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सामान्य वितरण का अर्थ | सामान्य वितरण वक्र की विशेषताएँ

सामान्य वितरण का अर्थ
सामान्य वितरण का अर्थ

सामान्य वितरण का अर्थ (Meaning of Normal Distribution)

आवृत्ति वितरण तलिका (Frequency Distribution Table) छात्रों द्वारा किसी परीक्षण पर प्राप्त मूल आँकड़ों (Raw Scores) के आधार पर तैयार की जाती है। इन आवृत्तियों वितरणों या वक्रों को हम प्राप्य वितरण तथा वक्र कहते हैं। जैसे-जैसे छात्रों के समूह का आकार (N) बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे आवृत्तियों वक्र एक उल्टी घंटी (Inverted Bell) के आकार का स्वरूप प्राप्त करता जाता है जिसमें अधिकतर आवृत्तियाँ केन्द्र में स्थित होती हैं तथा जैसे-जैसे हम इस वक्र के दोनों छोरों (Ends) की ओर चलते जाते हैं आवृत्तियों की संख्या घटती चली जाती है। दोनों छोरों के अन्त में सबसे कम आवृत्तियों रह जाती हैं। साथ ही मध्य बिन्दु के दोनों ओर अंक-वितरण की स्थिति में समानता रहती है।

संक्षेप में, यदि किसी आवृत्ति वितरण तालिका के आँकड़ें इस प्रकार व्यवस्थित हों कि उन्हें एक रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित करने पर एक उल्टी घंटी (Inverted Bell) की सी आकृतिक बने तो हम उस प्रकार के अंक-वितरण को सामान्य वितरण (Normal Distribution) कहते हैं तथा इस प्रकार प्राप्त वक्र को सामान्य वितरण वक्र (Normal Distribution Curve) कहते हैं।

उदाहरणार्थ मान लीजिये 55 छात्रों की बुद्धि लब्धि का आवृत्ति वितरण निम्न प्रकार है।

उपरोक्त रेखाचित्रीय निरूपण को वक्र रूप में निम्न प्रकार किया जा सकता है। चित्र में यह स्पष्ट है कि D वितरण का मध्य बिन्दु है तथा लम्ब (CD) वितरण को दो बराबर भागों में विभक्त करता है। कहने का तात्पर्य यह है कि सम्पूर्ण वितरण ABCD दो समान भागों ACD तथा BCD में विभक्त हो जाता है। ये दोनों भाग आकृतिक एवं क्षेत्रफल की दृष्टि से लगभग समान होते हैं। यही सामान्य वितरण की प्रमुख विशेषता है। यद्यपि व्यवहार में सामान्य वक्र की प्राप्ति सम्भव नहीं है तथा कोई भी चर (Variable) पूर्ण रूप से सामान्य वक्र के रूप में वितरित नहीं होता है, फिर भी प्राप्य वक्रों की प्रवृत्ति सामान्य वक्र के आकार को प्राप्त करने की होती है तथा जैसे-जैसे N बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे प्राप्य आवृत्ति वक्र सामान्य वक्र के अनुरूप होता जाता हैं।

A Normal Curve

अतिरिक्त चित्र से यह स्पष्ट है कि सबसे अधिक आँकड़े D बिन्दु के समीप एकत्रित हुए हैं इसके दोनों ओर अंकों का प्रसार पूर्णतया समान है। वक्र के दोनों छोरों की ओर जैसे-जैसे हम बढ़ते जाते हैं, वैसे-वैसे आँकड़ों की संख्या बराबर अनुपात में कम होती जाती है। परिणामस्वरूप वक्र के दोनों छोरों पर बहुत कम अंक रह जाते हैं। हम देखते हैं कि बिन्दु D पर माध्य 100 है तथा इसके दोनों ओर 30-30 आँकड़े हैं। अगर दाहिनी ओर 30 आँकड़े बढ़े हैं तो बायीं ओर 30 आँकड़ें कम हुए हैं। दाहिनी ओर आँकड़े 10-10 की संख्या की क्रमशः बढ़ते जाते हैं तथा ठीक इसी प्रकार बायीं ओर 10-10 की संख्या में घटते चले जाते हैं लेकिन आँकड़े का प्रसार (अर्थात् 30) एक समान की बना रहता है । माध्य की दाहिनी और अर्थात D से B तक ( 130-100) = 30 आँकड़े बढ़े हैं तथा ओर अर्थात् D से A तक (700 – 100) = – 30 आँकड़े कम हुए हैं। इस प्रकार दोनों ओर बिल्कुल समानता है। जैसा D के एक ओर है वैसा ही दूसरी ओर है। D के दोनों ओर आँकड़े बराबर दूरी तक हटे हुए हैं एक ओर आँकड़े 100 से जितने कम हैं दूसरी ओर 100 से उतने ही अधिक हैं। सम-वितरण का यही अर्थ है।

सामान्य वितरण वक्र की विशेषताएँ (Characteristics of a Normal Distribution Curve)

सामान्य-वितरण वक्र एक सैद्धान्तिक तथा आदर्श वक्र है, जिसकी व्यवहार में प्राप्ति सम्भव नहीं है। व्यावहारिक समस्याओं के अध्ययन में विभिन्न चर राशियों को सामान्य रूप से वितरित (Normally Distribute) मान लिया जाता है तथा सामान्य-वक्र की विशेषताओं के आधार पर सम्बन्धित समस्याओं को हल करने का प्रयास किया जाता है। (A Normal Porbability Curve (NPC) is a well defined Uni-model, shaped Curve with Skewness as zero and Kurtosis equal to 263.)

सामान्य वितरण वक्र की प्रमुख विशेषतायें निम्न हैं:

1. सम-वितरण एक वास्तविक वक्र नहीं है अपितु यह एक गणितीय-अनुमान (Mathematical Model) ही है। दूसरे शब्दों में यह वक्र अपने आप में आदर्श वक्र होता है। It is a uni-model curve.

2. इस वक्र का आकार उल्टी घंटी (Inverted Bell) के समान होता है। (It is a Bell-shaped curve, combining both concava and convex curves.

3. इस वक्र में मध्यमान, माध्यिका भूयिष्ठक (बहुलांक) एक ही बिन्दु पर केन्द्रित होते हैं। (In this curve the values of mean, median and mode, coincide i.e., most of the scores cluster in the middle of the curve.)

4. यह वक्र सम्मितीय होता है। मध्यवर्ती मान के इधर उधर वर्ग अन्तरालों में आवृत्तियाँ बराबर होती हैं। (It is perfectly symmetrical with 50 percent of the score in each half of the curve.)

5. इस वक्र के लिये वैषम्य ( Skkewness) का मान शून्य होता है। It is a curve with skewness zero. i.e,

6. इस वक्र के लिये कुकुद – वक्रता (Kurtosis) का मान 263 के बराबर होता है। It is a curve with kurthosis equal to .263. i.e.

7. यह वक्र आधार रेखा को अनन्त पर स्पर्श करता है।

(NPC meets with X-axis or Horizontal Axis or Base at infinity. The curve is asymptotic to the base line.)

8. यद्यपि सैद्धान्तिक रूप में (Theoretically) यह वक्र आधार पर रेखा को अनन्त पर स्पर्श करता हुआ माना गया है (Asymtotically) किन्तु व्यवहार में (Practically) इस वक्र के विस्तार को +30 एवं 30 के मध्य माना जाता है।

In NPC area lies between + 30 to -30

10. इस वक्र में मध्यमान बिन्दु पर स्थित कोटि की ऊँचाई अधिकतम होती है तथा यह कुल आवृत्तियों (अर्थात् N) की 3989 होती है। इसे सर्वोच्च कोटि कहते हैं । The naximum height of the Curve is .3989 of the total frequencies with in the curve.

11. इस वक्र के अन्तर्गत विभिन्न विचलन बिन्दुआरें (Diviation points) सम्बन्धी क्षेत्रफल का वितरण निम्न प्रकार है :

+ 1σ तथा 1σ के मध्य = 68.26%

+ 2σ तथा 2σ के मध्य = 95.44%

+ 3σ तथा 3σ के मध्य = 99.74%

They are lying between various Deviation Points is as given under, ± 1σ = 68.26%, 2σ = 95.44%, 3σ = 99.74% i.e. 95% cases lies between ± 1.966 and 99% cases lies between 2.58σ.

12. इस वक्र को निम्न गणितीय समीकरण के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। It is defined by the Mathematical Equation as.

जहाँ, y = x – अक्ष से वक्र की ऊँचाई

(The ordinate above the base line in terms of frequencies.)

x = माध्यमिक से प्राप्तांक X की दूरी

(The score in terms of deviation from mean)

N= कुल आवृत्तियाँ (Total No. of cases)

σ = मानक विचलन (S.D. of the Distribution)

π= स्थिरांक, जिसका मान 22\7 अथवा 3.14 होता है।

e = स्थिरांक (नेपेरियन लागरिद्म का आधार) जिसका मान 2.7183 होता है।

(Consktant: It is base of the natural or Napierian Logarithms)

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