेचन किया जाता है।
पत्रकारिता संदर्भ कोष में ‘जन सूचना, जन-संचार, जन साधारण तक समाचार-विचार-संप्रेषण हेतु संचालित माध्यमों ( समाचार-पत्र/पत्रिका/आकाशवाणी/दूरदर्शन आदि) के संपादन, मुद्रण, प्रकाशन, संयोजन, प्रसारण आदि की विद्या या कला’ को पत्रकारिता माना हैं।
लेसी स्टेफेस के अनुसार, ‘जिन बातों की आपको जानकारी नहीं है, उनके बारे में अवगत कल्पना पत्रकारिता है।’
हर्बट ब्रूकर ने लिखा है कि पत्रकारिता वह माध्यम है जिसके द्वारा हम अपने मस्तिष्क में उस दुनिया के बारे में समस्त सूचनाएँ संकलित करते हैं जिसे हम स्वतः कभी नहीं जान सकते।
‘टाइम पत्रिका’ के एक संवाददाता के अनुसार, ‘पत्रकारिता इधर-उधर से एकत्रित सूचना का केंद्र है, जो सही अंतर्दृष्टि और प्रेषण का कार्य इस ढंग से करता है कि सत्य का पालन हो और घटनाओं के सहीपन को देखा गया हो, भले ही तुरंत न सही, पर अधिक साक्षी हो।’
जेम्स मैकडोनल्ड के अनुसार, ‘पत्रकारिता रण भूमि से भी अधिक श्रेष्ठ है, यह व्यवस्था नहीं, व्यवसाय से श्रेष्ठ वस्तु है, यह एक जीवन है।’
सी.जी. मूलर सामयिक ज्ञान के व्यवसाय को पत्रकारिता मानते हैं। इस व्यवसाय में आवश्यक तथ्यों की प्राप्ति, सावधानीपूर्वक उनका मूल्यांकन तथा उचित प्रस्तुतीकरण होता है।
इस प्रकार कहा जा सकता कि पत्रकारिता (Journalism) समाचारों के संकलन, चयन, विश्लेषण तथा संप्रेषण की प्रक्रिया हैं।
पत्रकारिता के प्रमुख उद्देश्य
पत्रकारिता के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं-
1. सूचना देना (To Inform)- पत्रकारिता जन-जन को विश्व में घटित होने वाली घटनाओं की जानकारी कराती है। इसके माध्यम से जनता को सरकार की नीतियों तथा गतिविधियों के बारे में जानकारी मिलती रहती है। संसार में कहाँ क्या हो रहा हैं, पत्रकारिता के माध्यम से ही इसकी सूचना प्राप्त होती है।
2. शिक्षित करना (To Educate)- शिक्षा देना भी पत्रकारिता का प्रमुख कार्य है। पत्रकार जनता के आँख तथा कान होते हैं। पत्रकार जो देखता है, सुनता है उसे मुद्रित तथा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से जनता तक पहुँचाता है। पत्रकारिता के रूप से ही जनमत निर्धारित करने की महत्त्वपूर्ण आधा भूमि तैयार होती है। संपादकीय स्तभों, अग्रलेखों, पाठकों के पत्र, परिचर्चाओं, साक्षात्कारों इत्यादि विविध तरीकों के द्वारा जनता को सामयिक तथा महत्त्वपूर्ण विषयों पर जानकारी देती हैं। देश की वैचारिक चेतना पत्रकारिता द्वारा ही जागृत होती हैं। इस प्रकार पत्रकारिता जनशिक्षण का प्रमुख माध्यम हैं।
3. मनोरंजन करना (To Entertain)- मनोरंजन करना भी पत्रकारिता का उद्देश्य है यह मनोरंजन रेडियो तथा दूरदर्शन द्वारा होता हैं। इसके अतिरिक्त समाचार पत्र-पत्रिकाओं की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती हैं। मनोरंजक सामग्री पाठकों को आकृष्ट तो करती हैं कई बार शिक्षा का मार्मिक संदेश भी देती हैं। उदाहरणार्थ राजनीतिक कार्टून तथा हास्य-व्यंग्य के स्तंभ इनके मूल के सामाजिक-राजनीतिक जीवन में स्वस्थ घावों की संचार करना ही होता है।
पत्रकारिता का क्षेत्र
पत्रकारिता का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। इसे जनता की संसद कहा जाता है। जिसका अधिवेशन कभी बंद नहीं होता। जिस प्रकार संसद में विभिन्न प्रकार की समस्याओं पर विचार-विमर्श किया जाता है, सरकार का ध्यानाकर्षण किया जाता है, उसी प्रकार पत्रकारिता विविध जन-समस्याओं से जुड़ी होती है, समस्याओं को प्रशासन के सम्मुख प्रस्तुत कर उस पर रचनात्मक बहस को भी प्रोत्साहित करती हैं। आधुनिक पत्रकारिता को पाँच भागों में विभक्त कर सकते हैं-
1. समाचार पत्र-पत्रिकाएँ (Newspapwer & News Magazines),
2. रेडियो (Radio),
4. फिल्म (Film),
3. टेलीविजन (Television), 5. विज्ञापन (Advertisement)1
पत्रकारिता के प्रकार
1. आर्थिक पत्रकारिता (Economic Journalism)
वर्तमान युग में औद्योगिकीकरण ने विश्व-व्यापी अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। देश और विदेश के अर्थ और जगत् से जुड़ी प्रत्येक गतिविधि आर्थिक पत्रकारिता का विषय हो सकती है। आर्थिक योजनाएँ, बाजार समाचार, मुद्रा बाजार, पूँजी बाजार, वस्तु बाजार आदि के समाचार तथा उनसे संबंधित विश्लेषणात्मक लेख आदि अब पत्र-पत्रिकाओं में बहुतायत से प्रकाशित होते हैं। आज अर्थ जगत् से जुड़े सम्पूर्ण समाचार पत्र भी काफी संख्या में प्रकाशित हो रहे हैं।
2. ग्रामीण पत्रकारिता (Rural Journalism)
स्वास्थ्य, कृषि उत्पादन संबंधी तकनीक, परिवार कल्याण तथा विकासात्मक गतिविधियों की जानकारी देने का महत्त्वपूर्ण साधन ग्रामीण पत्रकारिता हैं। भारत ग्राम प्रधान देश है। देश की ग्रामीण जनता की समस्याओं, उनकी आशा-आकांक्षाओं को पत्रकारिता के माध्यम से प्रस्तुत करना समाचार पत्रों का प्रमुख दायित्व है।
एक मान्यता यह भी है कि जिन समाचार पत्रों में चालीस प्रतिशत से अधिक सामग्री गाँवों के बारे में, कृषि, पशुपालन, बीज, खाद, कीटनाशक, पंचायती राज, सहकारिता आदि विषयों पर हो उन्हें ही ग्रामीण पत्र माना जाए। जब हम ग्रामीण पत्रों की बात करते हैं, तो इसका तात्पर्य उन छोटे पत्रों से है जो कम प्रसार संख्या के बावजूद छोटे से समुदाय की उन आवश्यकताओं तथा अपेक्षाओं की पूर्ति करते हैं जो शहरी प्रेस के लिए संभव नहीं हैं। इन विषयों का वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है-
1. मृदा एवं कृषि रसायन (Soil & Agricultural Chemistry),
2. कृषि अर्थशास्त्र (Agricultural Economics),
3. कृषि कीटशास्त्र और जीव विज्ञान (Agricultural Entomology & Zoology),
4. कृषि प्रसार (Agricultural Extension),
5. शस्य विज्ञान (Aronomy),
6. पशु-पालन एवं दुग्ध उद्योग (Animal Husbandry & Diarying),
7. वंशागति और पादप प्रजनन (Genetics & Pant Breeding)
8. उद्यान शास्त्र (Horticulture),
9. पादप रोग विज्ञान (Plant Pathology),
10. पादप क्रिया शारीरिकी (Plant Physiology),
11. भूमि संरक्षण (Soil Conservation)।
3. शैक्षिक पत्रकारिता
शिक्षा का पत्रकारिता से सीधा संबंध हैं, बल्कि दोनों के उद्देश्यों में भी काफी समानता है। जहाँ पत्रकारिता शिक्षा और सूचना का सार्थक माध्यम हैं, वहीं शिक्षा का भी यही उद्देश्य है। पत्रकारिता यदि सामाजिक परिवर्तन में सशक्त भूमिका निभाती हैं तो शिक्षा की भी मानव विकास में महती भूमिका हैं। शिक्षा और पत्रकारिता का यह समन्वित संश्लिष्ट रूप शैक्षिक पत्रकारिता कहा जा सकता है।
शैक्षिक पत्रकारिता, पत्रकारिता का वह सकारात्मक पक्ष है. जिसके समुचित विकास से समाज में वैचारिक चेतना तो विकसित होकर शिक्षण संस्थाओं के छात्र तथा अध्यापकों में आपसी सौहार्द तथा समझ का वातावरण भी उत्पन्न करती हैं। शिक्षा संस्थाओं में अंतः संबंध कायम करने का यह सशक्त माध्यम बन सकता हैं। उच्च शिक्षा को प्रत्यक्ष रूप से समाज तथा ‘आम-जन तक इसके द्वारा पहुँचाया जा सकता हैं।
4. व्याख्यात्मक पत्रकारिता
वर्तमान पाठक घटनाओं के प्रस्तुतीकरण मात्र से संतुष्ट नहीं होता। वह कुछ ‘और’ भी जानना चाहता है। इसी ‘और’ की संतुष्टि के लिए आज संवाददाता घटना की पृष्ठभूमि और कारणों की भी खोज करता है। तत्पश्चात् वह समाचार का विश्लेषण भी करता है। इसके कारण पाठक को घटना से जुड़े विविध तथ्यों का पता चल जाता है। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के ‘News Analysis’ तथा ‘राजस्थान पत्रिका’ के ‘मंथन’ आदि स्तंभ व्याख्यात्मक पत्रकारिता के प्रतीक हैं।
5. विकास पत्रकारिता
आर्थिक सामाजिक आदि क्षेत्रों के बारे में रचनात्मक लेखन को विकास पत्रकारिता के रूप में माना जा सकता है। पत्रकार पाठकों को तथ्यों की सूचना देता है तथा निष्कर्ष भी प्रस्तुत करता हैं। अपराध तथा राजनीतिक संवाददाताओं का यह मुख्य कार्य हैं। आर्थिक समाजिक जीवन के बार में तथ्यों का प्रस्तुतीकरण ही पर्याप्त नहीं होता, अपितु उनका प्रसार भी आवश्यक हैं। गंभीर विकासात्मक समस्याओं से पाठकों को अवगत कराना भी आवश्यक है। पाठक को सोचने के लिए विवश कर इस प्रकार का लेखन संभावित सामाधानों की ओर भी संकेत करता हैं। विकासात्मक लेखन शोधपरक होता हैं।
शुद्ध विकासात्मक लेखन के क्षेत्रों को ‘रविवार’ के विशेष संवाददाता राजीव शुक्ल ने अठारह भागों में विभक्त किया है—उद्योग, कृषि, शिक्षा और साक्षरता, आर्थिक गतिविधियाँ, नीति और योजना, परिवहन, संचार, जन-माध्यम, ऊर्जा और ईंधन, श्रम व श्रमिक कल्याण, रोजगार, विज्ञान और तकनीक, रक्षा, रक्षा अनुसंधान और उत्पाद तकनीक, परिवार नियोजन, स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाएँ, शहरी विकास, ग्रामीण विकास निर्माण और आवास, पर्यावरण और प्रदूषण ।
6. संदर्भ पत्रकारिता
संदर्भ सेवा का तात्पर्य संदर्भ सामग्री की उपलब्धता है। संपादकीय अथवा किसी सामयिक विषय पर टिप्पणी लिखने के लिए या कोई लेख आदि तैयार करने की दृष्टि से कई बार विशेष संदर्भों की आवश्यकता होती है। आज ज्ञान-विज्ञान के विस्तार तथा यांत्रिक युग में पाठकों को संपूर्ण जानकारी देने के लिए आवश्यक हैं कि पत्र प्रतिष्ठान के पास अच्छा संदर्भ साहित्य संग्रहीत हो। ‘संदर्भ पत्रकारिता हेतु संदर्भ सेवा के आठ वर्ग हैं कतरन सेवा, संदर्भ ग्रंथ, लेख सूची, फोटो विभाग, पृष्ठभूमि विभाग, रिपोर्ट विभाग, सामान्य पुस्तकों का विभाग और भंडार विभाग।
7. संसदीय पत्रकारिता
संसद तथा विधानमंडल समाचार पत्रों के लिए समाचारों के प्रमुख स्रोत हैं। जब सदनों की कार्यवाही चलती है तब समाचार पत्रों के अधिकांश पृष्ठ संसदीय समाचारों से भरे रहते हैं। आम व्यक्ति इन्हें रूचि से पढ़ता हैं। समाचार पत्र जनता तक सभी जानकारी पहुँचाकर उनका पथ-प्रदर्शन करते हैं।
8. खेल पत्रकारिता
आधुनिक विश्व में विभिन्न देशों के मध्य होने वाली प्रतियोगिताओं के कारण कई खेल तथा खिलाड़ी लोकप्रिय होने लगे हैं। ओलंपिक तथा एशियाई आदि अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के कारण भी खेलों के प्रति रूचि में विकास हुआ।
लगभग प्रतिदिन राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी-न-किसी प्रतियोगिता का आयोजन होता ही हैं। अतः खेलों के प्रति जन रुचि को ध्यान में रखते हुए पत्र-पत्रिकाओं में खेलों के समाचार पत्र तथा उनसे संबंधित नियमित स्तंभों का प्रकाशन किया जाता हैं। प्रायः सभी प्रमुख समाचार पत्र पूरा एक पृष्ठ खेल जगत् की हलचलों को देते हैं।
खेल-खिलाड़ी, खेल-युग, खेल-हलचल, स्पोर्ट्स वीक आदि अनेक पत्रिकाएँ विश्व भर की खेल हलचलों को अपने पत्र में स्थान देती रही हैं। ऐसी पत्रिकाओं के प्रकाशन से खेल पत्रकारिता को निश्चित ही प्रोत्साहन मिला हैं।
9. अन्वेषणात्मक पत्रकारिता
अनुद्घाटित तथ्यों का प्रकाशन ही अन्वेषणात्मक पत्रकारिता हो जाती है। ऐसे समाचार या तथ्य को प्रकाश में लाने के लिए पत्रकार तत्पर हो जाता है। अमेरिका का ‘वाटरगेट कांड’ इस दृष्टि से उल्लेखनीय है। इस कांड के कारण सत्ता परिवर्तन के बाद अन्वेषणात्मक पत्रकारिता को विशेष प्रोत्साहन तथा मान्यता मिली।
यदि अन्वेषणात्मक पत्रकारिता सही सत उद्देश्य से अनुप्राणित होकर की जाए तो उससे समाज और राष्ट्र की बहुत बड़ी सेवा हो सकती है। यदि चरित्र हनन तथा किसी व्यक्ति या संस्था को अपमानित या बदनाम करने की नियत से ऐसी पत्रकारिता की जाएगी तो वह ‘पीत पत्रकारिता’ की श्रेणी में आ जाती है। अन्वेषणात्मक पत्रकारिता का मूल उद्देश्य सामाजिक-राजनीतिक जीवन में शुद्धता होना चाहिए।
10. अनुसंधानात्मक पत्रकारिता
प्रवीण दीक्षित के अनुसार- ‘अनुसंधान पत्रकारिता, पत्रकारिता की वह विधा है जिसके द्वारा किसी सम-सामयिक महत्व के विषय, घटना, स्थिति या तथ्यों का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन, सर्वेक्षण और अनुसंधान करके वास्तविक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
अनुसंधानात्मक में जन माध्यम और पत्रकारिता से संबंधित विषयों, प्रश्नों और समस्याओं का सर्वेक्षण किया जाता है। वर्तमान युग में यह पत्रकारिता अत्यन्त उपादेय बन गई हैं। इस दृष्टि से इस क्षेत्र में पाठक, श्रोता, दर्शक, विज्ञापन, जनमत प्रकाशित सामग्री का विश्लेषण, जन माध्यमों के प्रभाव, रेडियो, दूरदर्शन के कार्यक्रमों का स्तर आदि विविध विषयों पर अध्ययन अनुसंधान किया जा सकता हैं।
11. टेलीविजन पत्रकारिता
बदलते परिवेश में रेडियो पत्रकारिता की भाँति टेलीविजन पत्रकारिता भी महत्वपूर्ण होती जा रही है। इसके लिए विशेष तकनीकि ज्ञान की भी अपेक्षा है। लेखन, शब्द ध्वनि, श्रव्य ध्वनि, दृश्य ध्वनि तथा फिल्म तकनीक का ज्ञान भी टी. वी. पत्रकार के लिए अपेक्षित है।
12. विज्ञान पत्रकारिता
हमारा दैनिक जीवन विज्ञानमय हो गया है। अतः जन-समान्य का विज्ञान में झुकाव होना स्वाभाविक ही हैं। विज्ञान संबंधी अनुसंधान तक विज्ञान जगत् की हलचल विज्ञान पत्रकारिता के माध्यम से ही आम पाठक तक पहुँच सकती है। इसके लिए आवश्यक है कि पत्रकार विज्ञान जैसे तकनीकी, गंभीर विषय को सरल, सुबोध ढंग से पाठकों तक पहुँचा सकें। वर्तमान समय में विज्ञान संबंधी पत्र-पत्रिकाओं ने विज्ञान पत्रकारिता के विकास में भी विशेष योगदान दिया हैं।
13. साहित्यिक- सांस्कृतिक पत्रकारिता
यह सही है कि हमारी पत्रकारिता पर राजनीति इस तरह हावी हो गई हैं कि दिल्ली की राजनीतिक घटना-चक्र ही समाचारों का केंद्र-बिंदु रहता हैं। ऐसी स्थिति में साहित्यिक-सांस्कृतिक समारोहों का स्थान गौण हो जाता हैं। समाचार की दृष्टि से ये समाचार अधिक महत्वपूर्ण नहीं माने जाते।
अतः आवश्यक है कि समय-समय पर आयोजित प्रमुख विचार गोष्ठियों, साहित्यकारों के सम्मलेन, पुस्तक विमोचन, कवि गोष्ठियों, बौद्धिक चर्चाओं, संगीत, नृत्य, नाटक आदि गतिविधियों पत्रकारिता के माध्यम से उचित प्रोत्साहन दिया जाए।
14. फिल्म पत्रकारिता
फिल्मों ने समाज को बहुत गहरे तक प्रभावित किया हैं। अतः पत्रकारिता भी फिल्म से अछूती कैसे रह सकती हैं? फिल्मों की समीक्षा, फिल्मी कलाकारों के साक्षात्कार, उनकी गतिविधियाँ एवं फिल्मों पर समीक्षात्मक लेख आदि फिल्मी पत्रकारिता के प्रमुख पक्ष हैं। इस समय तो हिंदी-अंग्रेजी भाषा में अनेक फिल्मी पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं, जिनकी पाठक संख्या अन्य पत्रिकारों से भी काफी अधिक हैं।
15. रेडियो पत्रकारिता
रेडियो पत्रकारिता की दृष्टि से आकाशवाणी के वे कार्यक्रम महत्वपूर्ण हैं जिनमें समाचार तत्व अधिक रहता हैं। आकाशवाणी के इन समाचार कार्यक्रमों को तैयार करने का मुख्य दायित्व समाचार सेवा प्रभाग पर हैं। समाचारों के अतिरिक्त समायिकी, जिले अथवा राज्य की चिट्ठी, रेडियो न्यूजरील, समाचार दर्शन आदि कार्यक्रम प्रमुख हैं, जो रेडियो पत्रकारिता की परिधि में आते हैं।
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