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प्रयोजन मूलक हिन्दी का आशय
जीवन के प्रत्येक क्षण में मनुष्य भाषा का व्यवहार करता है। भावाभिव्यक्ति की दृष्टि से विश्व की सभी भाषाएँ समान होती हैं क्योंकि विश्व की सभी भाषाएँ विचार-विनिमय की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। भाषा एक सामाजिक, अर्जित और सांस्कृतिक सम्पत्ति है। वस्तुतः समाज और व्यक्ति के समान ही भाषा का प्रवाह भी अनादि काल से इस धरित्री पर विद्यमान सको भाव-बोधन कराता आया है। यही स्थिति अपने देश की भी है। भारत एक विशाल देश है और हिन्दी इस देश की राजभाषा है। देश के अधिकांश व्यक्ति अपने विचारों के आदान-प्रदान हेतु हिन्दी का ही प्रयोग करते हैं। आज अनेक विषयों के पठन-पाठन, अध्ययन-अध्यापन में एक प्रकार से हिन्दी का वर्चस्व है, लेकिन हर क्षेत्र या विषय की अपनी एक निश्चित शब्दावली होती है। इसलिए किसी विषय की जानकारी हेतु उस विषय की शब्दावली का ज्ञान आवश्यक है, जैसे- चिकित्सा की जानकारी के लिए चिकित्सा से सम्बन्धित शब्दावली का ज्ञान, विज्ञान की जानकारी के लिए उसकी शब्दावली का ज्ञान आदि। यों तो भाषा का प्रयोग सभी करते हैं। भाषा लोग पढ़ते-लिखते और समझते हैं, लेकिन जब किसी प्रयोजन विशेष के लिए किसी भाषा का प्रयोग किया जाता है तब उसे प्रयोजनमूलक भाषा कहा जाता है। मनोविज्ञान, दर्शन, विधि एवं प्रशासन की भाषा अपनी एक विशिष्टता लिए होती है इसलिए साहित्य के ज्ञानी व्यक्ति के लिए भी उक्त विषय की विशिष्ट शब्दावली का ज्ञान आवश्यक होता है। प्रयोजनमूलक भाषा की कतिपय विशेषताएँ होती हैं, जैसे-
1. जिस प्रकार साहित्यिक भाषा के शब्द अनेकार्थी होते हैं, उसी प्रकार प्रयोजनमूलक भाषा के शब्द अनेकार्थी नहीं होते हैं। प्रयोजनमूलक भाषा के शब्दों का अपना एक अर्थ और महत्त्व होता है। यदि यह भी अनेकार्थी होने लगे तो न्याय, चिकित्सा आदि प्रभावित होने लगे (अर्थात् एक शब्द का दूसरा अर्थ लगा लिया जाये और उचित बात को दूसरे अर्थों में ले लिया जाये ।)
2. प्रयोजनमूलक भाषा की शब्दावली क्षेत्रानुकूल सीमित होती है, जैसे— कानून की भाषा, वाणिज्य की भाषा आदि की शब्दावली।
3. प्रयोजनमूलक भाषा सामान्य साहित्यिक भाषा से थोड़ा भिन्न होती है।
4. साहित्यिक भाषा के समान प्रयोजनमूलक भाषा में अलंकारों, लोकोक्तियों, कहावतों एवं मुहावरों आदि का प्रयोग नहीं होता है। इसीलिए यह सीधी और नीरस होती है, क्योंकि प्रयोजनमूलक भाषा से यथार्थ परिस्थितियों का ज्ञान होता है, लोक-मानस का मनोरंजन करना इसका उद्देश्य नहीं होता है।
5. अपने देश में तो उतना नहीं जितना विदेशों में प्रयोजनमूलक भाषा का महत्त्व है। विदेशों में हाईस्कूल के बाद छात्रों को प्रयोजनमूलक भाषा का ही ज्ञान दिया जाता है और उनका सामान्य भाषा ज्ञान मात्र हाईस्कूल तक ही रहता है। अपने देश में जब व्यक्ति किसी विशेष क्षेत्र में नौकरी या पेशे में जाता है तब प्रयोजनमूलक हिन्दी को सीखने का प्रयास करता है।
उपर्युक्त विशिष्टताओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि आज के इस प्रगतिवादी समय में, जहाँ कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मानव विकास के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है, उसके लिए प्रयोजनमूलक भाषा का ज्ञान परम आवश्यक है। इसी तथ्य को दृष्टि में रखकर उच्च शिक्षाविदों ने उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में भी प्रयोजनमूलक हिन्दी भाषा को सम्मिलित कर दिया है। प्रयोजनमूलक हिन्दी को कामकाजी हिन्दी भी कहा जाता है।
- पत्राचार से आप क्या समझते हैं ? पत्र कितने प्रकार के होते हैं?
- पत्राचार का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कार्यालयीय और वाणिज्यिक पत्राचार को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के प्रमुख तत्त्वों के विषय में बताइए।
- राजभाषा-सम्बन्धी विभिन्न उपबन्धों पर एक टिप्पणी लिखिए।
- हिन्दी की संवैधानिक स्थिति पर सम्यक् प्रकाश डालिए।
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के विविध रूप- सर्जनात्मक भाषा, संचार-भाषा, माध्यम भाषा, मातृभाषा, राजभाषा
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के विषय-क्षेत्र की विवेचना कीजिए। इसका भाषा-विज्ञान में क्या महत्त्व है?
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