अनुक्रम (Contents)
इंग्लैंड की क्रांति के कारण|गौरवशाली क्रांति|1688 की गौरवपूर्ण क्रांति|कारण, परिणाम
इंग्लैंड की क्रांति (Revolution of England)
इंग्लैंड की क्रांति स्टुअर्ट वंश के राजा जेम्स द्वितीय के शासनकाल में हुई | वह 1685 ई. में इंग्लैंड के राजसिंहासन पर बैठा | उसकी क्रूर धार्मिक और राजनितिक नीतियों के कारण इंग्लैंड में 1688 ई. में ‘गौरवपूर्ण क्रांति’ घटित हुई | इसे ‘रक्तहीन क्रांति’ या ‘वैभवपूर्ण क्रांति’ भी कहा जाता है | 18 सदी तक विश्व में तीन प्रमुख क्रांतियाँ विभिन्न देशों में हुई | ये देश अवश्य अलग-अलग थे परन्तु इन क्रातियों का प्रभाव विश्व के सभी देशों पर पड़ा और इसके सकारात्मक परिणाम भी निकले | इन क्रातियों में इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति (1688) सर्वप्रथम घटित हुई | इंग्लैंड की क्रांति ने अमेरिका में भी स्वतंत्रता प्राप्ति की मांग को बुलंद किया | अमेरिका में संसद तथा जनता में तनाव का माहौल था | अतः अमेरिकी उपनिवेश ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष किया | यही संघर्ष अमेरिकी क्रांति (1776 ई.) कहलाता है |
अमेरिकी क्रांति तथा इंग्लैंड की क्रांति (1688) के कारण ही यूरोप में क्रांति का दौर आरंम्भ हुआ | आगे फ्रांस में चर्च, कुलीन तथा शासक वर्ग के विरुद्ध श्रमिको, कृषकों तथा बुद्धिजीवियों के द्वारा जो क्रांति हुई वह फ्रांसिसी क्रांति (1789) कहलाती है | परन्तु 1688 ई. की इंग्लैंड की क्रांति शांतिपूर्ण संपन्न हुई | इस क्रांति में इंग्लैंड की शासन व्यवस्था तथा इंग्लैंड का राजा बदला, पर कहीं खून का एक कतरा नहीं गिरा जो इसकी महत्तवपूर्ण भी है |
2.1 पृष्ठभूमि (Background)
इंग्लैंड के तात्कालीन शासक जेम्स द्वितीय की निरंकुशता तथा स्वेच्छाचारिता से तंग आकर जनता ने क्रांति का आह्वान किया | जेम्स द्वितीय को इंग्लैंड का शासक बनने के बाद सुरक्षित वातावरण प्राप्त हुआ | विरोधी दल समाप्त हो चुका था, परिस्थितियाँ राजतंत्र के पक्ष में थी | राज्य के प्रति बिना विरोध आज्ञाकारिता का सिद्धांत स्वीकार किया जा चुका था | संसद के अधिकतर सदस्य राजा के दैवी अधिकार सिद्धांत का समर्थन करने वाले थे | लेकिन बाद में परिस्थितियाँ बदलने लगीं क्रांति के लिए जेम्स द्वितीय ने स्वयं ही परिस्थितियाँ तैयार कीं | उसके अनुचित एवं अवैध कार्यों से सभी दलों के लोगों में तीव्र रोष और विरोध फैला |
इंग्लैंड की जनता को विश्वास हो गया था कि राजा अपनी स्वेच्छा से शासन करेगा | जेम्स द्वितीय ने राजा बनने के बाद कैथोलिक चर्च की शक्ति को बढ़ाना तथा कैथोलिक धर्म का प्रचार-प्रसार करना शुरू कर दिया | उसने विश्वविद्यालयों तथा सरकारी नौकरियों के महतवपूर्ण पदों पर कैथोलिकों को रखा | उसने न्यायालय में अपने विश्वासपात्र न्यायाधीशों को रहने दिया क्योंकि वह टेस्ट एक्ट को ख़त्म करना चाहता था | इंग्लैंड की जनता काफ़ी समय तक उसके तानाशाही शासन को इस कारण बर्दाश्त करती रही कि उसकी मृत्यु के बाद कैथोलिक शासन का अंत होगा | परन्तु जून 1688 में जेम्स की दूसरी कैथोलिक पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया | जनता को विश्वास हो गया कि अब जेम्स की नीतियाँ उसकी मृत्यु के उपरांत भी चलती रहेंगी | इस आशंका ने इंग्लैंड की जनता को क्रांति के लिये प्रेरित किया |
2.2 1688 की गौरवपूर्ण क्रांति (The Glorious Revolution of 1688)
जेम्स द्वितीय के शासनकाल में विभिन्न घटनाएं घटित हुई जिन्होंने क्रांति को अवश्यंभावी बना दिया | ये घटनाएं निन्मलिखित है-
राजनीतिक कारण
जेम्स द्वितीय की निरंकुशता
- जेम्स द्वितीय निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी शासक था।
- सेना में वृद्धि की।
- शासन का कटु अनुभव जनता को पहले ही था।
- जनता द्वारा जेम्स का विरोध किया गया।
संसद द्वारा अधिकारों के लिए संघर्ष
- संसद अपने विशिष्ट अधिकारों का उपयोग करना चाहती थी।
- वह राजा के अधिकारों को सीमित और नियंत्रित करना चाहती थी।
- राजा और संसद के मध्य संघर्ष।
- अंत में संसद ने राजा पर विजय प्राप्त की।
- व जेम्स द्वितीय को इंग्लैंड छोड़ना पड़ा।
खूनी न्यायालय
- चार्ल्स द्वितीय के अवैध पुत्र मन्मथ ने सिंहासन प्राप्ति के लिए, जेम्स के विरोध , विद्रोह कर दिया और स्वयं को चार्ल्स द्वितीय का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
- मन्मथ को युद्ध में परास्त कर बंदी बना लिया और उसे मृत्यु दण्ड दिया गया।
- इस न्यायालय को खूनी न्यायालय कहा गया।
- स्काटलैंड में भी अर्ल ऑफ आरगिल ने विद्रोह किया , व 300 व्यक्तियों को मृत्यु दण्ड दिया गया और 800 व्यक्तियों को दास बनाकर वेस्टइंडीज द्वीपों में भेजकर बेच दिया गया।
- व स्त्रियों और बच्चो को भी क्षमा नहीं किया गया।
जेम्स द्वितीय की निसफल विदेश – नीति
- जेम्स द्वितीय फ्रांस के केथोलिक राजा लुई चतुर्दश से आर्थिक और सैनिक सहायता प्राप्त कर इंग्लैंड में अपना ‘ निरंकुश स्वेच्छाकारी ‘ ( किसी की न सुनना, अपनी इच्छा से काम करना ) शासन स्थपित करना चाहता था।
- धन और सैनिक सहायता के आधार पर राज करना चाहता था।
- लुई कैथोलिक था। और फ्रांस में प्रोटोस्टेटो ( दूसरे धर्म को मानने ) पर अत्याचार कर रहा था।
- जेम्स द्वितीय ने भी कैथोलिक धर्म का भरसर प्रचार- प्रसार किया व प्रोटोस्टेटो पर अत्याचार के साथ कैथोलिक धर्म मनवाने का खूब प्रयास किया।
- फ्रांस के प्रोटोस्टेट इंग्लैंड में आकर शरण ले रहें थे।
- तथा इंग्लैंड के लोगों में भी असंतोष व्याप्त हो गया था।
- तथा इंग्लैंड वासी और संसद सदस्य नहीं चाहते थे कि जेम्स लुई से मित्रता रखें व उससे सहायता प्राप्त करें।
- जिसके तहत इंग्लैंड वासी और संसद जेम्स के विरोधी हो गए और जेम्स द्वितीय को अपना राज गवाना पड़ा।
धार्मिक कारण
- जेम्स द्वितीय ने कैथोलिक धर्म के लिए प्रचार – प्रसार किया।
- टेस्ट अधिनियम को स्थगित करना।
- विश्वविद्यालयों में हस्तक्षेप करना।
- धार्मिक अनुग्रहों की घोषणाएं करना।
- सात पादरियों पर अभियोग और उनको बंदी बनाना।
- कोर्ट आफ़ हाई कमीशन की स्थापना।
- नवीन कैथोलिक गिरजाघर की स्थापना करना।
कैथोलिक धर्म के लिए प्रसार
- जेम्स कैथोलिक धर्म का अनुयायी था।
- इंग्लैंड की अधिकांश जनता – एंग्लिकन मत ( धर्म ) की अनुयायी थीं।
- जेम्स कैथोलिको को अधिकाधिक सुविधाएं प्रदान करना चाहता था।
- जेम्स ने पोप को इंग्लैंड में आमंत्रित किया।
- जेम्स द्वारा , लंदन में कैथोलिक गिरजाघर का निर्माण किया। गया।
- जिससे इंग्लैंड के प्यूरिटन और प्रोटेस्टेंट उसके विरोधी हो गए।
टेस्ट अधिनियम को स्थगित करना
- केवलर एंग्लिकन चर्च के अनुयायी ही सरकारी पद पर रह सकते थें। लेकिन जेम्स ने इस अधिनियम को स्थगित कर अनेक कैथोलिकों को राजकीय पदों पर प्रतिष्ठित किया।
- मंत्री, न्यायाधीश, नगर – निगम के सदस्य तथा सेना में ऊंचे पदों पर कैथोलिक नियुक्त किए गए।
- जिससे इंग्लैंड की संसद व वहा की जनता रूष्ट हो गई। और जेम्स II का विरोध करना शुरू किया। जिसके तहत जेम्स को अपना राज्य गवाना पड़ा।
विश्वविद्यालयों में हस्तक्षेप करना
- कैथोलिक मतावलंबी होने से जेम्स ने विश्वविद्यालयों में भी ऊंचे पदों पर कैथोलिक नियुक्त कर किए।
- मैकडॉनल्ड विद्यालय के भी अधिकारियों को प्रथक कर दिया गया। क्योंकि उन्होंने एक कैथोलिक को सभापति बनाने से इंकार कर दिया था।
- इस प्रकार पोटेस्टेट संप्रदाय के लोग जेम्स के विरोधी हो गए थे।
धार्मिक अनुग्रहों की घोषणाएं
- जेम्स द्वितीय ने इंग्लैंड को कैथोलिक देश बनाने के लिए 1687 ई. और 1688 ई. में दो बार धार्मिक अनुग्रह की घोषणा की।
- प्रथम घोषणा में कैथोलिकों तथा अन्य मताबलमबियों पर लगे प्रतिबंधों और नियंत्रणों को समाप्त कर दिया गया।
- द्वितीय घोषणा में वर्ग व धर्म का पक्षपात किए बिना सभी लोगों के लिए राजकीय पदों पर नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया साथ ही कैथोलिकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान कर दी गई। इससे संसद में भारी असंतोष व्याप्त हो गया एवम् संसद उसके घोर विरोधी हो गए।
सात पादरियों पर अभियोग और उनको बंदी बनाना
- जेम्स ने यह आदेश दिया कि प्रत्येक रविवार को उसकी द्वितीय धार्मिक घोषणा पादरियों द्वारा चर्च में प्रार्थना के अवसर पर पड़ी जाए।
- इसका यह परिणाम होता की या तो पादरी अपने धर्म व मत के विरूद्ध इस घोषणा को पड़े, अथवा राजा की आज्ञा का उलघंन करें।
- इस पर केटरबरी के आर्च बिशप सेनक्राफ़्ट ने अपने 6 साथियों सहित जेम्स को एक आवेदन पत्र प्रस्तुत किया। इससे जेम्स ने कुपित होकर इन पादरियों को बंदी बना कर उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया।
- तथा न्यायधीशों ने उनको दोष मुक्त कर दिया। इससे जनता और सेना ने पादरियों की मुक्ति पर हर्ष और जेम्स के प्रति विरोध व्यक्त किया।
क्रांति के परिणाम
- राजा की शक्ति में कमी आई।
- संसद के अधिकारों में वृद्धि हुई।
- क्रांति के बाद अनेक अधिनियम बने।
- न्यायालय को स्वतंत्रता मिली।
- फ्रांस को पराजित कर इंग्लैंड में एक नई यूरोपीय नीति अपनाई ।
- स्काटलैंड को क्रांति से सांविधानिक और राजनीतिक लाभ प्राप्त हुए।
- क्रांति का आयरलैंड पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ा तथा आयरलैंड का ऊन का व्यापार चौपट हो गया।
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