शीत युद्ध (COLD WAR)के विशिष्ठ साधन , अंतराष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध का प्रभाव
Hello READERS आज मैं आप लोगो के लिए एक महत्वपूर्ण टॉपिक “शीत युद्ध (COLD WAR)के विशिष्ठ साधन , अंतराष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध का प्रभाव ” चर्चा करूँगा | यह आगामी परीक्षाओ के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है| इस टॉपिक से सभी परीक्षाओ मे अवश्य ही कुछ न कुछ पूछा ही जाता है|युद्ध के विशिष्ठ साधन क्या थे ? युद्ध के साधन होते हैं अस्त्र-शस्त्र ,गोला तथा बारूद|.
शीत युद्ध (COLD WAR)के विशिष्ठ साधन , अंतराष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध का प्रभाव
शीत युद्ध के मोटे रुप से निम्नांकित साधन थे-
प्रथम
शीत युद्ध का सबसे प्रमुख साधन था प्रचार| यह वाक् युद्ध था युद्ध में जो कार्य हथियारों से होता है वही कार्य शीत युद्ध में शब्दों द्वारा किया गया| इस युद्ध में शब्द ही गोला बारूद का काम करते थे| शीत युद्ध में प्रचार का उद्देश्य था- शत्रु राष्ट्र के प्रति तीव्र घृणा जागृत करना, अपने राष्ट्रीय आदर्शो के प्रति निष्ठा बनाए रखना, मित्र राष्ट्रों के प्रति सौहार्द की भावना विकसित करना| शीत युद्ध में रेडियो’, टेलीविजन, समाचार पत्रों’, पत्रिकाओं आदि प्रचार माध्यमों से निरंतर विपक्षी राष्ट्रों को शोषक और अत्याचारी बताया गया |
द्वितीय
शीत युद्ध का अन्य साधन अपनी शक्ति का प्रदर्शन और शक्ति का प्रदर्शन और शत्रु पक्ष को कमजोर बताना अपरिहार्य माना गया |
तृतीय
कमजोर और अविकसित राष्ट्रों को आर्थिक और अन्य सहायता देना भी शीत युद्ध का एक साधन था | आर्थिक सहायता का उद्देश्य उन्हें अपने ग्रुप में शामिल करना होता था |
चतुर्थ
शीत युद्ध का एक अन्य साधन जासूसी था| दोनों ही पक्ष जासूसी के तरीकों से एक दूसरे की सैनिक शक्ति का पता लगाने की कोशिश करते रहते थे | यू-2 विमान कांड जासूसी के तरीकों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है |
पंचम
शीत युद्ध का एक अन्य साधन कूटनीतिक था | यह कूटनीतिक साधनों से लड़ा गया था | इसमें दोनों महाशक्तियां कूटनीतिक साधनों से एक दूसरे को निर्बल बनाने का प्रयास करती रहती थी |
अंतराष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध का प्रभाव
विश्व राजनीति को शीत युद्ध ने अत्यधिक प्रभावित किया है | इसने विश्व में भय और आतंक के वातावरण को जन्म दिया जिससे शस्त्रों की होड़ बढ़ी | इसने संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्था को पंगु बना दिया और विश्व युद्ध को दो गुटों में विभक्त कर दिया |
शीत युद्ध के प्रभाव निम्न प्रकार है-
1-विश्व का दो गुटों में विभाजित होना
शीत युद्ध के कारण विश्व राजनीति का स्वरूप द्विपक्षीय बन गया | संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और सोवियत संघ दो पृथक पृथक गुटों का नेतृत्व करने लग गए | अब विश्व की समस्याओं को इसी गुटबंदी के आधार पर आंका जाने लगा जिससे अंतर्राष्ट्रीय समस्याएं उलझन पूर्ण बन गई | चाहे कश्मीर समस्या हो अथवा कोरिया समस्या, अफगानिस्तान समस्या हो या अरब इजराइल संघर्ष,अब उस पर गुटीय स्वार्थों के परिप्रेक्ष्य में सोचने की प्रवृति बढ़ी |
2-आतंक और अविश्वास के दायरे में विस्तार
शीत युद्ध ने राष्ट्रों को भयभीत किया, आतंक और विश्वास का दायरा बढ़ाया |अमेरिका और सोवियत संघ के मतभेदों के कारण अंतरराष्ट्रीय संबंधों में गहरी तनाव, वैमनस्य मनोमालिन्य प्रतिस्पर्धा अविश्वास की स्थिति आ गई | विभिन्न राष्ट्र और जनमानस इस बात से भयभीत रहने लगी कि कब एक छोटी सी चिंगारी तीसरे विश्व युद्ध का कारण बन जाए | शीत युद्ध ने ‘युद्ध के वातावरण’ को बनाए रखा | नेहरू ने ठीक ही कहा था कि हम लोग ‘निलंबित मृत्युदंड’ के युग में रह रहे हैं |
3-आणविक युद्ध की संभावना
1945 में आणविक शस्त्र का प्रयोग किया गया था | शीत युद्ध के वातावरण में यह महसूस किया जाने लगा कि अगला युद्ध भयंकर आणविक युद्ध होगा | क्यूबा संकट के समय की आणविक युद्ध की संभावना बढ़ गई थी | अब लोगों को आणविक आतंक मानसिक रूप से सताने लगा | आणविक शस्त्रों के परिपेक्ष में परंपरागता अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था की संरचना ही बदल गई |
4- सैनिक संधियों एवम् सैनिक गठबंधनो का बाहुल्य
शीत युद्ध ने विश्व में सैनिक संधियों एवं सैनिक गठबंधनों को जन्म दिया | नाटो, सीटो, सेंटो तथा वारसा पैक्ट जैसे सैनिक गठबंधनों का प्रादुर्भाव शीत युद्ध का ही परिणाम था | इसके कारण शीत युद्ध में उग्रता आई ,इन्होंने निशस्त्रीकरण की समस्या को और जटिल बना दिया | वस्तुतः इन सैनिक संगठनों ने प्रत्येक राज्य को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ‘निरंतर युद्ध की स्थिति’ में रख दिया |
5-शस्त्रोंम की होढ
शीत युद्ध निशस्त्रीकरण की होड़ को बढ़ावा दिया जिसके कारण विश्व शांति और निशस्त्रीकरण की योजनाएं धूमिल हो गई| कैनेडी ने कहा था कि, “शीत युद्ध ने शस्त्रों की शक्ति, शस्त्रों की होड़ और विध्वंस शस्त्रों की खोज को बढ़ावा दिया है |अरबो डालर शस्त्र -प्रविधि और राष्ट्र निर्माण पर प्रतिवर्ष खर्च किए जाते हैं |”
6-अंतरराष्ट्रीय राजनीति का यांत्रिकीकरण
शीत युद्ध का स्पष्ट अर्थ यह लिया जाता है कि विश्व दो भागों में विभक्त है -एक खेमा देवताओं का है तो दूसरा दानवों का | एक तरफ काली भेड़े हैं तो दूसरी तरफ सफेद भेड़े हैं | इनके मध्य कुछ भी नहीं है | इससे जहां इस दृष्टिकोण का विकास हुआ कि जो हमारे साथ नहीं है वह हमारा विरोधी है, वही अंतरराष्ट्रीय राजनीति का एकदम यांत्रिकीकरण हो गया |
7-अंतरराष्ट्रीय राजनीति में सैनिक दृष्टिकोण का पोषण
शीत युद्ध से अंतरराष्ट्रीय राजनीति से सैनिक दृष्टिकोण का पोषण हुआ | अब शांति की बात करना भी संदेहस्पद लगता था | अब ‘शांति’ का अर्थ युद्ध के संदर्भ में लिया जाने लगा | ऐसी स्थिति में शांति कालीन युग के अंतरराष्ट्रीय संबंधों का संचालन दुष्कर कार्य समझा जाने लगा |
8-संयुक्त राष्ट्र को पंगु करना
शीत युद्ध के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे विश्व संगठन के कार्यों में भी अवरोध उत्पन्न हुआ और महाशक्तियों के परस्पर विरोधी दृष्टिकोण के कारण संघ कोई कठोर कार्यवाही नहीं कर सका | यहां तक कि कई बार तो संघ की स्थिति केवल एक मूकदर्शक से बढ़कर नहीं रही | संयुक्त राष्ट्र संघ का मंच महाशक्तियों की राजनीति का अखाड़ा बन गया और इसे शीत युद्ध के वातावरण में राजनीतिक प्रचार का साधन बना दिया गया | एक पक्ष ने दूसरे पक्ष द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावों का विरोध किया जिससे संयुक्त राष्ट्र संघ वाद विवाद का ऐसा मंच बन गया जहां सभी भाषण देते हैं, किंतु सुनता कोई भी नहीं(Debating society where everybody can talk and nobody need listen) |
इसी शीत युद्ध के वातावरण में वाद-विवाद बहरों के संवाद(dialogues of the deaf) बनकर रह गए |
9-सुरक्षा परिषद को लकवा लग जाना
इस शीत युद्ध के कारण सुरक्षा परिषद को लकवा लग गया | सुरक्षा परिषद जैसी संस्था जिस के कंधो पर अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा स्थापित करने का त्वरित निर्णय लेने का भार डाला था, सोवियत संघ और अमेरिका के, पूरब और पश्चिम के संघर्ष का अखाड़ा बन गई | इसमें महाशक्तियां अपने परस्पर विरोधी स्वार्थों के कारण विभिन्न शांति प्रस्ताव को वीटो द्वारा बेहिचक रद्द करती रहती थी, वस्तुतः यहां इतना विरोध और वीटो का प्रयोग दिखाई देता था कि इसे संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थान पर विभक्त और विरोधी दलों में बटा हुआ राष्ट्र संघ का अधिक उपयुक्त है |
10-मानवीय कल्याण के कार्यक्रमों की उपेक्षा
शीत युद्ध के कारण विश्व राजनीति का केंद्रीय बिंदु सुरक्षा की समस्या तक ही सीमित रह गया और मानव कल्याण से संबंधित कई महत्वपूर्ण कार्यों का स्वरूप गौण हो गया |युद्ध के कारण ही तीसरी दुनिया के विकासशील देशों की भुखमरी, बीमारी, बेरोजगारी, अशिक्षा, आर्थिक पिछड़ापन, राजनीतिक अस्थिरता आदि अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं का उचित निदान यथासमय संभव नहीं हो सका, क्योंकि महाशक्तियों का दृष्टिकोण मुख्यतः ‘शक्ति की राजनीति’ तक ही सीमित रहा |
उपर्युक्त सभी परिणाम शीत युद्ध के नकारात्मक परिणाम कहे जा सकते हैं |
शीत युद्ध के विश्व राजनीति पर कतिपय सकारात्मक प्रभाव भी पड़े जो इस प्रकार है –
प्रथम विश्व युद्ध के कारण गुटनिरपेक्ष आंदोलन को प्रोत्साहन मिला और तीसरी दुनिया के राष्ट्रों को उपनिवेशवाद से सही मायने में मुक्ति मिली |
द्वितीय युद्ध के कारण शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को प्रोत्साहन मिला |
तृतीय शीत युद्ध के कारण तकनीकी और प्राविधिक उन्नति ,खासतौर से आणविक शक्ति के विकास में तीव्रता आई |
चतुर्थ संयुक्त राष्ट्र संघ में निर्णय शक्ति सुरक्षा परिषद के बजाए महासभा को हस्तांतरित हो गई|
पंचम राष्ट्रों की विदेश नीति में यथार्थवाद का आविर्भाव हुआ|
षष्ठ शीत युद्ध से ‘शक्ति संतुलन’ की स्थापना हुई |
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