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हाथ से छपाई की विधियाँ
हाथ से छपाई की विधियाँ– हाथ से छपाई का इतिहास बहुत पुराना है। भारतवर्ष में वस्त्रों पर छपाई क्रिया के प्रमाण भी हजारों वर्ष पहले से मिलते हैं। आज के तथा प्रारम्भ के छपाई के तरीकों में बहुत अन्तर है। प्रारम्भ में छपाई कार्य के लिये विभिन्न डिजायन के वस्त्र पर छापने होते थे उन्हें लकड़ी के टुकड़ों पर बनाकर खोद लिया जाता था। छपाने के लिये आलू के टुकड़ों पर डिजाइन बनाये जाते थे। बोतलों के ढक्कन से छपाई का काम लिया जाता था। जिन ठप्पों से छपाई का काम करना होता था उन्हें पेस्ट के रूप में या अर्द्ध तरल रूप में बने रंग में डुबोया जाता था फिर उस ठप्पे से वस्त्र पर छपाई की जाती थी। जैसे-जैसे विज्ञान की उन्नति होती गई छपाई प्रक्रिया में भी सुधार होता गया। अभी तक छपाई का जो काम हाथों से किया जाता था अब वही छपाई का काम मशीन द्वारा किया जाता है जिससे समय तथा शक्ति की बचत होती है। तथा छपाई पर आने वाला व्यय भी कम आता है। हाथ की छपाई के ब्लॉक के समान ही मशीन की छपाई में डिजाइन लोहे या ताँबे के बने रौलर पर खोदा जाता है। एक डिजाइन में जितने रंगों का प्रयोग होता है उसके उतने रौलर तैयार किये जाते हैं। हाथ की छपाई की दो विधियाँ हैं-
(I) ब्लॉक छपाई (Block Printing)
यह विधि हाथ की छपाई की सबसे प्रचलित विधि है। ब्लॉक प्रिंटिंग दो प्रकार से की जाती है-
(1) हाथ द्वारा (2) मशीन द्वारा।
(1) हाथ द्वारा ब्लॉक छपाई (Block Priniting by Hand)- प्रारम्भ में छपाई के लिये पेड़ के तने के उस भाग को काटकर ब्लॉक के रूप में प्रयोग करते थे जिसमें प्राकृतिक रूप से डिजाइन बना होता था। धीरे-धीरे ज्ञान-विज्ञान के विकास के साथ-साथ लकड़ी के टुकड़ों पर मनुष्य द्वारा मनचाहे डिजाइन स्वयं खोदे जाने लगे। लकड़ी के टुकड़ों पर विभिन्न डिजाइन 1/4 ” गहरे खोदे जाते हैं। ये लकड़ी के ब्लॉक अलग-अलग आकृति (गोल, तिकोने, चौकोर, लम्बवत आदि) होते हैं। एक समान समतल, सपाट जमीन पर गद्दा बिछाकर उसमें ऊपर साफ कपड़ा बिछाकर जिस कपड़े पर छपाई करनी है उसे बिछा दिया जाता है। रंग को तरल, अर्द्धतरल या पेस्ट के रूप में बनाकर ब्लॉक को उसमें डुबोकर छपाई किये जाने वाली जगह पर रखकर हाथ से दबाव डालते हैं। एक ब्लॉक में जितने रंगों का प्रयोग करना होता है उस डिजाइन के उतने ब्लॉक बनाये जाते हैं।
(2) मशीन द्वारा ब्लॉक छपाई (Block Printing by Machine)- सन् 1834 में सबसे पहले पेरोटन नामक ब्लॉक छपाई की मशीन का निर्माण किया गया। इस ब्लॉक मशीनों में ताँबे, लोहे या लिनोलियम धातु के रौलर्स पर डिजाइन अंकित किया जाता है। इन रौलर्स के बीच में कपड़ा जब निकलता है तो कपड़ा दबता है और रौलर पर अंकित डिजाइन कपड़े पर छप जाता है। एक डिजाइन में जितने रंग प्रयोग करते हैं उसके उतने ही रौलर तैयार किये जाते हैं।
(II) स्क्रीन छपाई (Screen Printing)
स्क्रीन प्रिंटिंग का प्रयोग साधारणतः पाँच सौ मीटर से पाँच हजार मीटर तक के कपड़ों पर की जाती है। कपड़े के जितने भी भाग को छपाई के रंग से बचाना होता है, उसमें जल-अवरोधक वार्निश लगा देते हैं या किसी अघुलनशील पदार्थ से भर देते हैं। इसके उपरान्त वस्त्र को एक लम्बी तथा चपटी टेबिल पर फैला देते हैं। पहले टेबिल को ऊन की मोटी गद्दी से ढँक देना चाहिए तथा इसके ऊपर मोमजामा फैलाना चाहिए। इसके उपरांत इस पर सूती चादर फैलानी चाहिए, जिसे छपाई की प्रक्रिया के बीच में बदलते रहना चाहिए, क्योंकि वह बहुधा छपाई करते समय रगड़ से खराब होती जाती है। इसके उपरान्त छपाई किये जाने वाले वस्त्र पर लकड़ी के फ्रेम को स्क्रीन सहित रख देना चाहिए तथा इसकी सतह पर लेई के रूप में घुले हुए रंग की ब्रुश द्वारा लगाकर हल्के हाथों से दाब देना चाहिए। रंग को कुछ समय तक सूखने देना चाहिए। इसके उपरान्त दूसरे फ्रेम का, जिस पर दूसरी तरह का डिजाइन अंकित होता है, प्रयोग भिन्न रंग के साथ करना चाहिए। यह प्रक्रिया क्रमशः उस समय तक दोहरानी चाहिए जब तक कि डिजाइन पूर्ण नहीं हो पाती।
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