
अगस्त प्रस्ताव 1940 या अगस्त घोषणा क्या है
1939 में ब्रिटिश राज का समय प्रस्तार केवल आठ वर्ष ही बना था, परन्तु अमरत्व का भ्रम लण्डन तथा दिल्ली में पूर्ण रूप से बना हुआ था।
ज्योंही सितम्बर 1939 में विश्वयुद्ध का दैत्य संसार के रंगमंच पर आया अंग्रेजी सरकार ने भारतीय विधान मण्डल से नाममात्र भी परामर्श किए बिना, भारत की ओर से युद्ध घोषणा कर दी। इस पर कांग्रेस कार्यकारिणी ने विरोध प्रकट किया और 14 सितम्बर, 1939 को एक प्रस्ताव में यों कहा….. हम किसी ऐसे युद्ध से सम्बन्धित नहीं हो सकते अथवा उसमें सहयोग नहीं दे सकते जो साम्राज्यवादी नीतियों पर आधारित हो और जिसका उद्देश्य भारत तथा अन्य स्थानों में साम्राज्यवाद को दृढ़ करना हो। समिति ने माँग की कि अंग्रेजी सरकार यह घोषणा करे कि युद्ध का उद्देश्य जनतंत्र और साम्राज्यवाद के विषय में क्या है और ये भारत पर कैसे लागू किये जाएंगे। क्या भारत से स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में व्यवहार किया जाएगा?”
युद्ध के पश्चात् प्रादेशिक स्वशासन- कांग्रेस ने जो आश्वासन मांगे वे नहीं मिले अपितु कुछ अनमने से वाक्यांश अथवा पवित्र भावनाएं प्रकट की गईं। अतएव सात कांग्रेस मंत्रिमण्डलों ने त्यागपत्र दे दिए और जन प्रान्तों का शासन 1935 के ऐक्ट की धारा 93 के अधीन गवर्नरों को सौंप दिया गया। जिन्नाह ने इसे सूक्ति दिवस के रूप में मनाया क्योंकि देश को कांग्रेस से छुटकारा मिल गया था। केवल सिन्ध, पंजाब और बंगाल में लोकप्रिय मन्त्रिमण्डल कार्य करते रहे। लोगों को आश्वासन देने के लिए वाईसराय लार्ड लिनलिथगो (Lord Linlithgow) ने यह घोषणा की कि “युद्ध के पश्चात् जितना शीघ्र हो सकेगा, बेस्टमिन्स्टर जैसा प्रादेशिक स्वशासन देना” ही अंग्रेजी सरकार का उद्देश्य है अर्थात् जो 1935 के ऐक्ट के अनुसार नहीं मिला था, वह अब युद्ध के पश्चात् मिलेगा परन्तु कांग्रेस तो नौ नकद न तेरह उधार चाहती थी।
अगस्त 1940 का प्रस्ताव – जून 1940 में अंग्रेजी सेना की फ्रांस में करारी हार हुई और फ्रांस ने जर्मनी के आगे पूर्णतया घुटने टेक दिए। अंग्रेजों ने एक और प्रस्ताव रखा जिसमें वाइसराय ने कहा (1) राजनैतिक दलों के बीच मतभेदों के होते हुए भी, वाइसराय की कार्यकारिणी का विस्तार और एक “युद्धपरामर्शदात्री परिषद” के गठन करने में और विलम्ब नहीं किया जा सकता। (2) सरकार ने अल्पसंख्यकों को पूर्ण महत्त्व प्रदान करने का विश्वास दिलाया। (3) अपने उत्तरदायित्वों को निभाते हुए (रक्षा, अल्प संख्यकों के अधिकार, रियासतों से संधियाँ और अखिल भारतीय सेवाएं इत्यादि के प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए) अंग्रेजी सरकार इस विचार से सहमत है कि नया संविधान बनाना मुख्यतः भारतीयों का अपना उत्तरदायित्व है और वह भारतीय जीवन की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक धारणाओं पर निर्भर होगा। (4) चूँकि इस समय जब हम जीवन और मृत्यु के संघर्ष में लगे हैं, यह समस्या हल करनी सम्भव नहीं है, ब्रिटिश सरकार यह विश्वास दिलाती है कि युद्ध के समाप्त होते ही वह ऐसी व्यवस्था करेगी जिसमें भारतीय राजनैतिक जीवन के मुख्य तत्त्वों के प्रतिनिधि नये संविधान की रूपरेखा तैयार करें। (5) और इस बीच ब्रिटिश सरकार यह आशा करती है कि भारत के भिन्न-भिन्न सम्प्रदाय तथा वर्ग भारत को राष्ट्रमण्डल के पूर्ण और बराबर सदस्य बनने में हमसे सहयोग करेंगे अर्थात् युद्ध में पूर्णरूपेण सहायता करेंगे।
यह घोषणा एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रगति थी क्योंकि इसमें स्पष्ट कहा गया था कि भारत का संविधान बनाना भारतीयों का अपना अधिकार हैं, और स्पष्ट प्रादेशिक स्वशासन की प्रतिज्ञा की गई थी। परन्तु कांग्रेस ने यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। जवाहरलाल नेहरू ने तो प्रादेशिक स्वशासन की धारणा को ही ठुकरा दिया। परन्तु मुस्लिम लीग ने इस घोषणा का वह भाग जिसमें यह प्रतिज्ञा थी कि “भावी संविधान उनकी अनुमति से ही बनेगा।” उसका स्वागत किया। इसके अतिरिक्त उसने यह भी कहा कि भारत का बंटवारा ही इस कठिन समस्या का हल है। जैसी आशा थी कि यह प्रस्ताव निष्फल रहा। भारत राज्य सचिव श्री एल. एस. एमरी (L. S. Amery) ने कहा कि आज मुख्य झगड़ा ब्रिटिश सरकार और स्वतन्त्रता मांगने वाले तत्त्वों में नहीं है अपितु भारत के राष्ट्रीय जीवन के भिन्न- भिन्न तत्त्वों में है।
इसी भी पढ़ें…
- पर्यावरण संरक्षण हेतु व्यक्तिगत और पारिवारिक जागरूकता एवं उत्तरदायित्व
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986
- जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय
- पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ | वायु प्रदूषण के कारण | वायु प्रदूषण निवारण के उपाय
- आदर्शवादियों के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिये।
- आदर्शवाद के अनुसार विद्यालय तथा पाठ्यक्रम की भूमिका
- प्रकृतिवादियों द्वारा निर्धारित शिक्षण की विधियाँ
- आदर्शवाद के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य
- आदर्शवाद पर शिक्षा के प्रभाव
- आदर्शवाद के अनुसार पाठ्यक्रम
- आदर्शवाद के अनुसार शिक्षण विधि
- स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा के उद्देश्य
- स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त
Disclaimer: currentshub.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है ,तथा इस पर Books/Notes/PDF/and All Material का मालिक नही है, न ही बनाया न ही स्कैन किया है |हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है| यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- currentshub@gmail.com