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कैसे लाया जाता है चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग?

कैसे लाया जाता है चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग?

इसी साल के शुरू में मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने भी जस्टिस मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने की मांग की थी.

महाभियोग-Hello Reader,आज मै आपके लिये लेकर आया हूँ ‘महाभियोग By Vivek Sir हमारी भाषा हिन्दी मे। यह Online classesVivek Sir‘ के द्वारा तैयार किया गया है जिन्होंने सरल एवं संक्षिप्त भाषा में सभी महत्वपूर्ण एवं परीक्षा उपयोगी तथ्यों को समझाने का प्रयास किया है,जो सभी प्रतियोगी परीक्षाओं मे पूछे जाने वाले उपयोगी प्रश्नों को बताया गया है|

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कैसे लाया जाता है चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग?

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने सीजेआई दीपक मिश्रा के खिलाफ पेश किया गया महाभियोग प्रस्ताव खारिज कर दिया है.  बता दें कि इसी साल के शुरू में मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने भी जस्टिस मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने की मांग की थी.

इससे पहले सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनाकरन के खिलाफ वर्ष 2009 में राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया गया था, लेकिन इसकी प्रक्रिया आगे बढ़े, इससे पहले ही दिनाकरन ने इस्तीफा दे दिया था. इसके अलावा हाईकोर्ट के एक और चीफ जस्टिस के साथ एक जज के खिलाफ भी महाभियोग प्रस्ताव संसद में पेश हो चुका है.

बता दें कि एक बार सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस की नियुक्ति के बाद उन्हें महाभियोग लाकर संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत मिलने के बाद ही हटाया जा सकता है. लेकिन इसमें भी कई किंतु और परंतु की स्थितियां हैं.

क्या कहता है संविधान

  – संविधान की धारा 124 (4) कहती है कि चीफ जस्टिस की नियुक्ति के बाद उसे हटाने की प्रक्रिया संसद से ही संभव है. संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाकर ये प्रक्रिया शुरू की जा सकती है
– महाभियोग प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से पास किया जाना चाहिए.
– साथ ही राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिलनी चाहिए
– महाभियोग के लिए पुख्ता आधार भी होना चाहिए
– इसके बाद राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर से इस बारे में आदेश जारी करते हैं.
– अन्यथा चीफ जस्टिस 65 साल की उम्र तक अपने पद पर बने रहेंगे
– जज (इन्क्वॉयरी) एक्ट 1968 कहता है कि चीफ जस्टिस या अन्य किसी जज को सिर्फ दुराचार या अक्षमता के आधार पर ही हटाया जा सकता है. लेकिन दुराचार और अक्षमता की परिभाषा स्पष्ट नहीं है. हालांकि इसमें आपराधिक गतिविधि या अन्य न्यायिक अनैतिकता शामिल है.

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क्या है प्रक्रिया
-चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने के लिए लोकसभा में 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर युक्त महाभियोग प्रस्ताव की जरूरत होती है. इसके बाद ये प्रस्ताव संसद के किसी एक सदन में पेश किया जाता है. इसके बाद इसे राज्यसभा के चेयरमैन या लोकसभा के स्पीकर को सौंपना होता है.

– ये राज्यसभा चेयरमैन या लोकसभा स्पीकर पर निर्भर करता है कि वो इस प्रस्ताव पर क्या फैसला लेते हैं. वो मंजूर भी कर सकते हैं और नामंजूर भी

-अगर राज्यसभा चेयरमैन या लोकसभा स्पीकर इस प्रस्ताव को मंजूर करते हैं तो आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन होता है. इसमें सुप्रीम कोर्ट का एक जज, एक हाईकोर्ट जज और एक विधि संबंधी मामलों का जानकार (जज, वकील या स्कॉलर) शामिल होता है.

-अगर कमेटी को लगता है कि आरोपों में दम है और ये सही हैं तो सदन में ये रिपोर्ट पेश की जाती है. फिर वहां से दूसरे सदन में भेजी जाती है.

– अगर इस रिपोर्ट को दोनों सदनों में दो तिहाई बहुत मिलता है महाभियोग पास हो जाता है

-इसके बाद राष्ट्रपति अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए चीफ जस्टिस को हटाने का आदेश दे सकते हैं.

संसद में मौजूदा स्थिति क्या है
– माना जा रहा है कि अगर कांग्रेस ये प्रस्ताव लेकर आती है तो इस पर एनसीपी, टीएमसी, सपा, डीएमके, लेफ्ट और आईयूएमएल समर्थन करेंगे.
– राज्यसभा में कांग्रेस के पास 51, डीएमके के पास 4, आईयूएमएल के पास 1, आरजेडी के 5, एनसीपी के 4, सपा के 13, टीएमसी के 13, बीएसपी के 4 और लेफ्ट के 6 सदस्य हैं.
– यानि कांग्रेस राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने में कामयाबी हासिल कर सकती है लेकिन लोकसभा में विपक्ष इसे पारित कराने की स्थिति में नहीं है. ऐसे इसके पारित होने की संभावनाएं बिल्कुल नहीं हैं.

इस पर प्रतिक्रिया क्या है
पूर्व जजों और कानूनी दिग्गजों ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट के चार जजों के आरोपों के आधार पर महाभियोग लाया जा रहा है तो ये पहल ‘अपरिपक्व’ है.

 

राज्‍यसभा में कुल 245 सांसद हैं. इस सदन में महाभियोग प्रस्‍ताव पास करने के लिए दो तिहाई बहुमत यानी 164 सांसदों के वोट की जरूरत होगी. राज्‍यसभा में सत्‍ताधारी एनडीए के 86 सांसद हैं. इनमें से 68 बीजेपी के सांसद हैं. यानी इस सदन में कांग्रेस समर्थित इस प्रस्‍ताव के पास होने की संभावना नहीं है. लोकसभा में कुल सांसदों की संख्‍या 545 है. दो तिहाई बहुमत के लिए 364 सांसदों के वोटों की जरूरत पड़ेगी. यहां विपक्ष बिना बीजेपी के समर्थन के ये संख्‍या हासिल नहीं कर सकता क्‍योंकि लोकसभा में अकेले बीजेपी के ही 274 सांसद हैं.

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जस्टिस दिनाकरन (फाइल फोटो)

जिन जजों के खिलाफ आ चुका है महाभियोग
सिक्किम हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनाकरन के खिलाफ वर्ष 2009 में 75 राज्यसभा सांसदों ने हस्ताक्षर युक्त पत्र तत्कालीन राज्यसभा चेयरमैन और उपराष्ट्रीय हामिद अंसारी को सौंपा था. अंसारी ने इसकी जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति भी गठित कर दी थी. लेकिन इसके बाद दिनाकरन ने पद से इस्तीफा दे दिया था. न्यायमूर्ति दिनाकरन ने समिति की कार्यवाही को रोकने की अनेक कोशिशें की पर उन्हें सफलता नहीं मिली. यहाँ तक कि उच्चतम न्यायालय से भी उन्हें राहत नहीं मिली.
संसद में जस्टिस दिनाकरन के ख़िलाफ़ 12 मामले तय किए जाने के बाद हामिद अंसारी ने आरोपों की जाँच के लिए जनवरी 2010 में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था.

दिनाकरन से पहले 1990 के दशक के मध्य में न्यायमूर्ति वी रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग लोकसभा में गिर गया था, जबकि कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन ने महाभियोग के बाद वर्ष 2011 में इस्तीफा दे दिया था. राज्यसभा में सौमित्र सेन को सरकारी फंड के दुरुपयोग और ग़लत तथ्य पेश करने का दोषी पाया था.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट की अवमानना के मामले में कोलकाता हाईकोर्ट के जज कर्णन को छह महीने के लिए जेल की सजा सुनाई थी. उन्हें जेल की सजा काटनी पड़ी थी.

क्‍या CJI दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्‍ताव पास हो सकता है?

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस(सीजेआई) दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष महाभियोग प्रस्‍ताव लेकर आया है. विपक्षी पार्टियों ने उपराष्ट्रपति वेकैंया नायडू को महाभियोग नोटिस सौंप दिया है. इस मामले में कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता कपिल सिब्‍बल ने कहा‍, ‘हम चाहते थे कि ऐसा दिन कभी ना आए, लेकिन कुछ खास केसों पर सीजेआई के रवैये की वजह से महाभियोग लाने पर हम मजबूर हुए.’ सिब्बल ने कहा कि सीजेआई के कुछ प्रशासनिक फैसलों पर आपत्ति है. चीफ जस्टिस पर अपने पद की मर्यादा तोड़ने का आरोप लगाते हुए उन्‍होंने कहा कि न्यायपालिका के खतरे में आने से लोकतंत्र पर खतरा है. इन परिस्थितियों में बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि क्‍या विपक्ष द्वारा पेश किया गया यह प्रस्‍ताव संसद के दोनों सदनों में पास हो पाएगा?

ऐसा इसलिए क्‍योंकि आजादी के बाद से लेकर आज तक किसी भी जज को महाभियोग प्रस्‍ताव से हटाया नहीं जा सका है. उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज को संविधान में पर्याप्‍त रूप से संरक्षण दिया गया है और इसलिए उनको महाभियोग प्रस्‍ताव से हटाना बेहद मुश्किल है. इसकी प्रक्रिया भी काफी जटिल है. इस संदर्भ में महाभियोग प्रस्‍ताव की प्रक्रिया पर आइए डालते हैं एक नजर:

महाभियोग प्रस्‍ताव
संविधान के अनुच्‍छेद 124(4) और जजेज (इंक्‍वायरी) एक्‍ट, 1968 में जजों के खिलाफ महाभियोग का जिक्र किया गया है. इनके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज के खिलाफ अक्षमता और गलत व्‍यवहार के आधार पर महाभियोग लाया जा सकता है. इस तरह का प्रस्‍ताव लोकसभा या राज्‍यसभा में से कहीं भी पेश किया जा सकता है. यह प्रस्‍ताव पेश करने के लिए लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों और राज्‍यसभा में 50 सांसदों के हस्‍ताक्षर की जरूरत होती है. इसके साथ ही जज को हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से प्रस्‍ताव पास करना जरूरी है.

तीन सदस्‍यीय कमेटी
यदि इस तरह का कोई प्रस्‍ताव पास हो भी जाता है तो आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्‍यों की एक कमेटी बनाई जाती है. इस कमेटी में एक सुप्रीम कोर्ट के जज, किसी भी हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और एक न्‍यायविद शामिल होते हैं. इनमें से न्‍यायविद को लोकसभा के स्‍पीकर या राज्‍यसभा के सभापति नामित करते हैं. यह न्‍यायविद कोई जज, कोई वकील या कोई विद्दान हो सकता है. रिपोर्ट तैयार करने के बाद कमेटी उसे लोकसभा के स्‍पीकर या राज्‍यसभा के सभापित को सौंपती है. इसके साथ ही महाभियोग प्रस्‍ताव चाहे किसी भी सदन में लाया जाए, लेकिन उसे पास दोनों सदनों में होना पड़ेगा. प्रस्‍ताव को पास करने के लिए वोटिंग के दौरान सभी सांसदों का दो तिहाई बहुमत हासिल करना जरूरी है. दोनों सदनों में महाभियोग प्रस्‍ताव पास होने के बाद राष्‍ट्रपति Presidential Order से जज को हटा सकते हैं.

क्‍या विपक्ष के पास संख्‍याबल है?

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shubham yadav

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