अनुक्रम (Contents)
भोजन में पाये जाने वाले विभिन्न पोषण तत्त्वों का महत्त्व | पोषक तत्त्वों के कार्य
हमारे भोजन में निम्नलिखित पोषक तत्वों का होना आवश्यक है-
(1) प्रोटीन (Protein), (2) वसा (Fats), (3) लवण (Mineral Salts), (4) श्वेतसार (Carbohydrates), (5) जल (Water) तथा (6) विटामिन (Vitarnins) ।
1. प्रोटीन (Protein)
प्रोटीन तत्त्व कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन नाइट्रोजन, गन्धक तथा फॉस्फोरस तत्वों के मिश्रण से बनता है। नाइट्रोजन पदार्थ मूत्र के द्वारा प्रतिदिन निकलता रहता है। नाइट्रोजन की इस कमी को प्रोटीन के द्वारा हो पूरा किया जाता है।
प्रोटीन के कार्य (Function of Proteins)
प्रोटीन के निम्नलिखित कार्य होते हैं- (1) प्रोटीन नये कोषों का निर्माण करती है तथा टूटे-फूटे कोषों की मरम्मत करती है। (2) शरीर की वृद्धि के लिए प्रोटीन का विशेष महत्व है। (3) शरीर में श्वेतसार की कमी के समय प्रोटीन द्वारा ऊष्मा और शक्ति उत्पन्न करके पूर्ति की जाती है। (4) प्रोटीन के द्वारा ही पाचक रसों खमीरों और प्रणाली विहीन ग्रन्थियों के रस बनते हैं। (5) यह शरीर में रोग निवारण शक्ति पैदा करती है।
प्रोटीन की प्राप्ति (Sources of Proteins)
प्रोटीन मुख्य रूप से अण्डे की सफेदी, गोश्त, दूध, मटर, दाल एवं सेम आदि खाद्य पदार्थों में पायी जाती है।
2. वसा (Fats)
वसा का निर्माण, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से हुआ है। इसके प्रत्येक पदार्थ में चर्बीदार अम्ल तथा ग्लिसरीन का मिश्रण रहता है।
वसा के कार्य (Function of Fats)
वसा के निम्नलिखित कार्य होते हैं-
(1) वसा का कार्य शरीर को ताप पहुँचाना तथा शक्ति उत्पन्न करना है। (2) शरीर के तापक्रम को सुरक्षित रखना है। (3) अनेक वानस्पतिक तेलों द्वारा विटामिन E और K प्राप्त होता है तथा प्राणिज वर्ण की वसा द्वारा A और D विटामिन की प्राप्ति होती है।
वसा की प्राप्ति (Sources of Fats)
वसा चिकने पदार्थों में अधिकता में पायी जाती है। प्राणिज वर्ग की वसा मुख्य रूप से दूध, घी, मक्खन, डालडा, अण्डे, मछली तथा पशुओं की चर्बी में पायी जाती है। वनस्पति वर्ग की वसा तिलहन या मूँगफली, सरसों, सूखे नारियल, बादाम, अखरोट एवं काजू आदि की मिगी में पायी जाती है।’
3. खनिज लवण (Mineral Salts)
खनिज लवण हमारे शरीर के प्रमुख तत्व हैं क्योंकि शरीर के भार का 20 वाँ भाग इनके द्वारा ही निर्मित होता है। खनिज लवण हमारे शरीर से पर्याप्त मात्रा में निकलते रहते हैं, अतः भोजन के माध्यम से इनकी पूर्ति आवश्यक रूप से होती रहनी चाहिये।
खनिज लवण के कार्य (Functions of Mineral Salts)
खनिज लवर्णों के निम्नांकित कार्य होते हैं-
(1) ये पाचक रसों को उत्तेजित करते हैं। (2) खनिज लवण तेजाब क्षार का सन्तुलन बनाये रखने में योगदान देते हैं। (3) ये शरीर के सामान्य विकास में सहयोग देते हैं। (4) इनके द्वारा हृदय की गति पर नियन्त्रण स्थापित होता है।
प्रमुख खनिज लवणों में साधारणतया नमक, कैल्सियम, फॉस्फेट, आयोडीन एवं लोहा आदि आते हैं।
4. श्वेतसार (Carbohydrates)
श्वेतसार में कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का सम्मिश्रण रहता है।
श्वेतसार के कार्य (Functions of Carbohydrates)
श्वेसतार के निम्नलिखित कार्य होते है-
(1) इसका प्रमुख कार्य शरीर में शक्ति एवं गर्मी देना है। (2) इसका प्रमुख उपयोग उस समय होता है जब माँसपेशियाँ श्रमशील होती हैं। (3) अधिक शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्तियों के लिए श्वेतसार का पर्याप्त प्रयोग आवश्यक है।
परन्तु यह बात ध्यान में रखने योग्य है कि अत्यधिक प्रयोग भी हानिकारक होता है क्योंकि यह अपच और अफरा उत्पन्न करता है। श्वेतसार के स्रोत- श्वेतसार के प्रमुख स्रोत हैं-चावल, गेहूँ, ज्वार, मक्का, अखरोट, साबूदाना तथा आलू । चुकन्दर, शकरकन्द, अंगूर, गन्ना एवं गुड़ में भी यह पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
5. जल (Water)
जल शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। हमारे शरीर में लगभग 70 प्रतिशत जल ही होता है, जल का मुख्य कार्य भोजन को गलाने, पचाने एवं शरीर में शोषित होने में विशेष सहायता देता है। जल शरीर की मलक्रिया विसर्जन में विशेष सहायक होता है। पेशाब और पसीने के माध्यम से पर्याप्त मात्रा में नित्य पानी निकल जाता है, ऐसी दशा में पर्याप्त मात्रा में पानी को पीना आवश्यक है। जल शरीर के ताप को बनाये रखता है। जल मल निष्कासन में सहायता करता है।
6. विटामिन (Vitamins)
विभिन्न विटामिनों का शरीर में विशेष महत्व है। इसका प्रमुख कार्य शरीर में रोगनाशक शक्ति उत्पन्न करना है। ये शरीर की पाचन क्रिया तथा स्नायु क्रिया को भी शक्ति प्रदान करते हैं। इनके अभाव में शरीर में अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं तथा शरीर का विकास भी अवरुद्ध हो जाता है। विटामिन अनेक प्रकार के होते हैं। यहाँ हम प्रमुख विटामिनों का उल्लेख करेंगे-
विटामिन ‘A’ – यह एक वृद्धिकारक विटामिन है। इसके अभाव से शरीर की वृद्धि रुक जाती है। यह विटामिन हमको दूध, गाजर, टमाटर, पालक, मक्खन, अण्डे एवं मछली के तेल आदि से प्राप्त होता है।
विटामिन ‘B’ – विटामिन ‘B’ नौ प्रकार के होते हैं। B, के अभाव में भूख कम लगती है, सिर में दर्द रहता है तथा शरीर के विभिन्न भागों में भी दर्द रहता है। इस विटामिन के अभाव में प्रायः बेरी-बेरी रोग हो जाया करता है। यह विटामिन बिना पालिश किये चावल, गेहूँ, छिलकेदार दालें, मेवे तथा दूध में पाया जाता है।
B, विटामिन की कमी होने के कारण रक्त श्वेत कर्णों के जीवाणु-भक्षण क्षमता में बाधा पड़ती है तथा जीभ पर एक-एक घाव बन जाता है। इसके अभाव में आँखों में सूजन आ जाती है। पनीर, दूध, अण्डे की सफेदी, मछली, गोश्त तथा हरी सब्जियों में यह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
विटामिन ‘C’ – इसके अभाव में उत्तेजकता, थकावट, अस्वस्थ मसूड़े एवं रक्तहीनता आदि बीमारियाँ हो जाती हैं। इस विटामिन की न्यूनता से स्कर्वी (Scurvy) नामक रोग हो जाने की सम्भावना रहती है। विटामिन ‘सी’ की प्राप्ति के प्रमुख साधन सन्तरा, नीबू, चकोत्तरा, आँवला, अंगूर, केला, सेब तथा अंकुरित दालें हैं।
विटामिन ‘D’ – विटामिन ‘D’ दो प्रकार से प्राप्त होता है। प्रथम, दूध, मक्खन, अण्डे की जर्दी, घी एवं मछली का तेल आदि से। दूसरे, सूर्य का प्रकाश त्वचा पर पड़ने से। विटामिन ‘D’ की न्यूनता से बालकों की अस्थियाँ कमजोर हो जाती हैं तथा उन्हें सूखा रोग (Rickett) हो जाता है।
विटामिन ‘K’ – चोट लगने पर यदि रक्तस्राव होता है, तो उसे जमाने में विटामिन ‘K’ ही सहायक होता है। यह हरे साग-सब्जी; जैसे- पालक, मैथी, फूलगोभी आदि में पाया जाता है। इसके अभाव में व्यक्ति सन्तान उत्पन्न करने योग्य नहीं रह जाता।