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विश्व व्यापार संगठन का इतिहास, कार्य और उद्देश्य – WTO IN HINDI

विश्व व्यापार संगठन का इतिहास
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विश्व व्यापार संगठन का इतिहास, कार्य और उद्देश्य – WTO IN HINDI

विश्व व्यापार संगठन का इतिहास, कार्य और उद्देश्य – WTO IN HINDI- Hello Students Currentshub.comपर आपका एक बार फिर से स्वागत है मुझे आशा है आप सभी अच्छे होंगे. दोस्तो जैसा की आप सभी जानते हैं की हम यहाँ रोजाना Study Material अपलोड करते हैं. ठीक उसी तरह आज हम विश्व व्यापार संगठन से सम्बन्धित बहुत ही महत्वपूर्ण “विश्व व्यापार संगठन का इतिहास, कार्य और उद्देश्य – WTO IN HINDI  शेयर कर रहे है.

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विश्व व्यापार संगठन का इतिहास, कार्य और उद्देश्य – WTO IN HINDI

अर्थ:-

विश्व व्यापार संगठन (WTO) एक बहुपक्षीय संगठन है जो विश्व के विभिन्न देशों के मèय वस्तुओं एवं सेवाओं के मुक्त व्यापार की सुविधा एवं निष्पक्ष व्यापार को बढ़ावा प्रदान करता है। यह 149 सदस्य देशों का संगठन है, जो वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात-निर्यात को सरल बनाते हैं। WTO का प्रमुख उíेश्य विश्व-आय को व्यापार के जरिए बढ़ावा एवं सदस्य देशों के समृ)ि के स्तर को ऊँचा उठाना हैं। WTO जनवरी 1ए1995 को असितत्व में आया। WTO पूर्ववर्ती तटकर एवं व्यापार पर सामान्य समझौता (GENERAL AGREEMENT ON TARIFF AND TRADE) का ही नया रूप है, जिसे GATT से अèािक शकितयां एवं कार्य सौंपे गए, GATT की स्थापना सन 1948 में द्वितीय विश्व यु) के तुरन्त बाद 23 सदस्य देशों ने मिलकर की थी। GATT के अन्तर्गत सन 1994 तक आठ व्यापार वार्ताएँ हो चुकी हैं। अंतिम व्यापार वार्ता उरूग्वे दौर थी, जिससे विश्व व्यापार संगठन (WHO) की स्थापना हुर्इ।

विश्व व्यापार संगठन का इतिहास 15 अप्रैल, 1994 से प्रारम्भ होता है जब मोरक्को के एक शहर “मराकेश” में चार दिवसीय वार्ता प्रारम्भ हुई थी. इस सम्मेलन की अध्यक्षता “प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौता”, जिसे “गैट/GATT” कहते हैं, के प्रथम महानिदेशक पीटर सदरलैंड ने की थी. वस्तुतः इसी सम्मलेन में “गैट” को नया नाम “विश्व व्यापार संगठन/Word Trade Organization/WTO” दिया गया. यह संगठन 1 जनवरी, 1995 से अस्तित्व में आया. इसके प्रथम स्थायी अध्यक्ष इटली के एक प्रमुख व्यवसायी रेनटो रुगियरो (Renato Ruggiero) बनाए गये.

विश्व व्यापार संगठन (WTO) वास्तव में विश्व की भावी अर्थव्यवस्था को नियंत्रित एवं संचालित करने वाला एक दस्तावेज है, जो गैट के पुराने स्वरूप में संशोधन कर व्यापार का विस्तार कर रहा है.

सदस्य देश

‘विश्व व्यापार संगठन’ में 160 सदस्य हैं। वर्ष 2001 में चीन भी इसमें सम्मिलित हो गया था। डब्ल्यूटीओ की सबसे बड़ी संस्था ‘मंत्रिस्तरीय सम्मेलन’ है। यह प्रत्येक दो वर्ष में अन्य कार्यों के साथ संस्था के महासचिव और मुख्य प्रबन्धकर्ता का चुनाव करती है। इसके साथ ही वह ‘सामान्य परिषद’[3] का काम भी पूरी तरह से देखती है। सामान्य परिषद विभिन्न देशों के राजनयिकों से मिलकर बनती है, जो प्रतिदिन के कामों को परखती है।

विश्व व्यापार संगठन और GATT

विश्व व्यापार संगठन का मूल “प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौता”/”GATT” (General Agreement on Tariffs and Trade) में निहित है. GATT की स्थापना 1948 में मूलतः 23 संस्थापक देशों द्वारा की गई थी जिनमें भारत भी एक था.

GATT के तत्त्वावधान में हुई आठवें दौर की वार्ता (1986-1994) के फलस्वरूप 1 जनवरी, 1995 को “विश्व व्यापार संगठन” (World Trade Organisation) जा जन्म हुआ, जिसे “उरग्वे दौर” के नाम से जाना जाता है. इसके पहले GATT केवल वस्तुओं के व्यापार तक सीमित था. उरुग्वे दौर की वार्ता में कई नए समझौतों पर भी बातचीत हुई, जिनमें सेवा व्यापार का आम समझौता और बौद्धिक सम्पदा अधिकार के व्यापार से जुड़े पहलुओं पर समझौते अब मूल संगठन “विश्व व्यापार संगठन” में समाहित हो गये हैं. विश्व व्यापार संगठन (WTO) का मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा शहर में है और इसके वर्तमान में भारत समेत 164 सदस्य देशहैं. इससे जुड़ने वाला नवीनतम देश अफगानिस्तान है.

विश्व व्यापार संगठन का उद्देश्य

पीटर सदरलैंड ने अपने एक भाषण में कहा था कि विश्व व्यापार संगठन का उद्देश्य विश्व के देशों को व्यापार एवं तकनीकी क्षेत्रों में एक नई राह पर लाना है. World trade organization का मुख्य उद्देश्य विश्व में मुक्त, अधिक पारदर्शी तथा अधिक अनुमन्य व्यापार व्यवस्था को स्थापित करना है.

विश्व व्यापार संगठन ठोस कानूनी तंत्र पर आधारित है. इसके समझौतों की सदस्य देशों के सांसदों द्वारा पुष्टि की गई है. विश्व व्यापार संगठन पर किसी एक देश का अधिकार नहीं है. महत्त्वपूर्ण फैसले सदस्य देशों के निर्दिष्ट मंत्रियों द्वारा किये जाते हैं. ये मंत्री हर दो साल में कम-से-कम एक बार जरुर मिलते हैं.

विश्व व्यापार संगठन (WTO) के पास विभिन्न देशों के व्यापारिक मतभेदों को सुलझाने की शक्ति प्राप्त है.

विश्व व्यापार संगठन के कार्य

विश्व व्यापार संगठन के महत्त्वपूर्ण कार्यों का उल्लेख निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है –

  1. विश्व व्यापार समझौता एवं बहुपक्षीय समझौतों के कार्यान्वयन, प्रशासन एवं परिचालन हेतु सुविधाएँ प्रदान करना.
  2. व्यापार एवं प्रशुल्क से सम्बंधित किसी भी भावी मसले पर सदस्यों के बीच विचार-विमर्श हेतु एक मंच के रूप में कार्य करना.
  3. विवादों के निपटारे से सम्बंधित नियमों एवं प्रक्रियाओं को प्रशासित करना.
  4. व्यापार नीति समीक्षा प्रक्रिया से सम्बंधित नियमों एवं प्रावधानों को लागू करना.
  5. वैश्विक आर्थिक नीति निर्माण में अधिक सामंजस्य भाव लाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) एवं विश्व बैंक से सहयोग करना, तथा
  6. विश्व संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग करना.

WTO के मंत्रिस्तरीय सम्मेलन

विश्व व्यापार संगठन की निर्णायक संस्था इसके सदस्य देशों के मंत्रियों का सम्मलेन है जिसकी दो वर्ष में बैठक होना अनिवार्य है. यह सम्मलेन बहुपक्षीय व्यापार समझौते के अंतर्गत किसी भी मामले पर निर्णय कर सकता है.

विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के बाद से मंत्रिस्तर के 11 सम्मलेन हो चुके हैं. हाल ही में दिसम्बर, 2017 में WTO का 11वाँ मंत्रिस्तरीय सम्मलेन अर्जेंटीना की राजधानी Buenos Aires शहर में आयोजित हुआ. विदित हो कि WTO का पहला सम्मलेन सिंगापुर में दिसम्बर 1996 में हुआ था.

बैठक तिथि मेजबान देश
1st 9–13 December 1996  सिंगापुर
2nd 18–20 May 1998 Switzerland जेनेवा, स्विट्ज़रलैंड
3rd 30 November – 3 December 1999 United States सिएटल, अमेरिका
4th 9–14 November 2001 Qatar दोहा, क़तर
5th 10–14 September 2003 Mexico कान्कुन, मेक्सिको
6th 13–18 December 2005  हांग कांग
7th 30 November – 2 December 2009 Switzerland जेनेवा, स्विट्ज़रलैंड
8th 15–17 December 2011 Switzerland जेनेवा, स्विट्ज़रलैंड
9th 3–6 December 2013 Indonesia बाली, इंडोनेशिया
10th 15–18 December 2015 Kenya नैरोबी, केन्या
11th 10–13 December 2017 Argentina ब्यूनस आयर्स, अर्जेंटीना

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इन सम्मेलनों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण “दोहा” में सम्पन्न सम्मलेन को माना जाता है. दोहा मंत्रिस्तरीय सम्मलेन (2001) में एक व्यापाक कार्ययोजना स्वीकार की गई थी जिसे “दोहा विकास एजेंडा” कहा गया. इसके जरिये कुछ वार्ताएँ प्रारम्भ की गईं तथा कृषि एवं अन्य सेवाओं पर कुछ निर्णय लिए गये जिन्हें लागू भी किया गया. दोहा विकास एजेंडा पर पूर्ण सहमति न बनने के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका है.

WTO की अगली मंत्रिस्तरीय बैठक 2020 में होने जा रही है. यह बैठक कजाखिस्तान के अस्ताना में आयोजित होगी. मध्य एशिया में इस प्रकार की बैठक पहली बार हो रही है.

WTO की 11वीं बैठक

अर्जेंटीना में आयोजित WTO की मंत्रिस्तरीय 11वीं बैठक में कोई विशेष उपलब्धि नहीं हो सकी. एक ओर जहाँ अमेरिका ने खाद्य सब्सिडी के प्रस्ताव को block कर दिया वहीं दूसरी ओर भारत ने ई-कॉमर्स और निवेश जैसे विषयों पर अपना रुख कड़ा रखा. मत्स्यपालन की सब्सिडी को समाप्त करने का प्रस्ताव भी चीन और भारत की उपेक्षा के कारण पारित नहीं हो सका.

WORD TRADE ORGANISATION का प्रभाव

विश्व व्यापार संगठन और इसके समझौतों का असर हर आर्थिक गतिविधि पर होना है चाहे वह कृषि हो, व्यापार सेवा हो या उत्पादन. WTO व्यवस्था से उन देशों को ज्यादा लाभ मिलेगा जो चल रही वार्ता में अधिक चतुराई दिखा सकते हैं. जो सरकारें अपने उद्योगों और प्रभावित होने वाले समूहों से लगातार सम्पर्क में हैं उन्हें यह जानने में सहूलियत होगी कि बहु-उद्देश्यीय वार्ताओं में अधिक से अधिक लाभ उठाने के लिए क्या और कैसे बातचीत की जाए. विश्व व्यापार संगठन के अस्तित्व में आने से आर्थिक नीतियों के उदारीकरण एवं अंतर्राष्ट्रीयकरण की वकालत करने वाली विचारधाराएँ न केवल मजबूत हुईं हैं बल्कि एक मजबूत कानूनी जामा पहन चुकी हैं. राष्ट्रों के लिए इन विचारधाराओं से अलग रास्ते पर चलना असंभव हो चला है. जिन राष्ट्रों ने इसकी महत्ता को समझ लिया है वे तेजी से अंतर्राष्ट्रीय स्पर्द्धा में आगे बढ़े हैं और विजयी रहे हैं. जो राष्ट्र अभी भी इस पर बहस ही कर रहे हैं वे न तो अपने उद्योगों का भला कर रहे हैं और न ही अपने राष्ट्र का.

विश्व समुदाय के लिए विश्व व्यापार संगठन इतना अधिक उपयोगी होते हुए भी अपनी मंजिल पाने में असफल रहा है.असफलता के मूल में कई कारण हो सकते हैं जिनका समाधान तलाशे बिना यह संगठन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकता.

विश्व व्यापार संगठन का AGENDA और उसका औचित्य

विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के समय जो समझौते हुए उन्हें “विश्व व्यापार संगठन का एजेंडा” कहा जाता है. इन समझौतों में विकसित देशों ने यह वादा किया था कि वे कृषि को दी जाने वाली अपनी सब्सिडी में भारी कमी करेंगे और विकासशील देश अपने कृषि उत्पादों को विकसित देशों में बेच पायेंगे. भारत सरकार द्वारा भी यह प्रचारित किया था कि भारत के फल-फूल-सब्जियाँ और अन्यान्य नकदी फसलें विदेशों में बेचकर भारत के किसानों को भारी फायदा होगा. लेकिन पिछले 20 से अधिक वर्षों का अनुभव यह बताता है कि भारत के किसानों को विश्व व्यापार संगठन से कोई अधिक लाभ नहीं हुआ है. विकसित देशों ने अपनी सब्सिडी घटाने के बजाय चार गुनी बढ़ा दी है. यहाँ यह उल्लेखनीय है कि विकासशील देशों में विश्व व्यापार संगठन के समझौतों को उनकी कृषि की बदहाली का मुख्य कारण माना जाता है. यही कारण है कि विश्व व्यापार संगठन के पिछले सम्मेलनों में विकसित देशों को विकासशील देशों की सरकारों का ही नहीं बल्कि जनसंगठनों का भी भारी विरोध झेलना पड़ा है.

भारत और विश्व व्यापार संगठन

भारत विश्व व्यापार संगठन का संस्थापक सदस्य देश है तथा विकासशील देशों के समूह को प्रस्तुत करता है, इसलिए कुछ प्रमुख समझौते जो कि भारत द्वारा हस्ताक्षरित किए गए है उनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार से हैं-

(1) टैरिफ एवं नान टैरिफ अवरोधों में कमी – इस समझौते के अन्तर्गत विनिर्माण वस्तुओं के संदर्भ में ऊँची टैरिफ दरों को समयब) तरीके से कम किया जाए तथा परिणामात्मक प्रतिबंधों को हटा लिया जाए, जिससे दीर्घकाल में प्रतियोगी वातावरण विश्व व्यापार में स्थापित हो सके।

(2) व्यापार संबंध निवेश उपाय –

इस समझौते के अनुसार मेजबान देश को विदेशी निवेश एवं घरेलू निवेश की विभेदात्मक नीतियों को दूर करना चाहिए। अर्थात सभी देशों के मध्य मुक्त विदेशी निवेश नीतियों का पालन होना चाहिए।

(3) व्यापार संब) बौ)िक संपदा अधिकार (TRIPS)

भारत के दृषिटकोण से एक अत्यन्त चिन्ता का विषय का क्षेत्रा है। आज के  दौर में विकसित देशों ने इन अधिकारों के संरक्षण के लिए कई कड़ी शर्तों को विकासशील देशों पर थोपा है। इसका उद्देश्य विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को लाभ पहुँचाना है। भारत के 1970 पेटेंट एक्ट के अधीन औषधियों पर केवल प्रक्रिया पेटेंट लेने की जरूरत होती थी, अर्थात किसी भी भारतीय कम्पनी के लिए केवल इतना काफी था कि वह कई औषधियों बनाने की अपनी प्रक्रिया या रीति विकसित करे और फिर उस पर पेंटट ले ले। औषधियों का उत्पादन वही कंपनियाँ कर पाएंगी जिन्हें उनका उत्पाद पेटेंट प्राप्त हो, क्योंकि उत्पाद पेटेंट अधिकार विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के पास हैं इसलिए इसका अर्थ यह है कि यही कम्पनियाँ उत्पाद पेटेंट वाली औषधियों का उत्पादन कर सकेगी फलस्वरूप इससे भारतीय औषधि उत्पादक इकाईयों को गहरा झटका लगेगा तथा बहुत.सी महत्त्वपूर्ण दवाईयों की कीमते बढ़ जाएगीं और गरीब व्यक्तियों की पहुँच से औषधियाँ बाहर हो जाएगी, जिससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

(4) कृषि पर समझौता (Agreement on Agriculture)

– इस समझौते के अन्तर्गत सभी सदस्य देशों को बाजार पहुँच, निर्यात सहायता, सरकारी सहायता को कृषि वस्तुओं के संदर्भ में कम करना होगा ताकि विश्व व्यापार मुक्त एवं प्रतियोगी वातावरण में आगे बढ़ सके, जिसके फलस्वरूप भारतीय कृषि वस्तुओं को विदेशी बाजार प्राप्त हो सके एवं वस्तुओं की गुणवत्ता बढ़ सके।

(5) बहु फाईबर समझौता (Multi-Fiber Agreement) – WTO के विशेषज्ञों का मानना है कि जनवरी 1,2005 में बहु-फाईबर समझौते के समाप्त होने से विकासशील देशों को बहुत लाभ मिलेगा, क्योंकि भारत कपड़ों का काफी निर्यात करता हैं, इसलिए श्डथ्।श् के समाप्त होने से उसे विकसित देशों का एक बड़ा बाजार मिल जायेगा, परन्तु भारत को विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना करना होगा। इसलिए भारत को अन्य देशों जैसे चीन, वियतनाम, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया इत्यादि के वस्त्रा उधोगों की तुलना में उत्पाद की किस्म (गुणवत्ता) एवं लागत को प्रतियोगी बनाना होगा। संभवत: कोटा-मुक्त वातावरण में सबसे अधिक लाभ चीन को मिलेगा, क्योंकि वह अपेक्षाकृत अधिक प्रतियोगी (गुणवत्ता एवं कीमत से संदर्भ में) है।

निष्कर्ष

भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में ज्व् के अन्तर्गत यह उम्मीद की जाती हैं कि वस्त्रा उधोग क्षेत्रा, चमड़ा एवं चमड़ा उत्पाद क्षेत्रा, टेक्सटाइल क्षेत्रा, खाधक्षेत्रा, पेय पदार्थ क्षेत्रा, तम्बाकू इत्यादि क्षेत्राों में उत्पादन एवं निर्यात विकास की प्रचुर संभावनाएँ निहित हैं। हालांकि, बदलते वातावरण में जिसमें प्रतियोगी एवं मुक्त बाजार में हमें नई नीतियों को पारदर्शिता से तथा विकासशील देशों के संदर्भ में पुन: विचार करते हुए गम्भीरता से दृष्टी डालने की आवश्यकता है।

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shubham yadav

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