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समावेशी शिक्षा- परिभाषा, आवश्यकताएँ, कार्यक्षेत्र तथा समावेशी शिक्षा में अवरोध

समावेशी शिक्षा
समावेशी शिक्षा

समावेशी शिक्षा से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by inclusive education?)

समावेशी शिक्षा वह शिक्षा होती है, जिसके द्वारा विशिष्ट क्षमता वाले बालक जैसे मन्दबुद्धि, अन्धे बालक, बहरे बालक तथा प्रतिभाशाली बालकों को शिक्षा प्रदान किया जाता है।

समावेशी शिक्षा की परिभाषा

स्टीफन तथा ब्लैकहर्ट के अनुसार “शिक्षा की मुख्य धारा का अर्थ बाधित बालकों की सामान्य कक्षाओं में शिक्षण व्यवस्था करना है। यह समान अवसर मनोवैज्ञानिक सोच पर आधारित है जो व्यक्तिगत योजना के द्वारा उपयुक्त सामाजिक मानकीयकरण और अधिगम को बढ़ावा देती है। “

यरशेल के अनुसार – ” समावेशी शिक्षा के कुछ कारण योग्यता, लिंग, प्रजाति, जाति, भाषा, चिन्ता स्तर, सामाजिक-आर्थिक स्तर, विकलांगता, लिंग व्यवहार या धर्म से सम्बन्धित होते हैं।

शिक्षाशास्त्री के अनुसार “समावेशी शिक्षा को एक आधुनिक सोच की तरह परिभाषित किया जा सकता है, जो कि शिक्षा को अपने में सिमेट हुए दृष्टिकोण से मुक्त करती है और ऊपर उठने के लिये प्रोत्साहित करती है।

समावेशी शिक्षा की आवश्यकताएँ (Needs of Inclusive Education)

कुछ ही समय पहले, मनोवैज्ञानिकों ने विचार दिया है कि समावेशी शिक्षा हमारे सामान्य विद्यालयों में दी जाये जिससे सभी बालकों को शिक्षा के समान अवसर मिलें। शिक्षाविद् भी इस प्रकार की शिक्षा के पक्षधर हैं तथा इसे निम्न कारणों से उचित मानते हैं-

1. सामान्य मानसिक विकास- विशिष्ट शिक्षा में मानसिक जटिलता मुख्य है। अपंग बालक अपने आपको दूसरे बालकों की अपेक्षा तुच्छ तथा हीन समझते हैं जिसके कारण उनके साथ पृथकता से व्यवहार किया जा रहा है। समावेशी शिक्षा व्यवस्था में, अपंगों को सामान्य बालकों के साथ मानसिक रूप से प्रगति करने का अवसर प्रदान किया जाता है। प्रत्येक बालक सोचता है कि वह किसी भी प्रकार से किसी अन्य बच्चे से कम नहीं है। – इस प्रकार समावेशी शिक्षा पद्धति बालकों की सामान्य मानसिक प्रगति को अग्रसर करती है।

2. सामाजिक एकीकरण सुनिश्चित करती है- अपंग बालकों में कुछ सामाजिक गुण बहुत संगत होते हैं। जब वे सामान्य बालकों के साथ शिक्षा पाते हैं। अपंग बालक अधिक संख्या में सामान्य बालकों का संग पाते हैं तथा एकीकरणता के कारण वे सामाजिक गुणों को अन्य बालकों के साथ ग्रहण करते हैं। उनमें सामाजिक, नैतिक, गुण, प्रेम, सहानुभूति, आपसी सहयोग आदि गुणों का विकास होता है। विशिष्ट शिक्षा-व्यवस्था में छात्र केवल विशिष्ट ध्यान ही नहीं परंतु विस्तार में शिक्षण तथा सामाजिक स्पर्धा की भावना विकसित होती है।

3. समावेशी शिक्षा कम खर्चीली- विशिष्ट शिक्षा अधिक महँगी तथा खर्चीली है। इसके अलावा विशिष्ट अध्यापक एवं शिक्षाविदों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम भी अधिक समय लेते हैं। दूसरे दृष्टिकोण से समावेशी शिक्षा कम खर्चीली तथा लाभदायक है। विशिष्ट शिक्षा संस्था को बनाने तथा शिक्षण कार्य प्रारम्भ करने के लिये अन्य कई स्रोतों से भी सहायता लेनी पड़ती है; जैसे- प्रशिक्षित अध्यापक, विशेषज्ञ, चिकित्सक (Physiotherapist) आदि। अपंग बालक की सामान्य कक्षा में शिक्षा पर कम खर्च आता है।

4. समावेशी शिक्षा के माध्यम से एकीकरण सम्भव है- विशिष्ट शिक्षण व्यवस्था की अपेक्षा समावेशी शिक्षण व्यवस्था में सामाजिक विचार-विमर्श अधिक किये जाते हैं, अर्थात् उच्चारण अधिक है। अपंग तथा सामान्य बालक में सामान्य शिक्षा के अन्तर्गत एक प्राकृतिक वातावरण बनाया जाता है। इस वातावरण में अपने सहपाठियों से सीखना, स्वीकार करना तथा स्वयं को दूसरों द्वारा स्वीकार कराया जाना समावेशी शिक्षा द्वारा सम्भव है। सामान्य वातावरण में छात्र उपयुक्तता की भावना तथा भावनात्मक समायोजन का विकास होता है।

5. शैक्षिक एकीकरण सम्भव- शैक्षिक योग्यता सामान्यता समावेशी शिक्षा के वातावरण द्वारा सम्भव है। शिक्षाविदों का ऐसा विश्वास है कि विशिष्ट शिक्षा संस्था एक बालक के प्रवेश के पश्चात् समान शैक्षिक योग्यता रखने वाले अपंग बालक उनके गुणों को ग्रहण करता है। शिक्षाविदों को यह भी मालूम होता है कि विशिष्ट विद्यालयों में छात्र तथा अपंग छात्र शिक्षा के पूर्ण ग्राही (ग्रहण करने वाले) नहीं होते। सामान्य विद्यालयों में बाधित छात्रों को प्रवेश दिलाने के कारण, वह ठीक प्रकार से शिक्षण ग्रहण करने में असमर्थ होते हैं। एक प्रकार से कहा जा सकता है कि लचीले वातावरण तथा आधुनिक पाठ्यक्रम के साथ समावेशी शिक्षा शैक्षिक एकीकरण लाती है।

समावेशी शिक्षा का कार्यक्षेत्र

समावेशी शिक्षा शारीरिक रूप से बाधित बालकों को निम्न प्रकार की शिक्षण सुविधाएँ उपलब्ध कराती है-

(i) अस्थिबाधित बालक (ii) श्रवणबाधित बालक। (iii) दृष्टिबाधित अथवा एक आँख वाले बालक (iv) मानसिक मंदित बालक जो शिक्षा के योग्य हो । (v) विभिन्न प्रकार से अपंग बालक (श्रवणबाधित, दृष्टिबाधित, अस्थि अपंग आदि) इन्हें बिहुबधित भी कहते हैं (vi) अधिगम असमर्थी बालक। (vii) अन्धे छात्र जिन्होंने ‘ब्रेल’ में पढ़ने और लिखने का शिक्षण प्राप्त कर लिया है तथा उन्हें विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है। (viii) बधिर बालक जिन्होंने सम्प्रेषण में निपुणता तथा पढ़ना सीख लिया है।

समावेशी शिक्षा क्षेत्र में सामान्य स्कूल जाने से पहले अपंग बालक का प्रशिक्षण, माता-पिता को समझाना, प्रारम्भिक शिक्षा तथा उच्च शिक्षा +2 स्तर और व्यावसायिक शिक्षा भी सम्मिलित है।

समावेशी शिक्षा में अवरोध

समावेशी शिक्षा प्रदान करने में अनेक प्रकार के अवरोधों का सामना करना पड़ता है। यह अवरोध कई प्रकार के होते हैं, जैसे- व्यवहारात्मक, सामाजिक तथा शिक्षा से संबंधित अवरोध इसे निम्न रूप से देख सकते हैं-

1. व्यवहारात्मक अवरोध (Attitudinal Barriers) – व्यवहारात्मक अवरोधों से तात्पर्य यह है कि विशिष्ट बालक सदैव ही विचित्र तरह के व्यवहार दिखाते हैं। जैसे कि बात-बात पर चिल्लाना, अपने को अन्य बालकों से नीचा समझना तथा कई बार प्रतिभाशाली बालकों के द्वारा अपने को अन्य सभी बालकों से ऊँचा समझा जाता है। वह सोचते हैं कि हम ही सभी कुछ कर सकते हैं, इन्हें ही व्यवहारात्मक अवरोध कहा जाता है। यह अवरोध प्रत्येक विशिष्ट बालक में अलग-अलग प्रकार के पाये जाते हैं जैसे- श्रवण बाधितों में ऊँचा सुनने के कारण वह अपने को कही गई बातों को सही प्रकार से सुन नहीं पाते तथा उसके अनुसार व्यवहार नहीं कर पाते हैं । इस कारण इन बच्चों में व्यवहारात्मक समस्या उत्पन्न हो जाती है।

2. सामाजिक अवरोध (Social Barriers) – सामाजिक अवरोधों से तात्पर्य यह है कि जब विशिष्ट बालकों को समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है तो जो बाधा अथवा अवरोध उत्पन्न होते हैं, वह सामाजिक अवरोध कहलाते हैं । प्रायः देखा जाता है कि , मनुष्य समाज के सम्पर्क में जन्म से मृत्यु तक रहता है। इसलिए ही अरस्तु ने मनुष्य को एक सामाजिक प्राणी माना है। परंतु जब कोई बालक विचित्रता लिये उत्पन्न होता है, तो यह समाज ही उसे नकारात्मक दृष्टिकोण से देखता है, तथा उसके लिए अनेक अवरोध उत्पन्न करता है। इस कारण ही समावेशी शिक्षा प्रदान करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

3. शैक्षिक व्यवधान (Educational Barriers) – विशिष्ट बालकों को अनेक प्रकार के शैक्षिक व्यवधानों का भी सामना करना पड़ता है। यह शैक्षिक व्यवधान प्रत्येक बालक की विशिष्टता के आधार पर भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं जैसे प्रतिभाशाली बालकों को यदि सामान्य बालकों की कक्षा में शिक्षा दी जाती है तो अवसाद ग्रस्त हो जाता है।

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shubham yadav

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