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पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 | Environment Protection Act 1986 in Hindi

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986

भारत सरकार ने पर्यावरण प्रदूषण के निवारण, नियन्त्रण तथा उपशयन के लिये, अपने वचनानुसार सन् 1972 से ही, स्टाक होम (स्वीडन में), जब संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण पर विचार व्यक्त करने हेतु विश्व के देशों का सम्मेलन बुलाया था, कार्य करना आरम्भ कर दिया था। इस दिशा में भारतीय संविधान में पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी 40वाँ संविधन संशोधन, एक महत्त्वपूर्ण कार्य था । इसके अनुच्छेद 43 ए के अनुसार, “राज्य, देश के पर्यावरण संरक्षण और सुधार का तथा वन एवं वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा । ” 42वें संशोधन के अनुच्छेद (51A (g) के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक व्यक्ति का यह कर्त्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका सुधार करे तथा प्राणीमात्र के प्रति दयाभाव रखे। भारत सरकार ने सन् 1980 में पर्यावरणीय मन्त्रालय की स्थापना भी की । सरकारी स्तर पर उठाये गये यह कदम तथा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आहूत की गयी सभी देशोंकी कॉन्फ्रेन्स इस तथ्य की द्योतक है कि पर्यावरण प्रबन्धन, प्रदूषण निवारण तथा नियन्त्रण के लिये कितना आवश्यक है ? सरकार ने जो कार्य इस दिशा में आरम्भ किये, वह जब अपर्याप्त लगे तो सन् 1986 में पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 को लागू किया गया । इस अधिनयम के अन्तर्गत पर्यावरण सम्बन्धी यह परिभाषाएँ दी गयी-

1. पर्यावरण- इसके अन्तर्गत जल, वायु, भूमि तथा उसके मध्य विद्यमान अन्तर्समन्वय तथा मानव, अन्य जीवित प्राणी, पादप और सूक्ष्म जीव आदि आते हैं ।

2. पर्यावरण प्रदूषक— ठोस, द्रव और गैसीय पदार्थों की सान्द्रता, जो कि पर्यावरण के लिये घातक होती है, उसे पर्यावरणीय प्रदूषण कहते हैं ।

3. परिसंकटमय पदार्थ – इन पदार्थों से आशय उन वस्तुओं से है, जिनके कारण मानकों, अन्य जीवित प्राणियों, पादपों, सूक्ष्मजीवों, सम्पत्ति या पर्यावरण को हानि पहुँचे ।

4. प्रवेश तथा निरीक्षण का अधिकार (Right to entry and inspection ) — इस प्रावधान ‘द्वारा केन्द्र सरकार द्वारा समर्थ पदाधिकारियोंको कहीं प्रवेश करने और जाँच पड़ताल की शक्ति तथा प्रक्रिया. दी गयी है, जैसे-

(1) नमूना लेने की शक्ति और उसकी अनुकरणीय प्रक्रिया । (2) पर्यावरणीय प्रयोगशालाओं और उनके कार्य । (3) शासकीय विश्लेषण । (4) शासकीय विश्लेषण की रिपोर्ट । (5) अधिनियमों तथा नियमों, आदेशों तथा निर्देशों के उल्लंघन के लिये दण्ड निर्धारण।

प्रभावी क्षेत्र तथा सीमाएँ

भारत में यह अधिनियम 25 मार्च सन् 1986 को लागू किया गया था। इस अधिनियम में उन पहलुओं को भी सम्मिलित किया गया, जो जल अधिनियम सन् 1974 तथा वायु अधिनियम सन् 1981 में छूट गये थे। इस अधिनियम में यह भी प्रावधन है कि यदि कोई उद्योग इस अधिनियम की उपेक्षा करता है तो सरकार उसे बन्द कर सकती है। इसमें दण्ड का प्रावधान इस प्रकार है, “जो भी इस अधिनियम की उपेक्षा करेगा उसे 5 वर्ष की सजा तथा एक लाख रुपये जुर्माने या दोनों ही प्रकार से दण्डित किया जा सकता है। यदि दण्डित होने के पश्चात् भी उपेक्षा जारी रहे तो सजा सात वर्ष तक बढ़ायी जा सकती है तथा 5 हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना वसूल किया जा सकता है। “

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shubham yadav

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