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प्राथमिक तथ्यों के संकलन के प्रमुख स्रोत
1. प्राथमिक सामग्री या तथ्य- प्राथमिक तथ्यों से आशय इस प्रकार की सामग्री से है, जिसका एकत्रीकरण / संग्रहण/संकलन/प्राप्ति प्रारम्भ से अन्त तक नए सिरे से होता है और जिसे पहली बार एकत्रित या संकलित किया जाता है। इस प्रकार की प्राथमिक सामग्री सर्वथा मौलिक सूचना होती है। अनुसंधानकर्ता जब स्वयं ही अध्ययन-क्षेत्र में जाकर साक्षात्कार, प्रश्नावली एवं अनुसूची के द्वारा विभिन्न लोगों से सम्पर्क स्थापित करे, आवश्यक सूचनाएँ या सामग्री को एकत्रित करे तो उसे प्राथमिक सामग्री कहा जाता है।
प्रोफेसर बागले ने तथ्यों के दो प्रमुख स्रोत मानते हैं- (1) प्राथमिक तथा द्वितीयक स्रोत। प्राथमिक स्रोत के अन्तर्गत वास्तविक, व्यक्तिगत तथा प्रत्यक्ष निरीक्षण आता है। इसके विपरीत द्वितीयक स्रोत में सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा प्रस्तावित या अप्रकाशित अथवा लिखित उल्लेख किया जाता है।
लुण्डवर्ग ने तथ्यों के दो स्रोत माने हैं (1) ऐतिहासिक स्रोत- (अ) प्रलेख, कागजात, शिलालेख इत्यादि, (ब) भू-तत्वीय स्तर या खुदाई से प्राप्त वस्तुएँ। (2) क्षेत्रीय स्रोत- जिसके अन्तर्गत (अ) जीवित व्यक्ति से प्राप्त विशिष्ट सूचनाएँ तथा (ब) क्रियाशील व्यवहारों का प्रत्यक्ष निरीक्षण किया जाता है। ऐतिहासिक एवं क्षेत्रीय स्रोतों के अतिरिक्त उपरोक्त विद्वानों के विचारों के आधार पर तथ्यों के दो मुख्य स्रोतों का उल्लेख किया जा सकता है। इन दो स्रोतों में प्राथमिक या क्षेत्रीय तथा द्वितीयक अथवा लिखित स्रोतों का नाम उल्लेखनीय है।
द्वितीयक सूचना के स्रोत
द्वितीयक स्रोत के अन्तर्गत सभी ऐतिहासिक और लिखित स्रोत आते हैं, इसलिए इन्हें प्रलेखनीय स्रोत भी कहते हैं। इन स्रोतों के अन्तर्गत प्राचीन ग्रन्थ, शिलालेख, पत्र, डायरी, आत्मकथा, सरकारी रिपोर्ट, जनगणना रिपोर्ट आदि सम्मिलित किये जाते हैं। स्पष्ट है कि इन सभी स्रोतों में हम अपनी आवश्यकता के अनुसार अपने अध्ययन विषय के सम्बन्ध में आवश्यक तथ्यों को एकत्रित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि हमें किसी समुदाय का जनसंख्या सम्बन्धी अध्ययन करना है तो इस अध्ययन विषय के सम्बन्ध में अनेक आवश्यक तथ्य हमें जनगणना रिपोर्ट से प्राप्त हो सकते हैं। उसी प्रकार अनेक अध्ययन विषयों के विकास को समझने के लिये ऐतिहासिक सामग्री जैसे प्राचीन ग्रन्थ, शिलालेख आदि से हमें महत्वपूर्ण सूचनायें प्राप्त हो सकती हैं।
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