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पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ
पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ होता है— पर्यावरण की गुणवत्ता को कम करना, जो मानवीय क्रियाओं द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के अधिक उपयोग के कारण होता है, जैसे वनों के कटाव से, कृषि में, रासायनिक खादों के प्रयोग से तथा औद्योगीकरण से । इस प्रकार मानवीय क्रियाओं द्वारा स्थानीय सर पर पर्यावरण की गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव डालना एवं इसमें परिवर्तन होना पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है। निम्नलिखित प्रकार के प्रदूषण को पर्यावरण के क्षेत्र में सम्मिलित किया गया है-
(1) वायु प्रदूषण (Air pollution)।
(2) जल प्रदूषण (Water pollution)।
(3) ध्वनि प्रदूषण (Sound pollution)।
(4) भूमि प्रदूषण (Soil or land pollution)।
(5) रेडियोधर्मी प्रदूषण (Radio active pollution) ।
वायु प्रदूषण के कारण (Causes of air pollution)
वायुमण्डल में जो पदार्थों के कण या गैसें वायु में सम्मिलित होते हैं वह प्रायः सभी हानिकारक नहीं होते। मूलरूप में जो पदार्थ वायु प्रदूषण के कारण बनते हैं, वे निम्नलिखित हैं-
1. कार्बन पदार्थ (Carbon substance)– कार्बन पदार्थों में वायु प्रदूषण कार्बन मोनो ऑक्साइड से अधिक होता है, जो मानव जीवन के लिये बहुत हानिकारक होता है। यह मुख्य रूप से कोयले के जलने, बिजली उत्पादन के यन्त्रों एवं गैस से चलने वाले इंजनों से उत्पन्न होता है, जो मनुष्य के रक्त में मिल जाती है और उसके नाड़ी तन्त्र को प्रभावित करती है।
2. कार्बन डाई ऑक्साइड (Carbon dioxide)- मूलरूप से यह गैस कार्बन-चक्र का एक भाग है । यह कोयला आदि जलने से उत्पन्न होती है । इस गैस में सूर्य की विकिरण ऊर्जा को सोख लेने की शक्ति होती है, जिससे ग्रीन हाउस इफ्फेक्ट की सम्भावना बढ़ जाती है, जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ जाता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से प्रदूषण को उत्पन्न करता है।
3. सल्फर डाई-ऑक्साइड (Sulphure dioxide)- सामान्य रूप से वायुमण्डल में सल्फर डाई ऑक्साइड से वायु प्रदूषण होता है। (SO) (SO, ) ये दोनों महत्त्वपूर्ण सल्फर ऑक्साइड हैं। यह गैसें पेट्रोल एवं कोयले के जलने से उत्पन्न होती हैं और यह मानव की श्वांस क्रिया को प्रभावित करती है ।
यह गैस वायुमण्डल में आर्द्रता से तुरन्त क्रिया करके सल्फ्यूरिक एसिड बनाती है, जो अनेक श्वांस की बीमारियों की जड़ है। कभी-कभी इसकी वर्षा होने से वनस्पति नष्ट हो जाती है, जिससे प्रदूषण की मात्रा वायु में बढ़ जाती है। सल्फर ज्वालामुखी विस्फोट से निकलता है। यह शहरों में सीवर से भी उत्पन्न होता है। इसका मूल स्रोत तो वे कारखाने हैं, जिनमें हाइड्रोजन सल्फाइड को ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
4. नाइट्रोजन ऑक्साइड (Nitrogen oxide)- यह सबसे महत्त्वपूर्ण वायु प्रदूषक है। नाइट्रोजन ऑक्साइड अवशेषों के जलने तथा वाहनों एवं बिजली उत्पादन के संयन्त्रों से अधिक उत्पन्न होती है। इससे अल्ट्रावाइलट प्रकाश की मात्रा कम हो जाती है। यह ऑक्सीजन से मिलकर नाइट्रिक एसिड तैयार करती है। यह क्षरणशील, पीड़ादायक और विषैला होती है। इससे रासायनिक कोहरा भी उत्पन्न होता है।
5. धूल (Dust)- वायुमण्डल में धूल भी प्रदूषण का महत्त्वपूर्ण अंग है। यहहजारों किलोमीटर चलकर समुद्र तथा रेगिस्तानों से चली आती है। सहारा और अरब के मरुस्थलों के धूल के कण भारत तक आ जाते हैं।
6. बेंनजीन (Benzine)- बेंनजीन, धुएँ, तम्बाकू, तारकोल तथा गैसोलीन से अधिक निकलता है। पृथ्वी पर कूड़े और कचरे के सड़ने के कारण से भी यह उत्पन्न होती है, जिससे स्थानीय पर्यावरण पर दूषित प्रभाव पड़ता है और वायु प्रदूषण उत्पन्न होकर मानव जीवन के स्वास्थ्य को अधिक प्रभावित करता है ।
7. पारा (Mercury)- पारा एक तरल पदार्थ है, जो चट्टानी तथा मिट्टी में पाया जाता है। यह वायुमण्डल के कणों के रूप में रहकर मानव के नाड़ी संस्थान लिवर एवं आँखों को प्रभावित करता है। इसके प्रदूषण से थकान, सिरदर्द, आलस्य, भूख का कम लगना आदि बीमारियों का जन्म होता है ।
8. जस्ता (Zinc)- यह प्राकृतिक पदार्थ नहीं है, यह जस्ता शोधक कारखानों एवं जिंक को पिघलाने से वायु में आ जाता है। ताँबा, शीशा एवं स्टील के कारखानों से भी जिंक के कण वायु में मिल जाते हैं। लोहे के कारखानों से भी यह निकलता रहता है, जो वायु को प्रदूषित करता रहता है।
वायु प्रदूषण निवारण के उपाय (Measures of solution of air pollution)
वायु प्रदूषण के निवारण का उपाय वैज्ञानिक शोध से किया जा सकता है, जिसे व्यापक रूप से क्रमबद्ध रूप में किया जाना चाहिये वायु प्रदूषण के निवारण लाभ पर्यावरण की गुणवत्ता, कृषि के विकास, मानव स्वास्थ्य, वनस्पति संरक्षण एवं सभी समुदायों को होगा। यह एक विश्वव्यापी समस्या है। अतः विश्व के अनेक देशों में इस प्रदूषण को रोकने के नियम लागू किये गये हैं। इसी क्रम में भारत में भी सन् 1981 में एक एयर प्रीवेन्शन एक्ट बनाया गया परन्तु आवश्यकता इस बात की है कि जनसामान्य में भी इसके प्रति जागरूकता उत्पन्न की जाये। शहरों तथा औद्योगिक क्षेत्रों का भली-भाँति सर्वेक्षण किया जाये तथा वायु प्रदूषण का ज्ञान जन सामान्य को भी प्रदान किया जाये।
वायु प्रदूषण के मूल रूप से तीन स्रोत माने जाते हैं- (1) स्वचालित वाहन । (2) औद्योगिक कार्यतन्त्र । (3) शक्ति उत्पादक यन्त्र (कोयला, ताप तथा विद्युत) ।
अग्रलिखित उपायों को वायु प्रदूषण निवारण के लिये उपयोग में लाया जा सकता है-
1. स्वचालित वाहन (Automobiles) इससे वायु प्रदूषण को निम्नलिखित उपायों से नियन्त्रित किया जा सकता है-
(1) स्वचालित वाहनों में प्रदूषण का यन्त्र लगाकर। (2) स्वचालित वाहनों के कार्बोरेटरों एवं टंकियों की भाप को रोकने के उपाय द्वारा। (3) मोटर व्हीकल एक्ट का कड़ाई से पालन कराया जाये । (4) वाहनों में उचित फिल्टर का प्रयोग कराया जाये ।
2. औद्योगिक विकास (Industrial growth )— उद्योगों द्वारा जिन पदार्थों से वायु प्रदूषण होता है उन पदार्थों, गैसों तथा अन्य अनुपयोगी पदार्थों को यन्त्रों के माध्यम से पृथक् किया जाना चाहिये । इस प्रयास के लिये इन यन्त्रों एवं साधनों का प्रयोग किया जाना चाहिये-
(1) साइक्लिक कलेक्टर । (2) इलेक्ट्रोस्टैटिक यन्त्र । (3) कानून द्वारा नियन्त्रण ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी वायु प्रदूषण के लिये अग्रलिखित उपाय सुझाये हैं (1) विषैले पदार्थों को वायु में सम्मिलित होने से रोकना। (2) पुरानी तकनीक में परिवर्तन कर नयी तकनीक को अपनाना। (3) पानी में घुलनशील विषैले पदार्थों में कमी करना ।
3. शक्ति उत्पादक यन्त्र (Power generating instrument)- शक्ति उत्पादन में प्रयोग में लाये जाने वाले ईंधनों में धुआँ, धूल, गैसें तथा भाप – सल्फर ऑक्साइड, ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाइट्रोजन आदि जो आन्तरिक ज्वलन इंजनों से प्रसारित करते हैं, जिसमें डीजल, तेल एवं गैस आदि सम्मिलित हैं। इससे होने वाले प्रदूषण को उपयुक्त ज्ञान के आधार पर काफी मात्रा में रोका जा सकता है। यदि किसी वाहन से धुआँ निकल रहा है तो इसे तुरन्त ठीक कराया जाना चाहिये अन्यथा इससे ईंधन बर्बाद होगा। उद्योगों में वायलरों एवं भट्ठियों में वायु की उचित आपूर्ति करके भी प्रदूषण को रोका जा सकता है।
4. प्रदूषण सूचक यन्त्र लगाकर (Use of pollution indicators instruments)— जिन संयन्त्रों से अधिक मात्रा में प्रदूषक तत्त्व निकलते हैं, उनमें प्रदूषण नियन्त्रक यन्त्र एवं चेतावनी यन्त्रों को लगाकर प्रदूषण को रोका जा सकता है।
5. वायु प्रदूषण निवारण शोध (Air pollution control research) — वायु प्रदूषण निवारण सम्बन्धी शोध कार्य व्यापक रूप से चलाये जाने चाहिये। कभी-कभी कुहासा तथा विलोम की परिस्थितियों में प्रदूषण के घटकों की सही प्रतिक्रिया जानने के लिये व्यापक शोध कार्य किया जाना चाहिये। इस कार्य में अच्छे शोधकर्ताओं एवं अच्छे उपकरणों का सहयोग प्राप्त किया जा सकता है।
6. उचित प्रशिक्षण (Appropriate training)— प्रदूषण निवारण को प्रभावी बनाने के लिये केन्द्रीय प्रशासन, जनमत तथा जन सहयोग की परम आवश्यकता है। अतः केन्द्र सरकार को चाहिये कि वह इस सम्बन्ध में एक जनशिक्षा कार्यक्रम चलाये। शिक्षण संस्थानों में प्रदूषण से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों पर व्यापक रूप से शिक्षण प्रदान किया जाये।