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महादेवी के काव्य में रहस्यवाद
रहस्य-भावना महादेवी के काव्य की सर्वप्रमुख विशेषता है। विद्वानों ने आत्मा और ब्रह्म की पारस्परिक प्रणयानुभूति को रहस्यवाद की संज्ञा दी है। महादेवी रहस्यवादी कवयित्री है कण-कण में जिस महाशक्ति का आभास मिलता है उस अज्ञात, असीम ब्रह्म के प्रति जिज्ञासा होना स्वाभाविक है उस अज्ञात सत्ता से भावुक हृदय कवि एक सम्बन्ध-भाव स्थापित कर लेता है। इस सम्बन्ध के द्वारा हृदय की अनेक वृत्तियाँ अभिव्यक्त हो सकती हैं, जैसे – रूप-वर्णन, शृंगार- वर्णन, विरह-मिलन-अभिसार आदि। इन सभी अन्तर्वृत्तियों का प्रकाशन लौकिक प्रेम-वर्णन में भी होता है और रहस्यवाद में भी। महादेवी वर्मा की वेदना वैयक्तिक है अथवा रहस्यात्मक, इस पर अनेक विद्वानों ने प्रश्न – चिह्न लगाये हैं। उनके काव्य में अनुस्यूत करुणा का कारण उनका विफल दाम्पत्य जीवन है। यह भाव भी अनेक विद्वानों ने व्यक्त किया है, परन्तु उनके काव्य में लौकिक प्रिय के स्थान पर अलौकिक ब्रह्म को ही आलम्बन बनाकर हृदयोद्गार व्यक्त किये गये हैं, यह भी सर्वस्वीकृत है।
ब्रह्म को प्रियतम मानकर हृदयोद्गारों की अभिव्यक्ति में तीन तत्त्व प्रधान होते हैं-
1. प्रियतम- साध्य-तत्त्व, 2. प्रेयसी-साधिका-तत्त्व, 3. प्रकृति साधना-भूमि उनकी रहस्य – भावना के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं- (1) ‘मैं मतवाली इधर उधर प्रिय अलबेला-सा है।’ (2) ‘सखि मैं हूँ अमर सुहाग भरी, प्रिय के अनन्त अनुराग भरी।’
महादेवी जी की रहस्य-भावना की प्रायः विद्वान् आलोचकों ने प्रशंसा करते हुए उन्हें उच्चकोटि की रहस्यवादी कवयित्री माना है। महादेवी का रहस्यवाद जहाँ एक ओर पूरा-का पूरा बौद्धिक है, वहीं दूसरी ओर उनकी रहस्यानुभूति सांस्कृतिक है। कवयित्री ने अपनी रहस्य – भावना के बारे में लिखा है, “आज गीत जिसे नये रहस्यवाद के रूप में ग्रहण कर रहे हैं, वह इन सबकी विशेषताओं से युक्त होने पर भी उन सबसे भिन्न है। उसने परा विद्या की अपार्थिवता ली, वेदान्त के अद्वैत की छायामात्र ग्रहण की, लौकिक प्रेम से तीव्रता उधार ली और इन सबको कबीर के सांकेतिक दाम्पत्य-भाव-सूत्र में बाँधकर एक निराले स्नेह-सम्बन्ध की सृष्टि कर डाली, जो मनुष्य के हृदय को आलम्बन दे सका, उसे पार्थिव प्रेम से ऊपर उठा सका तथा मस्तिष्क को हृदयमय और हृदय को मस्तिष्कमय बना सका ।” महादेवी जी की रहस्यभावना पर मध्ययुगीन सन्त एवं भक्त कवियों का प्रभाव तो अवश्य पड़ा है किन्तु उन्होंने आज के चिर संतप्त पृथ्वी के आम आदमी की करुणा-पीड़ा चीत्कार को ग्रहण करते हुए सर्वत्र एक चेतना अथवा आत्मा की अनुभूति की है। उन्होंने वर्तमान युगीन मानवता की पीड़ा-वेदना के साथ निज का सम्मेल कर अपनी रहस्य – भावना को अभिव्यंजित किया है। अतः यह कहने में कोई अतिशयोक्ति न होगी कि महादेवी वर्मा की रहस्यानुभूति विशुद्ध राष्ट्रीय एवं मानवातामूलक है।
कुछ विद्वान विरह तथा रहस्यवाद के मिले-जुले भावों के महादेवी जी के काव्य में होने के कारण उन्हें ‘आधुनिक युग की मीरा’ कहते हैं, परन्तु मीरा और महादेवी में बहुत अन्तर है। इस सम्बन्ध में विश्वम्भर ‘मानव’ लिखते हैं- “मीरा जो अनुभव करती थीं, वह कह डालती थीं। अतः जारी के हृदय में कितनी आर्द्रता और तड़पन होती है, यह बात उनके पदों से पूर्ण रूप से झलक जाती है। परन्तु ऐसा लगता है कि किसी प्रकार से महादेवी जी के हृदय में अभी बहुत कुछ अवरुद्ध है है। यह बात अभी उनके हृदय में ही है, जो दूसरों को रुलाती है। ऐसा मैं मीरा के उन प्राणवान् पदों को लेकर कह रहा हूँ, जिन्हें संगीत ने अपने खरों को माधुर्य देकर घर-घर पहुँचाया, उर उर में बसाया। वैसे विचारों और कल्पनाओं की जो निधि महादेवी की रचनाओं में रक्षित है, उसे मीरा में ढूँढ़ना व्यर्थ होगा। वस्तुतः अपने निजत्व में महादेवी की गहन गम्भीरता का एक अलग आकर्षण है। वे हिन्दी साहित्य में नहीं, अपितु सम्पूर्ण भारतीय वाङ् मय में अतुलनीय हैं।”
- महादेवी वर्मा के गीतों की विशेषताएँ बताइए।
- वेदना की कवयित्री के रूप में महादेवी वर्मा के काव्य की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।
- महादेवी वर्मा की काव्यगत विशेषताएँ- भावपक्षीय विशेषताएँ तथा कलापक्षीय विशेषताएँ
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