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बाटिक कला क्या है?
बाटिक कला- बाटिक मूलतः जावा सुमात्रा की कला है। जावा की भाषा में इसे ‘अम्बाटिक’ कहा जाता है। टिक (Tik) का अर्थ है-मोम की बूँद तथा अम्बाटिक का अर्थ है-टिक द्वारा चित्रण। विशेष पात्रों में बनी पतली टोंटी द्वारा पिघला गर्म मोम वस्त्र पर टपकाकर चित्रांकन करने के पश्चात् वस्त्र को रँगा जाता था। यह जावा में प्रचलित बाटिक की प्राचीन विधि थी। ‘बाटिक’ में मोम वाले भाग पर रंग नहीं चढ़ता है। यदि रंग प्रवेश करता भी है तो मोम में पड़ी दरारों द्वारा। मोम की दरार में से प्रविष्ट ये रंग-रेखाएँ बाटिक नमूने को एक अनूठा सौन्दर्य प्रदान करती हैं।
शताब्दियों पूर्व जावा के सूती बाटिक प्रिंट वहाँ की बहुमूल्य धरोहर माने जाते थे। राजकुमारियाँ इसे धारण करती थीं। बाटिक का काम महिलाएँ ही करती थीं। पुरुष इस क्षेत्र में बाद में आए। सदियों तक इस कला पर जावा की सम्पन्न घरानों की लड़कियों, महिलाओं का एकाधिपत्य रहा एवं यह कला एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती चली गई। धीरे- धीरे बाटिक कला घरों से निकलकर सर्वप्रथम सन् 1516 में यूरोपीय देशों में पहुँची। सत्रहवीं शताब्दी में इस कला के नमूने डच ईस्ट इंडीज व्यापारियों द्वारा इण्डोनेशिया एवं हॉलैण्ड पहुँचे। बाटिक का प्रचलन दक्षिण-पूर्वी एशिया, भारत, यूरोप एवं अफ्रीका में अधिक है।
देश-विदेश में फैली यह एक लोकप्रिय कला है। अब बाटिक वर्क एक गृह उद्योग ही नहीं रहा बल्कि इसके कई प्रशिक्षण केन्द्र खुल गए हैं। रवीन्द्रनाथ टैगोर, जिन्होंने शान्ति निकेतन की स्थापना की थी, अपने विदेश प्रवास के समय जावा सुमात्रा की बाटिक कला से अत्यन्त प्रभावित हुए। उन्होंने अपनी पुत्रवधू श्रीमती गौरी भंजा को सुमात्रा भेजकर इस कला में दक्ष कराया। शान्ति निकेतन में श्रीमती गौरी भंजा ने बाटिक कक्षाओं का संचालन आरम्भ किया। पुराने बाटिक कलाकार यहीं के शिष्य रहे हैं। चमड़ पर बाटिक का प्रयोग भी शान्ति निकेतन में ही आरम्भ में हुआ। चमड़े पर बाटिक करते समय मोम के बदले गोंद लगाया जाता है तथा स्पिरिट में घुलनशील रंगों को पतले कपड़े द्वारा लगाकर चमड़ा रँगते हैं। बाद में पानी में भीगे कपड़े की सहायता से गोंद छुड़ा ली जाती है। भारतीय बाटिक कला तथा व्यावसायिक दृष्टि से भी सफल हुई है। विदेशों में भारतीय बाटिक से बने वस्त्र, वॉल, हैगिंग, लैम्पशेड, साफा, बैक, गाऊन, मैक्सी, शर्ट, टाई इत्यादि निर्यात भी होते हैं। इसकी कई प्रदर्शनियाँ भी आयोजित होती रहती हैं।
बाटिक कार्य में वस्त्र पर नमूने के जिस भाग को सफेद रखना होता है वहाँ मोम लगा दिया जाता है। फिर वस्त्र को हल्के रंग में रंगकर सुखाते हैं तत्पश्चात् इस हल्के रंग में जिस भाग को रखना हो वहाँ मोम लगाकर पुनः वस्त्र को गहरे रंग में रंगकर सुखाया जाता है। अन्त में गर्म पानी तथा सोडे से वस्त्र धोकर मोम छुड़ा लिया जाता हैं इससे बाटिक का सम्पूर्ण नमूना अपनी अनोखी छटा के साथ सामने आ जाता है। इसमें भी बंधेज की तरह वस्त्र पहले हल्के, फिर क्रमशः गहरे रंगों में रँगे जाते हैं। मोम द्वारा बने क्रैक्स (दरारें) बाटिक की विशिष्ट पहचान होती हैं। विस्तृत रूप में बाटिक की विधि आगे दी जा रही है-
बाटिक कार्य के विविध चरण या विधियाँ
बाटिक कार्य निम्नलिखित चरणों में सम्पन्न होता है-
1. वस्त्र का चुनाव (Selection of Fabric )
2. नमूने का चुनाव (Selection of Design)
3. मोम का लगाना (Waxing)
4. वस्त्र रँगना (Dyeing of Fabric)
5. मोम छुड़ाना (Wax Removing)
6. इस्तरी करना (Ironing)
1. वस्त्र का चुनाव (Selection of Fabric)
बाटिक के लिए सफेद सूती वस्त्र सबसे अच्छा होता है। इसके लिए लोन, केम्ब्रिक, रूबिया अथवा मलमल लिया जा सकता है। रेशमी वस्त्र लेना हो तो सफेद अथवा क्रीम रंग का लें। रंगीन वस्त्र उपयुक्त नहीं होता क्योंकि बाटिक में बाद में वस्त्र को रँगना पड़ता है। वस्त्र माँड़ रहित होना चाहिए। वस्त्र में कलफ हो तो धोकर, कलफ, छुड़ाकर, इस्तरी करके बाटिक आरम्भ करें।
2. नमूने का चुनाव (Selection of Design)
बाटिक में फूल-पत्ती, पशु-पक्षी, मानव आकृतियाँ, ज्यामितीय आकार अथवा अल्पना की आकृतियाँ बनाई जाती हैं। वैसे अपनी इच्छानुसार कोई भी नमूना चुन लें। नमूने को किसी कागज पर बनाकर, पोस्टर कलर से अपने मनपसन्द रंग लें। अब इसी नमूने को आधार मानकर बाटिक का कार्य आरम्भ करें। रंग योजना यदि आप याद रख सकती हैं तो कागज पर बनाने की आवश्यकता नहीं है।
3. मोम लगाना (Waxing)
बाटिक में वस्त्र पर मोम लगाकर जब उसे रँगा जाता है तो स्वतः ही दरारें पड़ जाती हैं। इन्हें रेखाएँ, क्रैकल्स या वेन्स भी कहते हैं। यही बाटिक में सुन्दरता उत्पन्न करती हैं। इसके लिए दो प्रकार का मोम उपयोग में आता है-मधुमक्खी का मोम (Bee’s wax) तथा पैराफिन मोम (Paraffin wax)। कम दरारें रखनी हों तो मधु मोम अधिक मात्रा में लिया जाता है तथा अधिक दरारें रखनी हों तो पैराफिन मोम की मात्रा अधिक रखी जाती है। मधु मोम देखे में पीला होता है। पैराफिन मोम सफेद दिखाई देता है। वस्त्र पर मोम लगाने की निम्नलिखित तीन विधियाँ हैं-
(क) साँचे अथवा ब्लॉक द्वारा (With the help of Block)- व्यावसायिक स्तर पर बड़े-बड़े वस्त्रों पर मोम लगाने के लिए लकड़ी अथवा धातु के बने ब्लॉक्स को गर्म मोम में थोड़ा-सा डुबोकर, तुरन्त वस्त्र पर रखकर दबा दिया जाता है। इससे कम समय में पूरे नमूने पर मोम लग जाता है।
(ख) मोमबत्ती द्वारा (With the help of Candle)- नमूना बनाना न आता हो अथवा वस्त्र पर बुंदकीदार रँगाई करनी हो तो मोमबत्ती जलाकर उसका मोम वस्त्र पर टपका दिया जाता है।
(ग) ब्रुश द्वारा (With the help of Brush)- बाटिक में घरेलू स्तर पर मोम लगाने की यह सर्वाधिक प्रचलित विधि है। ब्रुश द्वारा मोम लगाने के लिए निम्नलिखित सामानों की आवश्यकता होती है-
मधु मोम पैराफिन मोम
बिरोजा या रंजक स्टोब, हीटर अथवा गैस का चूल्हा
ऐल्यूमीनियम का सॉस पैन, बड़ा कटोरा या डेगची
संडसी पुराना सफेद कपड़ा
एम्ब्रायडरी फ्रेम
चपटे एवं गोल सीबल हेयर ब्रुश – 2, 4, 6 व 12 नं. के
नमूने पर मोम लगाने से पहले वस्त्र के उस भाग को जहाँ मोम लगाना है, एम्ब्राडयरी फ्रेम में फँसा लें। इससे वस्त्र तना रहता है तथा मोम ठीक से लगता है। अब सॉसपैन में निम्नलिखित सामग्री गर्म करें-
मधु मोम (एक भाग) = 250 ग्राम
पैराफिन मोम (दो भाग) = 500 ग्राम
बिंरोजा या रंजक = 100 ग्राम
जब मोम का मिश्रण पिघलकर तरल पारदर्शी हो जाए तो ब्रश द्वारा पुराने वस्त्र पर थोड़ा-सा मोम लगाकर देखें। वस्त्र पर लगा मोम पारदर्शी ही होना चाहिए। ठण्डा होने पर वह सफेद हो जाएगा। मोम लगाते समय ध्यान रखें कि मोम का बर्तन पूरे समय धीमी आँच पर चढ़ा रहे। मोम इतना गर्म भी नहीं होना चाहिए कि उसमें से धुआं उठने लगे। ब्रुश से पहले नमूने की वाह्य रेखाओं (Out lines) पर मोम लगाएँ तत्पश्चात् भीतरी भाग में मोम लगाएँ मोम लगाते ही वह फैल जाता है अतः सावधानी से ब्रुश में कम मोम लेकर लगाएँ। वस्त्र पलटकर नमूने के पीछे की ओर से भी मोम लगा दें।
मोम लगाने का काम छायादार स्थान में बैठकर करें। मोम लगा कपड़ा धूप में न रखें अन्यथा मोम पिघलकर फैल जाएगा। मोम लगे वस्त्र को तह करके अधिक मोड़े नहीं। ऐसा करने से मोम निकल जाता है। आवश्यकता से अधिक दरारें भी पड़ सकती हैं। वस्त्र सीधा रखें। मोम जब सूखकर कड़ा होगा तो स्वतः ही दरारें पड़ेंगी।
4. वस्त्र रँगना (Dyeing)
वैसे तो वस्त्र साधारण रंगों में भी रँगे जा सकते हैं किन्तु बाटिक को अच्छे, चमकदार रंगों में रंगने के लिए ब्रंथाल (Brenthol) रंग उपयोग में लाए जाते हैं। ये रँगाई के सामानों की दुकान में उपलब्ध होते हैं। इसमें दो रसायनों का उपयोग होता है- एक बेस रंग तथा दूसरे रंग बंधक के रूप में साल्ट रंग । प्रत्येक रंग का विशेष नाम होता है साथ ही उसके साथ उपयोग में लाया जाने वाला साल्ट भी भिन्न होता है। दुकान में रंगों के साथ रंग से सम्बन्धित चार्ट एवं निर्देश भी मिलते हैं। इन्हीं निर्देशों के अनुसार रँगाई करनी चाहिए।
रँगाई के आवश्यक सामान
उपर्युक्त तालिका के अनुसार बेस रंग एवं साल्ट रंग, साबुन, कास्टिक सोडा, टर्की ऑयल, चीनी मिट्टी के दो कप, छन्नी, प्लास्टिक की दो चम्मचें, दस्तानें, एप्रन, चार बड़े पात्र, मग एवं ठण्डा पानी, स्टोव, सॉसपेन, पुराना कपड़ा।
बेस रंग बनाने की विधि (एक मीटर वस्त्र-रँगने के लिए)- चीनी मिट्टी के कप में पाँच ग्राम बेस रंग तथा टर्की रेड ऑयल की एक चाय चम्मच भर (पाँच मिली लीटर) मात्रा लेकर प्लास्टिक के चम्मच से घोलें। इसे लगभग एक लीटर पानी में मिलाकर पाँच ग्राम कास्टिक सोडा के साथ उबालें। उबलकर जब रंग पारदर्शी दिखाई देने लगे तो उसे तैयार समझना चाहिए। चूल्हे पर से उतारकर रंग ठण्डा होने दें।
साल्ट का घोल बनाने की विधि- चीनी मिट्टी के कप में दस ग्राम साल्ट लेकर उसे प्लास्टिक के चम्मच से आधार कप पानी मिलाते हुए घोलें। इसे छानकर एक लीटर ठण्डे पानी में घोलकर रखें।
मोम लगा वस्त्र रँगने की विधि (Method of dyeing waxed fabric)
वस्त्र रंगने के सभी कार्य ठण्डे घोल एवं ठण्डे पानी में करने चाहिए। गर्म पानी के उपयोग से मोम पिघल जाएगा। रँगाई क्रिया आरम्भ करने से पहले एक बर्तन में ठण्डा पानी एवं साबुन का घोल बनाएँ। इसमें मोम लगे वस्त्र को आधा घण्टा डुबोकर रखें। फिर बिना निचोड़े बाहर निकाल लें। इस प्रकार साबुन में भिगाने से वस्त्र पर रंग अच्छा चढ़ता है। ठण्डे पानी के सम्पर्क से मोम जमकर कड़ा हो जाता है तथा उसमें दरारें भी पड़ जाती हैं। दरारें न पड़ी हों तो ब्रुश के पिछले सिरे या पिन की नोक की सहायता से अथवा वस्त्र को हल्के से मोड़कर दरारें डाली जा सकती है। इसके बाद हाथों में दस्ताने पहनकर, एप्रन बाँधकर रँगाई आरम्भ करें
रँगाई के लिए अपने सामने तीन पात्र रखें। पहले में बेस रंग का घोल, दूसरे में साल्ट का घोल तथा तीसरे में सादा ठण्डा पानी भरा हो।
पहले से साबुन के घोल में डुबाए वस्त्र को निकालकर दोनों हाथों से छोरों को पकड़कर रंग के घोल में अच्छी तरह डुबोकर पाँच मिनट के लिए छोड़ दें। फिर उसे निकालकर साल्ट के घोल में पाँच मिनट के लिए डूबा रहने दें। यह क्रिया दो-तीन बार या तब तक दोहराएँ जब तक पूरे वस्त्र पर रंग अच्छी तरह न चढ़ गया हो। अन्त में सादे पानी में वस्त्र को धोकर बिना निचोड़े छाया में सुखाएँ। वस्त्र सूख जाने के पश्चात् पुनः उन स्थानों पर मोम लगाएँ जहाँ इस रंग में रंगा हुआ भाग छोड़ना है। पहले से लगी मोम पर भी दुबारा दोनों ओर मोल लगा दें। इसके बाद पुनः वस्त्र को ऊपर बताई गई विधि से दूसरे रंग में रंगे रंगे हुए वस्त्र को सुखाकर 1 पुनः यह क्रिया दोहराएँ जब तक अपेन मनपसन्द रंगों में बाटिक न रंग जाए। सदा रँगने का क्रम हल्के से गहरे रंगों में होना चाहिए।
5. मोम छुड़ाना (Wax Removing)
अन्तिम रँगाई करके सुखाने के बाद वस्त्र पर से मोम छुड़ाया जाता है। मोम दो प्रकार से छुड़ाया जाता है-
पहली विधि- टेबल पर अखबार बिछाएँ। उस पर मोम लगा वस्त्र रखें। सबसे ऊपर स्याही सोख कागज रखें कागज पर गर्म इस्तरी (Hot Iron) दबाकर फेरें। मोम पिघलकर कागज द्वारा सोख लिया जाएगा। यह विधि छोटे वस्त्रों के लिए उपयुक्त है।
दूसरी विधि – एक बर्तन में पानी उबाले। उसमें साबुन का चूर्ण डाल दें। इस गर्म में मोम लगा वस्त्र डालकर डण्डे से चलाएँ । अन्त में सादे गर्म पानी से धो डालें। वस्त्र निचोड़कर, झटककर छाया में सुखाएँ।
6. इस्तरी करना (Ironing)
बाटिक विधि से रंगे वस्त्र पर हल्की गर्म इस्तरी करें। अधिक गर्म इस्तरी कदापि न करें। इससे रंग खराब होने की आशंका रहती है।
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