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प्रारम्भिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण Universalization of Elementary Education

प्रारम्भिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण Universalization of Elementary Education
प्रारम्भिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण Universalization of Elementary Education

प्रारम्भिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण Universalization of Elementary Education

प्रारम्भिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण-प्राथमिक शिक्षा सार्वजनिक शिक्षा का दूसरा रूप है। इस प्रकार प्राथमिक शिक्षा कोप्रत्येक नागरिक के लिए सुलभ बनाना शिक्षा को लोकव्यापी या सार्वभौमिक बनाना है। के. जी. सैयदेन के अनुसार, “प्राथमिक शिक्षा का सम्बन्ध किसी वर्ग या समूह से नहीं है, अपितु इसका सम्बन्ध देश की समस्त जनता से है। यह प्रत्येक स्तर पर जीवन का स्पर्श करती है।” इसी प्रकार हण्टर आयोग ने कहा है कि “प्राथमिक शिक्षा को जनसाधारण की शिक्षा मानना चाहिये।” राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 की संशोधित कार्य योजना वर्ष 1992 में 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिए वर्ष 2000 तक औसत स्तर की निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करने को व्यक्त किया है। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु राज्यों के प्रयासों में सहायता प्रदान करने हेतु प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में केन्द्र द्वारा प्रायोजित कई योजनाएँ प्रारम्भ की गयी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 और इसकी कार्य योजना, 1992 के अनुसरण में प्राथमिक शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने के उद्देश्य से एक नया कार्यक्रम ‘जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम’ तैयार किया गया। जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य देश में प्राथमिक शिक्षा प्रणाली की जाँच करना है तथा इसके तहत यह प्रावधान किया गया है कि जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम को प्राथमिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय मिशन के रूप में परिणित किया जायेगा, जिससे कार्य योजना, 1992 के प्रमुख वायदों को पूरा किया जा सके।

इस कार्य योजना के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) नामांकन और बीच में पढ़ायी छोड़ने वालों तथा शिक्षा पूरी करने वालों में सामाजिक समूहों के आधार पर अन्तर पाँच प्रतिशत से कम करना।

(2) प्राथमिक शिक्षा बीच में छोड़ने वाले छात्रों की कुल दर 10 प्रतिशत से कम करना।

(3) औसत उपलब्धि स्तर को निर्धारित न्यूनतम स्तर से कम से कम 25% बढ़ाना और सभी प्राथमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों द्वारा मूलभूत साक्षरता और विभिन्न प्रकार की योग्यताओं को उपलब्धियों को सुनिश्चित करना।

(4) राष्ट्रीय मानदण्डों के अनुरूप सभी बालकों को प्राथमिक शिक्षा कक्षाएँ (एक से पाँच) अथवा जहाँ तक सम्भव हो अथवा इसके समतुल्य अनौपचारिक शिक्षा उपलब्ध कराना। शिक्षा वैयक्तिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय प्रगति के लिए अपरिहार्य आवश्यकता है। शिक्षा की अनिवार्यता देश की सभ्यता एवं संस्कृति के विकास हेतु एवं राष्ट्रीय उद्देश्यों के अनुकूल समाज के पुनः निर्माण के लिए अपेक्षित है।

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shubham yadav

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