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स्वतन्त्र अभिव्यक्ति से आप क्या समझते हैं?
स्वतन्त्र अभिव्यक्ति को भी हम निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं-
(1) “स्वतन्त्र अभिव्यक्ति स्थूल या सूक्ष्म वस्तु के प्रति स्वतन्त्र रूप से की गयी मनोसांवेगिक प्रतिक्रिया है।”
(2) “अभिव्यक्ति ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त अनुभूति का प्रत्युत्तर है।”
(3) “अभिव्यक्ति वह शक्ति है जिसके द्वारा व्यक्ति अपना मन्तव्य दूसरों पर प्रकट करता है। आवश्यक नहीं है कि यह प्रकटीकरण भाषा के माध्यम से ही हो। अनेक बार कुछ न कह कर केवल संकेतों के माध्यम से ही अभिव्यक्ति की जा सकती है और अनेक बार संकेत अथवा भाषा का सहारा लिये बिना केवल मौन रह कर भी अपना मन्तव्य प्रकट किया जा सकता है।”
अभिव्यक्ति के प्रकार
अभिव्यक्ति निम्नलिखित प्रकार की होती है-
1. मौखिक अभिव्यक्ति- मौखिक अभिव्यक्ति भाषा के माध्यम से बोलने के द्वारा की जाती है किन्तु इसमें आंगिक मुद्राओं का भी विशेष योगदान है।
2. लिखित अभिव्यक्ति- लिखित अभिव्यक्ति लिपि के माध्यम से की जाती है। जिस प्रकार मौखिक अभिव्यक्ति में कथन भंगिमा इसकी प्रभावशीलता में वृद्धि करती है, ठीक उसी प्रकार लिखित अभिव्यक्ति में लेखन शैली प्रभाव उत्पन्न करने में विशेष भूमिका का निर्वाह करती है।
मौखिक अभिव्यक्ति का महत्त्व
मौखिक अभिव्यक्ति या भाव प्रकाशन का महत्त्व अग्रलिखित प्रकार है-
(1) भाषा का उद्गम मौखिक रूप में ही हुआ है।
(2) बालक अनुकरण द्वारा मौखिक बात सुनकर बोलना सीखता है।
(3) मौखिक भाषा में ही बालक और सभी व्यक्ति अपने विचारों की अभिव्यक्ति करते हैं।
(4) मौखिक अभिव्यक्ति द्वारा दूसरों की बात को सुनने और अपनी बात को कहने का कौशल होता है।
(5) मौखिक अभिव्यक्ति द्वारा बालक आगे चलकर निपुण वक्ता बन जाते हैं।
(6) मौखिक अभिव्यक्ति से बालक में भाव प्रदर्शन और प्रभावशाली ढंग से बोलने की क्षमता उत्पन्न होती है।
(7) छात्र प्रभावशाली ढंग से सुनकर और बोलकर समाज के सदस्यों के साथ निकटतम सम्बन्ध स्थापित करता है।
(8) अध्यापक मौखिक भाषा में छात्रों से प्रश्न पूछता है और जैसे-जैसे प्रश्नोत्तर की क्रिया अग्रसर होती है, कक्षा कार्य वैसे-वैसे अधिक रोचक, सजीव और प्रभावपूर्ण हो जाता है।
(9) अध्यापक द्वारा पूछे गये प्रश्न बालकों को सक्रिय और सचेत बनाये रखते हैं।
(10) व्यक्तित्व के विकास के लिए सरल, स्पष्ट एवं प्रभावशाली मौखिक अभिव्यक्ति अत्यन्तावश्यक है।
भाषा शिक्षक द्वारा बालकों में मौखिक अभिव्यक्ति का विकास
(1) हिन्दी अध्यापक छात्रों को मौखिक अभिव्यक्ति के लिए निरन्तर प्रेरित करता रहे।
(2) हिन्दी अध्यापक कक्षा के प्रत्येक छात्र को बारी-बारी से बोलने का अवसर दें।
(3) स्वयं वाचन द्वारा छात्रों के समक्ष स्पष्ट एवं शुद्ध उच्चारण का आदर्श प्रस्तुत करें।
(4) शुद्ध भाषा का प्रयोग, भाषा प्रभावोत्पादक, अवसरानुकूल, स्पष्ट तथा माधुर्यपूर्ण हो।
(5) वार्तालाप करते समय छात्रों तथा शिक्षक में परस्पर संकोच की भावना न हो।
(6) शिक्षकों द्वारा बड़े तथा छोटे सभी छात्रों को वार्तालाप के समान अवसर दिये जायें।
(7) अध्यापक स्वयं उच्चारण का आदर्श उपस्थित करें।
(8) बोलते समय छात्रों को उतार-चढ़ाव से बोलने का प्रशिक्षण दिया जाय।
लिखित अभिव्यक्ति का अर्थ
जब मानव अपने मन के भावों और विचारों को लिखकर व्यक्त करता है तो यह लिखित अभिव्यक्ति कहलाती है। अर्जित ज्ञान के स्थायित्व एवं संरक्षण की दृष्टि से लिखित अभिव्यक्ति का विशेष महत्त्व है। मानव जीवन की प्रगति की गतिशीलता लिखित अभिव्यक्ति द्वारा ही सम्भव हुई है। लिखित अभिव्यक्ति से भाषा में सुसम्बद्धता और प्रभावोत्पादकता आती है। बालक की शैक्षिक प्रगति का मूल्यांकन भी लिखित अभिव्यक्ति द्वारा ही सम्भव होता है। लिखित अभिव्यक्ति द्वारा ही बालक को भाषा का ज्ञान मिलता है, उसका मानसिक एवं बौद्धिक विकास होता है, उसे चिन्तन एवं मनन की आदत पड़ती है, शुद्ध वर्तनी का ज्ञान मिलता है तथा सांसारिक ज्ञान-विज्ञान से परिचय प्राप्त होता है, उनमें क्रियाशीलता का विकास होता है। और उसके शब्द एवं साहित्य भण्डार में वृद्धि होती है।
लिखित अभिव्यक्ति कौशल के उद्देश्य
लिखित अभिव्यक्ति के अग्रलिखित उद्देश्य निर्धारित किये जा सकते हैं-
(1) बालकों को लिपि, शब्द, मुहावरों, लोकोक्तियों और सूक्तियों का ज्ञान कराकर उनके प्रयोग की प्रवृत्ति विकसित करना।
(2) बालकों को सुन्दर, स्पष्ट, सुडौल अक्षर लिखने, शुद्ध वर्तनी लिखने, व्याकरण सम्मत वाक्य रचना करने और विराम चिह्नों का उचित प्रयोग करने में समर्थ बनाना।
(3) बालकों को विषयानुकूल भाषा-शैली और तार्किक विचार-क्रम अभिव्यक्ति का ज्ञान कराना।
(4) बालकों के शब्द-भण्डार में वृद्धि करना।
(5) बालकों में सृजनात्मक क्रियाशीलता, बोध तथा तर्कशक्ति को विकसित करना।
(6) हाथ, मस्तिष्क, हृदय तथा नेत्र में समन्वय उत्पन्न करके बालकों की इन्द्रियों को प्रशिक्षित करना।
(7) अनुलेखन, प्रतिलेखन तथा श्रुतिलेख के अभ्यास द्वारा लिखने की गति को विकसित करना तथा
(8) स्वत: लेखन में बालकों की रुचि उत्पन्न करना।
लिखित अभिव्यक्ति में सुधार
लिखित अभिव्यक्ति- कौशल को विकसित करने में अनुभूत समस्याओं के निराकरण हेतु अधोलिखित उपाय किये जा सकते हैं-
(1) छात्रों को लिखते समय बैठने का सही ढंग एवं कलम पकड़ने का सही ढंग सिखाया जाय। उन्हें बताया जाय कि लिखते समय कागज से आँखों की दूरी कम से कम 12 इंच हो।
(2) छात्रों को बताया जाय कि कलम या पेन को निब के लगभग एक इन्च ऊपर से पकड़ा जाय।
(3) छात्रों को सुडौल और स्पष्ट अक्षर लिखने का अभ्यास कराया जाय। उन्हें बताया जाय कि सभी अक्षरों को, शब्दों को या वाक्यों को लिखने का क्रम बायें से दायें होना चाहिये।
(4) प्रत्येक अक्षर, शब्द, एवं वाक्यों पर शिरोरेखा का प्रयोग करना अवश्य सिखाया जाय।
(5) अनुस्वार, हलन्त और मात्राओं के प्रयोग में असावधानी बरतने से लेख विकृत हो जाते हैं। अतः बालकों को इनका उचित प्रयोग करना सिखाया जाये।
मौखिक अभिव्यक्ति के साधन
मौखिक अभिव्यक्ति के साधन निम्नलिखित हैं-
1. भाषण- छात्रों को भाषण की शिक्षा देते समय अध्यापक को निम्नलिखित उद्देश्य ध्यान में रखने चाहिये – (1) शुद्ध तथा स्पष्ट उच्चारण का अभ्यास कराना। (2) शुद्ध भाषा का अभ्यास। (3) उचित भाषा में भाव प्रकाशन सिखाना। (4) व्यवहार कुशलता ।
2. अन्त्याक्षरी प्रतियोगिता- इस प्रतियोगिता में प्रतिभागियों को दो वर्गों में विभाजित कर दिया जाता है। प्रत्येक पक्ष का कोई भी प्रतिभागी उस अक्षर से प्रारम्भ होने वाले पद्य या पद्यांश को बोलता है। जिस अक्षर पर उसके विपक्षी दल के बालक ने अपना पद समाप्त किया था। इसमें बालक अधिक से अधिक कविताएँ कण्डाग्र कर लेते हैं, क्योंकि यह कहा नहीं जा सकता कि विपक्षी दल किस अक्षर पर अपने पद के पद्यांश को समाप्त करेगा। इसमें शब्दों के सही उच्चारण पर भी यथेष्ट बल दिया जाता है। अतः प्रतिभागी शब्दोच्चारण का विशेष ध्यान रखते हैं।
3. वाद-विवाद प्रतियोगिता- वाद-विवाद प्रतियोगिता बालक के मानस द्वार को खोलने की कुँजी है। वाद विवाद द्वारा उनमें अध्ययन तथा चिन्तन का अभ्यास होता है। तर्क की भावना को प्रोत्साहन मिलता है। अपने विचारों को सुसंगठित एवं सुव्यवस्थित रूप में रखने का बालक प्रयत्न करने लगता है। यह विधि अन्त्याक्षरी प्रतियोगिता के समान होती है। इसमें भाग लेने वाले निर्धारित विषय के पक्ष में अपने विचारों को व्यक्त करते हैं। इसमें मौखिक अभिव्यक्ति के साथ-साथ बालकों की कल्पना-शक्ति का यथेष्ट विकास होता है। इस प्रकार के आयोजनों के लिए यदि सप्ताह का कोई दिन नियमित रूप से निर्धारित कर दिया जाय तो बालकों की अभिव्यक्ति का समुचित विकास किया जा सकता है। यह विधि छोटे स्तर के बालकों के लिए उपयुक्त है।
4. कहानी-कथन – कहानी सुनना तथा सुनाना बालकों की अपनी प्रिय वस्तु है । इससे उनमें जिज्ञासा, अवधान और रुचि का विकास होता है। अतः इसके भाषण से स्वाभाविकता और प्रवाह उत्पन्न किया जा सकता है। इस प्रकार मनोरंजन के साथ उनकी कल्पना-शक्ति को सजग किया जा सकता है।
5. चित्रमाला – चित्रों को दिखाकर उसके विषय में बालकों के भावों को जाग्रत कर भावाभिव्यक्ति का अवसर प्रदान किया जाना चाहिये। इस प्रकार के अभ्यासों के द्वारा छात्रों को सफल व्याख्यानदाता, प्रभावशाली सफल साहित्यकार, कलाकार तथा कवि भी बनाया जा सकता है।
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