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शिक्षा के विकास में रवीन्द्रनाथ टैगोर का योगदान
शिक्षा के विकास में टैगोर का महत्त्वपूर्ण योगदान है। संक्षिप्त में हम इसका उल्लेख निम्नलिखित प्रकार कर सकते हैं-
(1) टैगोर ने शिक्षा का अर्थ समृद्ध और पूर्णरूप में लिया। उनका यह दृष्टिकोण प्लेटो एवं स्पेन्सर से कहीं अधिक व्यापक है। जीवन की पूर्णता के लिये टैगोर ने जिस विद्या को निर्मित किया है वह भारतीय और पाश्चात्य दोनों के जीवन को स्पर्श करता है। उसमें अध्यात्म और भौतिक दोनों तत्वों का समावेश है।
(2) टैगोर ने प्रकृति से स्वस्थ एवं निकटवर्ती सम्बन्ध स्थापित किया और बताया कि प्रकृति का प्रभाव रहन-सहन, विचार व्यवहार, कार्य-कलाप, विषय-वस्तु और विधि में पाया जाता है।
(3) दर्शन और वास्तविक जीवन परिस्थिति का समन्वय करके टैगोर ने भारतीय शिक्षा में महान क्रान्ति की है।
(4) सौन्दर्य बोध की शिक्षा और उसका दर्शन टैगोर की एक महत्वपूर्ण देन है। उन्होंने सौन्दर्य बोध की शिक्षा के लिये ललित कलाओं-संगीत, चित्रण, पेंटिंग, नृत्य, कविता, अभिनय को शिक्षा में विशेष रूप में रखा और कला, संगीत एवं काव्य में अपनी एक विशेष प्रणाली का प्रचलन किया।
(5) टैगोर ने प्रकृति में सौन्दर्य और आनन्द शक्ति एवं औज, स्वतंत्रता और आत्म प्रेरणा का दर्शन किया तथा उससे मानव जीवन एवं शिक्षा को ओतप्रोत किया।
(6) टैगोर ने भारतीय संस्कृति के आधार पर राष्ट्रीय शिक्षा की नींव डाली।
(7) टैगोर ने बताया कि शिक्षा में समस्त सत्यों का एकीकरण होना चाहिये। हमें जीवन के सत्य के लिये प्रयत्नशील होना चाहिये।
(8) टैगोर के अनुसार बालक के विकास में कृत्रिमता नहीं लानी चाहिये और न शीघ्रता करनी चाहिये वरन् स्वाभाविक ढंग से उसका विकास होना चाहिये।
(9) पुस्तकों एवं पठन विधि की अपेक्षा बालक पर अधिक ध्यान देने के लिये कहा।
(10) शिक्षा में स्वतन्त्रता का टैगोर का दृष्टिकोण विशेष महत्वपूर्ण है। इन्होंने कहा कि बालक की मानसिक शक्तियों के विकास में और व्यवहार में किसी प्रकार का बन्धन नहीं होना चाहिये।
(11) टैगोर ने विलासिता एवं फैशन का विरोध करके जीवन में सरलता और सादगी को महत्वपूर्ण स्थान दिया।
(12) टैगोर ने शिक्षा में नवीनता और मौलिकता को महत्व दिया इसके फलस्वरूप प्रचलित रूढ़िवाद का अन्त होकर शिक्षा के मौलिक रूप का सृजन हुआ।
(13) टैगोर ने शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक को अन्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया और कहा कि शिक्षा केवल शिक्षक द्वारा ही दी जा सकती है।
(14) मानवतावादी भावना पर विश्व बन्धुत्व एवं विश्व शिक्षा का प्रयास करने वाले सर्वप्रथम शिक्षाशास्त्री आज के युग में टैगोर को ही माना जा सकता है।
(15) टैगोर ने फ्रॉबेल, पेस्टॉलाजी, हरबर्ट, ड्यूवी आदि शिक्षाशास्त्रियों की तरह बड़े मौलिक आश्चर्यमय ढंग से अपने शिक्षा सम्बन्धी विचारों का प्रयोग किया। विश्वभारती इसका प्रमाण है।
(16) टैगोर ने ही भारत की भावी शिक्षा व्यवस्था की पीठिका प्रस्तुत की।
यद्यपि टैगोर के शिक्षा दर्शन पर फ्रॉबेल, रूसो, ड्यूवी आदि महान शिक्षाशास्त्रियों का प्रभाव पड़ा लेकिन अपनी तीव्र बुद्धि और बहुमुखी प्रतिभा के आधार पर इन्होंने अपना स्थान इन पाश्चात्य शिक्षाशास्त्रियों में और भी ऊँचा बना लिया।