अनुक्रम (Contents)
पृष्ठ-विन्यास से आप क्या समझते हैं?
समाचार पत्र की सम्पूर्ण संरचना’ को ‘डिजाइन’, ‘मेक-अप’ और ‘ले-आउट’ (प्रारूप). कहा जाता है। मेक-अप, ले-आउट का पर्याय है। ले-आउट से ही समाचार पत्र की पहचान बनती है। पृष्ठ-विन्यास से ही समाचार पत्र के पाठक अपनी रुचि की सामग्री का चुनाव कर पाते हैं। अच्छे समाचार पत्र की पहचान है कि वह देखने में सुन्दर हो तथा उसमें उल्लिखित सामग्री उसके पाठकों को हमेशा उचित स्थान पर उपलब्ध रहे। जैसे–सम्पादकीय पृष्ठ समाचार-पृष्ठ, वाणिज्य-पृष्ठ, खेल-कूद-पृष्ठ तथा स्थानीय समाचार के पृष्ठ के लिए विशिष्ट प्रकार के विन्यास की आवश्यकता होती है। किसी भी पृष्ठ का आकर्षणहीन होना पत्र के हित में नहीं होता है। प्रत्येक पृष्ठ की अपनी विशेषता होनी चाहिए, जिससे पाठक उसको देखते ही आकर्षित हो जाय। वे दिन अब नहीं रहे, जन समाचार पत्र के आकर्षक विन्यास को कोई विशेष महत्व नहीं दिया जाता था। आज पाठक उस पृष्ठ की ओर झाँकना भी पसन्द नहीं करते, जो आकर्षक न हो। आधुनिक समाचार पत्र में पाठक आकर्षण विन्यास ढूँढ़ता है। सुप्रसिद्ध पत्रकार डॉ० अर्जुन तिवारी के अनुसार पृष्ठ-सज्जा के निम्नलिखित उद्देश्य होते हैं-
1. समकालीन समाचार पत्रों के बीच स्वस्थ प्रतियोगिता स्थापित करना ।
2. पत्र की सजीवता को विकसित कर उसके व्यक्तित्व को लोकप्रिय बनाना।
3. महत्व के अनुसार समाचार के लिए, अपेक्षित आकार तथा स्थान निर्धारित करना।
4. समाचार पत्र को आकर्षक बनाने के लिए नये रंग-ढंग में प्रस्तुत करना । समाचार पत्र के कार्यालय में प्राप्त सामग्री का चयन करते समय संपादक उस पर सम्बन्धित
पृष्ठ का नाम डाले तो सामग्री उस पृष्ठ के प्रभारी सम्पादक के पास पहुँचती है। इस तरह सूचनाएँ, समाचार, चित्र आदि यथा स्थान पहुँच जाते हैं। प्रत्येक समाचार पत्र में कुछ ऐसी सामग्री होती है जो निश्चित रूप से छापी जानी होती है, जिसमें मौसम की जानकारी, आकाशवाणी के कार्यक्रम, रेलों से सम्बन्धित सूचनाएँ, बाजार-भाव, सम्पादक के नाम पत्र, पहेली तथा रेखांकन, दूरदर्शन के कार्यक्रमों का पूरा विवरण जैसे समाचार होते हैं। इन समाचारों के लिए हमेशा एक पृष्ठ निश्चित होना चाहिए, जिससे पाठक को इन्हें ढूंढ़ने में अतिरिक्त समय न गँवाना पड़े।
पृष्ठ-विन्यास या पृष्ठ-सज्जा के तत्व
समाचार पत्र के पृष्ठों की साज-सज्जा करते समय निम्न बातों पर ध्यान अवश्य देना चाहिए।
1. सन्तुलन (Balance) – इसके अन्तर्गत पत्र में सम्पूर्ण सामग्री के शीर्षक, चित्र और विज्ञापन को एक उचित अनुपात में आकर्षणपूर्ण तरीके से लगाया जाता है जिससे पत्र विश्वसनीय एवं गंभीर हो ।
2. फोकस-बिन्दु (Focus Point)- पाठकों की रुचि, प्रवृत्ति एवं आवश्यकतानुसार समाचार पत्र के किसी विशेष अंश पर सबका ध्यान चला जाता है जिसे फोकस-बिन्दु कहते हैं। पाठकों के पत्र पढ़ने का तरीका, भाषा की प्रवृत्ति, पृष्ठ-सज्जा का प्रभाव, इन तीनों बातों का मुख्य फोकस-बिन्दु के बायीं ओर का ऊपरी स्थान होता है। उर्दू पत्रों का मुख्य फोकस बिन्दु पृष्ठ के दाहिनी ओर ऊपरी भाग में होता है। हिन्दी पत्रों के भीतरी पृष्ठों में मुख्य फोकस-बिन्दु दाहिनी ओर ऊपर में होता है। खेल-खिलाड़ियों का ध्यान खेल-कूद समाचार वाले पृष्ठ की ओर चला जाता है। नौकरी ढूँढ़ने वाले का ध्यान वर्गीकृत विज्ञापन की ओर चला जाता है।
3. विरोधाभास (Contrast)- किसी समाचार को अधिक महत्व देने तथा पृष्ठ सजाने सँवारने के लिए विरोधाभास का प्रयोग किया जाता है। इटैलिक, लाइट, फेस, बोल्ड फेस, काले फेस वाले टाइप, रोमन, लाइन ब्लाक एवं हाफ टोन ब्लाक द्वारा विरोध प्रकट होता है। समाचार पत्रों में प्रायः रूल, बॉर्डर, डैश और स्टार द्वारा एक मैटर दूसरे मैटर के विरोध में मुद्रित होता है। यह सन्तुलन का उल्टा है, इसमें इसी आधार पर साज-सज्जा की जाती है।
4. संगति (Harmony )- फोकस-बिन्दु, गति और सन्तुलन-विरोधाभास को ध्यान में रखकर पृष्ठ प्रभावशाली बनाये जाते हैं। सभी तत्वों के सफल समन्वय से सम्पादक ‘पत्रों की सुन्दर प्रतीति में सहयोगी बनता है।
5. गति ( Movement)- गति का अर्थ नेत्रों की उपस्थिति से है, जो पत्र में विभिन्न स्थानों पर क्रमशः और लगातार सक्रिय होती है। नेत्रों की गति और साज-सज्जा मनोवैज्ञानिक ढंग से सम्बद्ध होती है।
आधुनिक पृष्ठ-सज्जा
दिन-प्रतिदिन नये प्रयोग हो रहे हैं। पृष्ठ-सज्जा में परम्परागत सिद्धान्तों को व्यवहार में नहीं लाया जाता। कभी-कभी पत्र के ‘नेम-प्लेट’ को इधर-उधर कर दिया जाता है। जिस प्रकार मानव आभूषणों की परम्परागत पद्धति को भूल चुका है, उसी प्रकार पृष्ठ-सज्जा के पुराने तरीकों पर ध्यान नहीं दिया जाता है। अब साज-सज्जा हेतु आधुनिक स्वच्छ टाइप, चित्रात्मक सामग्री, आकर्षक शीर्षक-संरचना और क्षैतिज मेक-अप की पद्धति चल रही है। समय-सीमा और संस्करण की क्षिप्रता, साज-सज्जा को प्रभावित करने वाले तत्व हैं। नवीनता आज के पत्रकारों की प्रवृत्ति बन गयी है, जिससे परम्परागत पद्धतियों से हटकर समाचार पत्रों में नूतन शैली की प्रभावशाली एवं कलापूर्ण पृष्ठ-सज्जा देखी जाती है। थोड़े समय में श्रेष्ठम स्वरूप प्रदर्शित करने हेतु पत्रों के कला-विशेषज्ञों एवं सम्पादकों का विवेक ही पत्रों का व्यक्तित्व निर्धारित करता है।
आधुनिक पृष्ठ-सज्जा की विशेषताएँ
समाचार पत्रों के सभी पृष्ठों को सजाने-सँवारने एवं आकर्षक बनाने के लिए निम्नलिखित आवश्यक बातों पर ध्यान देना चाहिए।
1. समाचारपत्र में महत्वपूर्ण समाचार सर्वोपरि लिखना चाहिए।
2. शीर्षकों में सन्तुलन स्थापित होना चाहिए।
3. तथ्य के महत्व के अनुरूप टाइप के आकार छोटे एवं बड़े होने चाहिए।
4. लम्बे समाचार में दो-दो स्टिक पर उपशीर्षक दिये जायँ जिससे समाचार के प्रति रुचि बनी रहे।
5. विज्ञापन या चित्र से सटा हुआ बॉक्स समाचार – पृष्ठ पर प्रस्तुत न हो।
6. पृष्ठ का ऊपरी बायाँ भाग अति महत्व का होता है। सब की निगाहें भी बायीं ओर ऊपर ही पड़ती हैं। इसलिए विशेष महत्वपूर्ण समाचार बायीं ओर ही देना चाहिए।
7. चित्र के न होने पर छोटा-बड़ा बॉक्स बनाकर पृष्ठों को सुशोभित करना चाहिए।
8. चित्र आकर्शित करने वाले, नेत्र-सुखदायक, विश्वसनीय तथा पृष्ठ को रुचिकर बनाने वाले होते हैं। चित्र के आकार-प्रकार पृष्ठ पर उनके स्थान आदि बातों का ध्यान रखना चाहिए।
पृष्ठ-विन्यास एक कला है, जिससे समाचार एवं समाचार पत्र दोनों को आकर्षक एवं प्रभावी बनाया जाता है।
- पत्रकारिता का अर्थ | पत्रकारिता का स्वरूप
- समाचार शब्द का अर्थ | समाचार के तत्त्व | समाचार के प्रकार
- विश्व पत्रकारिता के उदय तथा भारत में पत्रकारिता की शुरुआत
- हिन्दी पत्रकारिता के उद्भव और विकास
- टिप्पण-लेखन के विभिन्न प्रकार
- अर्द्धसरकारी पत्र का अर्थ, उपयोगिता और उदाहरण देते हुए उसका प्रारूप
You May Also Like This
- पत्राचार का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कार्यालयीय और वाणिज्यिक पत्राचार को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के प्रमुख तत्त्वों के विषय में बताइए।
- राजभाषा-सम्बन्धी विभिन्न उपबन्धों पर एक टिप्पणी लिखिए।
- हिन्दी की संवैधानिक स्थिति पर सम्यक् प्रकाश डालिए।
- प्रयोजन मूलक हिन्दी का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के विविध रूप- सर्जनात्मक भाषा, संचार-भाषा, माध्यम भाषा, मातृभाषा, राजभाषा
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के विषय-क्षेत्र की विवेचना कीजिए। इसका भाषा-विज्ञान में क्या महत्त्व है?