संचार के तत्व के रूप में प्राप्तकर्त्ता
प्राप्तकर्त्ता (Receiver) – संचार सन्देश को प्राप्त करने वाला व्यक्ति, वर्ग या जन- समुदाय संचार का चौथा तत्व होता है। इसे अन्तिम बिन्दु भी कह सकते हैं क्योंकि यह संचारक का लक्ष्य होता है। प्रसार शिक्षा के अन्तर्गत प्राप्तकर्ता प्रायः ग्रामीण पुरुष-महिलाएँ, युवक-युवतियाँ या ग्रामीण नेता होते हैं। इन्हें ग्रहणकर्ता, श्रोता या दर्शक भी कहा जा सकता है। संचार प्रक्रिया की सफलता प्राप्तकर्ता की भूमिका पर आधारित होती है। प्रेषित सन्देश में जब प्राप्तकर्ता रुचि दर्शाता है, उसे समझता है, स्वीकारता है तथा उसका उपयोग कर सन्तुष्ट होता है तभी संचार प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूर्णता को प्राप्त करती है। प्राप्तकर्त्ता जब संचार संदेश के प्रति सकारात्मक रवैया प्रदर्शित करता है तभी संदेश की प्रयोज्यता सिद्ध होती है। प्राप्तकर्ता के संदर्भ में निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-
(i) आवश्यकता- संचार सन्देश का जुड़ाव लक्षित व्यक्ति, वर्ग या समुदाय की आवश्यकताओं से होना चाहिये। सन्देश के माध्यम से प्राप्तकर्त्ता की जिज्ञासाओं और समस्याओं -का हल होना आवश्यक है, जिन्हें प्राप्तकर्त्ता ढूँढ़ता है । संचारक का प्रथम कर्त्तव्य है कि वह अपने लक्षित वर्ग विशेष (जिसके लिए वह सन्देश प्रसारित कर रहा है) की समस्याओं और आवश्यकताओं को समझे तथा सन्देश की विषय वस्तु का चयन तदनुरूप करे।
(ii) उपलब्ध साधन- संचारक के लिए भी जानना अनिवार्य है कि उसके लक्षित प्राप्तकर्त्ता के पास संचार माध्यमों की उपलब्धता की स्थिति क्या है। साथ ही साथ प्राप्तकर्त्ता की साधन-सम्पन्नता पर विचार करना भी आवश्यक है। महँगी सामग्रियां एवं साधनों का प्रयोग भारत जैसे गरीब देश का कृषक वर्ग नहीं कर सकता, अतः संचार सन्देश द्वारा यदि इसकी अनुशंसा भी की जाती है तो प्राप्तकर्ता के लिए ये सन्देश लाभकारी नही हो सकता। उर्वरकों और खादों का प्रयोग किसान तभी कर सकता है, जब ये चीजें उपलब्ध हों और कृषक की पहुँच के भीतर हों ।
(iii) शिक्षण स्तर – नई जानकारियों और सूचनाओं को प्रसारित करते समय प्राप्तकर्त्ता के शिक्षण स्तर को आधार मानना महत्वपूर्ण है। इस संदर्भ में दो बातें विचारणीय हैं। भारत में प्रसार कार्य के अधिकांश कार्यक्रम कृषि से सम्बन्धित हैं तथा भारत का अधिकांश कृषक साक्षर नहीं है। भारत की स्वाधीनता के पश्चात ही ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता अभियान को सघन बनाया गया। अतः किसी भी संचार संदेश का प्रारूप तैयार करते समय संचारक को प्राप्तकर्त्ता के शिक्षण स्तर को ध्यान में रखना परम आवश्यक है। संचार सन्देश प्राप्तकर्त्ता की समझ की परिधि के अन्दर होना चाहिए तभी वह पूरी तरह आत्सात किया जा सकता है। समझ से परे बातों में व्यक्ति रुचि नहीं लेता है और अपनाने की बात तो बहुत दूर । इसी संदर्भ में संचारक को लक्षित प्राप्तकर्ता की भाषा और शब्द भण्डार को भी जानना चाहिए। किसी भी बात को समझने के लिए परिचित शब्दों और भाषा का प्रयोग आवश्यक है । संचारक को इस पक्ष को भी ध्यान में रखना चाहिए। संचार सन्देश की ग्राह्यता की यह एक आवश्यक शर्त है।
(iv) मनोवृत्ति – प्रसार कार्य का प्रादुर्भाव पिछड़े और ग्रामीणों के विकास हेतु किया गया है। प्राप्तकर्त्ता की ओर से इसे आत्मोन्नति हेतु किया गया प्रयास कहा जा सकता है। प्रसार कार्य की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि प्राप्तकर्त्ता के विचारों में खुलापन हो और उसकी मनोवृत्ति सकारात्मक हो । प्रसार कार्य एवं प्रसार कार्यकर्त्ता के प्रति विश्वास होने पर प्राप्तकर्त्ता प्रसार कार्यक्रमों में रुचि लेकर उसका अनुसरण कर सकता है। प्राप्तकर्त्ता की विश्वसनीयता प्रायः प्रसार कार्यक्रमों के सफल परिणामों को देखकर बनती है। उसकी रुचि इन कार्यक्रमों के प्रति और गहरी होती जाती है तथा वह अपनी उन्नति के लिए नई जानकारियों और सूचनाओं को अपनाता जाता है। ये सारी बातें या प्रक्रिया प्राप्तकर्त्ता की मनोवृत्ति पर निर्भर करती हैं।
(v) सामाजिक एवं सांस्कृतिक परम्पराएँ- संचार प्रणाली के अन्तर्गत संचारक का सन्देश, संचार प्रणाली के माध्यम से प्राप्तकर्त्ता तक पहुँचता है। सन्देश की सफलता के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह प्राप्तकर्त्ता के सामाजिक-सांस्कृतिक विश्वासों के प्रतिकूल न हो तथा उन्हें खण्डित नहीं करता हो। प्राप्तकर्ता का विश्वास प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि सन्देश द्वारा प्राप्तकर्त्ता की मान्यताओं को किसी प्रकार का आघात नहीं पहुँचाया जाए। इस प्रकार की व्यक्तिगत भावनाओं से बचते हुए प्राप्तकर्त्ता तक संचार संदेश पहुँचाया जाना चाहिए।
(vi) पूर्वानुभव- व्यक्ति के जीवन के पूर्वानुभव, मनुष्य को कुछ भी करने के लिए तथा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।
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