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सेमेस्टर प्रणाली के गुण व दोष
सेमेस्टर प्रणाली के निम्न गुण हैं-
(1) सेमेस्टर प्रणाली में छात्रों के ज्ञान की जाँच उचित ढंग से सम्भव है और इनमें सफलता के आधार पर छात्रों को आगे की कक्षाओं में भेजा जाता है ।
(2) इन परीक्षाओं के आधार पर छात्रों की विषय-सम्बन्धी कठिनाइयों एवं कमजोरियों का निदान किया जाता है।
(3) परीक्षा-फल के आधार पर शिक्षक अपने अध्यापन विधि की सफलता का आंकलन भी कर सकता है और आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन करके उसे अधिक प्रभावकारी बना सकता है।
(4) शिक्षक परीक्षा के आधार पर विद्यार्थी की क्षमता का पता लगाकर उसे उचित निर्देशन दे सकता है।
(5) इस परीक्षण में प्रचलित परीक्षा-प्रणाली के दोषों को दूर करने में सहायता मिलती है।
(6) इस परीक्षण द्वारा छात्रों के बौद्धिक स्तर का अनुमान लगाया जा सकता है।
(7) परीक्षा-फल से जो आँकड़े प्राप्त होते हैं उनके आधार पर पाठ्यक्रम में परिवर्तन किया जा सकता है।
सेमेस्टर प्रणाली में कुछ दोष भी हैं। थोड़े-थोड़े अन्तराल पर परीक्षाओं का आयोजन करना प्रशासनिक दृष्टि से अपने-आप में एक समस्या है। छात्रों की संख्या के कम होने पर तो वर्ष में दो बार परीक्षाओं का आयोजन सम्भव हो सकेगा परन्तु छात्र संख्या के अधिक होने पर वर्ष में दो बार परीक्षा सम्पन्न कराना प्रशासनिक तन्त्र के लिए बहुत ही मुश्किल होगा। हाईस्कूल, इण्टर अथवा स्नातक स्तर पर जहाँ छात्रों की संख्या लाखों या अनेक हजारों में होती है वहाँ पर वर्ष में एक से अधिक बार बाह्य परीक्षा का आयोजन असम्भव-सा ही होोग । ऐसी स्थिति में आन्तरिक परीक्षा के विकल्प पर विचार किया जा सकता है। बार-बार परीक्षा लेने के कारण सेमेस्टर प्रणाली अधिक खर्चीली भी होगी। शिक्षण के कुछ समय बाद ही परीक्षा लेने से छात्रों में बोध के स्थान पर स्मरण अधिगम करने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है। आन्तरिक परीक्षा को अधिक महत्त्व देने पर परीक्षा परिणामों की विश्वसनीयता व वैधता में कमी आ जाने की सम्भावना हो सकती है। अतः सेमेस्टर प्रणाली को लागू करने से पूर्व उसके गुण तथा दोषों पर समुचित ढंग से विस्तृत विचार करना आवश्यक प्रतीत होता है। इसके अतिरिक्त सेमेस्टर प्रणाली के व्यावहारिक पक्ष पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
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