अनुक्रम (Contents)
सन्त टॉमस एक्वीनास का स्कालेस्टिकवाद Saint Thomas Aquinas scholasticism in Hindi.
संत टॉमस एक्वीनास मध्ययुगीन विचारधारा की उस परम्परा से सम्बद्ध था जिसे ‘मध्ययुगीन विश्वविद्यालयीवाद’ (मैडियवल स्कॉलेस्टिसिज्म) की संज्ञा दी जाती है। विश्वविद्यालयीवाद से आशय मध्ययुगीन उस चिंतन पद्धति से है जिसने ईसाई धर्म की रूढ़ियों एवं प्राचीन दार्शनिकों से युक्तिमूलक सिद्धांतों में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया है । इस एक्वीनास एक स्कॉलेस्टिकवादी विचारक था। इसीलिए उसके चिन्तन में विवेकाधारित ज्ञान की प्रकार मध्ययुगीन के अनुसार उसने अरस्तूवाद के पुनरुद्भव की कोशिश की। वस्तुत: संत टामस अपेक्षा धर्म की विशेष प्रधानता थी। उसने ईसाइयत के धार्मिक सिद्धांतों और अरस्तू के धर्म निरपेक्ष वैज्ञानिक राजनीतिक चिंतन के मध्य समन्वय का मार्ग अपना कर अपने समय की चुनौतियों का उत्तर देने का प्रयास किया है। इसीलिए मैक्सी ने उसे मध्ययुगीन अरस्तू कहा है। एक्वीनास अपने अध्ययन काल में अरस्तू के ग्रन्थों से परिचित हुआ और बाद में अलबर्ट महान के शिष्य के रूप फॉस्टर ने लिखा है कि “एक्वीनास ने अपने दर्शन में प्रारम्भ से अंत तक यह स्वीकार किया है में उसने अरस्तू का विधिवत अध्ययन किया तथा उसके ग्रन्थों पर उच्चस्तरीय टीकाएँ लिखीं। फॉस्टर ने लिखा है कि “एक्वीनास ने अपने दर्शन में प्रारम्भ से अंत तक यह स्वीकार किया है कि अरस्तूवाद सत्य होते हुए भी पूर्ण सत्य नहीं है। इस प्रकार वह एक्वीनास के दर्शन के प्रत्येक विभाग में यूनानी आधार पर एक ईसाई भवन खड़ा करता है।” वस्तुतः सन्त टॉमस अपने चिंतन में अरस्तू से निम्न रूपों में प्रभावित दिखाई देता है-
1. एक्वीनास ने भी अरस्तू की तरह स्वीकार किया था कि मनुष्य का अंतिम लक्ष्य प्रसन्नता या आनन्द की प्राप्ति है जिसकी उपलब्धि राज्य के बिना सम्भव नहीं है।
2. अरस्तू की भाँति एक्वीनास ने राज्य को व्यक्ति के लिए आवश्यक मानते हुए राज्य के व्यापक कार्य क्षेत्र का समर्थन किया है।
3. अरस्तू की भाँति उसने भी राजनैतिक चिंतन की क्रमबद्धता व वैज्ञानिकताका आधार प्रदान उसे प्रदान किया था।” किया। डनिंग ने इस संबंध में लिखा है कि “उसके प्रयासों से मध्ययुगीन अराजनीतिक चिंतन पुनः वैज्ञानिक दायरे में प्रवेश करता है और उसी स्थिति को प्राप्त कर लेता है जो कि अरस्तू ने उसे प्रदान किया था”
4. अरस्तू के विचारों से प्रभावित होकर उसने मानव की सामाजिकता को निष्ठापूर्वक स्वीकार
करते हुए समाज को मनुष्य के लिए आवश्यक तथा राज्य को प्राकृतिक संस्था माना है।
5. अरस्तू से प्रभावित होने के कारण एक्वीनास ने ईसाई धर्म की इस परम्परागत मान्यता को अस्वीकार कर दिया कि राज्य की उत्पत्ति मनुष्य के पाप एवं पतन का परिणाम है।
6. अरस्तू की भाँति उसने भी व्यक्तिगत सम्पत्ति का समर्थन करते हुए उसके सार्वजनिक उपभोग पर बल दिया है।
7. अरस्तू की भाँति संत टॉमस एक्वीनास ने भी सरकार का वर्गीकरण करते हुए उसके तीन श्रेष्ठ तथा तीन निकृष्ट स्वरूपों का वर्णन किया है। अरस्तू की तरह वह भी मिश्रित शासन व्यवस्था का समर्थन करता है।
8. अरस्तू की तरह टॉमस भी इस सिद्धांत को मानता है कि जो व्यक्ति अन्यों की अपेक्षा उच्चतर गुणों से युक्त हैं उनका अपने से निम्न स्तर वाले लोगों पर शासन करना औचित्यपूर्ण है।
9. अरस्तू की भाँति एक्वीनास की भी मान्यता थी कि एक मनुष्य का बल, बुद्धि, शरीर आदि अनेक अर्थों में दूसरे मनुष्य से भिन्न होता है।
10. अरस्तू की तरह उसने भी दास प्रथा का समर्थन किया है।
इस तरह संत टॉमस अपने चिन्तन में अरस्तू से प्रभावित दिखाई देता है। वह अरस्तू के सिद्धांत रूपी साधन से अपने इस साध्य का समर्थन करना चाहता है कि रोमन कैथोलिक धर्म के सिद्धांत एवं रूढ़ियाँ शाश्वत, सत्य एवं सनातन हैं। अरस्तू तथा ईसाइयत विचारधारा में समन्वय स्थापित करने का प्रयास उसके चिंतन की गुरुता का प्रमुख आधार है । इस कथन के समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं-
1. वह विधि की सर्वोच्चता तथा मानवीय विधि की मान्यता को स्वीकार करते हुए भी उसे शाश्वत एवं दैवी कानून के अधीन मानता है।
2. मानव जीवन के लौकिक एवं पारलौकिक दोनों पक्षों पर बल देते हुए उसने राजसत्ता तथा
धर्मसत्ता में समन्वय स्थापित करने पर जोर दिया है।
3. अरस्तू बुद्धिवादी है और विवेक को सत्य की प्राप्ति का साधन मानता है। टॉमस इससे सहमत होते हुए भी इस धारणा में विश्वास करता है कि कुछ ऐसे सत्य हैं जो मानवीय विवेक से परे हैं और जिन्हें ईश्वरीय श्रद्धा, भक्ति और विश्वास के आधार पर पाया जा सकता है।
4. एक्वीनास दास प्रथा का समर्थक होते हुए भी इसे प्राकृतिक न मानकर सैनिकों में वीरता एवं साहस का संचारण करने वाला साधन मानता है।
5. अरस्तू की नैतिकता संबंधी धारणा को स्वीकार करते हुए भी वह कहता है कि का प्रकृति (सांसारिकता) से परे भी एक लक्ष्य है और वह है मोक्ष की प्राप्ति।
इस प्रकार एक्वीनास ने अपनी रचनाओं में यूनानी, रोमन तथा मध्ययुगीन पादरियों के विचारों में संबंध स्थापित किया तथा अरस्तू आदि अपने पूर्ववर्ती विचारकों को धार्मिक परिधान देकर विवेक पर अवलम्बित तर्क श्रृंखला में रखते हुए एक नया रूप देने का प्रयत्न किया। वह अरस्तू के वैज्ञानिक, राजनीतिक चिंतन का समन्वय एक आस्थावादी ईसाई राजनीतिक चिंतन के साथ करता है। इसीलिए जार्ज कैटलिन ने कहा है, “टॉमस का प्रयास मानव विचारधारा की महान परम्पराओं का मिश्रण करने का है।” इसीलिए मार्टिन ने टॉमस के दर्शन को नितान्त अव्यक्तिगत और सम्पूर्ण रूप से सार्वभौम दर्शन कहा है। उसने अपने सिद्धांतों से एक ऐसे प्रासाद का निर्माण किया है जिसकी दीवारें अरस्तू की विचारधारा की थी, किन्तु शिखर ईसाई धर्म का था। इबन्स्टीन ने लिखा है-” टॉमस एक्वीनास की विचारधारा अरस्तू और ईसाई धर्म का संश्लेषण है।” इस प्रकार संत टॉमस एक महान समन्वयवादी विचारक था। उसने विवेक और आस्था को एक दूसरे का पूरक माना। इसीलिए उसे अरस्तू और उसके विचारों को अरस्तूवाद का ईसाईकरण अथवा स्कॉलेस्टिक विचारक कहा जाता है।
- कार्ल मार्क्स के राजनीतिक विचार Political Thought of Karl Marx in Hindi
- कार्ल मार्क्स के राजनीतिक विचार Political Thought of Karl Marx in Hindi
इसी भी पढ़ें…
- नागरिकशास्त्र नागरिकता का विज्ञान एवं दर्शन है, संक्षेप में लिखिए।
- नागरिकशास्त्र की प्रकृति तथा इसकी उपयोगिता
- प्राचीन भारतीय राजनीति की प्रमुख विशेषताएँ
- प्राचीन एवं आधुनिक राजनीतिक चिन्तन में अन्तर
- नागरिकशास्त्र विज्ञान है अथवा कला या दोनों
- अधिनायक तंत्र किसे कहते हैं?
- संसदीय शासन प्रणाली के गुण एवं दोष
- संसदीय शासन प्रणाली के लक्षण
- अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के लक्षण
- एकात्मक सरकार का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, गुण एवं दोष
- संघात्मक शासन व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? उसकी प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- संघ एवं परिसंघ में अन्तर
- एकात्मक एवं संघात्मक शासन में क्या अन्तर है?