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समाचार शब्द का अर्थ
समाचरों से ही समाचार पत्र बनता है। जहाँ समाचार पत्र में अन्य पाठ्य-सामग्री, टिप्पणियाँ, विज्ञापन, सम्पादक के नाम पत्र, साहित्यिक परिशिष्ट इत्यादि होते हैं, वहाँ समाचार निस्संदेह समाचार पत्र का एक अभिन्न अंग और इसकी आत्मा है।
समाचार को अंग्रेजी में न्यूज कहते हैं। कभी सोचा अपने कि ‘न्यूज’ को न्यूज क्यों कहा जाता है—शायद इसलिए कि ‘समाचार’ को हमेशा ‘न्यू यानी नया होना चाहिए।’ यों भी हो सकता है कि ‘नाथ’, ‘ईस्ट’, ‘वेस्ट’ और ‘साउथ’ (उत्तर, पूर्व, पश्चिम और दक्षिण) चारों दिशाओं से समाचार आते हैं, इसलिए इनके आद्याक्षरों को लेकर न्यूज शब्द की रचना हुई हो। ‘न्यूज’ या ‘समाचार’ की क्या परिभाषा है? इसका उत्तर अपने-अपने ढंग से कई लेखकों ने दिया है। ‘समाचार’ की एक सम्पूर्ण और सर्वतोन्मुखी परिभाषा स्थापित करने का प्रयत्न किया गया है। ब्रिटेन के प्रसिद्ध समाचार ‘मानवेस्टर-गार्डियन’ ने एक बार “समाचार की परिभाषा क्या है” इस पर एक प्रतियोगिता करावी थी जो परिभाषा पुरस्कृत हुई, वह निम्न थी-
“समाचार किसी अनोखी या असाधारण घटना की अविलम्ब सूचना को कहते हैं, जिसके बारे में लोग प्रातः पहले कुछ न जानता हों, लेकिन जिसे तुरन्त ही जानने की अधिक से अधिक लोगों में उति हो।”
समाचार क्या है, का एक रोचक उत्तर पत्रकार यह देते हैं कि किसी कुत्ते ने किसी व्यक्ति को काटा तो कोई विशेष बात नहीं हुई, प्रायः ऐसा होता ही रहता है, लेकिन किसी व्यक्ति ने किसी कुत्ते को काट खाया तो यह समाचार बन जाता है क्योंकि इसमें कुछ-न-कुछ अनोखापन है, जिसे लोग जानना चाहेंगे।
“समाचार’ की और भी बहुत-सी परिभाषाएँ हो सकती हैं, जो ‘समाचारत्व’ के विभिन्न पहलुओं को इंगित करती हैं
“कोई भी ऐसी घटना जिसमें लोगों को दिलचस्पी हो, समाचार है?”
“पाठक जिसे जानना चाहते हैं, वह समाचार है।”
“पर्याप्त संख्या में लोग जिसे जानना चाहें, वह समाचार है। शर्त यह है कि वह सुरुचि तथा प्रतिष्ठा के नियमों का उल्लंघन न करें।”
“”अनेक व्यक्तियों की अभिरुचि जिस सामयिक बात में हो, वह समाचार है।’
“सर्वश्रेष्ठ समाचार वह है जिसमें बहुसंख्यकों की अधिकतम रुचि हो ।”
“सनाचार यह है कि जिसे प्रस्तुत करने में किसी बुद्धिमान (समाचार पत्र के) व्यक्ति को सबसे अधिक सन्तोष हो और जो ऐसा है जिसे प्रस्तुत करने से पत्राचार को कोई आर्थिक लाभ तो न हो, परन्तु जिसके सम्पादन से ही उसकी व्यावसायिक कुशलता का पूरा पूरा पता चलता हो ।”
समाचार के तत्त्व
समाचार के तत्त्व निम्नवत् हैं-
1. नूतनता- नूतनता समाचार का प्रमुख तत्व है। “प्रकृति के यौवन का श्रृंगार करेंगे कभी नबासी फूल” जयशंकर प्रसाद जी की इस उक्ति के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बासी समाचार पत्रों की गौरवान्वित नहीं कर सकते। दैनिक पत्रों में 24 घंटे के तथा साप्ताहिक पत्रों में सप्ताह भर बाद के समाचार छपने से वे महत्त्वपूर्ण नहीं रह जाते अर्थात् नवीन एवं ताजे समाचार ही पाठक को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
2. सत्यता- किसी घटना का सत्यासत्य, परिशुद्ध एवं संतुलित विवरण समाचार को मूल्यवान बनाता है, जैसा कि कहा गया है कि Whole truth and nothing but the truth.” वस्तुतः सत्य को ठेस पहुँचाना समाचार की आत्मा को नष्ट करना है। ‘सर्व सत्ये प्रतिष्ठितम्’ उसका मूल्य पत्र है।
3. सामीप्य- निकटस्थ घटित छोटी घटना दूरस्थ की बड़ी दुर्घटना से अधिक महत्वपूर्ण होती है।
4. सुरुचिपूर्णता- पाठकों की रुचि को प्रभावित करने वाले समाचार अधिक पठनीय होते हैं, क्योंकि ‘यदेव रोचते यस्मै भवेतस्य सुन्दरम् की ही जगत् में मान्यता है।
5. वैयक्तिकता- उच्च पदस्थ व्यक्तियों का भाषण समाचार बन जाता है। सामान्य नागरिक को यदि अप्रत्याशित उपलब्धि हो तो वह भी समाचार है, जैसे कि एक भिखारी को दस लाख की लाटरी का मिलना।
6. संख्या एवं आकार- अधिक संख्या में मृत और घायल यात्रियों से सम्बद्ध भयंकर रेल दुर्घटना महत्त्वपूर्ण होगी, जबकि मामूली चोट वाली घटना समाचार की दृष्टि से गौण है।
7. संशय और रहस्य- संशय और रहस्य से परिपूर्ण समाचारों की ओर पाठकों की अधिक त्रिंशासा होती हैं।
उपर्युकृत तत्त्वों के अतिरिक्त संघर्ष, स्पर्द्धा, उत्तेजना, रोमांस, वैशिष्ट्य, परिणाम, कामेच्छा,कुकृत्य, नाटकीयता, मानवीय गुणों का उद्रेक, असाधारणता, आर्थिक सामाजिक परिवर्तन तथ उद्भावना, समाचार के ऐसे तत्त्व हैं, जिनसे समाचार के प्रति आकर्षण उत्पन्न होता है।
समाचार के विविध प्रकार या रूप
समाचार के विविध प्रकार इस प्रकार हैं-
विज्ञान विचार
विज्ञान आज का युग धर्म है। सफल संवाददाता वही है जो समय की आवाज को सुनता है। कभी वे भी दिन थे जब हमारे समाचार पत्रों में अक्सर राजनीतिक समाचार ही होने थे, क्योंकि उस जमाने में देश के सामने विदेशी शासन से मुक्ति पाना ही एक मात्र लक्ष्य था। जब हमारी सारी शक्ति भारत की सुरक्षा और राष्ट्र के सर्वतोमुखी निर्माण में लगी हुई है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए विज्ञान और अनुसन्धान हमारे सहायक हैं। किसी भी जागरूक संवाददाता के लिए ये समाचार-यचन की नयी दिशा है। इस क्षेत्र में नयी उपलब्धियाँ, जीवनोपयोगी आविष्कार एवं कल्याणकारी खोजें, इत्यादि ऐसे विषय में जिन पर रिपोर्टिंग लाभदायक सिद्ध होगी। विज्ञान से हमारा जीवन कितना सुधरा, नये मूल्यों का निर्माण हुआ, एक नयी संस्कृति ने जन्म लिया, इन सब तथ्यों को उजागर करके पत्रकार विज्ञान की सफलता पर प्रकाश डालता है।
विज्ञान में जनता की बढ़ती हुई दिलचस्पी का एक कारण यह भी है कि हमारे दैनिक एवं आर्थिक जीवन में बिजली, रेडियो, मशीनी उपकरणों, औद्योगिक संयन्त्रों का स्थान पहले की अपेक्षा बहुत बड़ा हो गया है। कृषि का मशीनीकरण, यातायात और संचार साधनों का आधुनिकीकरण द्रुतगति से हो रहा है। हमारे देश में योजनाबद्ध विकास की उत्तरोत्तर प्रगति ने भी वैज्ञानिक अनुसन्धान तथा विज्ञान सम्बन्धी जानकारी के प्रचार को प्रोत्साहित किया है। इसके अतिरिक्त संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ तथा अन्य देशों में अंतरिक्ष में खोजें हुई हैं, और जैसे जैसे मानव द्वारा चन्द्रमा पर अवतरण सोवियत रूस के मानवरहित अन्तरिक्ष यानों की सफलता, अन्तरिक्ष प्रयोगशाला में मानव द्वारा किये गये सफल परीक्षण आदि के समाचार रेडियो, समाचार पत्रों अथवा चलचित्रों द्वारा जनता तक पहुँचते हैं, जनसाधारण में इन विषयों के लिए दिलचस्पी बढ़ जाती है।
संसद समाचार
राष्ट्रीय संसद और राज्यों के विधानमण्डलों की कार्यवाही में जनता की दिलचस्पी होना स्वाभाविक ही है। जिन कानूनों के अधीन हम रहते हैं या व्यवहार करते हैं या जो कर हम देते हैं, अथवा जन-कल्याण और राष्ट्र निर्माण के लिए जो भी योजनाएँ बनती है, इन सबका फैसला संविधान के अनुसार पार्लियामेन्ट या विधानसभा मण्डलों तथा अन्य प्रतिनिधि संस्थाओं में हता है। आजकल के युग में ‘सरकार’ या ‘राज्य’ और ‘समाज’ एवं ‘समुदाय’ समानार्थक हो गये हैं। ‘सरकार’ या ‘व्यवस्था’ के बिना किसी भी सामाजिक जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती, यहाँ तक कि व्यक्ति की सुरक्षा और सामान्य जीवन की सुविधा भी किसी-न-किसी रूप में शासन व्यवस्था के बिना नितान्त असम्भव है। इसलिए सभी लोग संसद और विधानमण्डलों की बहनों अथवा फैसलों के बारे में नवीनतम और साधिकार एवं विश्वसनीय समाचारों की माँग करते हैं।
समाचार और संसद
प्रेस और पार्लियामेन्ट एक-दूसरे के पूरक हैं और सहायक भी हैं। पार्लियामेन्ट के समाचारों से समाचार पत्रों के कॉलम-के-कॉलम भरे होते हैं। पार्लियामेण्ट को प्रेस से अपने काम में बड़ी सहायता मिलती है। जनता की क्या शिकायतें समस्याएँ या कठिनाइयाँ हैं, इसके बारे में संसद सदस्य समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों, सम्पादकीय टिप्पणियों तथा विशेष लेखों से जानकारी प्राप्त करते हैं। भ्रष्टाचार, महंगाई, पर राष्ट्रनीति, देश की सुरक्षा, अपराध, जन स्वास्थ्य, सामाजिक गतिविधियाँ— इन सब मामलों में वस्तुस्थिति क्या है? जनता की क्या प्रक्रिया है? पार्लियामेन्ट और विधानमण्डलों के सदस्य इन मामलों में समाचार पत्रों के पथ-प्रदर्शन प्राप्त करते हैं। सरकार और विपक्ष दोनों संसदीय सत्र के लिए अपना-अपना प्रोग्राम तैयार करते समय समाचार पत्रों का अवलोकन तो करते ही हैं।
प्रेस में पार्लियामेण्ट या विधानमण्डलों की कार्यवाही प्रकाशित करने की कई एक मर्यादाएं हैं जिनका पालन करना संवाददाताओं के लिए नितान्त आवश्यक है। संविधान के अनुसार पार्लियामेन्ट और उसी के अनुरूप राज्यों के विधानमण्डलों को यह पूर्ण अधिकार प्राप्त हैं कि वे आवश्यकता पड़ने पर जिस तरह भी उचित समझें अपनी कार्यवाही के समाचार पत्रों द्वारा प्रकाशन पर आंशिक प्रतिबन्ध लगा दें या पूर्णरूपेण उसका प्रकाशन एवं प्रसारण निषिद्ध कर दें। कार्यवाही की रिपोर्ट सच्ची या यथार्थ भी हो तो भी पार्लियामेण्ट उसका प्रकाशन रोक देने का अधिकार रखती है।
अपराध समाचार
कई समाचार पत्रों में अक्सर मुख्य पृष्ठ पर चोरी, डकैती, हत्या, बलात्कार, अपहरण, तस्कर व्यापार, भ्रष्टाचार, घूसखोरी, चोरबाजारी अथवा अन्य प्रकार की समाज-विरोधी घटनाओं या अपराधों को नियमित रूप से छापने की परिपाटी चली हुई है। जालन्धर के उर्दू, हिन्दी और पंजाबी समाचार पत्र इस प्रकार के समाचारों के लिए प्रसिद्ध हैं।
इसका एक कारण भी है— वहयह कि अपराध के समाचारों को बहुत से लोग बड़े शौक और दिलचस्पी के साथ पढ़ते हैं। उनके शीर्षक भी आकर्षक और मनोरंजक होते हैं। समाचार भी चटपटे होते हैं। समाचार-पत्र हाथों-हाथ बिक जाते हैं। प्रश्न अपराधों के समाचारों के प्रकाशन के नैतिक औचित्य का नहीं, क्योंकि यह भी सिद्ध किया जाता है कि अपराधों के समाचारों को दबाना भी न्याय तथा नीति के विरुद्ध है। वस्तुस्थिति की ठीक-ठीक जानकारी को जनता तक पहुँचने देना भी अनुचित है। वैसे भी सिद्धान्त की बात है कि अपराध भी किसी-न-किसी रूप में ‘समाचार’ की परिभाषा के अन्तर्गत आते हैं और समाचार जनता तक पहुँचाना समाचार पत्र का मुख्य काम है। आवश्यकता केवल इस बात की है कि अपराध समाचार इस ढंग से जनता के सामने प्रस्तुत किये जायें जिससे समाज विरोधी तत्त्वों को बल न मिले अथवा समुदाय में अपराध प्रवृत्ति उत्तेजित न होने पाये। समाचार की भाषा सन्तुलित हो । नाटकीय अथवा अतिरंजित, रोमांटिक या मसालेदार वर्णन या चित्रण पाठकों को, विशेषतया किशोरावस्था के पाठकों को पथ भ्रष्ट कर देते हैं। इस तरह कई एक विशेष परिस्थितियाँ खड़ी हो जाती है, कई बात को अपराध समाचारों के विस्तृत और चटपटे वर्णन से अपराधियों को पकड़ने या उनके विरुद्ध कानूनी करने में मुश्किलें पैदा हो जाती हैं।
खेल समाचार
स्वतन्त्रता प्राप्ति से पहले क्रीड़ा क्षेत्र के समाचार केवल अंग्रेजी समाचार पत्रों में ही प्रकाशित हुआ करते थे। हॉकी, फुटबाल, क्रिकेट, गोल्फ या घुड़दौड़ आदि खेलों में अंग्रेजी भाषा का ही प्रयोग होता था। इन खेलों को अंग्रेजी पढ़े-लिखे फौजी या सिविल अफसर या उनके सम्पर्क में आने वाले धनीमानी वर्ग के गौर-सरकारी भारतीय अथवा तत्कालीन देशी रियासतों के राजा और सामन्तवर्ग के लोग खेलते थे। अंग्रेजी समाचार पत्र वैसे भी भारतीय भाषाओं में छपने वाले समाचार पत्रों की अपेक्षा अधिक साधन सम्पन्न होते थे और उन समाचार पत्रों में पृष्ठों की संख्या भी अधिक होती थी, इसलिए वे एक-न-एक सचित्र पृष्ठ क्रीड़ा जगत के लिए सुरक्षित रखने में समर्थ होते थे। उन्हें पाठकों की भी कोई कमी नहीं थी क्योंकि स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी भाषा और वेशभूषा या बोलचाल की तरह अंग्रेजी तथा यूरोपीय खेलों का भी प्राधान्य था।
सचित्र समाचार
“दस हजार शब्दों वाले लम्बे-चौड़े विवरणों की अपेक्षा एक अच्छा चित्र अधिक प्रभावकारी होता है।”- एक चीनी लोकोक्ति।
कुछेक घटनाएँ ही ऐसी होती हैं कि बड़े-बड़े लेखक भी उनका सम्यक् वर्णन करने के लिए अपनी भाषा और शब्द भण्डार को अपर्याप्त मानते हैं। ऐसी स्थितियाँ वर्णनातीत होती है। साहित्यकारों अथवा संवादादाताओं का यह अनुभव है कि हमारी लेखनी कितनी सशक्त और सूक्ष्म क्यों न हो उसमें उतना प्रभाव नहीं हो सकता जो एक दृश्य के फोटोग्राफ या चित्रकारी में होता है।
रोजगार समाचार
किसी शहर में नया कारखाना खुल जाने से उसकी काया ही पलट जाती है। सबसे बड़ी बात तो यह होती है कि बहुत से नये लोग वहाँ आकर आबाद हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें यहाँ रोजगार मिल जाता है। लुधियाना (पंजाब) पहले हौजरी उद्योग के केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध था, अब वहाँ साइकल और साइकल पार्ट्स का उद्योग भी खूब चल निकला है। रोजगार के समाचरों में पाठकों की दिलचस्पी सदा ही बनी रहती है। एक नया कारखाना लग जाने से, या कोई नया औद्योगिक संस्थान बन जाने से केवल यही लोग लाभान्वित नहीं होते जो इससे सीधे सम्बद्ध होते हैं। एक नयी आबादी बनने से दूसरी लोगों को भी फायदा पहुँचता है।
उद्योग समाचार
नाईलोन के प्रयोग से सूती कपड़े की मार्केट पर किस तरह कब्जा कर लिया, दूध के यन्त्रों के लग जाने से डेयरी उद्योग को कितना प्रोत्साहन मिला? अम्बर चर्खे के आविष्कार से खादी के उत्पादन में कितनी वृद्धि हुई। ऐसी सभी समस्याओं की जाँच परख व्यापारिक संवाददाता करते हैं, क्योंकि माल के उत्पादक और उपभोक्ता सभी के हित में है कि वे स्थिति से भली प्रकार अवगत रहें।
व्यक्तिगत व्यापारिक समाचार
व्यापार और कारोबार भी एक बड़े साहस और जोखि का काम है। इस मैदान में भी सिक्नदर महान् और नेपोलियन बोनापार्ट जैसी विभूतियाँ होती है, केवल रणक्षेत्र में ही नहीं।
व्यापार, उद्योग और कृषि के क्षेत्रों में अनेकों प्रेरणाप्रद उदाहरण मिलते हैं, जो अध्यवसाय और साहसिकता के लिए अनुकरणीय हो सकते हैं। व्यापार वार्ता में पत्रकार सफल उद्योगपतियों और उद्यमकर्ताओं की व्यावसायिक उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हैं। व्यापारियों और कारोबारी फर्मों के बारे में ठीक-ठीक जानकारी प्राप्त करने के लिए विभिन्न व्यवसायों या उद्योगों द्वारा उप-सम्पादकों की ड्यूटी लगी रहती है। ये उप-सम्पादक व्यापार समाचारों से निपटने में पर्याप्त दक्षता और अनुभव रखते हैं।
वस्तुतः कीमतों, भावों और दरों का संग्रह करना ही व्यापार समाचार संकलन नहीं कहलाता। वे समाचार पाठकों के लिए उपयोगी तभी लगते हैं जब इनका विवेचन भी साथ-साथ प्रस्तुत किया जाये, जिससे पाठक या व्यापारी कुछ मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें।
समाचार संग्रह क्षेत्र और उनके आधार
बहुत से संवाददाता यह समझते हैं कि समाचार उनके पास स्वतः ही पहुँच जाएँगे इसलिए उन्हें संकलन के लिए विशेष प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं। उनका विचार है कि एक बार उनकी धाक बैठ जाये या ‘पोजीशन’ बन जाये तो सभी लोग उनके पास अपने समाचार (या शिकायतें, मांगें और समस्याएँ) लेकर आयेंगे और चाहेंगे कि उनके समाचार छापे जायें। राजनीतिक दल, सामाजिक, सांस्कृतिक व्यावसायिक संस्थायें और सरकारी विभाग या इन्हीं से सम्बद्ध पब्लिसिटी अभिकरण बाकायदा, सूचनायें तैयार करके उनको प्रकाशनार्थ भेजेंगे अथवा प्रेस कान्फ्रेंस बुलायेंगे। यही कारण है कि स्थिति ऐसी भी हो जाती है कि समाचार संकलन के लिए जो प्रयत्न एक स्वतन्त्र, जागरूक और कुशल संवाददाता से अपेक्षित है, उनके प्रति पत्रकार प्रायः उदासीन हो जाते हैं। उनके समाचारों में वह नवीनता, ताजगी, विशिष्टता और आत्मविश्वास नहीं दिखायी देता जो परिश्रम और अध्यवसाय में ही पैदा होता है। आजकल के प्रतिस्पर्द्धा प्रधान युग में विभिन्न समाचार पत्र, समाचार समितियों सदा ही इस बात के लिए प्रयत्नशील रहती हैं कि उनके लेखों और समाचारों में कुछ ऐसा पहलू हो जिससे उनका समाचार पत्र या समाचार एजेन्सी का अपना व्यक्तित्व उभर सके, इसलिए यह आवश्यक है कि संवाददाता उन सूत्रों और श्रोतों का विशेष ध्यान रखे, जिनकी सहायता से समाचार उनके पास आते हैं। संवाददाता को समाचार कहाँ से मिलते हैं? समाचार न तो उसकी कल्पना की उपज होते हैं और न ही किसी ऐसे ठोस माल को समाचार कहते हैं, जिसे कोई कहीं से उठा ले। लोग, किसान, मजदूर, दफ्तर के बाबू, मन्त्रीगण, स्त्री, पुरुष, बच्चे, उच्चाधिकारी सभी वर्ग अर्थात् समस्त समुदाय समाचारों का स्रोत हैं। शर्त केवल यह है कि इनके पास कुछ ऐसी बात कहने को या प्रकाशित कराने को है जिस पर समाचार की परिभाषा चरितार्थ होती है।
तो फिर संवाददाता इन आधारों से समाचार कैसे प्राप्त करते हैं। इनका सम्यक् और सफल दोहन वही संवाददाता कर सकता है जो मानव स्वभाव को समझने में सक्षम हो और दूसरी के प्रति व्यवहार कुशलता का परिचय दे सके। मानव प्रकृति कई रंगरूप दिखाती है– कहीं जटिल और दुरूह दिखायी देती है तो कई बार इसकी चित्ताकर्षक और हृदयग्राही झलकियाँ भी देखने को मिलती हैं। इस तरह समाचारों के आधारों का पूरा-पूरा लाभ उठाना अपने में ही एक सम्पूर्ण कला है और प्रेस रिपोर्टिंग का उतना ही महत्त्वपूर्ण पहलू है जितना कि समाचार लेखन या सम्प्रेषण ।
समाचारों के साथ सम्पर्क बनाने में लोक व्यवहार और मेल-जोल की आवश्यकता है, आपके समाचरा-पत्र या समाचार समितियों ने आपकी ड्यूटी संसद, पर राष्ट्र, मंत्रालय, सर्वोच्च न्यायालय, किसी बड़े नगर निगम या उद्योग या परियोजना आदि, जहाँ से समाचार प्राप्त होने की सम्भावना है, लगाई है। आप अपने क्षेत्र या हलके से अच्छी तरह परिचित हो जायें।
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