अनुक्रम (Contents)
राष्ट्रीय सलाहकार समिति या यशपाल समिति
छात्रों पर शैक्षिक भार की समस्या के सम्बन्ध में नये सिरे से विचार करने के उद्देश्य से भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मन्त्रालय द्वारा मार्च, 1992 में एक राष्ट्रीय सलाहकार समिति का गठन किया गया, जिसके अध्यक्ष प्रो. यशपाल थे। इस समिति ने शिक्षा , से जुड़े व्यक्तियों, अध्यापकों, छात्रों, स्वयंसेवी संस्थाओं इत्यादि के विचार जानने के लिये सर्वेक्षण किया, सेमिनार एवं सिम्पोजियम आयोजित कर समस्या का पता लगाने का प्रयास किया और समस्या के निराकरण की दिशा में बढ़ने के लिये अधोलिखित सिफारिशें प्रस्तुत की-
(1) पाठ्यक्रम निर्माण तथा पाठ्य-पुस्तकों को तैयार करने की प्रक्रिया विकेन्द्रित होनी चाहिये ताकि इन कार्यों में शिक्षकों की सहभागिता में वृद्धि हो सके। औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा में नवाचारों के प्रति समर्पित स्वैच्छिक संगठनों को पाठ्यक्रम, पाठ्य पुस्तकों तथा शिक्षक प्रशिक्षण के विकास में स्वतन्त्रता तथा सहयोग प्रदान किया जाना चाहिये।
(2) नर्सरी स्कूल खोलने तथा उसके संचालन को विनियमित करने के लिये उचित कानूनी एवं प्रशासनिक प्रयास किये जायें। नर्सरी कक्षा में प्रवेश के लिये परीक्षण एवं साक्षात्कार का प्रचलन बन्द किया जाये। प्राइवेट स्कूलों को मान्यता देने हेतु निर्धारित मानदण्डों को अधिक कड़ा बनाया जाय ताकि गुणवत्ता बनी रहे एवं व्यावसायीकरण को रोका जाना सम्भव हो सके।
(3) छोटे बच्चों को भारी बस्ते के साथ प्रतिदिन स्कूल जाने के लिये बाध्य करके उन्हें उत्पीड़ित करने का कोई औचित्य नहीं है। पाठ्य-पुस्तकों को स्कूली सम्पत्ति समझा जाय। स्कूल में ही पाठ्य-पुस्तकें उपलब्ध करायी जायें एवं वहीं रखी जानी चाहिये।
(4) शिक्षक – छात्र के वर्तमान अनुपात (1 : 40 ) को लागू किया जाय तथा कम से कम प्राथमिक कक्षाओं में इसे घटाकर (1 : 30) किया जाय एवं इसी आधार पर शिक्षा की भावी योजना बनायी जाय।
(5) देश में बालकेन्द्रित शिक्षा एवं सामाजिक वातावरण निर्माण के लिये इलेक्ट्रॉनिक प्रचार माध्यमों का अधिकाधिक प्रयोग किया जाय। ‘कृषि दर्शन’ कार्यक्रम की तरह से छात्रों, अध्यापकों एवं अभिभावकों के लिये ‘शिक्षा दर्शन’ नामक एक नियमित दूरदर्शन कार्यक्रम प्रारम्भ किया जाय।
(6) भाषा की पाठ्य पुस्तकों में स्थानीय एवं बोलचाल के मुहावरों को उचित स्थान दिया जाय। भावी पाठ्य-पुस्तकों में बच्चों की जीवन अनुभूतियों, काल्पनिक कहानियों, कविताओं तथा देश के विभिन्न भागों के सामान्य जन-जीवन को प्रतिबिम्बित करने वाली कहानियों को यथेकरूप में निरूपित किया जाय। स्वास्थ्य तथा सफाई जैसे विषयों में कोरे उपदेशों के स्थान पर पाठ्य-पुस्तकों में वास्तविक जीवन की घटनाओं से सम्बन्धित विश्लेषणात्मक चिन्तन पर बल दिया जाय।
(7) माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक कक्षाओं में प्राकृतिक विज्ञान के पाठ्यक्रम में यह सुनिश्चित किया जाय कि पाठ्यक्रम में सम्मिलित अधिकांश विषय-वस्तु को ऐसे प्रयोगों एवं कार्यकलापों से जोड़ा जा सके, जिन्हें बच्चे तथा शिक्षक स्वयं करें। इतिहास तथा भूगोल के अतिरिक्त छठी से आठवीं तथा नौवीं से दसवीं कक्षाओं के सामाजिक विज्ञान पाठ्यक्रम में हमारी सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक व्यवस्था के दर्शन तथा कार्यविधि की जानकारी दी जाय ताकि छात्र सामाजिक, आर्थिक विकास से सम्बन्धित समस्याओं और प्राथमिकताओं का विश्लेषण कर उन्हें आत्मसात् कर सकें।