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प्रथम विश्व युद्ध के कारण,परिणाम,युद्ध का प्रभाव,प्रथम विश्व युद्ध और भारत
प्रथम विश्वयुद्ध इतिहास की एक महत्तवपूर्ण घटना है | यह एक ऐसी घटना थी जब एक यूरोपीय युद्ध विश्वयुद्ध में परिवर्तन हो गया | इस युद्ध की पृष्ठभूमि में अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति, साम्राज्यवादी प्रतिद्वंद्विता, शास्त्रों की होड़, उग्र राष्ट्रवाद, ऑस्ट्रिया के राजकुमार फर्डीनेंड की सेराजेवों में हत्या आदि तत्व शामिल थे इस युद्ध में जितनी अधिक धन-जन की बर्बादी हुई उतनी बर्बादी मानव इतिहास के किसी भी युद्ध में इसके पूर्व नहीं हुई थी | इससे पूर्व की लड़ाइयों में गैर-सैनिक जनता साधारणतया शामिल नहीं होती थी तथा जान की हानि आमतोर पर युद्धरत सेनाओं को उठानी पड़ती थी | 1914 ई. के इस विश्व युद्ध का क्षेत्र सर्वव्यापी था
एवं इस युद्ध में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर विश्व के लगभग सभी देश सम्मिलित हुए | इस दौरान यूरोप, एशिया, अफ्रीका तथा प्रशांत क्षेत्र में लड़ाइयाँ लड़ी गई थी | इसके अभूतपूर्व विस्तार एवं सर्वांगीण प्रकृति के कारण ही इसे “प्रथम विश्व युद्ध” कहा गया | यह विश्व युद्ध 28 जुलाई 1914 से 11 नवम्बर, 1918 तक चला था |
7.1 प्रथम विश्व युद्ध के कारण (Causes of First World War)
यूरोपीय युद्ध ने पहली बार विश्व युद्ध का रूप ले लिया था | इसमें विश्व के सभी देश प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित हुए | प्रथम विश्व युद्ध अनेक कारणों का परिणाम था | इन कारणों को निन्मलिखित बिन्दुओं के द्वारा समझा जा सकता है –
प्रथम विश्व युद्ध के कारण
यूरोपीय कूटनीतिक व्यस्वस्था
- 1871 ई. में जर्मनी के एकीकरण के पश्चात् बिस्मार्क द्वारा यह घोषणा की गयी थी कि जर्मनी एक संतुष्ट राष्ट्र है एवं वह क्षेत्रीय विस्तार के संबंध में कोई इच्छा नहीं रखता है | इसके बावजूद उसने फ्रांस से अल्सास-लॉरेन का क्षेत्र लेकर उसे आहत कर दिया और यह वही बिंदु है जिस पर जर्मनी को हमेशा यह भय बना रहता था कि फ्रांस यूरोप में दूसरे देशों के साथ मित्रता स्थापित कर जर्मनी के खिलाफ बदले की कार्रवाई न कर दे |
- बिस्मार्क अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर फ्रांस को अलग-थलग अथवा एकाकी रखने के लिए कूटनीतिक जाल बुनने लगा | इसी उद्देश्य से प्रेरित होकर उसने 1879 ई. में ऑस्ट्रिया के साथ द्वैध संधि की जो एक गुप्त संधि थी | 1882 ई. में इटली ने द्वैध संधि में शामिल होकर इसे त्रिवर्गीय संधि का रूप प्रदान किया |
- बिस्मार्क की यह कोशिश भी रही कि रूस के साथ सम्यक् संबंध कायम हो, इसलिए 1871, 1881 तथा 1887 ई. में उसने रूस के साथ संधि कर उसे अपने पक्ष में मिलाये रखा | इस प्रकार बिस्मार्क की यह हर संभव कोशिश रही कि फ्रांस को मित्रहीन बनाएं रखा जाए और वह इसमें सफल भी रहा |
- 1890 ई. में बिस्मार्क के चांसलर पद से हटने के बाद जर्मन सम्राट विलियम कैसर उसकी इस विरासत को सम्भाल पाने में सफल नहीं रहा | 1894 ई. में फ्रांस ने अंततः रूस से मित्रता कर ली | 1907 ई. में इंग्लैंड, फ्रांस तथा रूस ने आपस में समझौता कर इसे ‘त्रिवर्गीय मैत्री संघ’ का रूप दिया | इस प्रकार यूरोपीय देशों में जबरदस्त गुटबाजी का दौर चल पड़ा |
सभी साम्राज्यवादी देशों ने अपने-अपने हितों को साधने के लिए गुटबाजी को प्रश्रय दिया एवं आपस में गुप्त संधियाँ कीं | इन विभिन्न यूरोपीय देशों के इन कृत्यों से यूरोप में शंका का वातावरण व्याप्त हो गया | इस प्रकार इन दोनों गुटों में प्रतिद्वंद्विता एवं तनाव बढ़ता गया तथा प्रथम विश्व युद्ध में दोनों गुट एक-दुसरे के विरुद्ध लड़ने में संलग्न हो गए |
प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम
परिणामों के दृष्टिकोण से प्रथम विश्वयुद्ध को विश्व इतिहास का एक परिवर्तन बिंदु माना गया है. इसके अनेक तत्कालीन और दूरगामी परिणाम हुए. इस युद्ध का प्रभाव राजनीतिक, सैनिक, सामाजिक और अर्थव्यवस्था पर पड़ा—
राजनीतिक परिणाम
साम्राज्य का अंत
- प्रथम विश्वयुद्ध में जिन बड़े साम्राज्य में केंद्रीय शक्तियों के साथ भाग लिया था उनका युद्ध के बाद पतन हो गया.
- पेरिस शांति सम्मेलन के परिणाम स्वरुप ऑस्ट्रिया हंगरी सम्राज्य बिखर गया.
- जर्मनी में होहेंज्जोर्लन और ऑस्ट्रिया हंगरी में हप्स्वर्गराजवंश का शासन समाप्त हो गया. वहां गणतंत्र की स्थापना हुई.
- इसी प्रकार 1917 में रूसी क्रांति के परिणाम स्वरुप रूस में रोमोनोव राजवंश की सत्ता समाप्त हो गई एवं गणतंत्र की स्थापना हुई.
- तुर्की का ऑटोमन साम्राज्य भी समाप्त हो गया उसका अधिकांश भाग यूनान और इटली को दे दिया गया.
विश्व मानचित्र में परिवर्तन
- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद विश्व मानचित्र में परिवर्तन आया. साम्राज्यों के विघटन के साथ ही पोलैंड ,चेकोस्लोवाकिया, युगोस्लाविया जैसे नए राष्ट्रों का उदय हुआ.
- ऑस्ट्रिया, जर्मनी, फ्रांस और रूस की सीमाएं बदल गई.
- बाल्टिक साम्राज्य, रूसी साम्राज्य से स्वतंत्र कर दिए गए.
- एशियाई और अफ्रीकी उपनिवेशों पर मित्र राष्ट्रों का अधिकार करने से वहां भी परिस्थिति बदली. इसी प्रकार जापान को भी अनेक नए क्षेत्र प्राप्त हुए. इराक को ब्रिटिश एवं सीरिया को फ्रांसीसी संरक्षण में रख दिया गया.
- फिलिस्तीन, इंग्लैंड को दे दिया गया.
सोवियत संघ का उदय
- प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान रूस में 1917 में बोल्शेविक क्रांति हुई. इसके परिणाम स्वरुप रूसी साम्राज्य के स्थान पर सोवियत संघ का उदय हुआ. जारशाही का स्थान समाजवादी सरकार ने ले लिया.
उपनिवेशों में जागरणयुद्ध के दौरान मित्र राष्ट्रों ने घोषणा की थी की युद्ध समाप्त होने पर अंतिम निर्णय के सिद्धांत को लागू किया जाएगा. इससे अनेक उपनिवेशों और पराधीन देशों में स्वतंत्रता प्राप्त करने की भावना बलवती हुई.प्रत्येक उपनिवेश में राष्ट्रवादी आंदोलन आरंभ हो गए. भारत में भी महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1917 से स्वतंत्रता संग्राम का निर्णायक चरण आरंभ हुआ.
विश्व राजनीति पर से यूरोप का प्रभाव कमजोर पड़ना
युद्ध के पूर्व तक विश्व राजनीति में यूरोप का अग्रणी भूमिका थी. जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड और रूस के इर्द-गिर्द विश्व राजनीति घूमती थी. परंतु 1918 के बाद यह स्थिति बदल गई योधोत्तर काल में अमेरिका का दबदबा बढ़ गया.
अधिनायकवाद का उदय
- प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम स्वरुप अधिनायकवाद का उदय हुआ.
- वर्साय की संधि का सहारा लेकर जर्मनी में हिटलर और उसकी नाजी पार्टी ने सत्ता हथिया ली.
- नाजीवाद ने एक नया राजनीतिक दर्शन दिया इससे सारी सत्ता एक शक्तिशाली नेता के हाथों में केंद्रित कर दी गई.
- जर्मनी के समान इटली में भी मुसोलिनी के नेतृत्व में फासीवाद का उदय हुआ. इटली भी पेरिस सम्मेलन से असंतुष्ट था. अतः मित्र राष्ट्रों के प्रति इटली की कटुता बढ़ती गई. हिटलर के सामान और मुसोलिनी में भी सारी सत्ता अपने हाथों में केंद्रित कर ली.
द्वितीय विश्वयुद्ध का बीजारोपण
प्रथम विश्वयुद्ध ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच भी बो दिए. पराजित राष्ट्रों के साथ जिस प्रकार का व्यवहार किया गया इससे वह अपने को अपमानित समझने लगे. उन राष्ट्रों में पुनः उग्र राष्ट्रीयता प्रभावी बन गई प्रत्येक राष्ट्र एक बार फिर से अपने को संगठित कर अपनी शक्ति बढ़ाने लगा एक एक कर संधि की शर्तों को जोड़ा जाने लगा. इससे विश्व एक बार फिर से बारूद के ढेर पर बैठ गया इसकी अंतिम परिणति द्वितीय विश्वयुद्ध में हुई.
विश्व शांति की स्थापना का प्रयास प्रथम
सैन्य परिणाम
- पेरिस सम्मेलन में पराजित राष्ट्र की सैन्य शक्ति को कमजोर करने के लिए निरस्त्रीकरण की व्यवस्था की गई. इस नीति का सबसे बड़ा शिकार जर्मनी हुआ .विजित राष्ट्रों ने अपनी सैन्य शक्ति में वृद्धि करनी आरंभ कर दी इस से पराजित राष्ट्रों में भय की भावना जगी. अतः वे भी अपने को मजबूत करने के प्रयास में लग गए इससे हथियारबंदी की होड़ आरंभ हो गई जिसका विश्व शांति पर बुरा प्रभाव पड़ा.
आर्थिक परिणाम
जन धन की अपार क्षति
प्रथम विश्वयुद्ध एक प्रलयंकारी युद्ध था. इसमें लाखों व्यक्ति मारे गए.अरबों की संपत्ति नष्ट हुई. इसका सामाजिक आर्थिक व्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा. हजारों कल कारखाने बंद हो गए. कृषि उद्योग और व्यापार नष्ट प्राय हो गए. बेकारी और भुखमरी की समस्या उठ खड़ी हुई.
आर्थिक संकट
प्रथम विश्वयुद्ध ने विश्व में आर्थिक संकट उत्पन्न कर दिया. वस्तुओं के मूल्य बढ़ गए मुद्रा स्थिति की समस्या उठ खड़ी हुई. फलतः संपूर्ण विश्व में आर्थिक अव्यवस्था व्याप्त गई ऋण का भाड़ बढ़ने से जनता पर करो का बोझ बढ़ गया
सरकारी आर्थिक नीतियों में परिवर्तन
सामाजिक परिणाम
नस्लों की समानता
युद्ध के पूर्व यूरोपियन नस्लभेद अथवा काला गोरा के विभेद पर अधिक बल देते थे. वह एशिया अफ्रीका के काले लोगों को अपने से ही मानते थे. परंतु युद्ध में उनकी वीरता देखकर उन्हें अपनी धारणा बदलनी पड़ी. धीरे धीरे काला गोरा का भेद कम होने लगा.
जनसंख्या की क्षति
स्त्रियों की स्थिति में सुधार
मजदूरों की स्थिति में सुधार
सामाजिक मान्यताओं में बदलाव
वैज्ञानिक प्रगति
इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्रथम विश्वयुद्ध के कुछ सुखद परिणाम हुए परंतु अधिकांश परिणाम दुखदाई ही थे
पुनर्जागरण का अर्थ और पुनर्जागरण के कारण
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