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वैदिककालीन और बौद्धकालीन शिक्षा में समानता
वैदिककालीन और बौद्धकालीन शिक्षा में समानता – अल्तेकर ने लिखा है “जहाँ तक सामान्य शिक्षा-सिद्धान्त तथा कार्य प्रणाली का सम्बन्ध था, हिन्दुओं और बौद्ध धर्म में कोई आधारभूत अन्तर नहीं था। दोनों पद्धतियों के समान आदर्श थे और दोनों समान विधियों का अनुसरण करती थीं।”
वैदिक शिक्षा | बौद्ध शिक्षा |
1. शिक्षा प्रारम्भ होने से पूर्व उपनयन संस्कार का होना परम आवश्यक था। | 1. पब्बजा संस्कार का पालन किया जाता था। इस तरह के संस्कार दोनों में होते हैं। |
2. उक्त संस्कार का अर्थ था माता-पिता को त्यागकर विद्यालय में अध्ययन के लिए लग जाना। | 2. यही अर्थ पब्बजा संस्कार का भी था। |
3. विद्यारम्भ करने की एक निश्चित आयु थी। | 3. इसमें भी विद्या आरम्भ करने की आयु निश्चित थी। |
4. अध्ययन की न्यूनतम अवधि 12 वर्ष थी। | 4. नव विषय के लिए भी यही अवस्था निश्चित कर दी गयी थी। |
5. शिक्षक और छात्र के बीच का सम्बन्ध पिता और पुत्र सा होता था। | 5. पब्वजा संस्कार के बाद विद्यार्थी को “समानेर” कहा जाता था। |
6. वैदिक शिक्षा प्रणाली में शारीरिक पवित्रता पर अधिक ध्यान दिया जाता था। | 6. बौद्ध शिक्षा में भी बालक की शारीरिक पवित्रता पर विचार किया जाता था। |
7. वैदिक शिक्षा प्रणाली में छात्रों को उपवास करने की प्रथा थी | 7. बौद्ध शिक्षा प्रणाली में भी उपवास की बात चलती थी। |
8. वैदिक शिक्षा में पुस्तकों के अध्ययन के स्थान पर आदतों तथा उचित व्यवहार पर विशेष ध्यान दिया जाता था। | 8. बौद्ध शिक्षा प्रणाली में पुस्तकों के स्थान पर आदतों और व्यवहार तथा आचरण पर अधिक ध्यान दिया जाता था। |
9. वैदिक का प्रथम कार्य था भिक्षा मांगना । | 9. इसी प्रकार बौद्ध शिक्षा में भी भिक्षुओं का पहला काम भिक्षा मांगना था । |
10. विद्यार्थियों को ब्रह्मचारी का जीवन व्यतीत करने के लिए कुछ नियमों का निषेध किया गया था। | 10. उन्हीं बातों का निषेध बौद्ध भिक्षुओं के लिए भी था । |
11. वैदिक काल में अहिंसा धर्म का पालन करना विद्यार्थियों के लिए आवश्यक था। | 11. उसी प्रकार बौद्ध शिक्षा में भी विद्यार्थी को अहिंसा धर्म का पालन करना आवश्यक था। |
12. संन्यासी को गृह-त्याग कर वृक्ष के नीचे सोना पड़ता था। | 12. भिक्षु को भी वृक्ष के नीचे सोना पड़ता था। |
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