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भारत छोड़ो आंदोलन, कारण, अंग्रेजों भारत छोड़ो,करो या मरो
भारत छोड़ो आंदोलन, कारण, अंग्रेजों भारत छोड़ो,करो या मरो – Hello दोस्तों आज आप सभी को हम प्रतियोगी परीक्षाओं में हमेसा पूछे जाने वाले प्रश्न आप सभी के लिए शेयर कर रहे हैं| दोस्तों महात्मा गाँधी से सम्बंधित परीक्षाओं में अक्सर प्रश्न पूछे जाते हैं| आज हम इन्हीं से सम्बंधित कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न आप साभी के लिए शेयर कर रहे हैं इस Post में जितने भी प्रश्न है ये सभी पिछले विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछा जा चका है|दोस्तों आज जिस topic पर हमने आप सभी के लिए यह पोस्ट तैयार किया है वह “भारत छोड़ो आंदोलन, कारण, अंग्रेजों भारत छोड़ो,करो या मरो” से सम्बंधित है| जो छात्र Competitive exams की तैयारी कर रहे हैं उन सभी के लिए हमारा यह पोस्ट बहुत ही Helpful होगा |
कारण
भारत छोड़ो आंदोलन, कारण, अंग्रेजों भारत छोड़ो,करो या मरो
1-क्रिप्स मिशन (1942) की असफलता के बाद भारतीयों के समक्ष स्वतंत्रता प्राप्ति आंदोलन के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं था |इसलिए कांग्रेस को विवश होकर भारत छोड़ो आंदोलन चलाना पड़ा |
२-कांग्रेस पूर्ण स्वतंत्रता चाहती थी, जिसे ब्रिटिश सरकार नहीं देना चाहती थी |अतः जनता में स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु लालसा अब अधिक तीव्र हो उठी |
३- गांधी जी का यह विचार था कि यदि भारत स्वतंत्र हो जाएगा तो भारत को जापान से कोई खतरा नहीं रहेगा क्योंकि जापान की दुश्मनी इंग्लैंड से है ना कि भारत से |अतः गांधी जी चाहते थे कि द्वितीय विश्व युद्ध काल में ही भारत के स्वाधीनता प्रदान कर दी जाए |
४-भारतीयों में बढ़ते हुए असंतोष के कारण मात्र क्रिप्स मिशन की सफलता और जापान के भारत पर आक्रमण का निरंतर बढ़ता हुआ संकट ही नहीं,बल्कि वर्मा और मलेशिया से भागे भारतीयों के प्रति अंग्रेजों का दुर्व्यवहार,युद्ध के कारण आवश्यक वस्तुओं का उपलब्ध ना होना,मूल्यों में असाधारण वृद्धि और पूर्वी बंगाल में भय एवं आतंक का शासन भी थे |
7 जून 1942 को महात्मा गांधी ने अपनी पत्रिका ‘हरिजन’ में लिखा है- ‘मैंने बहुत प्रतीक्षा की विदेशी शासन को हटाने के लिए देश अहिंसात्मक शक्ति पैदा करें परंतु अब मेरा विचार बदल गया है कि मैं सोचता हूं कि अब और प्रतिक्षा नहीं कर सकता और प्रतीक्षा का अर्थ होगा विनाश की प्रतीक्षा|”
अतः 14 जुलाई 1942 को वर्धा में कांग्रेस की समिति ने भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित कर दिया इस कार्य समिति में कांग्रेस के सभी प्रमुख नेताओं ने भाग लिया था |कांग्रेस की अखिल भारतीय समिति की बैठक 7 अगस्त 1942 को मुंबई में हुई |इसमें कुछ संशोधन के साथ कांग्रेस कार्य समिति ने प्रस्ताव को 8 अगस्त 1942 को पारित कर दिया |
इस प्रस्ताव में कहा गया था कि- “भारत में ब्रिटिश शासन का तुरंत अंत होना चाहिए | इस शासन के जारी रहने से भारत का निरंतर पतन हो रहा है और देश अपनी रक्षा के लिए कमजोर होता जा रहा है|”
इसी अवसर पर पंडित जवाहरलाल नेहरु ने कहा- “हम ने स्वयं को अग्नि में ढकेल दिया है या तो हम सफलतापूर्वक से बाहर निकल आएंगे अथवा इसी में समाप्त हो जाएंगे |”
गांधी जी ने अपने उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहा कि ये आंदोलन कांग्रेस का अंतिम प्रयास है जिसे या तो भारतीयों को स्वतंत्रता प्राप्त हो जाएगी या तो वह मर मिटेंगे |गांधी जी ने आंदोलन आरंभ करने से पूर्व अपने उद्देश्यों एवं मांगों की सूचना, सूचना पत्र द्वारा वायसराय को दे दी तथा स्वयं भी वायसराय से मिलने का प्रयास किया | परंतु इससे पहले कि वे इससे मिल पाते की 9 अगस्त 1942 को गांधी जी तथा कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को बंदी बना लिया गया |गांधी जी की अनुपस्थिति में भी आंदोलन चलता रहा | स्थान-स्थान पर हड़तालें, प्रदर्शन व जुलूस निकाले गए |सरकार ने हजारों व्यक्तियों को जेल में डाल दिया | आंदोलन को कुचलने के लिए गोलियां चलाई गई व लाठी चार्ज भी हुए |गांधी जी ने इस समय देश को “करो या मरो “का नारा दिया |जिससे जनता का उत्साह बढ़ा |भारतीय जनता ने “अंग्रेजों भारत छोड़ो” के नारे लगाते हुए सरकारी इमारतों, नगर निगम के भवनों ,डाकखानो ,एवं रेलवे स्टेशनो पर आक्रमण कर उनमें आग लगा दी|सितंबर 1942 से लेकर फरवरी 1943 तक यह आंदोलन हिंसात्मक रूप से सारे भारत में चलता रहा |गांधी जी ने आंदोलन के हिंसात्मक होने का प्रायश्चित करने के उद्देश्य से 10 फ़रवरी 1943 से 21 दिन का उपवास आरंभ कियाजिसकी देश में तथा विदेशी में तीव्र प्रतिक्रिया हुई |किन्तु ब्रिटिश सरकार ने इस को ध्यान नहीं दिया |गांधी जी का 21 दिन का उपवास सकुशल समाप्त हुआ |बाद में 1944 में उन्हें रिहा कर दिया गया क्योंकि वह अस्वस्थ हो गए थे किंतु तब तक आंदोलन बहुत कमजोर पड़ गया था तथा द्वितीय विश्व युद्ध में इंग्लैंड की विजय दृष्टिगत हो रही थी | गांधी जी ने तत्कालीन स्थिति को देखते हुए 1944 में इस आंदोलन को समाप्त कर दिया और कुछ समय उपरांत सारे कांग्रेसी नेता छोड़ दिए गए मुस्लिम लीग ने इस आंदोलन में भाग नहीं लिया था |
भारत छोड़ो आंदोलन का महत्त्व
यद्यपि भारत छोड़ो आंदोलन अपने प्रारंभिक प्राथमिक लक्ष्य को तत्काल भाग प्राप्त नहीं कर सका किंतु इस आंदोलन को असफल नहीं कहा जा सकता |भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को भारतीय इतिहास में विशेष स्थान है क्योंकि इसने भारत के स्वतंत्रता की पृष्ठभूमि तैयार कर दी तथा अंग्रेजों को भारतीयों की स्वतंत्रता की प्रबल भावनाओं से अवगत कराया |यह आंदोलन कुछ नेताओं के द्वारा किया गया आंदोलन नहीं था बल्कि सभी नेताओं के जेल में होने के बावजूद जनता द्वारा किया गया जन आंदोलन था| जिसने विदेशी सत्ता के प्रति अपने आक्रोश को व्यक्त किया तथा विदेशी सत्ता कि भारत में जड़ों को हिला दिया |
इतिहासकार ईश्वरी प्रसाद के अनुसार-“इस आंदोलन के बाद अंग्रेजों ने भारत को छोड़ना लगभग सुनिश्चित कर लिया|
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