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तुगलक वंश का इतिहास, तुगलक वंश (1320-1398) Tughlaq Vansh
तुगलक वंश का इतिहास, तुगलक वंश (1320-1398) Tughlaq Vansh: Hello Friends आज के इस लेख के माध्यम से हम तुगलक वंश के इतिहास के बारे जानकरी देंगे कि तुगलक वंश के अन्तर्गत कितने सुल्तानों ने शासन किया। तथा उन्होने क्या सुधार किये। आदि से सम्बन्धित सम्पूर्ण जानकारी के लिए हमारे इसे लेख को पढ़े. जो छात्र इस सब्जेक्ट से सम्बंधित विभिन्न प्रकार के प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं उन सभी के लिए आज का हमारा यह post बहुत ही Helpful साबित होगा| आप सभी की जानकारी की लिए हम बता दें की तुगलक वंश का इतिहास-महमूद शाह,हुमायूं खां,मुहम्मदशाह,अबू बक्रशाह,तुगलकशाह,फिरोजशाह तुगलक,मोहम्मद बिन तुगलक,गयासुद्दीन तुगलक, से सम्बंधित परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाते हैं| आप सभी को हम यह PDF Notes Download करने का Link नीचे दे रहा हैं आप आसानी के साथ download कर सकते हैं|
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तुगलक वंश (1320 ई.-1414 ई.)
- तुगलक वंश की स्थापना गयासुद्दीन मुहम्मद तुगलक ने की थी। दिल्ली सल्तनत के काल में तुगलक वंश के शासकों ने सबसे अधिक समय तक शासन किया। दिल्ली पर शासन करने वाले तुर्क राजवंशों में अंतिम तुगलक वंश था। नासिरुद्दीन महमूद तुगलक वंश का अंतिम शासक था।
प्रमुख शासक
1. गयासुद्दीन तुगलक (1320 ई.-1325 ई.)
- यह तुगलक वंश का संस्थापक था। इसका वास्तविक नाम गाजी मलिक था। वह करौना तुर्क शाखा का था। तुगलक उसकी उपाधि थी। अपने नाम में गाजी (काफिरो का वध करने वाला) शब्द जोड़ा था। जन्म से गियासुद्दीन भारतीय था उसकी माता जाट थी।
- मंगोल को पराजित करने के कारण वह मलिक उल-गाजी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अलाउद्दीन द्वारा चलाई गई, दाग (घोड़ो का चिन्ह) तथा चेहरा-प्रथा (सैनिक पंजिका) को प्रभावशाली ढंग से लागू किया गया।
- डाक-व्यवस्था अच्छी हो गई थी, 4 दिनों में ही हरकारे देवगिरि से दिल्ली समाचार पहुचा देते थे। डाक प्रणाली को पूर्णत: व्यवस्थित करने का श्रेय गियासुद्दीन को जाता है। उसने अलाउद्दीन के कठोर प्रणाली व उत्तराधिकारियों की अधिक उदारता के बीच मध्यवर्ती नीति अपनायी जिसे रस्मे मियाना (तरीक-ए- एत्दाल) कहा है।
- 1321 ई. में उसने अपने पुत्र जूना खां (उलूग खां) को एक सेना के साथ तेलंगाना पर आक्रमण करने को भेजा। जूना खां ने राजधानी वारंगल के दुर्ग को घेर लिया एवं प्रताप रूद्रदेव पर सुल्तान की अधीनता स्वीकार करने के लिए दबाव डालना आरंभ कर दिया।
- तेलंगाना को सुल्तान ने सल्तनत में मिला लिया। वारंगल, जिसका नया नाम सुल्तानपुर रखा गया, दक्षिण में सल्तनत की राजधानी बन गई। यह अब दिल्ली सल्तनत का भाग बन गया।
- गियासुद्दीन का दूसरा आक्रमण उड़ीसा में स्थित जाजनगर पर हआ। वहां के राजा भानुदेव द्वितीय ने वारंगल के राजा की सहायता की थी। अत:, जूना खां ने वारंगल से वापस आते समय भानुदेव पर 1324 ई. को आक्रमण कर दिया। उलूग खां ने इसपर अपना अधिकार स्थापित किया तथा लूट में मिले धन के साथ वह दिल्ली लौट गया। राजमुंदरी से प्राप्त 1324 ई. के एक अभिलेख से इस विजय की पुष्टि होती है। इसी अभिलेख में जूना खां (उलूग खां) को विश्व का खान कहा गया है।
- इसने सिंचाई के साधनों विशेषकर नहरों का निर्माण करवाया तथा अकाल संहिता का निर्माण किया। सल्तनत काल में नहर बनाने वाला प्रथम शासक था।
- इसने जूना खाँ को वारंगल तथा मदुरै में शासन की पुनर्स्थापना के लिए भेजा। उसने दिल्ली के प्रसिद्ध सूफी संत निजामुद्दीन औलिया से भी पैसा (5 लाख टंका) लौटाने के लिए कहा जो उन्हें धार्मिक अनुदान के रूप में खुसरो खां के समय में दिया गया था परंतु निजामुद्दीन औलिया ने यह कह कर दिया। इस घटना के कारण सूफी संत तथा सुल्तान में विरोध बढ़ता गया।
- बंगाल अभियान के बाद गयासुद्दीन ने शेख निजामुद्दीन को संदेश भेजा कि राजधानी में प्रवेश से पूर्व वह दिल्ली छोड़ दे। शेख का उत्तर था कि दिल्ली अभी दूर (हनूज देहली दूर अस्त) है।
- 1325 ई. में तिरहुत की विजय के पश्चात दिल्ली लौटते हुए मार्ग (दिल्ली, तुगलुकबाद के निकट अफगानपुर) में ही सुल्तान की मृत्यु हो गई।
2.मोहम्मद बिन तुगलक (1325 ई.-1351 ई.)
- अपने पिता गियासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के पश्चात (उपाधि: जूना खां) मुहम्मद तुगलक या मुहम्मद-बिन-तुगलक के नाम से 1325 ई. में गद्दी पर बैठा। उसके राज्यारोहण का किसी ने भी विरोध नहीं किया। वह मुक्त हस्त से धन, उपाधियां एवं जागीरें प्रदान करता हुआ निर्विरोध शासक बन गया।
- इसे इतिहास में एक बुद्धिमान मूर्ख शासक के रूप में जाना जाता है।
- मुहम्मद-बिन-तुगलक तुगलक वंश के संस्थापक गियासुद्दीन तुगलक का ज्येष्ठ पुत्र था। उसका मूल नाम जूना खां (जौना खां) था। उसके पिता ने जूना खां की शिक्षा की समुचित व्यवस्था की। वह सैनिक और बौद्धिक गुणों से परिपूर्ण था।
- अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता कहता है कि गियासुद्दीन तुगलक ने तुगलकाबाद में स्वर्ण जटित ईंटों से एक महल बनवाया और उसके अंदर एक कुंड बना कर सोने से भर दिया था। मुहम्मद तुगलक इच्छानुसार इस धन का उपयोग करता था।
- सुल्तान ने अपने चचेरे भाई मलिक फिरोज को नायब बारबक एवं अपने शिक्षक कयामुद्दीन (कुतलुग खां) को वकील -ए-दर, और अफ्रीकी यात्री इब्न-बतूता को दिल्ली का काजी नियुक्त किया।
- धार्मिक एवं न्यायिक मामलों से उलमा का वर्चस्व समाप्त कर एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की थी। उसके इस कार्य से उलेमा उसके कट्टर दुश्मन बन गए। यद्यपि मुहम्मद ने उलेमा का प्रभाव
- दिल्ली सहित देश के अनेक भागों में प्लेग (ब्लैक डेथ) की महामारी भी फैल गई। दिल्ली में ही महामारी में इतने व्यक्ति मरे कि दिल्ली की हवा भी दूषित हो गई। इससे बचने के लिए सुल्तान को दिल्ली छोड़कर 1337-40 ई. के मध्य स्वर्गद्वारी (कन्नौज के निकट) जाकर रहना पड़ा।
- नया विभाग दीवान-कोही स्थापित किया गया। इसका प्रधान अमीर-ए-कोही था। उसके अधीन कृषि-विभाग रखा गया। वृहद् कृषि की योजना के कार्यान्वयन के लिए दोआब का ही एक क्षेत्र चुना गया।
- दक्षिण में दो प्रभावशाली स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ। इसमें से एक हिंदू सभ्यता-संस्कृति का केंद्र (विजयनगर) और दूसरा मुस्लिम संस्कृति का (बहमनी) बना था।
1. कर वृद्धिः सुल्तान ने दोआब क्षेत्र में कर में वृद्धि ऐसे समय में की जब वहाँ पर अकाल पड़ा था। प्लेग एक महामारी के रूप में फैल गया। इस प्रकार सुल्तान की यह योजना विफल रही।
2. राजधानी परिवर्तन: इसने 1327 ई. में अपनी राजधानी दिल्ली से देवगिरि (दौलताबाद) स्थानान्तरित की थी उत्तर व दक्षिण भारत के सम्पूर्ण साम्राज्य को नियंत्रत किया जा सके। लेकिन न तो जनता इसके महत्व को समझ सकी और न ही इस प्रकार नियंत्रण रखना सम्भव हो सका इसलिए यह योजना विफल हो गयी।
3. सांकेतिक मुद्रा: मोहम्मद बिन तुगलक ने चाँदी के सिक्कों के स्थान पर ताँबें की सांकेतिक मुद्रा चलायी। उसका उद्देश्य सोने-चांदी जैसी बहुमूल्य धातुओं को नष्ट होने से बचाना था परन्तु बड़े स्तर पर नकली सिक्कों का निर्माण शुरू हो गया। इसलिए मोहम्मद बिन तुगलक ने बाजार से सभी ताँबें के सिक्के लेकर सरकारी खजाने से उनके बदले में चाँदी के सिक्के दे दिए। इससे खजाना रिक्त हो गया। यह योजना विफल हो गयी।
4. खुरासान अभियान: इसके अंतर्गत सुल्तान ने मध्य एशिया में स्थित खुरासान राज्य में उत्पन्न अव्यवस्था का लाभ उठाकर वहां कब्जा करने की सोची। इसके लिए अतिरिक्त सेना का गठन किया और 1 वर्ष का वेतन पेशगी में दे दिया, परन्तु खुरासान में व्यवस्था कायम हो जाने के कारण सुल्तान की यह योजना भी विफल रही।
5. कराचिल अभियान: कुमाऊं पहाड़ियों में स्थित कराचिल का विद्रोह दबाने और उसे विजित करने के उद्देश्य से सुल्तान ने अपनी सेना भेजी, परन्तु आरम्भिक सफलता के बाद वहाँ सुल्तान को जन व धन की भारी हानि उठानी पड़ी।
. उसने कृषि के विकास के लिए ‘दीवान-ए-कोही‘ नामक विभाग की स्थापना की थी।
. उसके अंतिम दिनों में लगभग सम्पूर्ण दक्षिण भारत स्वतंत्र हो गया था और विजयनगर, बहमनी, मदुरै स्वतंत्र राज्यों की स्थापना हो गयी थी।
. 1334 ई. में मोरक्को का प्रसिद्ध यात्री इब्नबतूता भारत आया। उसने दिल्ली में 8 वर्षों तक काजी का पद संभाला।
. इब्नबतूता ने भारतीय समकालीन इतिहास पर आधारित पुस्तक ‘सफरनामा’ (रेहला) लिखी।
. 1351 ई. में मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु हो गयी। उसके बाद उसका चचेरा भाई फिरोजशाह तुगलक गद्दी पर बैठा।
3.फिरोजशाह तुगलक (1351 ई.-1388 ई.)
- फिरोजशाह तुगलक का जन्म 1309 ई. में हुआ था। उसके पिता का नाम मलिक रजब था। गियासुद्दीन तुगलक ने अपने भाई की मृत्यु के पश्चात फिरोज की देखभाल की गया। मुहम्मद तुगलक ने भी इसका विशेष ध्यान रखा। उसे राजनीति एवं प्रशासन की समुचित शिक्षा प्रदान किया गया। उसे अमीर-ए-हाजिब के पद पर नियुक्त किया गया। इस पर रहते हुए उसने सुल्तान मुहम्मद तुगलक की सेवा कर उनका विश्वास प्राप्त कर लिया।
- उलेमा के सहयोग से 22 मार्च, 1351 को थट्टा में ही फिरोज का राज्याभिषेक संपन्न हुआ। खुदाबंदजादा ने भी यह निर्णय स्वीकार कर लिया।
- वह एक उदार शासक था और उसने उलेमा वर्ग की सलाह मानते हुए धार्मिक आधार पर एक इस्लामिक राज्य की स्थापना की थी।
- हिंदुओं को जिम्मी की संज्ञा दी गई। अब ब्राह्मणों को भी जजिया देने को बाध्य किया गया। हिंदुओं के अनेक मंदिर नष्ट कर दिए गए, मंदिरों की मरम्मत पर पाबंदी लगा दी गई।
- राज्य ने मुख्यतः 4 कर-खराज (भूमि कर), जकात (मुस्लिमों से), जजिया कर (गैर मुस्लिमों से) और खुगस (युद्ध में लूट का माल) वसूले गये।
- सिंचाई की सुविधा के लिए अनेक नहरों का निर्माण हुआ इसमें 5 नहरें प्रमुख थी।
1. यमुना नदी से हिसार तक 150 मील लंबी अलूगखनी-नहर।
2. सतलज से घग्घर तक 96 मील लंबी रजबहा-नहर।
3. सिरमौर से हांसी तक की नहर।
4. घग्घर से फिरोजाबाद तक की नहर।
5. यमुना से फिरोजाबाद तक की नहर। - द्वितीय अभियान के बाद जौनपुर नगर की स्थापना की गई तथा फतह खां को
सुल्तान ने अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। सिक्खों में अपने नाम के साथ फतह खां का नाम भी खुदवाया। - उलेमा का समर्थन एवं प्रशंसा पाने के उद्देश्य से फिरोज ने पुरी एवं वहां स्थित जगन्नाथ के मंदिर को लूटा व मंदिर की मूर्ति समुद्र में फेंक दी गई। बाध्य होकर जाजनगर के राजा ने सुल्तान की अधीनता स्वीकार कर ली। वह प्रतिवर्ष कर के रूप में कुद हाथी देने पर सहमत हो गया। जाजनगर के बाद वीरभूमि के हिंदू-राजा और अनेक सामंतों को पराजित करता हुआ, उनसे अपनी अधीनता स्वीकार करवाता हुआ सुल्तान दिल्ली लौट गया।
- फिरोजशाह, सैनिक व्यवस्था के दृष्टिकोण से पूरी तरह असफल सिद्ध हुआ।
- उसने सेना में वंशवाद को बढ़ावा दिया तथा सैनिकों को वेतन के रूप में भूमि प्रदान की। उसके शासन काल में सेना में भ्रष्टाचार फैल चुका था।
- फिरोजशाह अपने आर्थिक व प्रशासनिक सुधारों के कारण ‘सल्तनत काल का अकबर‘ कहलाता था।
- फिरोजशाह ने हिसार, फिरोजाबाद, फतेहाबाद, फिरोजशाह कोटला, जौनपुर नगरों की स्थापना की थी।
- उसने नहरों, अस्पतालों मस्जिदों तथा गुम्बदों का निर्माण करवाया था।
- उसने आकाशीय बिजली से ध्वस्त हुई कुतुबमीनार की 5वीं मंजिल का पुनर्निमाण करवाया। वह मेरठ तथा टोपरा (अम्बाला) स्थित अशोक स्तम्भों को दिल्ली ले गया तथा फिर अपनी नयी राजधानी फिरोजाबाद में उन्ह स्थापित किया।
- उसने दासों के लिए एक नये विभाग ‘दीवान-ए-बंदगान की स्थापना की (उसके पास 1,80,000 गुलाम) थी।
- उसने निर्धन महिलाओं एवं बच्चों की आर्थिक सहायता के लिए ‘दीवान-ए-खैरात‘ नामक दान विभाग की स्थापना की।
- उसने निर्धन वर्ग के निःशुल्क चिकित्सा हेतु एक खैराती अस्पताल ‘दारुल-शफा‘ की स्थापना की।
- इसके अलावा फिरोजशाह तुगलक ने मैरिज ब्यूरो, लोक निर्माण विभाग तथा रोजगार कार्यालय की स्थापना की थी।
- फिरोजशाह ने दो नये सिक्के ‘अधा‘ (जीतल का 50%) तथा ‘बिख‘ (जीतल का 25%) चलाये थे। उसने फारसी भाषा में अपनी आत्मकथा ‘फुतुहात-ए-फिरोजशाही’ की रचना की थी।
- प्रसिद्ध इतिहासकार बरनी उसका दरबारी था उसने ‘तारीख -ए-फिरोजशाही‘ तथा ‘फतवा-ए-जहाँदारी‘ नामक प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं।
- 1388 ई. में फिरोजशाह तुगलक की मृत्यु के बाद तुगलक वंश लगभग समाप्त हो गया क्योंकि उसके बाद के शासक अयोग्य थे।
- 1360 ई. सुल्तान का आक्रमण नगरकोट पर हुआ जिसपर मुहम्मद तुगलक ने भी आक्रमण किया था। मुहम्मद के समय में नगरकोट के राजा ने दिल्ली की अधीनता स्वीकार कर ली थी।
4. तुगलकशाह-II (1388-1389 ई.)
- फिरोजशाह को मृत्यु के पश्चात तुगलकशाह गियासुद्दीन तुगलक के नाम से 1388 ई. में गद्दी पर बैठा। तुगलकशाह एक दुर्बल और अयोग्य शासक था।
- मुहम्मद खां ने पुनः राजसत्ता हथियाने का प्रयास किया, परंतु पराजित होकर भाग खड़ा हुआ। इसी समय जफर खां के पुत्र अबू बक्र ने भी गद्दी हथियाने का प्रयास किया। उसने अपने सहयोगियों के साथ फरवरी,1389 ई. में राजमहल पर आक्रमण कर तुगलक शाह की हत्या कर दी एवं स्वयं शासक बन बैठा।
5. अबू बक्रशाह (1389-1390 ई.)
- फरवरी, 1389 ई. में अबू बक्र सुल्तान बन बैठा, परंतु वह भी एक वर्ष से अधिक समय तक शासन नहीं कर सका। उसका सारा समय राजनीतिक षड्यंत्रों एवं कुचकों को दबाने में व्यतीत हुआ।
- मुहम्मद खां (मुहम्मदशाह) की निगाहें अब भी दिल्ली पर लगी हुई थी। उसने अपने-आपको समाना में सुल्तान घोषित कर दिया। उसकी सहायता मुलतान, समाना, लाहौर, हिसार और हांसी के अक्तादार कर रहे थे। इनके सहयोग से उसने
दिल्ली पर आक्रमण की योजना बनाई। - दिल्ली का कोतवाल भी उससे मिल गया। 1390 ई. में अबू बक्र को गद्दी से उतार कर मुहम्मदशाह स्वयं सुल्तान बन बैठा।
6.मुहम्मदशाह (उपाधिः नासिरूद्दीन मुहम्मदशाह-III)
- 1390 ई. में नासिरूदीन मुहम्मदशाह सुल्तान बन गया, तथापि उसकी स्थिति उसके पूर्व के सुल्तानों से अच्छी नहीं थी प्रारंभ में उसने अपनी शक्ति स्थापित करने का प्रयास किया एवं राजनीतिक षड्यंत्रों पर नियंत्रण कायम किया। उसने जफर खां को भेजकर गुजरात में नियंत्रण स्थापित किया। इटावा एवं दोआब के विद्रोहों का भी दमन किया गया। 1694 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
7.हुमायूं खां (उपाधिः अलाउद्दीन सिकंदर शाह-1)
- मुहम्मदशाह शाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र हुमायूं सुल्तान अलाउद्दीन सिकंदर शाह की उपाधि धारण कर 22 जनवरी, 1394 ई. को गद्दी पर बैठा। उसका अल्प शासनकाल उपद्रवों से भरा रहा। सिकंदरशाह ने केवल 1 माह 16 दिन शासन किया। 7 मार्च, 1394 ई. को उसकी मृत्यु हो गयी।
8.महमूद शाह (1394-1413 ई.)
- मार्च, 1394 ई. में महमूदशाह दिल्ली का सुल्तान बना। उसके समय में सल्तनत की स्थिति और अधिक बिगड़ गई। लगातार विद्रोह एवं षड्यंत्र होने लगे। महमूदशाह में इन्हें दबाने की क्षमता नहीं थी। ख्वाजाजहां ने जौनपुर में स्वतंत्र शर्कीराज्य की स्थापना कर ली। इसी प्रकार गुजरात, मालवा एवं खानदेश में स्वतंत्र राज्यों की स्थापना की गई। दीपालपुर के सूबेदार सारंग खां ने समस्त पश्चिमोत्तर सीमा को अपने कब्जे में कर लिया।
- नुसरतशाह ने स्वयं को फिरोजाबाद में सुल्तान घोषित कर दिया एवं दिल्ली पर आक्रमण की योजना बनाने लगा। इसी समय एक ऐसी घटना घटी, जिसने साम्राज्य की बची शक्ति व प्रतिष्ठा नष्ट कर दी। मंगोल नेता तैमूर लंग का 1398 ई. में आक्रमण किया था।
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