रंगों का प्रयोग करते समय किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
रंगों का प्रयोग (Use of Colour)- रंगों का प्रयोग करना भी एक कला है। इसलिए इनका प्रयोग बहुत सोच-समझकर करना चाहिए। रंगों के बारे में ज्ञान न होने के कारण बहुत-सी स्त्रियाँ सूर्य के तपती धूप में भी काले या गहरे रंगों का प्रयोग करती हैं। जबकि स्वास्थ्य व सुन्दरता की दृष्टि से काली साड़ी रात को पहननी चाहिए। इसी प्रकार बहुत से काले रंग के व्यक्ति गहरे रंगों के वस्त्र पहनते हैं जिससे वह अधिक काले दिखते हैं। अपनी त्वचा के रंग की दृष्टि से अपने सौन्दर्य में वृद्धि करने के लिए उनको हल्के रंगों का प्रयोग करना चाहिए।
यदि कमरा छोटा है तो उसमें हल्के रंग की पुताई करवा कर उसकी छोटाई को कम किया जा सकता है। इसी प्रकार यदि कमरा अंधेरा है तो उसमें भी हल्के रंग की पुताई होनी चाहिए जिससे उसका अंधेरापन थोड़ा कम हो जाये। ऐसे कमरों में फर्नीचर का रंग व पर्दों का रंग भी हल्के रंगों का होना चाहिए। शादी विवाह या अन्य उत्सवों के अवसर पर गर्म रंगों का प्रयोग करने से उत्सव को प्रभावोत्पादक बनाया जा सकता है। इनसे व्यक्तियों में जोश व उत्तेजना उत्पन्न होती है।
रंगों का प्रयोग स्थान के अनुसार करना चाहिए। ग्रामीण स्त्रियाँ विभिन्न रंगों के परिधान धारण करती हैं। इस प्रकार परम्परागत रंगों के वस्त्रों में वे सुन्दर व आकर्षक प्रतीत होती है, जबकि शहरी स्त्रियों के वस्त्रों के रंग भिन्न होते हैं। अवसर के अनुसार ही रंगों का प्रयोग करना चाहिए। ऐसा करने से उनकी चमक व सौन्दर्य बढ़ जाता है। जैसे-विवाह, पार्टी आदि अवसरों पर गहरे व चमकीले रंग पहनना उचित व अच्छा लगता है। दुःख के अवसर पर चमकीले रंगों का प्रयोग सरासर गलत है। व्यक्ति ऐसा करने में उपहास का पात्र बन जाता है। ऋतुओं के अनुसार भी रंगों का चयन करना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में श्वेत व हल्के रंग पहनने से शांति प्राप्त होती है। इसके विपरीत शीतकाल में गहरे रंगों का प्रयोग करना चाहिए।
आयु के अनुसार भी रंगों का प्रयोग उचित जान पड़ता है। युवावस्था या बाल्यावस्था में गर्म रंगों का प्रयोग उचित लगता है। इससे बच्चों और युवक-युवतियों के सौन्दर्य में वृद्धि होती है। जबकि वृद्धावस्था में प्रवेश कर गए व्यक्ति को ठण्डे रंग अधिक शोभा प्रदान करते हैं। वे उनकी सौम्यता और गम्भीरता में वृद्धि करके उनके व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाते हैं।
कक्ष की व्यवस्था करते समय भी रंगों की ओर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए। कक्ष की दीवारें खिड़की, दरवाजे, कुर्सी की गद्दियाँ आदि एक ही रंग के होने से नीरसता उत्पन्न करते हैं। यदि कमरे में हल्के रंग की पुताई है तो सन्तुलन की दृष्टि से उसके खिड़की व दरवाजे के पर्दों, कुर्सी की गद्दियों, कालीन व दरी आदि का रंग हल्का होना चाहिए। इसी प्रकार किसी रंग योजना में एक ही रंग की पुनरावृत्ति से रंग व्यवस्था सन्तुलित हो जाती है। कमरे की व्यवस्था करते समय रंग योजना में लय का ध्यान भी रखना चाहिए। जैसे-यदि कमरे में हल्के पीले रंग की पुताई है तो उसके दरवाजे, खिड़कियों में लगाये जाने वाले पर्दे सफेद व पीले रंग के फूल वाले होने चाहिए। रंग के प्रयोग में भी कला के पाँचों सिद्धान्तों का ध्यान रखना आवश्यक होता है। तभी घर की व्यवस्था सुन्दर व आकर्षक हो सकती है। यदि रंगों की ओर बिना ध्यान दिए हुए कक्षों व घर को व्यवस्थिति किया गया है तो गृहिणी का परिश्रम व्यर्थ हो जाने का डर रहता है क्योंकि उससे आनन्द व शांति का अनुभव नहीं होगा। साथ ही गृहिणी की निम्न कोटि की रुचि का भी प्रदर्शन हो जायेगा। गृह सज्जा का उद्देश्य घर को आकर्षक बनाना होता है और यह उद्देश्य तभी प्राप्त किया जा सकता है जब अन्य बातों के साथ रंग पर भी उचित ध्यान व बल दिया जाये।
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