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सामाजिक अनुसंधान में समस्या निर्माण किस प्रकार किया जाता है।
समस्या का निर्माण
सामाजिक अनुसन्धान- कार्य में सर्वप्रथम समस्या का चुनाव किया जाता है, जैसा कि हम बता चुके हैं। समस्या निम्नांकित दो प्रकार की हो सकती है-
(1) व्यक्तिगत उद्देश्य से सम्बन्धित तथा
(2) सामाजिक उद्देश्य से सम्बन्धित।
व्यक्तिगत उद्देश्य से सम्बन्धित समस्या का आधार व्यक्तिगत उद्देश्य होता है। सामाजिक उद्देश्य से सम्बन्धित समस्या का सम्बन्ध समाज की किसी कुरीति (बाल-विवाह, विधवा पुनर्विवाह निषेध दहेज आदि) से हो सकता है। समस्या उपर्युक्त में से किसी से भी सम्बन्धित हो, उसका चयन करते समय निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी आवश्यक हैं-
(1) समस्या व्यक्ति की रूचि के अनुसार होनी चाहिए।
(2) सामाजिक समस्या समाज के किसी क्षेत्र में सम्बन्धित होनी चाहिए।
(3) अनुसन्धानकर्ता को समस्या के कुछ पक्षों की जानकारी होनी चाहिए।
(4) अनुसन्धानकर्ता को ऐसी समस्या का चयन करना चाहिए जो व्यावहारिक हो, अर्थात उपयोगी हो। उपयोगी दृष्टिकोण से किया गया अनुसन्धान सामाजिक समस्या के समाधान के फलस्वरूप सामाजिक कल्याण में उपयोगी होता है। इससे समस्या उपयोगी बन जाती है तथा समाज का कल्याण होता है।
सामाजिक अनुसन्धान में समस्या का निर्माण करते समय निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखना आवश्यक है-
(1) समाज में अनेक समस्याएँ होती हैं। व्यक्ति इनसे घिरा रहता है। वह उनको हल करना चाहता है। इन समस्याओं के कारणों, उनकी प्रकृति आदि के विषय में व्यक्ति जानकारी करना चाहता है। अतः समस्या ऐसी होनी चाहिए जो व्यक्ति में जिज्ञासा उत्पन्न करे। वह यह खोज सके कि कौन-सी परिस्थितियाँ ऐसी समस्याओं को जन्म देती हैं।
(2) समाज में कभी-कभी अप्रत्याशित परिस्थितियाँ हो जाती हैं। ये परिस्थितियाँ अनेक घटनाओं को जन्म देती हैं। व्यक्ति इन घटनाओं के विषय में नहीं जानता है । परन्तु ये घटनाएँ उसके मस्तिष्क पर भारी दबाव डालती हैं। समस्या ऐसी ही हो व्यक्ति के मस्तिष्क को क्रियाशील कर दे।
(3) समस्या नवीन होनी चाहिए।
(4) समस्या सामाजिक जीवन से सम्बन्धित होनी चाहिए।
(5) समस्या ऐसी होनी चाहिए जिसका वैज्ञानिक पद्धति से अध्ययन किया जा सके।
(6) समस्या उपयोगी होनी चाहिए।
(7) समस्या ऐसी होनी चाहिए जिसका अध्ययन बिना पक्षपात के किया जा सके।
(8) समस्या के निर्माण के साथ ही उपकल्पना का भी निर्माण होता है। अतः समस्या ऐसी हो जिसका उपकल्पना से भी सम्बन्ध हो।
(9) समस्या का उद्देश्य व्यावहारिक होना चाहिए।
(10) समस्या के अध्ययन से निकाले गए निष्कर्षों की यदि आवश्यकता हो तो परीक्षा और पुनर्परीक्षा (Test and Retest) की जा सके।
(11) समस्या ऐसी हो जिस पर अनुसन्धान कार्य आरम्भ करने से पूर्व समस्या से सम्बन्धित प्रारम्भिक ज्ञान प्राप्त किया जा सके। प्रारम्भिक ज्ञान से आशय है कि समस्या से सम्बन्धित सूचना को किन-किन साधनों से संकलित किया जाएगा। निदर्शन के चयन का क्या आधार होगा।
(12) समस्या का अध्ययन करने में कितना समय लगेगा, इसका अनुमान लगाया जाना चाहिए।
(13) समस्या के उद्देश्य स्पष्ट होने चाहिए।
(14) समस्या के अध्ययन क्षेत्र की जानकारी की जा सकें।
(15) सामाजिक घटना की प्रकृति की प्रथम तथा एक महत्वपूर्ण विशेषता इसका जटिल होना है। समाज सामाजिक सम्बन्धों का प्राण है। समाज में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। सामाजिक घटनाओं में एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्नता पायी जाती है। समाज में अन्तःक्रियाएँ होती रहती हैं। इसी कारण समाज गतिशील रहता है। समाज का प्रत्येक भाग अत्यन्त जटिल होता है। भारत में पारिवारिक रूप में अमेरिका, रूस, जर्मनी, फ्रांस आदि से भिन्नता पायी जाती है। हमारे भारत में ही उत्तर भारत की वैवाहिक प्रथाएँ दक्षिणी भारत की वैवाहिक प्रथाओं से भिन्न होती हैं। खान-पान तथा वस्त्रों का चयन भी भिन्न है। यही कारण है कि इन विविध सामाजिक घटनाओं के मध्य कार्य कारण का सम्बन्ध स्थापित करने में अत्यन्त असुविधा होती है।
अतः समस्या की प्रकृति की जानकारी अति आवश्यक होती है। समस्या ऐसी हो जिसकी प्रकृति की जानकारी की जा सके।
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