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शिक्षा के सार्वभौमीकरण का अर्थ एवं संकल्पना Meaning and Concept of Universalization of Education
शिक्षा के सार्वजनीकरण या लोकव्यापीकरण या सार्वभौमीकरण का शाब्दिक अर्थ है- “शिक्षा का किसी निश्चित स्तर तक सभी के लिए अनिवार्य एवं नि:शुल्क रूप से उपलब्ध होना।” शिक्षा के सार्वजनीकरण की संकल्पना भारत में प्राचीन काल से ही विकसित हो चुकी थी। शिक्षा के सार्वजनीकरण की संकल्पना निम्नलिखित कथनों के उदाहरणों से स्पष्ट होगी-
(1) जे. पी. नायक के अनुसार-“शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त माध्यम बनाने तथा इसे राष्ट्रीय विकास से सम्बद्ध करने की आवश्यकता है। शिक्षा को भारत के जनसाधारण के उस वर्ग की ओर उन्मुख करना है, जो गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं, जिससे उनमें आत्म-चेतना जाग्रत हो सके और उनकी उत्पादक क्षमताएँ प्रस्फुटित होकर उन्हें राष्ट्र निर्माण के कार्य में प्रभावी रूप से सहभागी बनने योग्य बनाया जा सके।”
(2) एस. चक्रवर्ती के शब्दों में–“सामाजिक पुनर्निर्माण करने की दृष्टि से, जिसके लिए देश की प्रतिबद्धता है, प्राथमिक शिक्षा के सार्वजनीकरण की समस्या का निःसन्देह निर्णयात्मक महत्त्व है।”
संविधान की धारा 45 के अनुसार 10 वर्ष के अन्दर 6 से 14 वर्ष तक आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देने का संकल्प लिया गया, जो प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण हेतु आवश्यक है। प्राथमिक शिक्षा में निम्नलिखित समस्याएँ पायी गयीं-
1. सुविधाओं की सार्वभौमिकता का अभाव-प्राथमिक विद्यालयों की दूरी । किमी से अधिक होने पर छात्रों को पैदल जाना पड़ता है|
2. नामांकन की सार्वभौमिकता का अभाव- इस समस्या के अंतर्गत बहुत से बालक बालिकाएं ऐसे हैं जिनका विद्यालय में 6 वर्ष की अवस्था में प्रवेश होता है, कहीं-कहीं पहली कक्षा के प्रवेश के समय बालक की आयु 10 से 11 वर्ष भी होती है|
3.शिक्षा को बीच में छोड़ने की समस्या-शिक्षा की यह समस्या पहली दो समस्याओं से जुड़ी हुई है। बालक शाला में आकर कुछ समय के पश्चात् अनेक कारणों से विद्यालय छोड़ देता है। इससे अपव्यय को बढ़ावा मिलता है। इस प्रकार अपरिपक्व अवस्था में बालकों का शाला से हटना शिक्षा के अपव्यय को बढ़ावा देना है।
4.शिक्षा में अपव्यय एवं अवरोधन-प्रत्येक स्तर के प्रत्येक विद्यालय में कई ऐसे विद्यार्थी पाये जाते है जो कुछ समय के बाद बीच में ही विद्यालय से अपना सम्बन्ध विच्छेद कर लेते हैं इससे विद्यार्थियों, उनके माता-पिता तथा समाज का समय, धन एवं शक्ति बर्बादी होती है। इस प्रकार की बर्बादी को ही अपव्यय कहते हैं। हर्टाग समिति ने लिखा है कि अपव्यय से हमारा अभिप्राय है प्राथमिक शिक्षा पूर्ण होने से पूर्व बालकों को विद्यालय की किसी कक्षा से हटा देना। अवरोधन से तात्पर्य बालक को एक ही कक्षा में एक वर्ष से अधिक रखने से है अर्थात् प्राथमिक शिक्षा को निर्धारित न्यूनतम समय से अधिक समय में पूरी करना ही अवरोधन है।
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